“मासूमो की मौत पर तांडव करते आतंकवादी ‘इस्लाम’ के अनुयायी नहीं हो सकते?”

गुजरात पुलिस के द्वारा आतंकवादियो से निपटने के लिए किए गए ‘ऐंटि-टेरर मॉक-ड्रिल’ मे ‘डमी-आंतकवादियों’ को मुस्लिम संप्रदाय से दिखाये जाने पर विवाद बढ़ता जा रहा है, गौरतलब है गुजरात की सीएम आनंदीबेन पटेल ने आनन-फानन मे इसके लिए माफी मांग ली थी और दोषियो पर उचित कार्यवाही करने का भरोसा भी दिया था। इसके बावजूद देश के मुस्लिम संगठन और विपक्षी पार्टिया गुजरात सरकार से पूरी तरह संतुष्ट नहीं है। इस घटना से देश-विदेश, टीवी डीबेट, सोशल मीडिया मे एक बार फिर से, नए सिरे से इस बात पर पर बहस शुरू हो गई है की क्या वाकई मे सारे आतंकवादी ‘मुसलमान’ होते है या आतंकवाद का भी कोई ‘धर्म’ होता है?

इसमे कोई शक नहीं है की गुजरात पुलिस ने मॉक-ड्रिल’ के माध्यम से जो किया वो अति-निंदनीय है जिसकी जितनी भ्रस्तना की जाए कम है, परंतु सच्चाई यह है की आदमी जैसा देखता है वैसी ही सोच समाहित कर मन मे एक तस्वीर बना लेता है।

देश हो या विदेश, कहीं भी देख लीजिये अधिकांश आतंकवादी किस समुदाय से आते हैं? हाल मे ही पोप फ्रांसिस ने दुनिया भर के मुस्लिम नेताओं से अपील की थी कि वो इस्लाम के नाम पर फ़ैलाए जा रहे आतंकवाद की स्पष्ट शब्दों में कड़ी निंदा करें. उन्होने कहा “जहां तक इस्लाम को लेकर डर की बात है तो यह सही है कि जब हम ऐसी आतंकवादी गतिविधियों को देखते हैं, न सिर्फ इस क्षेत्र में, बल्कि अफ्रीका में भी, तो इस तरह की प्रतिक्रिया होती है- ‘अगर ये इस्लाम है तो मेरी इससे नाराज़गी है’. सोचिए कैथोलिक समुदाय के २६६वें पोप को किसी धर्म विशेष के लिए ऐसा बयान क्यों देना पड़ा?

“संयुक्त अरब अमीरात (यूएई) ने पिछले साल नवंबर मे हक्कानी नेटवर्क और लश्कर ए तैयबा (जोकि मुंबई हमले का जिम्मेदार है) सहित कुल 86 मुस्लिम संगठनो को आधिकारिक तौर पर ‘आतंकवादी-संगठन’ घोषित किया था। प्रतिष्ठित अमेरीकन जांच एजेंसी एफ़बीआई द्वारा जारी 22 खूंखार आतंकवादी जो दुनियाभर मे आतंकवादी हमलो के लिए जिम्मेदार माने जाते है, सभी अपने ‘नाम’ से मुसलमान या फिर कहूँ अपने ‘जेहादी’ होने का हवाला दिया करते थे। शायद वह सभी खुद को जेहाद के नाम पर इस्लाम का ‘रक्षक’ भी मानते होंगे?”

मुझे याद है प्रधानमंत्री मोदी ने कहा था “भारत का मुसलमान देश के लिए मरेगा और मिटेगा”। दूसरी तरफ राष्ट्रियता से भारतीय ओवेशी 15 मिनट मे हिंदुस्तान और मुल्क के हिन्दुओ से मिटाने की बात करते हैं, तो जनाब यह सोच मानसिकता कैसे बदलेगी?

मानता हूँ आप एक्का -दुक्का आदमी के अधर्मी एवं अमानवीय कुकृतों के लिए किसी मजहब को बदनाम नहीं कर सकते, पर जैसा की आप मेरे द्वारा दिये गए उपरोक्त उदाहरणो से देख और समझ सकते हैं कि समस्या यह है की यहाँ तो एक लंबी-अच्छी-ख़ासी फौज है मुजाहिद्दीनों की। एक कहावत है तालाब मे एक मछली सारे तालाब को गंदा कर देती है पर इन आंकड़ो को देख कर लगता है कि आतंकवाद के तालाब मे सारी मछलिया गंदी है।

टाइम्स नाऊ न्यूज़ चैनल पर बीजेपी के जय नारायण व्यास कहते हैं “वो लोग पाकिस्तान के मुसलमान (आतंकवादी) को दर्शा रहे थे। इसको अन्यथा नहीं लेना चाहिए। पर व्यास जी उन आतंकवादियों का और भारत मे रहने वाले मुस्लिमो का धर्म तो एक ही है ‘इस्लाम’? आपके मॉक-ड्रिल वाले आतंकवादी ‘इस्लाम ज़िंदाबाद’ के नारे लगा रहे थे? वैसे आईएसआईएस और लश्कर के आतंकवादी भी कुछ ऐसे ही “स्लोगन” लगाते हैं? अब उनका धर्म ‘इस्लाम’ है या नहीं वो तो वही जाने?

पर कोई भी धर्म चाहे वो सनातन हो या इस्लाम, हमे हिंसा का संदेश कभी नहीं देता है। मासूमो की मौत पर तांडव करते लोग शायद इस्लामके अनुयायी कभी नहीं हो सकते? मेरे एक मुस्लिम मित्र ने मुझे बताया जेहाद का सही मतलब अपने अंदर की बुराइयों से लड़ कर उसे मिटाना है, और यह भटके और सिरफिरे लोग इंसानियत को ही मिटाने चले हैं। 

निष्कर्ष मैं सिर्फ इतना कहूँगा हमे सच को स्वीकारते हुए ऐसे लोगो की निंदा करनी चाहिए बजाए इसके हम किसी संदेशवाहक माध्यम पर हमला करे। कोई भी धर्म एवं संप्रदाय बुरा नहीं होता अपितु उस धर्म से जुड़े लोग अपने कुकर्मी कर्मो से धर्म की ग्लानि का कारण बनते हैं। इसलिए ऐसे कुंठित लोगो की वजह से उस धर्म से जुड़े अन्य लोगो को कटघरे मे खड़ा करना ‘जायज़’ नहीं ‘ज्यादती’ होगा।

 

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