नरेंद्र मोदी के प्रधानमंत्री होने का फर्क देश हर जगह अनुभव कर रहा है । जब भी राष्ट्रीय स्तर के पुरस्कारों की घोषणा की जाती थी, आरोप यही लगते थे कि इसमें पसंद और ना पसंद के बीच योग्यता व कर्मठता को नजरअंदाज किया गया है। किंतु इस बार जो नाम इन पुरस्कारों के लिए चयनित किए गए हैं। उनके लिए कहना होगा कि वे सभी अपने क्षेत्र में दिए गए योगदान के श्रेष्ठ न होकर सर्वश्रेष्ठ उदाहरण हैं।
पद्म पुरस्कार इस बार राजनीतिक मंशा, पैरवी या जनसंपर्क के दाग से दूर हैं। ये दिल्ली जैसे बड़े शहरों के प्रभाव को भी झुठलाता है। अठारह सौ नामांकनों में से 89 को चुनने में केवल उनकी विलक्षणता, जनसेवा भाव और समाज के लिए योगदान को ही आधार बनाया गया है।
इसके पहले संप्रग सरकार के दौरान वर्ष 2005 से 2014 तक के बीच देखा यही गया था कि पद्म पुरस्कार पाने वालों में औसतन 24 नाम हर बार दिल्ली के होते थे। इससे साफ पता चलता था कि रसूख का दबदबा प्रतिभा और राष्ट्र निर्माण में अपना जीवन होम करनेवालों पर कितना भारी पड़ता है, किंतु मोदी सरकार ने पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह की इस परिपाटी को पूरी तरह बदलते हुए सिर्फ दिल्ली के केवल पांच लोगों को चुना, वह भी वही लोग जो वास्तव में इन सम्मानों के हकदार हैं। इसी प्रकार देशभर से उन लोगों को सम्मान के लिए चुना गया है जो वास्तव में भारतीय नर के रूप में स्वयं नारायण हैं। सेवा और सेवा, राष्ट्र सर्वोपरि मैं हूँ गौण के सिद्धांत व व्रत को जीवन में धारण किए हुए हैं।
इन सम्मान पाने वालों में इस बार सिल्क की साड़ी बुनने वाली मशीन बनाने वाले, सूखाग्रस्त इलाके में अनार की लहलहाती फसल उगाने वाले और एक करोड़ से अधिक पेड़ लगाने वाले, कोलकाता में चार दशकों से मुफ्त में अग्निशमन विभाग में अपनी सेवा देने जैसे कई राष्ट्र सेवक शामिल हैं। वहीं मधुबनी पेंटिंग को क्षेत्रीय सीमाओं से बाहर निकालकर अंतरराष्ट्रीय आर्ट तक पहुंचाने वाली बौआ देवी को भी सम्मानित किया गया है। वस्तुत: यह निर्णय इसलिए स्तुत्य और श्रेष्ठ है। इस श्रेष्ठ कार्य के लिए धन्यवाद है केंद्र की सरकार और प्रधानमंत्री मोदी को …..