(6 अप्रैल, भाजपा के स्थापना-दिवस पर विशेष लेख)
वीरेन्द्र परिहार
राजनीति में दो दशक से ज्यादा बतौर राजनीतिक दल भारतीय जनसंघ कार्यरत रहा। जिसकी स्थापना पण्डित श्यामा प्रसाद मुखर्जी द्वारा जनवरी 1991 में हुई। डाॅ. मुखर्जी ने देश की एकता एवं अखण्डता के लिए अपनी कुर्बानी दे दी। एकात्म मानववाद के प्रणेता दीनदयाल उपाध्याय द्वारा भारतीय जनसंघ को पुष्पित, पल्लवित किया गया। उनका कहना था कि राजनीति देश के लिए होनी चाहिए। 1977 में इन्दिरा गांधी की तानाशाही एवं तात्कालिन आपातकालीन स्थितियों के चलते जयप्रकाश नारायण के आग्रह पर जनसंघ ने अपना विलय जनता पार्टी मंे कर दिया था। 1980 में जनसंघ घटक के लोगों ने अलग होकर एक नई पार्टी (भारतीय जनता पार्टी) बनाई, जिसकी स्थापना 06 अप्रैल 1980 को दिल्ली मंे हुई और अटल बिहारी वाजपेयी इसके प्रथम अध्यक्ष बने।
इंदिरा गांधी के दो सिख अंगरक्षकों ने 31 अक्टूबर 1984 को श्रीमती इंदिरा गांधी की हत्या कर दी। इसके परिणाम में कांग्रेसियों की अगुवाई में दिल्ली समेत पूरे देश में सिखों का कत्ले आम किया गया, जिसमें 8000 सिख मारे गए। सिख विरोधी भावना भड़काकर और हिन्दू साम्प्रदायिकता को उभाड़़कर 1984 के दिसम्बर के मध्याविधि चुनावों में कांग्रेस ने अपार सफलता पाई। परन्तु उपरोक्त परिस्थितियों के बावजूद भाजपा ने कहीं भी सिख-विरोधी रवैया नहीं अपनाया। भाजपा बराबर यह कहती रही कि हिन्दू और सिख दोनो ही एक शरीर की दो भुजाएं है। ऐसी स्थिति में यदि एक भाई कहीं रास्ता भटक भी जाता है तो दूसरे भाई को सम्पूर्ण संयम और धैर्य को परिचय देना होगा। इसके चलते 1984 के लोकसभा चुनाव में भाजपा को भले ही दो सीटे प्राप्त हुई हो। पर संघ और भाजपा के सिखो के प्रति एकात्म भाव के चलते ही अब पंजाब में पूर्णतः शांति है, और हिन्दुओं और सिखों में पूर्ववत रक्त-संबंध तथा भाईचारा कायम है। भाजपा भी यदि चाहती तो सिख विरोधी भावना भड़काकर राजनीतिक लाभ उठा सकती थी। लेकिन भाजपा के लिए दल के हित से ज्यादा महत्वपूर्ण राष्ट्र के हित रहे है, इसलिए उसने ऐसी स्थिति में पूर्णतः संयम और विवेक का परिचय दिया।
वर्ष 1998 में भाजपा की अगुवाई मे बनी एन.डी.ए. सरकार मात्र एक वोट से इसलिए गिर गई कि ए.आई.डी.एम. की प्रमुख जयललिता के दबाव के बावजूद तात्कालिन प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी ने संविधान विरोधी ढ़ंग से तमिलनाडु की करूणानिधि सरकार को बर्खास्त करने से इंकार कर दिया था। भाजपा ने इसके लिए तबके लोकसभा स्पीकर पर भी दबाव नहीं डाला कि वह गिरधर गोमांगों जो तब उड़ीसा के मुख्यमंत्री बन चुके थे, उनका वोट निरस्त कर दे। इतना ही नहीं एक वोट का जुगाड़ कोई कठिन काम नहीं था। पर यह भाजपा की नैतिकता ही थी कि सरकार गिरती है, तो गिरे पर हम अनैतिक तरीके से सरकार नहीं बचाएंगे। दूसरी तरफ कांग्रेस की अगुवाई में जुलाई 2008 के विश्वास-प्रस्ताव में पूरी दुनिया ने देखा कि कैसे कांग्रेस पार्टी ने विपक्ष के दर्जनों से ज्यादा संासदो को खरीदकर अपनी सरकार बचाई।
यह भाजपा की ही विशेषता है कि वह एक पूर्णतः लोकतांत्रिक संगठन है। जिसमें कोई छोटा से छोटा कार्यकर्ता भी शिखर तक पहुंच सकता है। वह किसी व्यक्ति विशेष या परिवार की पार्टी नहीं है। भारत के पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी स्वतः एक शिक्षक के बेटे हैं, तो लालकृष्ण आडवाणी पाकिस्तान से आएं शरणार्थी हैंे। भाजपा के प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी स्वतः कभी रेल्वे स्टेशन पर चाय बेचा करते थे। कुल मिलाकर भाजपा को कार्यकर्ताओं की पार्टी कहा जा सकता है। 2014 में भाजपा को लोकसभा में अकेले पूर्ण बहुमत मिल चुका है, जिसकी प्रत्यासा शायद ही किसी को रही हो। इतना ही नहीं सम्पूर्ण भारत ही क्रमशः-क्रमशः भाजपामय होता जा रहा है। गुजरात में तो 1995 से भाजपा सतत् सत्ता में है, तो मध्यप्रदेश और छत्तीसगढ़ में लगातार 2004 से सत्ता में बनी हुई है। वर्तमान में महाराष्ट्र, हरियाणा, असम, अरुणांचलप्रदेश, मणिपुर और गोवा में भी सत्ता में आ चुकी है। बड़ी बात यह कि उत्तराखण्ड के साथ देश के सबसे बड़े प्रांत उत्तरप्रदेश में भी भाजपा ऐतिहासिक जीत दर्ज कर चुकी है। जबकि राजनैतिक विश्लेषक उत्तरप्रदेश में मुस्लिम मतदाताओं की भारी संख्या देखते हुए वहां भाजपा को सत्ता में आना ही ‘‘टेढ़ी खीर मान रहे थे।’ कुल मिलाकर आज भाजपा देश के आधे से ज्यादा राज्यों और देश के 56 प्रतिशत नागरिकों पर शासन कर रही है। जबकि देश में कभी एकछत्र शासन करने वाली कांग्रेस पार्टी क्रमशः-क्रमशः विलुप्त होने के कगार पर है। प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी ने लोकसभा के चुनाव के दौरान कहा था- भ्रष्टाचार, अवसरवाद, जातिवाद एवं साम्प्रदायिकता स्वतंत्र भारत की सबसे बड़ी समस्याएॅ हैं। राष्ट्रवाद का अलख जगाकर भाजपा सतत् ऐसी प्रवृत्तियों से संघर्ष कर रही है। स्वतंत्र भारत के वर्तमान दौर में जब भाजपा के अलावा दूसरे दल या तो वंशवाद की गिरफ्त में जकड़े हों या व्यक्ति-विशेष की प्राॅपर्टी बन गए हों, वहां वही भाजपा व्यक्ति से बड़ा दल और दल से बड़ा राष्ट्र को अपने आचरण और कृत्यों से बखूबी प्रमाणित कर रही है। इसका ताजा प्रमाण अभी पंजाब के विधानसभा चुनाव हैं। भाजपा को यह बखूबी पता था कि यदि वह अकालियों से अलग होकर चुनाव लड़ती तो सत्ता में भले न आ पाती पर उसके उम्मीदवार बड़ी संख्या में विजई होते। पर पूर्व में पंजाब मे अलगाववाद की पृष्ठभूमि को देखते हुए- हिन्दू-सिख भाईचारा बनाये रखने के लिए भाजपा ने अपने दलीय हितों को तिलांजलि देते हुए अकालियों के साथ भारी हार को स्वीकार किया। मोदी सरकार के नोटबंदी जैसे कदम और ईमानदार तथा पारदर्शी शासन-प्रशासन के चलते देश के आवाम को यह पूरी तरह भरोसा हो चला है कि नरेन्द्र मोदी की अगुवाई में भाजपा समथ्र्य, सम्पन्न एवं शक्तिशाली भारत का निर्माण कर सकेगी। कभी महात्मा बुद्ध ने कहा था- ‘‘धम्मं शरणं गच्छामि, संघं शर्णम गच्छामि, बुद्धं शरणं गच्छामि।’’ यानी सबसे पहले धर्म, फिर संगठन और सबसे अंत में बुद्ध यानी व्यक्ति। भाजपा ने सतत् इस सिद्धांत को जिया है। सत्तर के दशक में एक पत्रकार ने अटल बिहारी वाजपेयी से पूछा कि वह ऐसी पार्टी में क्यों हैं, जिसके कभी भी सत्ता में आने के आसार नहीं हैं। इस पर अटल जी ने कहा था- ‘‘तेरा वैभव अमर रहे माँ, हम दिन चार रहें न रहें।’’ मातृभूमि के इसी समर्पण और प्रतिबद्धता का यह परिणाम है कि आज भाजपा देश की भाग्य-विधाता ही नहीं वरन सुशासन का भी पर्याय बन चुकी है।