समलैंगिक स्वीकृति के मायने

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हरपाल सिंह

इस पृथ्वी पर जीवन और सृष्टि का सुचारू रूप से संचालन करती है । इसके लिये उसकी अपनी व्यवस्थाएं हैं अनुकुलता और स्वतंत्रता देने के बावजूद कुदरत ने अपना अधिकार बनाये रखा है । इसके भंडार में जीव-जगत और जन के लिये बहुत कुछ अज्ञात है, सो उसे सही समय पर साहजिक रूप से उपलब्ध करवा देती है । उसी में एक है मैथुन क्रिया, मनुष्य ही नहीं, सृष्टि के प्रत्येक जीव को जीवन उत्पत्ति के परम्परागत निर्वहन के लिये इसकी जरूरत पड़ती है। लेकिन प्राकृतिक भोग की बजाय अप्राकृतिक अतिभोग से क्षणिक आनन्द की प्राप्ति तो हो जाती है, लेकिन आत्मसंतुष्टि नहीं मिलती साथ ही व्यकित भयंकर रूप से धीरे-धीरे अवसाद की ओर बढ़ता है।

शायद यही वजह थी कि वैदिक ऋषियों ने संयम, सदाचार, ब्रह्राचर्य को समाज में स्थापित किया जैसा अन्न वैसा मन जैसी बातों का प्रचार किया। हम खाना खाते हैं रक्त बनता है, रक्त से मज्जा, मज्जा से वीर्य, वीर्य से ओज, ओंज से मन, मन से ब्रह्रा, ब्रह्रा से परमपिता परमेश्वर। यही प्रकृति के क्रियात्मक स्वरूप की प्रक्रिया है। आहार का कहीं न कहीं व्यवहार पर प्रभाव पड़ता ही है।

विज्ञान के नजरीये से देखें तो प्यार की मुख्य वजह हार्मोनों का स्राव होता है । प्यार में भूख, नींद, चैन खो जाता है। अमेरिका स्थित सिराक्यूज यूनिवर्सिटी के मनोवैज्ञानिकों के अनुसार प्यार में पड़ने के मात्र एक से पांच सेकेण्ड में ही कर्इ हार्मोनों का उत्पादन शुरू हो जाता है। प्रमुख शोधकर्ता स्टेफनी आटिर्ंग की माने तो जब कोर्इ इंसान किसी से प्यार करता है तो तब उसके दिमाग के बारह हिस्सों में एक के बाद एक जैसे डोपामाइन, आक्सीटोसिन, टेक्टोस्टेरान, एड्रीनोलीन, वैसोप्रेसन, फेनीलेथामाइन, इंडोर्फिन, वेसोप्रेसिन, सरोटोनिन जैसे हार्मोनों का उत्पादन शुरू हो जाता है, जो उसे नशें सरीखा सुकुन देने लगता है जैसे डोपामाइन हार्मोन प्यार को देखते ही क्रियाशील हो जाता है । इसका मुख्य स्रोत विटामिन-6 और मैग्नीशियम होते हैं। इसमे लम्बे समय तक सेक्स संबंध होने पर स्राव कम हो जाता है, जिसके बुरे प्रभाव ही होते हैं। फेनिलेथामाइन हार्मोन का उत्पादन दिमाग से होता है। इसके उत्पादन से हृदयगति, सांस, गालों, जननांगों में रक्त प्रभाव अतिरिक्त हो जाता है जिसे हम आम भाषा में काम उत्तेजना भी कहते हैं। इसका नाकारात्मक पक्ष यह है कि उत्तेजित नर या मादा की इच्छा पूर्ति ना होने पर खास कर सित्रयों पर इसका बूरा प्रभाव पड़ता है। दूसरी तरफ जिन्दगी से जब डर लगता है तो भी इस हार्मोन का स्राव होता है। एड्रेलिन हार्मोन के स्राव से भूख मर जाती है जिसका पाचन क्रिया पर बुरा प्रभाव पड़ता है। इंडोर्फिन हार्मोन शरीर मैं दर्द की स्थिति में ज्यादा उत्पन्न होता है। इसका प्रभाव हीरोइन और अफीम की नशे की तरह होता है वसा इसका उत्पादन करता है। इसका उत्पादन कम होने से मनुष्य डिप्रेशन का विकार नहीं होता है। सरोटोनिन हार्मोन के उत्पादन से हममें आकर्षण की गति ज्यादा हो जाती है। प्यार क्यों हो, प्यार कब हो, प्यार कैसे हो ऐसी मनोदशा की स्थिति में ला देता है। शीर्ष मनोवैज्ञानिक डा जांन ग्रे जो कि ब्रितेन के हैं उन्होने दावा किया कि टेस्टोस्टेरान पुरूष और आक्सीटोसिन स्त्री हार्मोन है। जिन पुरूषों में टेस्टोस्टेरान की मात्रा अधिक होती है वे परस्त्री गमन, हैस्तमैथून, समलैंगिक संबंध बनाते हैं। यही वह हार्मोन है जो पुरूष को पौरुषेय की ताकत देता है, यही पुरुष का विशेष गुण है। उसी प्रकार स्त्री में आक्सीटोसिन हार्मोन को लव हार्मोन कहा जाता है। वैदिक भाषा में मातृत्व शालीनता, दयालुता, लज्जा जैसे शब्दों की झलक देखने को मिलती है। लोगों से आपने सुना होगा कि महिलायें भावनात्मक होती हैं। यह हार्मांन दिलों को मजबूत डोरे से बाधें रखता है। आमतौर पर स्त्री में ज्यादा होता है। कोपेन हेगन यूनिवर्सिटी स्थित ग्लासट्रप हासिपटल के नेत्र रोग विशेषज्ञों के अनुसार सेक्स के समय कुछ क्षणों के लिये आँख की रोशनी चली जाती है। इश्क में उलझकर या अत्यधिक सेक्स से युवा सोचने समझनें और याद रखने की ताकत भी खो देते हैं। विशेषज्ञ इसमें एंबोलिज्म को जिम्मेदार मानते हैं, यह एक बीमारी है। इस बीमारी में धमनियों में खून का थक्का जम जाता है, जिससे रक्त प्रभाव बाधित होता है। लम्बी टेस्ट प्रक्रिया के बाद उन्होनें वेसोकांसिट्रक्शन का हाथ बताया है। जिसमें रक्त वहिकाओं के इर्द-गिर्द मांसपेशियां सिकुड़ जाती है और रक्त प्रवाह में बाधा आती है जिससे पुरुष नपुंसकता और शुक्राणुओं की कमी से ग्रस्त हो जाता है।

सदीयों पुरानी परम्परा है, सगोत्रीय विवाह न हो। आज-कल इस पर काफी बवाल मचा हुआ है। वैज्ञानिकों की मानें तो सगोत्र विवाह से वंशानुगत बीमारियां बढ़ जाती हैं । भारत में कर्इ जनजातियों में सगोत्रीय विवाह का परंपरागत निर्वहन हो रहा है। सेन्टर फार सेक्यूलर एंड मोलिक्यूलर बायोलाजी हैदराबाद के वरिष्ठ वैज्ञानिक कुमार स्वामी थंगराज के नेतृत्व और हार्वर्ड मेडिकल स्कूल, हार्वर्ड स्कूल आफ पबिलक हेल्थ ब्रांड इंस्टीटयुट हार्वर्ड, एमआर्इटी, अमेरिका ने संयुक्त रूप से शोध किया जिसमें यह स्पष्ट हुआ कि सगोत्र विवाह से बीमारियां तेजी से फैलती हैं। प्रमुख शोधकर्ता मेडिकल स्कूल के जेनेटिक विभाग के प्रोफेसर डेविड रिच ने देश के 13 राज्यों के 6 भाषाओं के 132 जिनोम और 5 प्रोफेसर मारा गिलीसन के मुताबिक ओरल सेक्स के दौरान पुरुषों के शरीर में हयूमन पापिलोमा वायरस (एचपीवी) फैलने लगता है। धुम्रपान के मुकाबले गले के कैंसर के लिये यह वायरस अधिक जिम्मेदार है।

देश में प्यार मुहब्बत के चक्कर में हर रोज 10 व्यकित अपनी जान देते हैं राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के मुताबिक 2009 में कुल 127151 लोगों ने आत्महत्या की जिसमें 68.7 प्रतिशत 15 से 44 वर्ष के बीच 34.5 प्रतिशत, 19 से 29 वर्ष के बीच, 34.2 प्रतिशत 30 से 44 वर्ष के बीच देश में रोज 223 पुरुष और 125 महिलायें आत्महत्या करती हैं । जिसमें 10 लोग प्यार-मुहब्बत और 73 लोग बीमारी के कारण आत्महत्या करते हैं। डब्लूएचओ के ताजा आंकड़े के अनुसार विश्व में 45 प्रतिशत लोग मानसिक बीमारियों के चपेट में हैं, जिसमें 11 प्रतिशत भारत में पाये जाते हैं। स्वास्थ्य मंत्रालय के सर्वेक्षण के अनुसार स्वास्थ्य केन्द्रों पर आने वालों में 20 प्रतिशत रोगी मानसिक बीमारी से ग्रस्त होते हैं इससे सरकार के होश उड़े हुये हैं। 1996 में शुरू मानसिक उपचार कार्यक्रम अभी 123 जिलों तक ही पहुंच पाया है। देश के 70 प्रतिशत बच्चों में खून की कमी है। केन्द्रीय स्वास्थ्य मंत्री गुलाम नबी आजाद ने राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वेक्षण-3 के आकड़ें संसद में पेश किये थे ।

पापुलेशन काउंसील दिल्ली और इन्टरनेशनल इंस्टीटयूट आफ पापुलेशन सांइसेज मुम्बर्इ के संयुक्त 58000 युवाओं पर अध्ययन के अनुसार 17 प्रतिशत युवा शादी से पहले सेक्स का अनुभव कर लेते हैं। 10 प्रतिशत शहरी को प्री-मैरिटल सेक्स का अनुभव, 4 प्रतिशत ग्रामीण लड़कियों को और 2 प्रतिशत शहरी लड़कियों को शादी से पहले ही सेक्स का अनुभव प्राप्त हो जाता है। सेक्स का संबंध कहीं न कहीं हार्मोन से होता है। हार्मोन को ताकत खून में मौजूद प्रोटीनों से मिलती है। खून में मौजूद प्रोटीनों से मर्दानगी, अच्छी याददास्त, रोग प्रतिरोध क्षमता का निर्धारण होता है। कैलिफोर्नियां विश्वविधालय के वैज्ञानिक डा0 क्रिस्टीन याफे के अनुसार खून में विटा एम लायड 42 प्रोटीन होता है, जिसकी कमी से याददास्त घट जाती है। उम्र के हिसाब से इस प्रोटीन का क्रम घटता है। टेस्टोस्टेरान हार्मोन मर्दानगी के लिये जाना जाता है। टेस्टोस्टेरान के उत्पादन में हडिडयों से निकलने वाला आइस्टोकैलसीन नामक हामाेर्ंन सहायक होता है। इसके अत्यधिक स्राव से हडिडयां कमजोर भी हो जाती हैं। शोधकर्ता वैज्ञानिक गेराड के अनुसार आर्इस्टोकैलसीन की कमी से वीर्यकोश में शुक्राणुओं की संख्या घट जाती है। जिससे संतानोत्पत्ति में बाधा आती है। हडिडयों की मजबूती विटामिन डी और कैलिसयम से आती है। इस समय देश में 10 करोड़ लोंग हडिडयों के रोग से ग्रस्त हैं और 40 वर्ष के बाद लोगो की हडिडयां जबाव दे रहीं हैं । शायद यही वजह रही होगी कि पहले लड़की 18 वर्ष और लड़का 21 वर्ष में शादी कर देने की बात पर ध्यान दिया जाता था। गर्भवती स्त्री को एक या दो वर्ष के लिये मायके भेज दिया जाता था। बच्चों के बीच अन्तर रखना जरूरी था। हमारी परम्परायें सामाजिक संरचना पूर्ण रूप से वैज्ञानिक थी। आज-कल शहरों में लड़के-लड़कियों में 30 से 40 की उम्र में शादी करने का चलन बढ़ा है, परिणाम गर्भधारण क्षमता घटी है। देश में लगभग 10 करोड़ जोड़े संतान विहीनता से ग्रस्त हैं, हालांकि केन्द्र सरकार आर्थिक रूप से परखनली शिशु सुविधा की सहायता की बात कर रही है, जो 65 हजार से 1 लाख 95 हजार तक हो सकती है। किराये की कोंख गोंद लेने की संख्या में इजाफा हुआ है, लेकिन सरकार मूल समस्या के समाधान की बजाय समस्या को बढ़ाने और इसकी इंडस्ट्री खड़ा करने में लगी है। समलैंगिक स्वीकृति एक जीता-जागता उदाहरण है। देश में 60 प्रतिशत बच्चें कुपोषण के शिकार हैं।

ऐसी स्थिति में सेक्स संबंध की उम्र महिला एवं बाल विकास मंत्रालय द्वारा 12 वर्ष रखी गयी थी अन्दर खाने हंगामें की वजह से मंत्रालय ने स्पष्ट किया कि यौन सम्बन्ध की उम्र 16 से उपर रखी गयी है। इस बिल को संसद के बजट सत्र में पेश होना है, क्या यही समाधान था। मेडिसिन और सेक्स इंडस्ट्री के दबाव के सामने अन्तोगत्वा सरकार झुक गयी है। इसी प्रकार से समलैंगिक स्वीकृति ही है। एक फैसले में दिल्ली हार्इकोर्ट के जज कैलाश गम्भीर की टिप्पणी जिसमें उन्होनें कहा था कि विवाह पूर्व संबंध से बाज आये युवा तो दूसरी ओर इसी कोर्ट के कुछ जजों ने टिप्पणी करते हुये कहा कि समलैंगिक सेक्स अप्राकृतिक है तो इसके सबूत दिये जाय। 1860 के पहले समलैंगिकता अपराध नहीं था तो क्या आदि काल से समाज का संचालन कोर्ट द्वारा ही होता रहा है क्या। देश में लगभग 13 लाख मुकदमें पेडिंग में पड़े हुये हैं। इस देश में मुकदमें चलाने के लिये भी मुकदमा लड़ना पड़ता है। हाल ही में महाराष्ट्र सरकार ने मल्लीमठ कमेटी के तहत सीपीसी की धारा 125 को संशोधित करने का निर्णय लिया है। धारा 125 के अनुसार किसी व्यकित को माता-पिता, पत्नी, संतान (जायज या नाजायज) संबंध होने पर गुजारा भत्ता देना उसका कर्तव्य है। पति यदि गरीब है और पत्नी कमाउ है तो पति अपने पत्नी से भी गुजारा भत्ता मांग सकता है। जबकि सुप्रीम कोर्ट के एक फैसले में कोर्ट ने शादी से पूर्व संबंधो पर गुजारा भत्ता देने से साफ मना किया है। मल्लीमठ कमेटी के अनुसार अगर व्यकित पत्नी से तलाक किये बिना चोरी से दूसरी शादी कर लेता है तो ऐसी महिलाओं को भी गुजारा भत्ता दिया जाय। अब प्रश्न यह उठता है कि पुरुष किसी महिला को फसाकर शादी करता है तो उसको शामिल करने की बात है जबकि लिव इन रिलेशनशिप में स्त्री-पुरुष स्वेच्छा से साथ रहते हैं फिर भी इनको शामिल नहीं किया गया है। अगर कोर्इ स्त्री पुरुष को फसाकर गुजारा भत्ता मांगे तो क्या होगा। इस पर भी कोर्इ स्पष्टीकरण नहीं है ।

इस देश में टाटा इंस्टीटयूट आफ सोशल सांइसेज के अनुसार 817 रेड लाइन क्षेत्रों में 20 लाख वेश्याएं रहती हैं, इनके साथ 50 लाख बच्चे भी रहते हैं। जबकि इस सर्वे में कालगर्ल अथवा उसी सोसाइटी की वेश्याओं को शामिल नहीं किया गया था। देश में लगभग 10 लाख 20 हजार हिजड़े रहते हैं। देश की सबसे बड़ी जेल तिहाड़ के आकड़ों के अनुसार पुरुषों के बजाय महिलाओं का अपराध प्रतिशत तेजी से बढ़ा है। सीआर्इए और यूनिसेफ के अनुसार 35 लाख से ज्यादा महिलाओं से जबरन देह व्यापार कराया जाता है इनमें 80 फीसदी 16 से 18 वर्ष के बीच की हैं। केन्द्रीय जांच ब्यूरो ने हाल ही में बताया कि मानव तस्करी का व्यापार हर वर्ष 3500 करोड़ का है। भारत में प्रतिवर्ष 44 हजार बच्चे गुम हो जा रहे हैं। इस धंधे में लगे लोगों ने अगर ब्लैकमेलिंग का धंधा अपना लिया तो वे किसी पैसे वाले पुरुष को फसाकर गुजारा भत्ता मांगेगें तब तो सामाजिक संरचना ही टूट जायेगी। फिर भारतीय दण्ड संहिता 493, 494, 495, 496, 497 का क्या होगा? कोर्ट क्या समलैंगिक स्वीकृति के बाद आपसी रजामंदी से स्थापित संबंध को भारतीय दण्ड संहिता 497 के तहत अवैध संबंध के आधार पर अपराधिक मामला दर्ज कर पायेगी ?

विश्व एडस दिवस पर यूनिसेफ में शिक्षा परामर्शदाता और महाराष्ट्र एडस कन्ट्रोल के लिये काम कर चुकी अविधा गोलवरकर के अनुसार 24-25 वर्ष की आयु में एडस बीमारी अधिक पायी गयी है। आधुनिक जीवन शैली और रोमांस में नया करने की प्रवृत्ति, एडस के फैलने का मुख्य कारक है। सुर्इ से नशा करने की प्रवृत्ति और समलैंगिक सम्बन्ध इस बीमारी को फैलाने का प्रमुख कारण है, लेकिन आश्चर्य की बात है कि अभी तक एक भी सबूत याचिका कर्ताओं ने सुप्रीमकोर्ट को नहीं दिया जिसमें समलैंगिकता से बीमारी के खतरों की पुषिट होती है चाहे उसकी वजह एडस ही क्यों न हो। स्वास्थ्य मंत्रालय ने सुप्रीमकोर्ट में हलफनामें मे 25 लाख समलैंगिक पुरुषों की संख्या मानी है जिसमें 427045 समलैंगिक पुरुष एडस के रोगी पाये गये हैं। अमेरिका में 9 लाख कुवारी माताओं की संतानों में 2 लाख पुन: मां बनने के लिये विवश हो जाती है, जिस पर अमेरिका को 9 विलियन डालर प्रतिवर्ष खर्च करना पड़ता है। 68 फीसदी सेक्सुअली एकिटव हो चुकी होती हैं। 31 फीसदी किशोरियां बिन व्याहे मां बन जाती हैं। 80 फीसदी गर्भाधान अनैछिक होता है। इस लड़कियों को सेक्स में अनकडीशंड फ्रेंडशिप, कम्पेनियन गर्ल, लवबर्डस, सोलमेटस, लिव इन पार्टनर आदि नाम से पुकारा जाता है। यूनिवर्सिटी आफ न्यूयार्क द्वारा किये गये सर्वे के निर्देशक जूलियन टाइटलर के अनुसार उन्हें लगता है कि सेक्स शिक्षा का संबंध यहां युवाओं के गर्भधारण से है। जूलियन के अनुसार फीनलैण्ड और नीदरलैण्ड में सेक्स की शिक्षा दी जाती है। इटली और आयरलैण्ड में इसका नामोंनिशान नहीं है यहां और वहां से तुलना करें तो दस गुना का अन्तर है। शायद यही वजह है कि 80 फीसदी अमेरीकी तनाव में जी रहे हैं कमोवेश लगभग यही हाल बि्रटेन का है।

न्यूयार्क के एलबर्ट आइंस्टाइन कालेज आफ मेडिसिन के प्रोफेसर और समलैंगिकता की समस्या में ख्यात अध्येयता डा0 चाल्र्स ने अपनी पुस्तक ”होमोसेक्सुअल्टी फ्रीडम टू फार में अपना सुक्ष्म विश्लेषण करते हुये कहते हैं कि अमेरिका समाज में समलैंगिक क्रांनित कुछ मुटठी भर शातीर वौद्धिकों की मानवतावाद के नाम पर शुरू की गयी वकालत का परिणाम था जिसमें अधिकांश समलैंगिक थे। ये लोंग ट्राय एनिथिंग सेक्सुअल के नाम पर शुरू की गयी यौनिक अराजकता को नारी स्वातंत्र के विरुद्ध दिये जा रहे एक मुहतोड़ उत्तर की शक्ल में पेश कर रहे थे। डा0 चाल्र्स कहते हैं कि मैनें चार दशकों के चिकित्सीय जीवन के अनुभव के दौरान यह पाया कि वे अपनी समलैंगिक जीवन पद्धति से वे सुखी नहीं हैं। उनमें से अधिकांश ने कहा कि हम झूठी स्वतंत्रता में जी रहे हैं, जबकि यह एक दासत्व ही है। यह एक वैकलिपक जीवन नहीं सिर्फ आत्मघात है। डेनिस अल्ट मैन की पुस्तक ”होमो सेक्सुअलाइजेशन आफ अमेरिका थी इसी वक्त आयी। अल्ट मैन स्वयं भी समलैंगिक थे। उन्होनें 1982 में कहा कि समलैंगिक संबंध आततायी बन चुकी विवाह संस्था की नीव हिला डालने वाला जबरदस्त शार्ट सेक्सुअल एडवेंचर है । शादी, घरेलू हिंसा कानून से बचने का एक मात्र रास्ता है, सिवगिंग सिंगल हो जाना। जब इसी बात को सेक्स. मेडिसिन व्यापारी पाल गुडमैन जैसे शिक्षाविदों के सहारे सेक्स एजुकेशन की वकालत करा दी फिर क्या था बच्चे ख्ुालकर माम, डैड के सामने गर्दन उठाकर बोलने लगे हे माम आर्इ एम गोइंग इन सपोर्ट आफ गे मूवमेन्ट। डा0 चाल्र्स कहते हैं इसका परिणाम आपके सामने है एक हजार में से 997 लोंग अपनी समलैंगिक जीवन से दुखी हैं । दरअसल एक चिकित्सक के सामने उनकी पीड़ाएं पारदर्शी हो उठती हैं और वे सच्चार्इ के बखान पर उतर आते हैं । वे इस दुश्चक्र से बाहर आना चाहते हें । बहरहाल उपचार के पश्चात ऐसे सैकड़ों रोगी हैं । जिन्होने विवाह रचाये और वे सुंदर स्वस्थ संतानों के पिता हैं ।

लोगों को डेनमार्क जैसे देश से सीखना चाहिए जहां 1967 से सेक्स कानून की कठोरता के कारण वहां अपराध में कमी आयी है और समाज में सौहार्दपूर्ण वातावरण बन रहा है । विश्व में आनलाइन किताबों के सबसे बड़े प्रकाशक और विक्रेता अमेजन प्रकाशन की हालिया प्रकाशित पुस्तक ”द पेडोफिल्स गाइड आफ लव एंड प्लेजर का जोरदार विरोध हो रहा है क्योंकि इसमें 13 वर्ष से कम उम्र के बच्चों को सेक्स आनन्द के तरीको से प्रोत्साहित किया गया है। ऐसे प्रकाशक और नाज फाउंडेशन जैसे संस्थाओं का मूल मकसद सेक्स इंडस्ट्री से फंडिंग लेना और उन्हें स्थापित करना है ।

देश में मेडिमिक्स के अनुसार 90 हजार करोड़ का दवा उधोग है जिसमें 1 लाख 50 हजार करोड़ का तो नकली दवा उधोग है। इस देश में सैकड़ों नकली दवायें बिक रहीं हैं जो अन्य देशों में प्रतिबंधित हैं। कृत्रिम गर्भाधान का व्यापार खड़ा किया जा रहा है। बुसेल्स यूनिवर्सिटी के प्रोफेसर वान स्टीरटेगेम जिन्होंने कृत्रिम गर्भाधान पर शोध किया था। उन्हीं का कहना है कि आने वाली पीड़ी पर इसका बुरा प्रभाव पड़ेगा फिर भी हमारे यहां इसका बाजार खड़ा किया जा रहा है। कभी विश्व स्वास्थ्य संगठन कहता है कि आपरेशन ही समाधान है जटिल रोगों का, अभी कह रहा है कि भरसक लोगों की किसी भी आपरेशन से बचना चाहिए। भारत में प्रसव प्रक्रिया का व्यापार 30 हजार करोड़ के पार जा चुका है किराये की कोख जैसे महंगे उपायों को बढ़ावा देने की कोशिश हो रही है। नपुंसकता को निजात दिलाने वाली गोलियां भी बाजार में आ गयी हैं। वियेग्रा की बजाय अब वेफर परोसने की तैयारी है अनचाहे गर्भ से मुकित के लिए तमाम टीको और शुक्राणुओं को कम करने की गोलियां भी बाजार में उपलब्ध हैं। वैज्ञानिकों के अनुसार इसका गर्भाशय और पुरुषों के शुक्राणु उत्पादन पर बुरा प्रभाव पड़ रहा है। एक सुर्इ से पतली हो जायेगी कमर, कमजोर हडिडयों में जान फूक देगी एक गोली।

पंजाब में 8500 नशीले कैप्सूल 1 लाख 50 हजार नशे की गोलियां बरामद हुर्इ जो विदेशी कंपनियों द्वारा बनार्इ गयी थी। देश मे गोलियों से नशा करने की प्रवृत्ति भी बढ़ी है। एसोचैम के सर्वे के अनुसार 78 प्रतिशत युवा दवाइयों एनर्जी डि्रंक, स्टीराइड व हार्इ प्रोटीन जैसे सम्लीमेंट ले रहे हैं। जिससे युवाओं में कोलेस्ट्राल बढ़ना, लीवर टयूमर, पेट का अल्सर ब्लडसूगर, हृदय की मांसपेशियों का बढ़ना, पेट दर्द की समस्या होने से डिहाइड्रशेन, कपकपी, हीट स्ट्राक, हार्ट अटैक जैसे मामले उभर कर सामने आ रहे हैं, जबकि इनमें 90 फीसदी कंपनीया विदेशी हैं। इनका मूल मकसद अन्य देशों की तरह भारत को भी दवाइयों पर जिंदा रखना है ताकि लाशों की ढेर पर अपना बाजार खड़ा कर सके। एडस भी उसी का एक रूप है। एक दो नहीं सैकड़ों वैज्ञानिक इसके विरोध में खड़े हैं इसके जन्मदाता ल्यूक मांटेनियर और राबर्टगैलो है जो आज तक इसकी रिपोर्ट सार्वजनिक नहीं कर पाये। भौतिक विज्ञानी रायल वर्थ हासिपटल के प्रमुख एलेनी पापैडोयोलस एलियोपलस के विचार में एडस सेक्स इंडस्ट्री का हीं हौआ है। एडस की दवा ना मिलने का कारण भी यही है क्याेंकि वैक्सीनों के जरिये प्रतिरक्षण का सिद्धान्त सर्वविदित है जिस वायरस के कारण कोर्इ रोगी होता है उसका मुकाबला करने के लिये उसी वायरस से बनार्इ गर्इ वैक्सीन के माध्यम से शरीर की प्रतिरक्षा प्रणाली में खास तरह के प्रतिपिंड तैयार किये जाते हैं। जब एडस के वायरस का पता ही नहीं है तो इसकी दवा की संभावना बहुत दूर की बात है। नोबेल पुरस्कार के लिये नामित वैज्ञानिक डा0 पीटर डयूस वर्ग कहते हैं कि एडस में इस्तेमाल होने वाली दवाइयां इतनी घातक हैं जैसे खरगोश को मारने के लिये आणविक हथियार न्यूकिलयर वैपन इस्तेमाल किये जाए। इसने सारे शोध हो रहे हैं फिर भी विश्व में लेकिन समलैंगिक रोगियों की एडस होने का प्रमाण एक भी नहीं मिल पाया। सवाल उठता है कि ये कंपनियां अपने मनमाफिक शोध करवाकर वैज्ञानिकों के सहारे सरकार को प्रलोभन देकर बाजार खड़ा कर रही हैं। आखिर ये कंपनियां ऐसे जटिल मुददे पर शोध करवाकर उसकी रिपोर्ट सार्वजनिक क्यों नहीं करती हैं? इसका मूल मकसद तो सेक्स इंडस्ट्री खड़ा करना है।

कर्इ जजों पर भ्रष्टाचार के आरोप लगे हैं इस समय जो देश में माहौल है उससे कोर्ट और सरकारों के भरोसे समाज को छोड़ देना मूर्खता ही होगी। अभी हाल में दवाओं के ट्रायल पर केन्द्र सरकार को सुप्रीम कोर्ट ने नोटिस दिया है। जिसमें नियमों को ताख पर रखकर बहुराष्ट्रीय फार्मा कंपनीयो द्वारा दवाओं के ट्रायल किये जा रहे थे। एक सामाजिक संस्था के माध्यम से ही यह मामला उठ पाया है। हाल ही में कृषि मंत्रालय के आयेाजन में भोपाल गैस त्रासदी की आरोपी कुख्यात कंपनी डाऊकेमिकल ने कार्यक्रम को स्पांसर किया था। यह कार्यक्रम जीएमफूड और प्लांट बायोटेक्नोलाजी के विषय पर आयोजित किया गया था। इससे ही सरकार की गम्भीरता का पता चलता है। जिस तरह से अपराध का ग्राफ बढ़ रहा है अश्लील साइटसों के चलते हिंसा की प्रवृत्ति और बलात्कार के मामले बढे़ हैं। देश की 90 फीसदी आबादी बीमारी की चपेट में हो क्या ऐसे हालात में समलैंगिकता को स्वीकृति देना देश को मौत के मुंह में ढकेलना नहीं होगा। पूरे विश्व से हमारी पहचान हमारी अनोखी संस्कृति ही है जो हमें विविधता में एकता और सौहार्द सिखाती है अभी भी अगर हम नहीं चेते तो वह दिन दूर नहीं जब हमारी सुख शांति जा चुकी होगी।

 

अमेरिका में सुरक्षित नहीं औरतों की अस्मत

आंकड़ों की जुबानी :-

05 में से एक महिला के साथ या तो बलात्कार हेा चुका है या इसकी कोशिश हुर्इ है।

04 में एक ने घरेलू हिंसा से पीडि़त होने की बात कहीं, जबरन सेक्स को भी मजबूर।

06 में से एक महिला को एसएमएस, र्इ-मेल या सोशल साइटों के जरिए भेजा गया अश्लील संदेश।

50 फीसदी के साथ 17 साल या उससे कम उम्र में बलात्कार हुआ या इसकी कोशिश की गर्इ।

80 फीसदी से ज्यादा बलात्कार पीडि़त 25 साल से कम उम्र में इस घिनौनी हरिकत का शिकार।

विशेषज्ञ हैरान :-

अमेरिकी विशेषज्ञ सीडीसी सर्वे के नतीजे देखकर हैरान हैं। उनका कहना है कि इससे पहले देश में महिलाएं कभी इतनी असुरक्षित नहीं थी। उनके खिलाफ घरेलू हिंसा के स्तर में भी काफी इजाफा हुआ है ।

करीबियों से खतरा :-

अमेरिका में 50 फीसदी बलात्कार के मामलों में आरोपी पीडि़ता का करीबी दोस्त या कोर्इ जान-पहचान वाला शख्स होता है । पति या प्रेमी द्वारा यौन संबंधों बनाने के लिए बाधित करने के मामले भी तेजी से बढ़े हैं ।

सात फीसदी का इजाफा :-

ब्यूरो आफ जसिटस स्टैटिसिटक्स से जुड़ी शैनन कैटालानों ने सीडीसी की रिपोर्ट पर चिंता जताते हुए कहा हक बीते साल के मुकाबले 2011 में महिलाओं के साथ बलात्कार और घरेलू हिंसा के मामलों में सात फीसदी का इजाफा हुआ है ।

ये आंकड़े सेंटर फार डिजीज कंट्रोल की ओर से हाल ही में जारी किया गया है।

 

बि्रटेन मे लड़कों से ज्यादा मुशिकल लड़कियों को संभालना

बि्रटेन के प्रमुख शोधकर्ता टेनले सोंस के 3000 परिवारों पर किये गये शोध के अनुसार

33 फीसदी माता-पिता बेटी के बदलते मूड से परेशान।

27 फीसदी उसके तीखे तेवर के आगे घुटने टेकने को मजबूर।

12 फीसदी बात-बात में आक्रामक होनें से आजिज।

 

भारत में कितनी महफूज हैं महिलाएं

22.172 बलात्कार के मामले दर्ज किए गए 2010 में ।

29.795 अपहरण या बहला-फुसलाकार भगा ले जाने के ।

8.391 दहेज हत्या के मामले बीते साल सामने आए ।

94.041 मामले पति या रिश्तेदारों की ओर से प्रताड़ना के ।

40.613 छेड़खानी के मामले अदालत पहुंचे ।

9.961 मामले यौन उत्पीड़न के दर्ज किए गए ।

 

 

अपने ही लूट रहे है आबरू

सगे-संबंधियों द्वारा बालात्कार के मामलें :-

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के अनुसार

21387 बलात्कार की घटनाओं में 94.9 प्रतिशत

मामलों में पीडि़त लड़की उस व्यकित से परिचित थी

दिल्ली में बलात्कार

2009 में कुल 459 मामलें।

97.35 प्रतिशत परचितों द्वारा।

2010 में कुल 489 मामलें

95.91 प्रतिशत मामलों में परचितों का हाथ ।

 

बढ़ रहे हैं बच्चों से बलात्कार के मामले

दो वर्ष पहले तक भारत में कुल मामले 5550

उत्तर प्रदेश 900 पशिचम बंगाल 129

मध्यप्रदेश 892 पंजाब 106

महाराष्ट्र 690 त्रिपुरा 104

राजस्थान 420 गुजरात 99

आंध्रप्रदेश 412 कर्नाटक 97

छत्तीसगढ़ 411 बिहार 91

दिल्ली 301 हरियाणा 70

केरल 215 हिमांचल प्रदेश 68

तमिलनाडु 187 उड़ीसा 65

गोवा 18

आकड़े गृह मंत्रालय और यूनियन मिनिस्ट्री फार वूमेन एंड चाइल्ड डेवलपमेंट द्वारा जारी

अपराध में महिलायें पुरुषों से आगे

देश की सबसे बड़ी जेल तिहाड़ के अनुसार

सजायाफ्ता कैदियों का प्रतिशत

मामला पुरुष प्रतिशत महिला प्रतिशत

हत्या 32.79 56.63

डकैती 8.29 8.44

जाली नोट 0.36 1.20

मादक पदार्थ 8.15 13.25

शराब का धंधा 0.68 2.41

दहेज मामले 1.22 4.82

राष्ट्रीय अपराध रिकार्ड ब्यूरो के बाल अपराध के आंकड़े करते हैं इस बात की पुषिट, तीन चौथार्इ अपराध संपन्न राज्यों मे

गिरफ्तार हुए बाल अपराधी

राज्य संख्या

साक्षरता दर प्रतिव्यय आय

महाराष्ट्र 6972 75 57458

मध्यप्रदेश 6186 60 19736

गुजरात 2466 71 49030

तमिलनाडु 2921 74 46823

राजस्थान 2456 53 23669

बिहार 1066 53 11558

दिल्ली 586 81 89037

उत्तर-प्रदेश 475 59 16182

गिरफ्तार बाल अपराधियों का फैमिली बैकग्राउण्ड :-

माता-पिता के साथ 26633, गार्डियन के साथ 4657, बेसहारा 2352

 

विचाराधीन कैदियों का प्रतिशत :-

मामला पुरुष प्रतिशत महिला प्रतिशत

हत्या 24.33 30.63

अपहरण 3.73 6.33

लूट-पाट 2.35 2.54

मादक पदार्थ 14.43 5.69

शराब का धंधा 1.00 2.28

दहेज उत्पीड़न 1.87 4.82

दहेज हत्या 2.79 9.62

 

साइबर बदमाशी में भारतीय बच्चें आगे

ग्लोबल रिसर्च कंपनी इप्सास की ओर से 24

दिशों के 18687 अभिभावकों पे सर्वे के अनुसार

60 प्रतिशत साइबर बदमाशी सोशल नेटवर्किंग वेबसाइड द्वारा

42 प्रतिशत मोबाइल फोन द्वारा

40 फीसदी चैट रूम द्वारा

32 फीसदी र्इमेल द्वारा

20 फीसदी वेब साइटों द्वारा

13 फीसदी साइबर बुलिंग का अनुभव

 

 

 

 

 

भारत के जेलों में कैदीयों की स्थिति

केन्द्रीय जेल 119 133453 कैदी 44 प्रतिशत क्षमता से अधिक

जिला जेल 321 113066 कैदी 37 प्रतिशत क्षमता से अधिक

उप जेल 832 45314 कैदी 15 प्रतिशत क्षमता से अधिक

महिला जेल 18 3672 कैदी 1.2 प्रतिशत क्षमता से अधिक

खूनी जेल 32 3451 कैदी 1.1 प्रतिशत क्षमता से अधिक

 

भारत में एडस की स्थिति :-

24 से 45 वर्ष आयु वर्ग के लोगों में बीमारी की आशंका सबसे ज्यादा ।

युवाओं को इसकी जानकारी तो है लेकिन उनमें जागरूकता का अभाव ।

बीमारी की गिरफ्त में :-

88.7 प्रतिशत 15 से 49 के आयु वर्ग के ।

8.71 प्रतिशत सुर्इ से नशा लेने वाले ।

5.69 प्रतिशत पुरुष संसर्ग वाले ।

5.38 प्रतिशत महिला यौनकर्मी ।

आकड़े महाराष्ट्र एडस कंट्रोल सोसाइटी के अनुसार

 

स्वास्थ्य से खिलवाड़

25 फीसदी स्वास्थ्य बजट भ्रष्टाचार की भेंट चढ़ जाता है।

64 फीसदी गरीब लागों को इलाज के लिए देनी पड़ती है घूस।

15 गुना खतरा भारत में है संक्रामक बीमारी का।

30 फीसदी संक्रामक रोग संक्रमण भारत के हिस्से।

62 बच्चों की होती है मौत प्रति एक हजार जन्मों पर।

80 फीसदी भारतीय अभी भी लकड़ी के चूल्हे में बनाते हैं खाना।

254 माताओं की मौत हेाती है एक लाख प्रसवों के दौरान।

26 फीसदी दुनिया के अंडरवेट बच्चे भारत में।

50 लाख गर्भपात असुरक्षित और 10 लाख सुरक्षित होते हैं।

18 फीसदी बिमारियों से होने वाली मौतें भारत में।

71 फीसदी स्वास्थ्य व्यय बीमार की जेब से।

04 फीसदी लोंग इलाज कराने की वजह से हो जाते हैं बीपीएल।

60 फीसदी बच्चे कुपोशित या खून की कमी से ग्रस्त।

0.9 फीसदी (जीडीपी) का स्वास्थ्य पर सरकारी व्यय, भूटान में 2.8 तथा मलदीव में 10.6 फीसदी है।

44 फीसदी बच्चों का ही होता है टीकाकरण ।

 

4 COMMENTS

  1. हमें संयम ,सदाचार की बात करनी चाहिए ना कि सम्भोग से समाधी की ओर,संयम के कितने फायदे है आधुनिक वैज्ञानिको और वैदिक ऋषियों ने साफ कर दिया है हमारे समाज में सेक्स की कभी शिक्षा नहीं जाती थी थोडा बहुत माँ से मिल जाती थी जब सेक्स की बात होती है तो लोगो को कामसूत्र,वाममार्गी ध्यान में आते है इसकी वैज्ञानिकता नहीं ये ही दुखद है

  2. समलेगिग लोगो में ज्यादातर पढ़े लिखे लोग है क्या अनपढ़ लोगो में सम्लेगिगता नहीं पाई जाती

  3. बड़ी उपयोगी और बड़ी विस्तृत जानकारी लेखक ने प्रदान की है…….एक तर्क समलैंगिकों के पक्ष में ज़रा सुन लें. जो काम लोग छुप कर कर रहें है उस पर परदे डाल कर ढोंगी समाज की रचना उचित नहीं. इसे कानूनन स्वीकृति देकर उनके अधिकार की रक्षा करना एक क्रांतिकारी व खुले समाज की मांग है. जो समाज में चल रहा है, उसे स्वीकार करके मान्यता देना एक स्वाभाविक व जायज़ बात है.
    # कुछ क्रांतिकारी सुझाव मेरे भी है. कई लोग वासना के स्वाभाविक आवेग में बलात्कार कर डालते हैं. शरीर की एक स्वाभाविक मांग है जिसे उसने पूरा कर लिया. अब उस बेचारे को दंड किस बात का. कानून में संशोधन कर के बलात्कार को भी कानून सम्मत बना देना चाहिए.
    # नेता और प्रशासक कितनी मेहनत से भ्रष्टाचार को अंजाम देते हैं और ना समझ जनता, हजारे, बाबा रामदेव आदि अनावश्यक विरोध करते रहते है. जब इतने व्यापक स्तर पर भ्रष्टाचार हो ही रहा है तो फिर उस पर परदे डालना, उसे छुपाना कहाँ जायज़ है. कानून बना कर इसे भी जायज़ बना देना चाहिए. इसी प्रकार ह्त्या, तस्करी, फिरौती आदि सब को जायज़ बना देना चाहिए. आखिर ये सब भी तो समाज की सच्चाईयां हैं न? फिर इनका विरोध कैसा ? ऐसी ही औंधी खोपड़ी की उपज है कि समलैंगिकता जैसी अप्राकृतिक, बीमार मानसिकता से उपजी व भयानक बीमारियों को जन्म देने वाली कुरीती को कानून सम्मत बनाने की मांग हो रही है. नकाते द्वारा सबको नकाता बनाने के प्रयास जैसा ही तो है यह. यूरोप के क्रिस्टी पादरी इस विकृति का विश्व में सबसे अधिक शिकार बने. पुरे यूरोप में और अमेरिका में यह फ़ैल गयी. एसिया, अफ्रिका अदि देशों में यह एक विकृति के रूप में त्याज्य और कलंक मानी गयी. अब कमाल देखिये, इन पाश्चात्य लोगों ने अपना कलंक धोने के बजाय सारे संसार को कलंकित साबित करने और कलंकित बनाने का काम शुरू कर दिया, मैकाले के मानस पुत्रों की सहायता. आज के हालात इनके योजनाबध प्रयासों की देन है.

  4. बहूत अच्छी जानकारी प्राप्त हुई धन्यवाद्

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