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एक कवि के मन की व्यथा - प्रवक्‍ता.कॉम - Pravakta.Com
पड़े पड़े घर में ऊब गया हूँ ,घन चक्कर सा घूम गया हूँ |बाहर जाओ तो पुलिस डाटती है,घर रहो तो बीबी फटकारती है |लिखते लिखते कलम थक गयी है ,बुद्धि भी अब बहुत थक गयी है |हाथो में अब पड गये है छाले ,कागजो के भी पड गये है…