तकि तकि कें वाण मारा करे !

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तकि तकि कें वाण मारा करे,

प्राण हुलसिया;

प्राँगण प्रकृति के खेला किए,

जीव उमरिया !

हर आत्म रही अपनी,

अखेटन की ठिठोरन;

हर खाट बैठे वे ही रहे,

चितेरे से बन !

हर ठाठ-बाट हर ललाट,

ललक लास्य भर;

हर ओज खोज औ सरोज,

सौम्य सुधा क्षर !

साहस भरोसा भाव चाव,

ताव ख्वाब दे;

गरिमा गवेषणा की सुधा,

अंग अंग दे !

हन हन के अपने सपने,

वे ही खुद मिटा किए;

देखे तटस्थ ‘मधु’ के प्रभु,

युद्ध यह रहे !

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