आतंक की आग में पाकिस्तान

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अरविंद जयतिलक

आतंकवाद को प्रश्रय देने का ही नतीजा है कि पाकिस्तान की धरती बार-बार लहूलुहान हो रही है और उसे खून के आंसू रोना पड़ रहा है। तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के आतंकियों ने एक बार फिर अपने कायरतापूर्ण कारनामों से मानवता को शर्मसार किया है। इन आतंकियों ने पेशावर के एक सैनिक स्कूल में घुसकर बेहद नृशंसतापूर्वक तरीके से 132 से अधिक स्कूली बच्चों को मौत के घाट उतार दिया है। इस हमले में और भी अनगिनत बच्चे घायल हुए हैं और वे जीवन-मौत के बीच झूल रहे हैं। हमले की जिम्मेदारी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के आतंकियों द्वार ली गयी है और कहा गया है कि यह हमला जिहादियों के परिवारों पर हमले का बदला है। गौरतलब है कि पाकिस्तान की सेना वजीरिस्तान में आतंकियों के सफाए के लिए जर्ब-ए-अज्ब अभियान चली रही है जिसमें अभी तक 1800 से अधिक आतंकियों के मारे जाने की खबर है। इस अभियान से आतंकी बौखलाए हैं और वह पाकिस्तान को सबक सिखाने पर आमादा हैं। माना जा रहा है कि इस नृशंसतापूर्ण जघन्य हमले में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के अलावा इस्लामिक स्टेट के भी आतंकी शामिल हो सकते हैं। इसलिए कि हमलावरों के अरबी भाषी होने की बात सामने आ रही है। यह भी गौर करना होगा कि तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान पहले ही एलान कर चुका है कि जेहाद में वह इस्लामिक स्टेट के साथ है। पाकिस्तान में इस्लामिक स्टेट की उपस्थिति किसी से छिपा नहीं है। बहरहाल जांच के बाद ही स्पष्ट होगा कि बच्चों के कत्लेआम के लिए कौन-कौन गुनाहगार हैं। पर मौंजू सवाल यह है कि क्या पाकिस्तान इस हमले से सबक लेगा? क्या वह आतंकी संगठनों को अब खाद-पानी मुहैया कराना बंद करेगा? कहना मुश्किल है। इसलिए कि आतंकवाद को लेकर उसका दोहरा आचरण है। वह गुड और बैड टेररिज्म में फंसा हुआ है। एक ओर वह उत्तरी वजीरिस्तान में तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान के आतंकियों के खिलाफ अभियान चलाए हुए है वहीं दुनिया के मोस्ट आतंकियों में से एक जमात-उद-दावा के सरगना हाफिज सईद को सीने से चिपकाए हुए है। सवाल लाजिमी है कि आखिर आतंकवाद के खिलाफ यह कैसी लड़ाई है? अभी कुछ दिन हुए होंगे जब आतंकियों ने अटारी-बाघा सीमा पर बीटिंग रिट्रीट समारोह के दौरान भीषण आत्मघाती हमले में 60 लोगों की जान ली। इस हमले की जिम्मेदारी भी तहरीक-ए-तालिबान पाकिस्तान द्वारा ली गयी। तब भी आतंकियों ने कहा था कि यह हमला नार्थ वजीरिस्तान और खैबर इलाकों में सैन्य कार्रवाई का बदला है। इस हमले के बाद अब पाकिस्तान को अहसास हो जाना चाहिए कि सांप को दूध पिलाना कितना खतरनाक होता है। गौर करें तो यह पहली बार नहीं है जब आतंकियों ने फिदायिन हमले के जरिए पाकिस्तान को खून का आंसू रुलाया हो। पहले भी वह फिदायिन हमलाकर पाकिस्तान को दहला चुके हैं। यह हमला एक किस्म से पाकिस्तानी सेना को चुनौती भी है। याद होगा मई, 2011 में आतंकियों ने कराची के एयरबेस से जुड़े नौ सैन्य अड्डा पीएनएस मेहरान पर हमला कर पाकिस्तान के दो युद्धक विमानों समेत चार इंजन वाला अमेरिकी विमान पी-3 सीएन आरियान को उड़ा दिया था। यह हमला उस समय हुआ था जब पाकिस्तान की धरती पर अमेरिका द्वारा ओसामा-बिन-लादेन को मार गिराए जाने के बाद हाई अलर्ट घोशित था। पाकिस्तान को समझ लेना चाहिए कि यह हमला आतंकवाद पर उसकी दोहरी नीति का ही परिणाम है। आज आतंकी इस कदर मजबूत हो चुके हैं कि पाकिस्तान की संप्रभुता को मटियामेट करने में सक्षम हैं। इसके लिए पाकिस्तान ही जिम्मेदार है। सच तो यह है कि पाकिस्तान आतंकियों को प्रश्रयदाता देश बन चुका है और उसकी सेना एवं खूफिया एजेंसी आइएसआइ उन्हें आर्थिक मदद पहुंचा रही है। यह भी किसी से छिपा नहीं कि पाकिस्तानी सेना और आइएसआइ के कुछ अधिकारी आतंकी संगठनों से मिलकर ऐसे लोगों को मरवाने का बीड़ा उठा रखे हैं जो पाकिस्तान में लोकतंत्र को मजबूत देखना चाहते हैं। कहा तो यह भी जा रहा है कि राजनीतिक दलों के कुछ नेताओं का आतंकी संगठनों से संबंध है। अगर यह सच तो है तो यह पाकिस्तान की संप्रभुता के लिए बेहद खतरनाक है। पाकिस्तान में आतंकियों की बढ़ती ताकत अब विश्व बिरादरी के लिए भी खतरनाक होती जा रही है। इसलिए कि पाकिस्तान एक परमाणु संपन्न देश है और उसके पास 100 से अधिक परमाणु बम हैं। उसके पास भयंकर आयुधों का जखीरा भी है। पाकिस्तान की सेना और सैन्य प्रतिष्ठानों पर बार-बार आतंकी हमले से सवाल गहराने लगा है कि क्या आतंकी जमात पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को हासिल करना चाहते हैं? इससे इंकार नहीं किया जा सकता। याद होगा गत वर्ष पहले सुनने में आया था कि अमेरिका पाकिस्तान के परमाणु हथियारों को अपने कब्जे में लेने के लिए किसी आपात योजना पर काम कर रहा है। मई 2011 में अमेरिकी राष्ट्रपति के पूर्व सलाहकार जैक करावेल्ली ने बीबीसी-5 को दिए एक साक्षात्कार में कहा भी था कि पाकिस्तान के परमाणु हथियारों और सामग्री को कब्जे में लेने की गुप्त योजना मौजूद है। लेकिन इसमें कितनी सच्चाई है यह कहना अभी मुश्किल है। फिलहाल पाकिस्तान बारुद के ढे़र पर है और उसे समझना होगा कि वह आतंकवाद को नेस्तनाबूंद करके ही स्वयं को सुरक्षित कर सकता है। मौजूदा दौर में पाकिस्तान आतंकवाद प्रभावित देशों में शीर्ष पर है। उसकी स्थिति इराक, सीरिया और लेबनान से भी बदतर है। पाकिस्तान की राष्ट्रिय आंतरिक सुरक्षा नीति यानी एनआइएसपी के मुताबिक 2001 से 2013 के बीच हिंसा की 13000 से भी अधिक घटनाएं हो चुकी हैं। गौर करें तो इराक में हुई घटनाओं से कुछ ही कम है। 2007 में पाकिस्तान में आतंकवाद की 500 से अधिक घटनाएं हुई जो 2013 अंत तक 13 हजार से पार पहुंच गयी। अमेरिकी संगठन स्टार्ट की मानें तो पाकिस्तान में इराक से अधिक हमले हुए हैं। देखा जाए तो इसके लिए पाकिस्तान खुद जिम्मेदार है। वह अपनी धरती पर आतंकियों को प्रश्रय दे रखा है। तथ्य यह भी कि विकास के लिए विदेशी संस्थाओं से मिलने वाली मदद को विकास पर खर्च करने के बजाए भारत विरोधी आतंकी गतिविधियों पर लूटा रहा है। उसने दुनिया के मोस्ट आतंकियों को अपने यहां शरण भी दे रखा है। भारत के मुंबई बम विस्फोट के मास्टरमाइंड दाऊद इबा्रहिम आइएसआइ के शरण में है। यह किसी से छिपा नहीं है कि आतंकवाद पर लचर रवैए के कारण ही पाकिस्तान के एक बड़े भू-भाग पर परोक्ष रुप से पाकिस्तान तालिबानों का कब्जा है। सरकार एवं सेना उनकी ताकत के आगे दूम दबाए हुए हैं। एक दशक से जनरल मुशर्रफ, जनरल कियानी, आसिफ अली जरदारी और मियां नवाज शरीफ दहशतगर्दी को नेस्तनाबूद करने का राग अलाप रहे हैं। लेकिन यह सब नौटंकी है। सच्चाई तो यह है कि वे दहशतगर्दों के खिलाफ नहीं हैं। यही वजह है कि तालिबान को बातचीत के टेबल पर लाने के लिए वे उन सभी शर्तों को स्वीकार करने को मजबूर होते हैं जो पाकिस्तान की संप्रभुता के लिए खतरनाक है। यह किसी से छिपा नहीं है कि पाकिस्तान तालिबान का मकसद राजनीतिक नेतृत्व को खत्म कर देश में इस्लामी या शरिया कानून को स्थापित करना है। ऐसे में समझना कठिन नहीं रह जाता है कि पाकिस्तान आतंकवाद को लेकर कितना गंभीर है। पाकिस्तानी सेना का रवैया भी ढेरों आशंकाएं पैदा करता है। ऐसा प्रतीत होता है कि वह आतंकियों को लेकर नरम है। आतंकियों को लेकर जनरल कियानी की नरमी दुनिया के सामने उजागर भी हो चुकी है। दहशतगर्दों को कुचलने के बजाय वह गत दिनों वह यह कहते सुने सुने गए कि जब तक धार्मिक कट्टरपंथ के खिलाफ देश में एक राय नहीं बनेगी फौज कोई अंतिम रणनीति नहीं बना पाएगी। नतीजा सामने है। आतंकियों का हौसला बुलंद है। हाफिज सईद जैसे आतंकियों को खुलकर खेलने का मौका मिल रहा है। अभी भी पाकिस्तान के पास वक्त है कि वह अपनी धरती को तबाह होने से बचाने के लिए कड़े फैसले ले और भारत व अमेरिका के साथ मिलकर अपने देश में पसरे आतंकियों को नेस्तनाबूद करे। बेहतर होगा कि पाकिस्तान भारत में प्रायोजित आतंकवाद को प्रश्रय देने से बाज आए। अपनी भूमि पर बने आतंकी शिविरों को नष्ट करे। यह पाकिस्तान के हित में भी होगा। उसे समझना होगा कि फिलहाल पाकिस्तान का भविष्य अंधकारमय है और वह संकट से उसकी संप्रभुता और साख दोनों खतरे में है।

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