बता दीजिए किसकी है मुंबई

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मुंबई देश का सबसे बड़ा शहर ही नहीं है, वह देश की आर्थिक धड़कनों का भी गवाह है। यहां लहराता हुआ समुद्र, अपने अनंत होने की और आपके अनंत हो सकने की संभावना का प्रतीक है। यह चुनौती देता हुआ दिखता है। समुद्र के किनारे घूमते हुए बिंदास युवा एक नई तरह की दुनिया से रूबरू कराते हैं। तेज भागती जिंदगी, लोकल ट्रेनों के समय के साथ तालमेल बिठाती हुई जिंदगी, फुटपाथ किनारे ग्राहक का इंतजार करती हुई महिलाएं, गेटवे पर अपने वैभव के साथ खड़ा होटल ताज और धारावी की लंबी झुग्गियां मुंबई के ऐसे न जाने कितने चित्र हैं, जो आंखों में कौंध जाते हैं। सपनों का शहर कहीं जाने वाली इस मुंबई में कितनों के सपने पूरे होते हैं यह तो नहीं पता, पर न जाने कितनों के सपने रोज दफन हो जाते हैं। यह किस्से हमें सुनने को मिलते रहते हैं। लोकल ट्रेन पर सवार भीड़ भरे डिब्बों से गिरकर रोजाना कितने लोग अपनी जिंदगी की सांस खो बैठते हैं इसका रिकार्ड शायद हमारे पास न हो, किंतु शेयर का उठना-गिरना जरूर दलाल स्ट्रीट पर खड़ी एक इमारत में दर्ज होता रहता है। अब इसी शहर में, देश के हर कोने से अपने सपनों के साथ आते लोग घबराने लगे हैं। उसकी कास्मोपोलिटन रंगत को बिगाड़ने की कोशिशें हमारी राजनीति सायास कर रही है। तब क्या हम भारत के लोगों को खामोश होकर बैठ जाना चाहिए।

चंद पाकिस्तानी नौजवान आकर मुंबई जब आतंकवादी हमला करते हैं तो उनसे तो हमारे बहादुर नौजवान अपनी जान पर खेलकर मुंबई को मुक्त करा सकते हैं पर जब अपने बीच के लोग ही जहर बो रहे है तो रास्ता क्या है। आरएसएस से लेकर राहुल गांधी अगर सब मानते हैं कि शिवसेना और मनसे की राजनीति देशतोड़क, देश विरोधी, समाज विरोधी है तो क्या कारण है ये जहर उगलते लोग सड़कों पर धूम रहे हैं। महाराष्ट्र और देश में क्या कोई सरकार भी है या नहीं इस पर संदेह होने लगा है। आज की राजनीति का ऐसा विकृत चेहरा ही सब समस्याओं की जड़ है। बेहतर होता कि देश की राजनीति में सक्रिय दल और समूह एक होकर ऐसी देशतोड़क राजनीति का विरोध करते। राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ ने जब ऐसी राजनीति को गलत बताया तो आखिर भाजपा को संकोच क्यों। क्या बीजेपी को यह बात साफ नहीं करनी कि उसका राष्ट्रवाद क्या शिवसेना जैसे दलों का बंधक नहीं है कि वे कुछ भी अर्नगल बकते रहें और भाजपा एक सहयोगी के नाते सहमी खड़ी रहे। अब बात राहुल गांधी की वे भी यह कहते आ रहे हैं मुंबई सबकी है। भाई हमें भी ये पता है कि मुंबई सबकी है किंतु आपकी सरकार के रहते ही राज ठाकरे की धृणास्पद राजनीति को विस्तार मिला है। कांग्रेसजन इसी बात से मुग्ध हैं कि भतीजा तो चाचा को निपटा रहा है। समस्या के समाधान या इन बेलगाम लोगों को नियंत्रित करने की गंभीर सरकारी पहल कभी नहीं दिखी। अब देर से ही सही जब आलाकमान जागे हैं तो इसके कुछ शुभ परिणाम भी सामने आने चाहिए। क्योंकि शिवसेना और मनसे जैसे दलों का इलाज मौखिक आलोचना से संभव नहीं। ऐसे लोकतंत्र और संवाद विरोधी दलों के नेताओं की जगह सिर्फ जेल में हैं किंतु हमारी राजनीति न जाने कब इन सफेदपोश गुंडों की गिरफ्त से देश की आर्थिक राजधानी को मुक्त करवाएंगें।

राहुल गांधी की नजर अगर सिर्फ बिहार के चुनावों पर वोट लेने तक केंद्रित नहीं है तो केंद्र सरकार को दुनिया के भीतर भारत और मुंबई की छवि बिगाडने वालों पर कठोर कार्रवाई करनी चाहिए। एक तरफ हम आस्ट्रेलिया में भारतवंशियों पर हो रहे हमलों से व्यथित हैं तो दूसरी ओर हमारे अपने लोग अपने ही देश में नस्ली धृणा का शिकार बन रहे हैं। पिछले दिनों बाल ठाकरे ने आस्ट्रेलिया में भारतीयों पर हो रहे हमलों की निंदा की थी क्या ऐसा करने का हक उन्हें है। पहले वे अपने गुंडों पर लगाम लगाएं और उत्तर भारतीयों पर हमलों के लिए माफी मांगें तब उन्हें आस्ट्रेलिया के भारतवंशियों की चिंता करने का हक है। किंतु संविधान की शपथ लेकर बैठी हमारी सरकारें आखिर क्या चाहती हैं। क्या एक चुनाव जीतने भर के लिए राज ठाकरे जैसे लोगों को कांग्रेस को पालना चाहिए यह एक बड़ा सवाल है। ठाकरे परिवार सही मायने इस देश की एकता- अखंडता का शत्रु है। उनके कामों से निरीह, रोजी रोटी की तलाश में मुंबई आने वालों का जीना दूभर हो गया है। उनके भीतर निरंतर एक अज्ञात असुरक्षाबोध कायम हुआ है। इस असुरक्षाबोध से लोगों को निकालना सरकार की जिम्मेदारी है। क्या वह ऐसा कर रही है या करती हुई दिख रही है, शायद नहीं। हमें देखना होगा कि हम अपने लोकतंत्र को इस तरह एक मजाक में क्यों बदल रहे हैं। हमारे समय के महान राजनैतिक चिंतक डा. राममनोहर लोहिया ने कहा था ‘लोकराज लोकलाज से चलता है‘। क्या आज के संदर्भ में हमारी राजनीति और व्यवस्था ऐसा दावा कर सकती है। एक नई उम्मीद का वाहक होने का दावा करने वाले राहुल गांधी क्या महाराष्ट्र के मुख्यमंत्री को समझाइश देंगे या हमेशा कि तरह हम भारत के लोग राजनीतिज्ञों के खेल का फुटबाल ही बने रहेंगें। क्योंकि आज हम सब भारतवासी यह पूछने को मजबूर हैं कि आखिर किसकी है मुंबई।

-संजय द्विवेदी

9 COMMENTS

  1. sapne ko hakikat me badal baithe to hangama. sir article to umda hai . mumbey ki aadhi se jyada janta me to thakre sahb ka aatank hai .to kyon na es terrorist per macoca tameel kiya jaye . umeed hai aage bhi aise article likhenge,

  2. -संजय द्विवेदी साहब आप जिस राज्य के होंगे उस राज्य के नेता से रोजी रोटी के लिए नए रोजगार
    निर्माण करने के लिए क्यों नहीं कहते ? क्यों लोग मजबूर होकर ,अपना घर ,अपने बच्चे छोड़कर
    उन्हें रोजगार के लिए बहार जाना पड़ता है ! माना हरेक राज्य के लोग भारत में हर जगह रह सकते है !
    लेकिन अपने राज्य का दायित्व के लिए कोई अपने राज्य के नेता को नहीं कोसता ! ठाकरे परिवार के वजहसे
    मराठी लोगोंकी इज्जत है , नहीं तो बहार से आनेवाले यहाँ के मूल निवासी को मुंबई छोड़ने पर मजबूर
    करते ! मुंबई के लिए १०५ लोगोने अपनी बलि दी THI TAB JAKAR मुंबई MAHARASHTRA से JUD GAI
    है !

  3. भाई भारत हमारा है और सारे शहर हमारे है ! सोचो अगर अलाहाबाद में या पटना में वहां रहने वाले लोगोंसे
    100 गुना ज्यादा लोग रोजगार के लिए वहां बाहर से आएंगे और वहां के लोगोंकी रोजी -नौकरियां छीन लेंगे
    तब वहां के मूल निवासी चुप रहेंगे ? की हमारा शहर सभी भारतीयोंका है ऐसा सोचेंगे ?
    तब आपको मुंबई की समस्या का आकलन होगा ! भाई भारत में कोई किसी शहर में रोजगार के लिए जा सकता
    है ! लेकिन उसकी भी मर्यादा है ! मुंबई में रोज १०००-१२०० लोग आते है तो महानगर पालिका सभी को पानी
    और मूल सुविधा दे नहीं सकती ! यहाँ जो बरसों से रह रहे है , उनको आज पानी पूरा नहीं पड़ रहा !
    तो सोचो रोज बाहर से आनेवाली लोगोंकी बाढ़ से क्या होगा ? देश के नेता तो सिर्फ नोट और वोट के चक्कर में है !
    उन्हें क्या पर्वा है मुंबई डूबे या रहे ! हमें और सभी राज्य नेता को सोचना है की बेरोजगार मिटाने के लिए क्या किया
    जाय ! लेकिन हमारे देश के जैसे नाकारा नेता तो दुनिया में नहीं मिलेंगे !!!!!

  4. raj thakre ya balthakre se bade abhiyuct sonia gandhi aur manmohan singh hai kyo ki in logo ne itna badhawa diya hai.uad kijiye jab raj thakre ko sarkar protsahit kar rahi thi to bal thakre madan me nahi the wo to vote bank ki majburime unhe ana pada aur uttarbhartiyo ka mudda uthana pada.thik yahi kam indiraji ne bhindrawale ke mamlr me kiya tha aur pure desh ko salo bhugtana pada tha.vote bank ki rajneet congres sarkar hamesha se karati rahi hai wahi aj bhi kar rahi hai.natikta wagarah se in logo ka kab ka bharosa uth chuka hai nahi to aj mahagai par cogres ki rashtriya karyakaridi ki bathak ho rahi hai aur sabse mahatvaourd mahasachiv desh ke bhawi rajadhiraj bombe me aur bihar me voto ki fasal kat rahe hai. yahi inke rajneetka star hai. sharm ati hai ye soch kar ki kaise rashtriya dal hai ye.

  5. दिवेदी जी बधाई हो अच्छा लिखा
    बिलकुल माखन लाल चतुर्वेदी की tarah

  6. भाई वा अच्छा लिखा है ! लेकिन आप ये भूल गए की ५० साल से ज्यादा कांग्रेस ने देश पर राज
    किया है ! तो उन्होंने बिहार-यूपी -बंगाल का विकास क्यों नहीं किया ? क्यों वहां के लोग रोजी- रोटी
    के लिए दुसरे राज्य में मजबूरन जाते है ? आप कभी वहां के राजनेता को ,सरकार को नहीं कोसेंगे !
    बहार से लोगोंकी बाढ़ मुंबई में आती है ! हिंदी राष्ट्र भाषा है ,लेकिन अब्दुल कलाम , वेंकट रमण
    जैसे राष्ट्र पति को हिंदी नहीं आती ! ये भारत की विडम्बना है ! सभी बेरोजगार का ठेका महाराष्ट्र ने लिया
    है क्या ? बहार से आनेवाले यहाँ आकर ,चोरी की बिजली ,चोरी का पानी ,बिना टैक्स भरे जुग्गी
    झोपडिमे रहते है ! और यहाँ के टैक्स देनेवाले उनके भीड़ से परेशान होते है ! ये बिन बुलाये मेहमान
    की वजह से पानीकी किल्लत हो रही है और मुंबई भीड़ भाड़ से रहने लायक नहीं रह गयी है !
    रेल -बस की भीड़ इसमें आतंकवादी आराम से आ -जा सकते है ! अपने अपने राज्य का दायित्व है
    की अपने लोगो के लिए रोजगार निर्माण करें ! लेकिन कोई भी उन नेताके निकम्मेपन पर आपत्ति
    नहीं दिखा रहा है ! बस सिर्फ यही नारा देने आता है की मुंबई सब की है !

  7. अच्छा लिखा है हम इस बात की तारीफ करते और आपकी जुरत को सालाम करते है

  8. वाह दिवेदी जी
    अभी तक शायद किसी ने इतना कहने की जुर्रत नहीं की थी लेकिन आपने तो बिल्‍कुल कडवा सच लिख दिया
    और आपका ये वाक्‍य पूर्ण रूप से बिल्‍कुल खरा है कि ठाकरे परिवार सही मायने इस देश की एकता- अखंडता का शत्रु है।
    आशा है इसी प्रकार से लिखते रहेंगे

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