कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता विश्वविद्यालय द्वारा ‘प्रायोजित समाचारों की चुनौतियां’ विषयक संगोष्‍ठी आयोजित

रायपुर(1 अगस्त 2010)। ‘प्रायोजित समाचारों की चुनौतियां’ विषय पर कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय द्वारा न्यू सर्किट हाउस में एक संगोष्ठी का आयोजन किया गया, जिसमें मुख्य अतिथि के रूप में राज्य के राज्यपाल महामहिम शेखर दत्त के अलावा दैनिक भास्कर के समूह संपादक श्रवणगर्ग, लोकमत के संपादक जयशंकर गुप्त, देशबंधु के संपादक ललित सुरजन, ईआईएमसी दिल्ली के प्रोफेसर केएम श्रीवास्तव मुख्य रूप से उपस्थित थे।

राज्यपाल ने कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि स्वस्थ्य पत्रकारिता का मूल्य स्थापित करने के लिए पाठक वर्ग को विज्ञापन और समाचारों में फर्क करना जानना होगा एवं यह भी कहा कि कोई भी ऐसा क्षेत्र अछूता नहीं है, जिसमें कठनाईयों का दौर न आता हो। उसी प्रकार से मीडिया में प्रायोजित समाचारों का बुरा दौर चल रहा है, जिसका हल मीडिया खुद ढूढने में सक्षम है। राज्यपाल ने कहा कि अच्छे पाठकों की जरूरत के लिए मीडिया को सदैव पहल करना चाहिए। उन्होनें संगोष्ठि में वक्ताओं के विमर्श को अत्यंत मूल्यवान बताया तथा कहा कि पत्रकारिता के वर्तमान खतरों का हल निकालने के लिए स्वयं पत्रकारों को आत्मविश्लेषण करके प्रायोजित समाचारों की उपस्थिति को स्पष्ट करने का प्रयास करना चाहिए। श्री शेखर दत्त ने संगोष्‍ठी के आयोजन पर हर्ष व्यक्त किया और विश्ववि़द्यालय को इस दिशा में निरंतर कार्य करने की बधाई दी।

कार्यक्रम में प्रो. के. एम. श्रीवास्तव ने तिलक के जीवन काल की पत्रकारिता का उदाहरण देते हुए आज के दौर की पत्रकारिता में आ रही विकृतियों का खुलासा किया। उन्होंने कहा कि प्रायोजित समाचारों का उपयोग अधिकतर चुनाव के समय में किया जाता है एवं राजनैतिक पार्टियां इसका पूरा लाभ लेती है। श्री श्रीवास्तव ने संपादक के महत्व को स्पष्ट करते हुए मीडिया पर बाजार के हमलों को घातक बताया। उन्होंने विज्ञापन को समचारों के जरिए किस प्रकार से प्रस्तुत किया जाता है इस बारे में विस्तार से जानकारी दी। उन्होंने प्रायोजित समाचारों की चुनौतियों को कानूनी तरीकों से सामना करने के बजाय पाठकों की जागरूकता को जरूरी बताया। लोकमत के संपादक जयशंकर गुप्त ने कहा कि प्रायोजित समाचारों का चलन कई दशक पुराना है। यह आज की समस्या नहीं है, कई उदाहरण बताते हुए उन्होंने प्रायोजित समाचारों को मीडिया रूपी शरीर पर कई बिमारियों का एक साथ प्रहार है। इस बिमारी का उपचार समय रहते जरूरी है, जिससे देश एवं समाज का भला हो सकता है।

दैनिक भास्कर के समूह संपादक श्रवण गर्ग ने कहा कि अखबारों के 16 से 20 पन्नों में से अगर 6-8 पन्नें प्रायोजित हो भी जाते हैं तो भी 10-12 पन्नें ऐसे बचते हैं जिसमें निष्पक्ष व निर्भिक समाचारों का समावेश किया जाता है। जिस पर हम ध्यान न दे कर कमियों को गिनाते हैं। श्री गर्ग ने स्पष्ट किया कि जिस विषय पर हम चिंतन कर रहे हैं उसकी स्थिति इतनी भी खराब नहीं है जिसको लेकर कोहमराम मचाया जाय। उन्होंने कहा कि आपातकाल से लेकर देश में विभिन्न मुद्दों पर मीडिया ने ही संघर्ष की अगुवाई की है, समसमायिक विषयों और महत्वपूर्ण मसलों पर कोई और नहीं मीडिया ही विचार कर जनमत बनाने का काम करता है। यह विश्वास रखना चाहिए कि मीडिया में यह विकृति कि कुछ समय पश्चात यह समस्या खुद ब खुद दूर हो जाएगी। हम मानते हैं कि भले ही नालों के किनारे बने झुग्गी-झोपडियों में पानी आ गया हो, मगर मजबूत आधार पर बने घरों तक अभी पानी नहीं आया है।

देशबंधु के संपादक ललित सुरजन ने संबोधित करते हुए कहा कि पत्रकारिता पर जो संकट चल रहा है उस पर विचार करने की आवश्यकता है न कि खंड-खंड पर बात करने की, यह भी कहा कि वर्तमान स्थिति में जिसकी उपेक्षा होनी चाहिए थी, वह केंद्र बिंदु बना हुआ है तथा जिसे केंद्र में होना चाहिए, वह हाशिए पर चला गया है। श्री सुरजन ने कहा कि चुनाव आयोग ने आचार संहिता के नाम पर मीडिया के विज्ञापनों को नियंत्रित करने की जो नीति तय की है, वह ठीक नहीं है। उन्होंने कहा कि ऐसे कई मुद्दे हैं जो मीडिया के स्वस्थ विकास में बाधक हैं। श्री सुरजन ने चिंता व्यक्त की कि आज श्रमजीवी पत्रकारों के संगठन, संपादक सम्मेलन भारतीय प्रेस संस्थान निष्क्रिय होते जा रहे हैं, हमें इस दिशा में भी ध्यान देने की जरूरत है।

प्रारंभ में संगोष्ठि में आये वक्ताओं का स्वागत करते हुए एवं विषय प्रवर्तन वक्तव्य के साथ कुलपति श्री सच्चिदानंद जोशी ने बदलती हुई परिस्थितियों में प्रायोजित समाचारों पर गहरे विमर्श की जरूरत पर लोगों का ध्यान केंद्रित किया। उन्होंने मीडिया की विश्वसनीयता को लेकर उठ रहे सवालों और पत्रकारिता के मानकों को लेकर कई बिन्दुओं को विचार करने के लिए वक्ताओं को निमंत्रित किया। यह कार्यक्रम वरिष्ठ पत्रकार स्वर्गीय

श्री रामशंकर अग्निहोत्री की स्मृतियों को लेकर और श्री अग्निहोत्रीजी के पेड न्यूज के खिलाफ वातावरण पैदा करने की पहल को लेकर एक सार्थक प्रयास रहा है।

कार्यक्रम की शुरूआत दीप प्रज्ज्वलित एवं विभूतियों के छाया चित्र पर माल्यार्पण कर किया गया। आभार प्रदर्शन कुलसचिव डॉ. डीएन वर्मा ने किया। कार्यक्रम का संचालन पत्रकारिता विभाग के व्याख्यता नृपेंद्र शर्मा ने किया। कार्यक्रम में नगर से पधारे प्रबुद्ध नागरिकों, प्रशासनिक अधिकारों, सामाजिक कार्यकर्ताओं एवं विश्वविद्यालय के प्राध्यापकों सहित बड़ी संख्या में छात्रगण व श्रोतागण उपस्थित थे।(कुलसचिव, कुशाभाऊ ठाकरे पत्रकारिता एवं जनसंचार विश्वविद्यालय)

1 COMMENT

  1. Paid News / Letters to the Editor.
    Estimate is that a minimum of 40% of news is paid and sponsored. The remaining, at best, 60% can be stated to be factually correct.
    40% garbage is attempting to be regularized and appears to be settling like Jhuggi Jhopris.
    In the above scenario, space for scripts of letters to editor has also been taken over by the paid category.
    Readers are not equipped to pay for their letters and this section of readers is now disinterested to write to the editor.

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