यह बालक गुस्सा नहीं, उपेक्षा का पात्र है

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-पंकज झा

एक कहावत है, कभी भी किसी जीवित व्यक्ति की प्रशंसा नहीं करें. पता नहीं कब आपको अपने कहे पर पछतावा होने लगे. ऐसे ही पछतावे का अवसर इस लेखक को हाल के राहुल गांधी के बयान ने दिया है. मध्यप्रदेश में राहुल ने बयान दिया कि संघ और सिमी में कोई फर्क नहीं है.

कुछ महीने पहले की बात है जब इस लेखक ने राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से परे जा कर राहुल की इस बात के लिए तारीफ़ की थी कि वो दलितों के घर जा कर एक नए तरह का पहल कर रहे हैं. तब राहुल के उस काम को ‘नाटक’ कहने वालों के लिए अपना यह सवाल था कि अगर यह नाटक ही है तो शेष राजनीतिक दलों को ऐसा करने से कौन रोक रहा है? मोटे तौर पर अपनी यह समझ बनी थी कि उस मामले में राहुल की आलोचना वैसा ही है जैसे किसी प्रतियोगी परीक्षा की तैयारी करने वाले का ये कह कर आलोचना की जाय कि यह कोई पढ़ने वाला लड़का नहीं है. चुकि इसको आईएएस बनना है इसलिए पढ़ रहा है. आशय यह कि भले ही लक्ष्य भौतिक हो, आपका कदम भले ही प्रतीकात्मक हो, फ़िर भी अगर आप कोई बड़ी लकीर खीचने के लिए प्रयासरत हों, आपके किसी उचित कदम हाशिए के लोगों को मुख्यधारा में लाने में मदद मिल रही हो तो उसकी तारीफ़ की जानी चाहिए. राजनीति में कई बार प्रतीक ही भविष्य का मेरुदंड बन जाता है. अन्यथा किसको पता था कि ‘असली गांधी’ द्वारा दांडी में एक मुट्ठी नमक उठाना अंग्रेजों के नमकहरामी की ताबूत में अंतिम कील साबित होगा. खैर.

तो इस नकली गांधी ने ऐसा कोई बयान दिया होगा पहले तो सहसा विश्वास करना ही मुश्किल था. अपनी स्थापना से लेकर आज तक दुष्प्रचारों को झेलता रहा संघ निश्चय ही हर अग्नि परिक्षा में कुंदन बन कर निकला है. लेकिन संघ के कटु से कटु आलोचकों ने कभी इस सांस्कृतिक संगठन की राष्ट्र के प्रति निष्ठा पर कोई शक नहीं ज़ाहिर किया है. गांधी-नेहरु-पटेल सभी ने अलग-अलग समय पर इस संगठन की तारीफ़ की है. जहां संघ द्वारा उठाये गए हर विषय, उसके द्वारा जताई गयी हर चिंता कल हो कर देश के लिए बड़ी समस्या के रूप में साबित हुआ है. जहां उसके द्वारा हाथ में लिए गए हर कामों को समय-समय पर न्यायालय भी मुहर लगाता रहा है, वही ‘सिमी’ किस तरह हर आतंकी दलों के लिए गुंडों की फौज बना हुआ है यह किसी से भी छुपा नहीं है. उस गिरोह को राहुल के केन्द्र सरकार ने खुद ही प्रतिबंधित किया हुआ है. जैसा कि सब जानते हैं अभी के केन्द्र के खेवनहार ने राहुल के लिए अपने गद्दी को ‘खडाऊ’ के रूप में सम्हाल कर रखा हुआ है. इसकी बागडोर प्रत्यक्ष रूप से राहुल की मां के पास ही है. तो अगर उसके इशारों पर नाचने वाली केन्द्र सरकार ने जिस सिमी पर नकेल कसी है क्या उसकी तुलना किसी देशभक्त संगठन से की जा सकती है?

संघ और सिमी को एक तराजू पर तौलने वाले किसी नेता की आंख में कौन सा चश्मा लगा हुआ है यह समझना कोई मुश्किल काम नहीं है. हां इस तरह का बयान देने वाले कांग्रेस के एक और महासचिव दिग्विजय सिंह जैसे लोग अगर इस तरह की बात करते तो यह अपेक्षित था. वास्तव में सिंह ने हमेशा ऐसे ही बयान दे कर जनता द्वारा बार-बार ठुकराए जाने के बाद भी स्वयं को प्रासंगिक बनाए रखने की कोशिश की है. लेकिन जिस तरह से मध्य प्रदेश में जा कर ही राहुल यह बयान दिया है तो यह मानने का पर्याप्त कारण है कि दिग्विजय अपनी बात राहुल के मूंह से कहाने में सफल सफल हुए है. तो इस आलोक में यह बात समझी जा सकती है कि राहुल के आस-पास किस मानसिकता के लोग हैं और भविष्य में हमें किस तरह की राजनीति से दो-चार होना पर सकता है.

यदि राहुल के इस बयान को उसका जुबान फिसल जाना माना जाय तो बात अलग है. लेकिन यह सभी जानते हैं कि उनकी जुबान इसलिए फिसल नहीं सकती क्यूंकि शब्द उनके अपने कभी होते नहीं. हां कई बार एक राज्य के लिए लिखे गए भाषण को किसी दुसरे सूबे में भी पढ़ने का कमाल ये ज़रूर करते रहे हैं. चंद महीने पहले की बात है. छत्तीसगढ़ के बस्तर दौरे के समय वहां जा कर राहुल कह आये कि प्रदेश की जातिवादी राजनीत ने बस्तर का बहुत नुकसान किया है. लोग ‘बाबा’ के इस बयान पर तब हस-हस कर लोट-पोट हो गए थे. सबको यह बाद में पता चला कि वस्तुतः उत्तर प्रदेश के लिए दिए गए कुछ नोट्स इन्होने यहां पढ़ दिया था. क्यूंकि तथ्य यह है कि छत्तीसगढ़, खास कर उसके आदिवासी इलाके में ‘जाति’ कभी भी कोई मुद्दा नहीं रहा है.

अगर वर्तमान बयान जैसा कि तथ्य इशारा कर रहे हैं जिसके द्वारा राहुल के मुंह में डाला गया हो उसके सन्देश साफ़ हैं. सब जानते हैं कि अयोध्या फैसले के बाद सभी ‘शर्म निरपेक्ष’ दलों को अपनी राजनीति खटाई में जाती नज़र आ रही है. इस फैसले ने संप्रदायों के फासले को खतम कर सद्भाव की बयार बहाई है. तो ज़ाहिर है, आज-तक तुष्टिकरण को ही अपना आधार बनाने वाली, अपने पुरुखों की तरह, लोगों को बांट कर ही राज चलाने वाली कांग्रेस के लिए यह मुफीद नहीं है. अयोध्या मामले को ही पहले जिस तरह ‘शाहबानो नुकसान’ को कम करने का प्रयास इस दल द्वारा किया गया था उसी तरह का प्रयास ऐसे बयान दे कर कांग्रेस ‘अयोध्या नुकसान’ की भरपाई करने के लिए कर रही है. तो ज़रूरत इस बात की है कि बाजार राहुल पर गुस्सा दिखाने के इनकी उपेक्षा की जाय.

आप एक मिनट के लिए राहुल को उनके ‘गांधी’ उपनाम से अलग करके देखिये. यह भूल जाइये कि वह किसी ‘शाही’ परिवार के हैं. क्या आपको उनमें देश को दिशा दे सकने लायक किसी व्यक्तित्व की छाप दिखेगी? क्या कभी आपने उनका कोई मौलिक विचार, कोई विजन, कोई सोच ऐसा देखा-सुना है जो इस देश को आगे ले जाने में सहायक हो? पिछले कई सालों से आप संसद में उन्हें मीडिया द्वारा बनाये गए किसी ‘स्टार’ की तरह देख रहे हैं. क्या आपको उनके पांच मिनट का भी कोई प्रभावी वक्तव्य याद है? तो आप सोचिये आखिर हम भविष्य में किस कद के नेताओं को देखना चाहते हैं. मैडम के इर्द-गिर्द और युवराज को स्थापित क़रने में लगे लोगों को यह बेहतर पता है कि इस तरह की हरकतों के बाद ही वह राजनीति के केन्द्र में परिवार के नयी पढ़ी को स्थापित कर पायेंगे. लेकिन देश को यह सोचना होगा कि लाख अयोग्यता के बावजूद किसी को नेता ‘लोकतंत्र’ में भी केवल इसलिए चुना जाय कि वह किसी राजवंश का अंग रहा है? यही सवाल एक ऐसा यक्ष प्रश्न है जिसके जबाब पर भविष्य के भारत और उसके लोकतंत्र की दिशा तय होनी है.

शासन में वंश की प्रासंगिकता पर एक कथा प्रासंगिक है. पुरी के ऐतिहासिक भगवान जगन्नाथ का भव्य मंदिर वहां के राजा इन्द्रद्युम्न द्वारा बनाया गया. कहते हैं भगवान ने राजा पर प्रसन्न हो कर उनसे कोई भी वर मांग लेने को कहा. तो ऐसी मान्यता है कि इन्द्रद्युम्न ने भगवान से ये प्रार्थना की कि उन्हें निपुत्र हो जाने का वरदान दें. ऐसा वरदान केवल इसलिए कि वे नहीं चाहते कि उनकी आने वाली पीढियां उनके यश को कभी भुनाने का प्रयास कर पाए. लोकतंत्र के सम्बन्ध में राजा इन्द्रद्युम्न के इस महान विचार को समझने की ज़रूरत है.

15 COMMENTS

  1. pankaj jee aapke lekh pad kar main aanandit aur utsaahit hotaa hun. meree dee jaanakaaree aapako upayogee lagee w pasand aaii, pryaas saarthak huaa ; dhanywaad. lekh likhane ke liye prerit karane hetu aabhaar, pryaas rahegaa. aap sareekhe jujhaaru lekhkon ko padh kar meree triptee ho jaatee hai.
    – ham sab ek raah ke raahee hain aur ek-dusare ke purak hain ; sampurn gyaanee to koii bhee naheen. shubhkaamanaaon sahit aapkaa.

  2. pankaj jee hamein yaad rakhanaa hogaa ki yah wah pariwaar hai jisane bhaarat ke isaaii-karan kaa sankalp kiyaa huaa hai. bhaarat ke sampurn isaaiikaran ke sammaanit pop ke sankalp ko saakar karane ke liye ye pariwaar aur inake saathee samarpit hain. ye saaree mashakkat isee liye to ho rahee hai.

  3. राहुल गाँधी के गुडगान करने वालो से एक बात जानना चाहता हु कि पिचले पाँच साल के कार्यकाल में लोक सभा में महज तीन बार लिखा भाषण पढ़ने वाला कैसे देश की बागडोर सम्हाल सकता है जिसे यह भी मालूम नहीं कि डॉ.अम्बेडकर किस पार्टी के थे और उनके जन्म दिन पैर कांग्रेस की यात्रा निकलते समय एक स्मारिका का विमोचन किया और उसमे डॉ.अम्बेडकर पैर लम्बा चौड़ा भाषण भी दिया लेकिन उस स्मारिका में कही डॉ.आंबेडकर का जिक्र ही नहीं था बाद में उन्ही को नहीं वह मुओजुद सभी वरिष्ठ लोगो के सामने मुह छुपाने कि नुओबत आ गयी.क्या हिंदुस्तान की सभी समस्याए कांग्रेस का संघटन सुदृढ़ हो तो हल हो जाएगी अभी तक राहुल का क्या योगदान रहा है इसके अलावा कि अपनी हाजिरी लगवाए और अर्ध्विदेशी होने के ठप्पे को समाप्त करे वैसे अब खानदानी जादू चकने वाला नहीं जनता बहुत समझदार हो गयी है.युवको के लिए दर-दर भटकने वाले राहुल की दिल्ली विश्यविद्यालय के युवको ने ही नहीं सुनी तो देश की जनता क्या भाव देगी यह अभी राजस्थान के पंचायत चुनाव और गुजरात के चुनाव से जाहिर हो गया है जहा जनता ने कांग्रेस को बुरी तरह नकार दिया.बिहार में भी कुछ वैसा ही होने की संभावना है,क्योकि वह इन्हें अपराधियो की शरण लेनी पड़ी फिर भी पहले के ५०%अधिक सीट मिल जय वही बहुत बड़ी बात होगी.आपलोग उत्तर प्रदेश का उदहारण देते रहते है जहा अंतिम समय तक समाजवादी परी से सम्झुओते का इंतजार करते रहे दूसरी बात यह कि वह समाजवादी पार्टी का नकारात्मक वोते ही मिला कोई कांग्रेस का वोते नहीं था नहीं तो ११ जगह के उपचुनाव में मात्र एक सीट वह भी लालजी टंडन की भा.ज.प्.से नाराजगी की वजह से मिला और कुशिनागेर जहा से आर.पी.एन.सिंह केंद्र में मंत्री होते हुए नहीं जीता पाए और डुमरिया गंज में तो चुओठे पायदान पैर थी इसे कोई यद् करना नहीं चाहता जहा तक बात राजबब्बर की तो वे स्वेम सचम थे राहुल,सोनिया के लिए सिर्फ रायबरेली और अमेठी ही उत्तर प्रदेश है जहा की हालत इस अंचल में सबसे गयी गुजारी है जब कि यह नेहरू खानदान का खानदानी चुअव चेत्र रहा है यह अज भी बुनियादी सुविधाओ से महरूम है कही किसी तरह का विकास नहीं सिर्फ जहाज ले केर घुमाने से देश की समस्या हल हो जाती तो कहना ही क्या? आज राहुल के युवको की फुओज सिर्फ करोडपतियो और खानदानी लोगो से मिल केर बना है,नहीं तो ६ मंत्री उसी स्कूल के नहीं होते जहा युवराज ने शिक्चा पाई है.क्या इसी अंग्रेजी में पढ़े लिखे उसी वातावरण में पाले बढे मैनेजर इस देश को चलायेगे जहा किसी न किसी तरह अपने को सबसे बढ़िया साबित करने में एन-केन प्रकार चाहे धोखाधड़ी भी करनी हो तो भी चलता है.यही चलेगा इसी का गुडगान किया जय.मुझे तो इन बुध्ध्हिनो पैर तरस आता है जो सवा अरब लोगो के नेता उस सख्स को मानते है जिसे कायदे से भाषण पढ़ने की भी tamij nahi.

  4. पंकज जी निवेदन को स्वीकार करने के लए धन्यवाद् और आपके साथ
    डॉ. राजेश कपूर जी से भी अनुरोध की वो भी वामपंथियों के क्रियाकलापों के बारे में हमारा विस्तृत ज्ञानवर्धन करे

  5. बहुत धन्यवाद आपको शैलेद्र जी. अभी मैंने कुछ दिनों के लिए अवकाश लिया है. लेकिन निश्चय ही यथाशीघ्र कुछ लिखने की कोशिश करूँगा. हालंकि टुकड़े-टुकड़े में कई बार इस साईट पर वामपंथ को संदर्भित किया है. लेकिन आपने एक अच्छा विषय दिया है मुझे.आपकी उम्मीद मेरी पूजी है. बिलकुल निराश नहीं होंगे आप. पुनः आभार.
    डॉ. कपूर साहब कि टिप्पणी मुझे सदा ही संकोच से भर देता है. जिस तरह के सन्दर्भ उनकी टिप्पणियों में रहते हैं वैसे में हमें अच्छा लगता कि वो विस्तृत लेख लिखते और मेरे जैसे लोग टिप्पणी करने की कोशिश करते. मेरे जैसे कथित लेखकों को मीडिया के बारे में इतना कुछ बिलकुल नहीं पता था.काफी जानकारी मिली. धन्यवाद सर.
    तिवारी साहब को उनके प्रोत्साहन हेतु धन्यवाद ….सदा की तरह. धन्यवाद राजीव जी. धन्यवाद केशव. संजय भैया का भी आभार. लोकेन्द्र को धन्यवाद…उन्होंने खुद ही राहुल के बारे में त्वरित और काफी बेहतर लिखा है. अपनी पत्रिका में इस बार इस अपने इस लेख के बदले लोकेन्द्र का लेख इस विषय पर देना ज्यादे उचित लगा. सभी को नमन.

  6. पंकज जी अब वामपंथियों पर आपसे एक अच्छे विस्तृत लेख की उम्मीद है आशा है आप निराश नहीं करेंगे

  7. पंकज जी आप्प एक सुयोग्य लेखक होने के कारण जो लिखते हैं वह उत्तम होता है पर लगता है कि कुछ लोग लिखी बात को सही रूप से समझने में असमर्थ सिद्ध हो रहे हैं और अपने पूर्वाग्रहों को अभिव्यक्त कर रहे हैं.
    – राहुल गांधी जी को वास्तव में मैनजमेंट विशेषज्ञों ने हीरो बनाया है. एक ख़ास बात यह है कि इस देश को संचालित करने का काम कुछ विदेशी ताकतें कर रही हैं . वे ही ताकतें राजीव गांधी को भावी प्रधानमंत्री बनाने की नीतियाँ, कार्यक्रम व जनताको मूर्ख बनाने के तरीके राजीव गांधी व इनकी पार्टी को सिखा रहे हैं.
    – आप की अन्य दलों से अपेक्षा है कि वे भी मीडिया को सही ढंग से मैनेज करें. पर यह होना संभव नहीं है. मीडिया केवल सोनिया परिवार के हित में ही काम करेगा,(कांग्रेस के हित में भी काम नहीं करेगा )
    – स्वाभाविक प्रश्न है कि ऐसा क्यों ? तो इसका जवाब यह है कि भारत का अधिकाँश राष्ट्रीय मीडिया शक्तिशाली चर्च लॉबी द्वारा खरीद लिया गया है जिसका उपलब्ध वर्णन इस प्रकार है——-
    * टी.वी. चैनल सीऐनऐन, आईबीऐसऐन पर ‘ नार्दन चर्च ‘ 800 से1000 मिलियन डालर खर्च करता है.
    इस चारच का मुख्य कार्यालय अमेरिका में है. भारत में इसके प्रमुख राजदीप सरदेसाई व उनकी पत्नी सागरिका घोष हैं.
    * एनडी टी वी को वित्तीय सहायता ‘ गौस्पेल ऑफ़ चैरिटी, स्पेन ‘ द्वारा दी जाती है. इस चिनल के संचालक कमुनिस्ट विचारधारा के हैं. इसके भारतीय संचालक प्रणव राय ( मार्क्सवादी पार्टी के प्राकश करात के साढू ) व प्राकश करात की पत्नी व दोनों बहनें हैं. इसी चैनल का कमाल है कि उसने गुजरात के दंगों के समय केवल मुस्लिम पीड़ितों के साक्षात्कार लिए थे , हिन्दू का एक भी नहीं. जबकि ३५० हिदू और ७५० मुस्लिम दंगा पीड़ित थे.रपट तैयार करने का यह काम इस चैनल के तत्कालीन पत्रकार राजदीप और बरखा दत्त ने किया था.
    * टाइम्स ग्रुप : इसमें टाईम्स ऑफ़ इंडिया, मिड डे, नव भारत टाईम्स, स्टार डस्ट, फैमिना,टीवी चैनल विजय, टाइम्स नाव, विजय कर्नाटक आदि शामिल हैं. इस ग्रुप में ‘ वर्ड क्रिश्चन कौंसिल ‘ का ८० % तथा सोनिया गांधी के इतालवी रिश्तेदार वार्टियो मिनटों का २० % हिस्सा है.
    * स्टार टी वी का संचालन ऑस्ट्रेलियन नागरिक मुड्रुक करता है और इसे आर्थिक सहायता ‘ सैंट पीटर्स फैन्तीफीशियल चर्च ‘ से मिलाती है.
    * इंडिया टुडे के अधिकाँश शेयर ‘एनडी टी वी ‘ द्वारा खरीद लियी गए हैं.
    * हिन्दू नामक दक्षिण भारत का प्रमुख समाचारपत्र स्वीटरज्लैंड की ईसाई ‘वार्नैकी जोशुआ सोसाईटी’
    के स्वामित्व में है.
    * मात्री भूमी में मुस्लिम लीग व कमुनिस्ट नेताओं का भारी निवेइश है.
    * इन्डियन एक्सप्रेस ग्रुप दो भागों में बंटा हुआ है. दक्षिण के इसाई चर्च की इसमें हिस्सेदारी है.
    * केरल टीवी का संचालन वाम पंथियों द्वारा होता है. इसमें भी दक्षिण के चर्च की हिस्सेदारी है.
    # उपरोक्त विवरण से स्पष्ट हो जाना चाहिए के ये सार मीडिया केवल और केवल सोनिया जी के हित में या सीधे-सीधे कहें तो ईसाईयों और ईसाईयों के लिए लाभदायक सिद्ध होने वालों के हित में काम करेगा.
    अब हमें समझ आ जाना चाहिए कि मीडिया सदा हिन्दुओं के विरुद्ध इतना दुष्प्रचार क्यों करता है व भारतीय संस्कृति की जड़ें खोदने के दुराग्रही प्रयास क्यों करता है.
    – ऐसे में किसी भी दल को, ख़ास करके भारतीयता में आस्था रखने वाली संस्थाओं को यह मीडिया सहयोग कैसे दे सकता है. सोनिया परिवार को अत्यधिक महत्व देने और देवदूत जैसी छवि बनाने के मीडिया के प्रयासों का राज़ बस यही है

  8. यह भी संभव है की न पछताना पड़े ….कोई किसी की तारीफ़ करके कभी भी नहीं पछताया …आप किसी की भी तारीफ करके देखो घाटे का सौदा नहीं होगा ..राहुल के बारे में वस्तुनिष्ठता से छवि बनाना और आब्जेक्टिव अवधारणा के लिए देश का हरेक नागरिक स्वतंत्र है …आपका आलेख भी एक विशेष तार्किकता की परिणिति मात्र है ….प्रकारांतर से आप वही कर रहे हैं …जिसका निषेध करते हैं …उपेक्षा के पात्र की {राहुल जी की } वास्तव में उपेक्षा आप नही कर पा रहे हैं ..गुस्सा तो ..आपके आलेख की टिप्पणियों में ही बिंधा हुआ है

  9. राहुल गांधी मध्यप्रदेश आए, छात्रों से मिले, राजनीति में आने का न्योता दिया, साफगोई से कड़वे आरोपों को स्वीकार किया… बहुत बरसों बाद राजनीति की गहरी गंदली काई छंटती सी महसूस हुई। लाल बहादुर शास्त्री के बाद वाले राजनीतिक परिदृश्य में नेताओं की स्वीकार्यता क्यों कम होती चली गई और लोग (खासकर अच्छे लोग) पहल करने, सामने आने और साथ देने तक में कतराने लगे हैं, नई पीढ़ी इस घुट्टी के साथ टारगेट हिट करने में जुटी है कि जहां से जैसे भी जो भी लाभ मिले ले लो और आगे बढ़ो, देश और समाज को रिटर्न देने की चिंता गई तेल लेने… क्योंकि इसके नाम पर खून चूसने वाला सिस्टम और राजनीति की रोटी सेंकने वालों की दुकाने कदम-कदम पर सजी हैं। देश के शीर्ष राजनीतिक प्रतिनिधियों का मेकअप स्टिंग आपरेशनों से लेकर संसद के गलियारों में बेलगाम बयानों और कोर्ट की कार्रवाइयों तक में लगातार उतरता जा रहा है और जो बचा-खुचा नजर आ रहा है, लगता नहीं है कि कोई उसे प्रेम करने की हिम्मत करेगा। हां अपनी जरूरतों को निकालने के लिए फालोअर मिल जाएं या दीवाने जुट जाएं ये बात जुदा है।
    इस सूरते हाल में राहुल अगर घर (संगठन) संवारने की राह पर निकलें हैं तो अच्छा है क्योंकि नीति और नियत पाकीजा हुए तो फिर उम्मीदों के चिरागों की रोशनी कहां तक पहुंचेगी यह दुनिया बताएगी। राहुल मध्यप्रदेश प्रवास में संगठन के आंतरिक लोकतंत्र और युवा पीढ़ी को कांग्रेस से जोडऩे पर फोकस नजर आए

  10. इसमें कोई दो राय नहीं कि राहुल गांधी के प्रबंधकों ने उन्हें जो राह बताई है वह बहुत ही आकर्षक है और उससे राहुल की भद्र छवि में इजाफा ही हुआ है। किंतु यह बदलाव अगर सिर्फ रणनीतिगत हैं तो नाकाफी हैं और यदि ये बदलाव कांग्रेस की नीतियों और उसके चरित्र में बदलाव का कारण बनते हैं तो उसका स्वागत किया जाना चाहिए। हालांकि राहुल गांधी को पता है कि भावनात्मक नारों से एक- दो चुनाव जीते जा सकते हैं किंतु सत्ता का स्थायित्व सही कदमों से ही संभव है। सत्ता में रहकर भी सत्ता से निरपेक्ष रहना साधारण नहीं होता, राहुल इसे कर पा रहे हैं तो यह भी साधारण नहीं हैं। लोकतंत्र का पाठ यही है कि सबसे आखिरी आदमी की चिंता होनी ही नहीं, दिखनी भी चाहिए। राहुल ने इस मंत्र को पढ़ लिया है। वे परिवार के तमाम नायकों की तरह चमत्कारी नहीं है। उन्हें पता है वे कि नेहरू, इंदिरा या राजीव नहीं है। सो उन्होंने चमत्कारों के बजाए काम पर अपना फोकस किया है। शायद इसीलिए राहुल कहते हैं-“ मेरे पास चालीस साल की उम्र में प्रधानमंत्री बनने लायक अनुभव नहीं है, मेरे पिता की बात अलग थी। ” राहुल की यह विनम्रता आज सबको आकर्षित कर रही है पर जब अगर वे देश के प्रधानमंत्री बन पाते हैं तो उनके पास सवालों और मुद्दों को चुनने का अवकाश नहीं होगा। उन्हें हर असुविधाजनक प्रश्न से टकराकर उन मुद्दों के ठोस और वाजिब हल तलाशने होंगें। आज मनमोहन सिंह जिन कारणों से आलोचना के केंद्र में हैं वही कारण कल उनकी भी परेशानी का भी सबब बनेंगें। इसमें कोई दो राय नहीं है कि उनके प्रति देश की जनता में एक भरोसा पैदा हुआ है और वे अपने ‘गांधी’ होने का ब्लैंक चेक एक बार तो कैश करा ही सकते हैं।

  11. पकंज जी क्यों इतने तिमलमिला रहे है………क्या गजब हो गया है……औऱ अगर बात कर रहे हैं राहुल गांधी की…तो ….वे सही मायने में एक सच्चे उत्तराधिकारी हैं क्योंकि उन्होंने सत्ता में रहते हुए भी सत्ता के प्रति आसक्ति न दिखाकर यह साबित कर दिया है उनमें श्रम, रचनाशीलता और इंतजार तीनों हैं।सत्ता पाकर अधीर होनेवाली पीढ़ी से अलग वे कांग्रेस में संगठन की पुर्नवापसी का प्रतीक बन गए हैं।वे अपने परिवार की अहमियत को समझते हैं, शायद इसीलिए उन्होंने कहा- ‘मैं राजनीतिक परिवार से न होता तो यहां नहीं होता। आपके पास पैसा नहीं है, परिवार या दोस्त राजनीति में नहीं हैं तो आप राजनीति में नहीं आ सकते, मैं इसे बदलना चाहता हूं।’आखिरी पायदान के आदमी की चिंता करते हुए वे अपने दल का जनाधार बढ़ाना चाहते हैं। नरेगा जैसी योजनाओं पर उनकी सर्तक दृष्ठि और दलितों के यहां ठहरने और भोजन करने के उनके कार्यक्रम इसी रणनीति का हिस्सा हैं। सही मायनों में वे कांग्रेस के वापस आ रहे आत्मविश्वास का भी प्रतीक हैं। अपने गृहराज्य उप्र को उन्होंने अपनी प्रयोगशाला बनाया है। जहां लगभग मृतप्राय हो चुकी कांग्रेस को उन्होंने पिछले चुनावों में अकेले दम पर खड़ा किया और आए परिणामों ने साबित किया कि राहुल सही थे। उनके फैसले ने कांग्रेस को उप्र में आत्मविश्वास तो दिया ही साथ ही देश की राजनीति में राहुल के हस्तक्षेप को भी साबित किया। इस सबके बावजूद वे अगर देश के सामने मौजूद कठिन सवालों से बचकर चल रहे हैं तो भी देर सबेर तो इन मुद्दों से उन्हें मुठभेड़ करनी ही होगी।

    • आपकी तीनों टिप्पणियों के लिए धन्यवाद केशव. वासत्व में आपने बहुत अच्छा लिखा है राहुल के बारे में. लेकिन यहाँ विषय केवल राहुल का हालिया बयान था जिसमे उन्होंने ‘संघ’ और ‘सिमी’ एक तराजू पर तौलने की कोशिश की है. आपको इस विषय पर अपनी टिप्पणी देनी थी. खैर.
      और हम बिलकुल तिलमिलाए हुए नहीं है. मैंने खुद इस साईट पर कुछ दिन पहले तमाम राजनीतिक प्रतिबद्धताओं से अलग हटकर राहुल की तारीफ़ की थी. मैंने शेष दलों को यह कहने की कोशिश की थी कि वे खिसियायें नहीं सीखें राहुल गांधी से… https://www.pravakta.com/?p=6946 लेकिन राहुल के इस अपरिपक्व बयान ने मुझे अपने उस विचार पर पछताने का मौका दिया है….धन्यवाद.

  12. मुझे भी इसी बात पर आश्चर्य होता है कि राहुल में ऐसा क्या है कि कांग्रेस के कई नेताओं उसे अपने सिर पर बिठा लिया। सही बताऊं तो मुझे उसमें ऐसा कुछ चमत्कारी व्यक्तित्व नहीं दिखा। हां वह राजनीति में कई उदाहरण जरूर प्रस्तुत कर रहे हैं, लेकिन जहां तक मैं समझ पा रहा हूं उसके पीछे भी किसी खग्गी कांग्रेसी का दिमाग है। यथा-किसी गरीब की झौंपड़ी में रुकना, कभी-कभी वीआईपी ट्रीटमेंट से दूर रहना आदि। असल में तो उसे मीडिया ने हीरो बनाया है। इस समय कांग्रेस की आलाकमान मीडिया प्रबंधन बेहतर तरीके से कर रहा है जिसे अन्य राजनीतिक पार्टियों को सीखना चाहिए। जैसे उसकी इटेलियन मॉम जब प्रधानमंत्री बनने की निर्धारित योग्यताओं को पूरा नहीं कर सकी तो यह अफवाह उड़वा दी की वे त्याग की मूर्ति हैं। अगर वे वाकई त्याग की मूर्ति थी प्रधानमंत्री नहीं बनना चाह रही थीं तो जब उनका विरोध हो रहा था तभी स्पष्ट शब्दों में कह देती मुझे प्रधानमंत्री नहीं बनना। खैर राहुल ने हालिया बयान की तो सारा देश निंदा कर रहा है।

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