बिट्रिश सरकार भारत के तीन देश बनाकर आजादी देना चाहती थी

                                                                आत्माराम यादव पीव

                भारत में स्वतंत्रता संग्राम की लड़ाई निर्णायक दौर से गुजर रही थी और समूचे देश में राष्ट्रीय स्तर पर आन्दोलन जोर पकड़ता जा रहा था और जनता की सहानुभूति और सहयोग मिलने पर अंग्रेजों के अपने हाथों से सत्ता जाती दिखी तब सुदूर पूर्व में बिट्रेन में ब्रिट्रिश साम्राज्य की प्रतिरक्षात्मक व्यवस्था की कमजोरी को आभासित किया गया। यह वह दौर था जब इंग्लैण्ड के प्रधानमंत्री चर्चिल ने पूर्वी एशिया में जापान के भयंकर आक्रमण तथा बिट्रेन ओर अमेरिका के जहाजों के बेड़ों के पीछे हट जाने से सिंगापुर के आत्मसमर्पण और अन्य कई परिस्थितियों मे जापानी आतंक के कारण भारत की सुरक्षा को संकटापन्न जाना। बंगाल की खाड़ी से अंग्रेजों का वर्चस्व समाप्त हो चुका था और यही स्थिति हिन्दमहासागर में बन रही थी जिसमें चर्चिल का कहना था कि भारत एक शक्तिशाली आधार है जिसका साथ मिले तो हम जापान के अत्याचार और आक्रमण का मुॅहतोड़ जबाव देकर शक्तिशाली चोट कर सकते है ऐसी संकटपूर्ण परिस्थितियों को समझते हुये ब्रिट्रेन ने उनके सांसद एवं मजदूर नेता स्टैवर्ड क्रिप्स को जो कूटनीति के मामले में दुनिया में जाने जाते थे को एक प्रस्ताव के साथ भारत भेजा जो 25 मार्च 1942 को अपने प्रतिनिधि मण्डल के साथ आया। भारत में कदम रखते ही क्रिप्स ने काॅग्रेस के तत्कालीन अध्यक्ष मौलाना अबुल कलाम आजाद एवं जवाहरलाल नेहरू से मुलाकात कर भारत को रक्षा के मुददे को छोड़ कर भारत को पूरी स्वायत्ता देने की बात की लेकिन शर्त रखी कि जापान युद्ध खत्म होने के बाद इस मसौदे पर चर्चा होगी जिसपर काॅग्रेस क्रिप्स पर भरोसा करने को तैयार नहीं थे। क्रिप्स भारत में राजनैतिक गतिरोध को दूर करना चाहते थे और उन्होंने काॅग्रेस की औपनिवेशिक स्वराज्य की बात और संविधान निर्मात्री परिषद की स्थापना कर नया संविधान बनाने की बात मान ली किन्तु उन्होंने देखा कि यहाॅ आजादी चाहने वाले दो धडे में बटे है जिसमें 1934 में काॅग्रेस के भीतर वामपंथी रूझानों वाले नेता काॅग्रेस सोशलिस्ट पार्टी के नाम से गोलबंदी बना चुके थे। राममनोहर लोहिया, मीनू मसानी, आचार्य नरेन्द्रदेव, जयप्रकाश नारायण, अच्युत पटवर्धन और अशोक मेहता इसके महत्वपूर्ण सदस्य थे और उनका मानना था कि संवैधानिक सुधार के दम पर स्वराज्य हासिल नहीं किया जा सकता हैं।

                भारत में आजादी  के लिये एक ओर हिंसा का मार्ग अपनाने वाले थे तो दूसरी और अहिंसा का मार्ग अपनाकर गाॅधीवादी विचारधारा के लोग थे। गाॅधी जी और काॅग्रेस नेतृत्व के कारण जापानी आक्रमण का खतरा भारत पर बढ़ा और इससे मुकावले के लिये गाॅधीजी और काॅग्रेस भारतवासियों को तैयार करते इससे पूर्व ही सुभाषचंद्र बोस और रासबिहारी बोस के सहयोग से आजाद हिन्द फौज का गठन कर लिया था, सैनिकों के बीच भी भारत को स्वतंत्र बनाने की प्र्रवृत्ति जग चुकी थी, इससे भी ब्रिट्रिश सरकार की चिंतायें बढ़ी थी और फरवरी 1942 में ब्रिट्रेन की संसद में में भारत की माॅग को मानने और उसे वास्तविक राजनीतिक शक्ति प्रदान करने पर वाद-विवाद हुआ तब जाकर सभी की सहमति से क्रिप्स को भेजने का कार्यक्रम तय हुआ। उनकी सेना का विशेष सहयोग रहा जिससे जापान भारत पर आक्रमण नहीं कर सका। तब यह कयास लगाये जाने लगे कि यही समय अंग्रेजों के लिये उपयुक्त है जब वे व्यवस्थित ढंग से भारत छोड़कर चले जाये और ऐसा इसलिये भी आभासित होने लगा कि  अंग्रेज भारत की रक्षा करने में असमर्थ और भारत की भूमि पर अपनी रक्षा करने में भी सक्षम नहीं है इसलिये अच्छा हो कि वे भारत को उसके भाग्य पर छोड़कर चले जाये। तीन राष्ट्र का क्रिप्स का मसौदा नामंजूर कर उन्हें लौटा दिया गया। अंग्रेजों की चाल सफल हुई और उन्होंने तीन के स्थान पर दो राष्ट्र का तीर फैककर एक अखण्ड भारत राष्ट्र के मंसूबों पर पानी फेर दिया। अग्रेज भारत से जाने को तैयार नहीं थे तब अगस्त 1942 में पूरे भारत में एक स्वर में आवाज गॅूजी अंग्रेजों ’भारत छोड़ो’ जिसके विरोध में अंग्रेजों का दमन चक्र पूरे जोर से भारत की जनता की आवाज को कुचलने के लिये चला। आन्दोलन के दरम्यान काॅग्रेस संगठन के नेतृत्व में मतभेद हुये जिसमें कार्यसमिति  और गाॅधीजी के बीच के मतभेद निकलकर सामने आये जिसमें अंहिसा के प्रश्न पर पूरे राष्ट्र ने गाॅधी जी को साथ नहीं दिया। जापान ने विशाखापटनम,काकिनाडा और चटगाॅव पर बमबारी की। जवाहर लाल नेहरू,चन्द्रशेखर आजाद और राजगोपालचारी ने सशस्त्र अंग्रेजों के खिलाफ मोर्चा सॅभालकर छापामार युद्ध करे अंग्रेजों के मन्सूबों पर पानी फेरा परन्तु गाॅधी जी दुखी हुये और उन्होंने अंहिसा के मार्ग को छोडने को कहा और अपनी रास्ता स्पष्ट कर दिया कि वे पूरी श्रद्धा और अटल विश्वास के साथ हिंसा के मार्ग को नहीं छोड़ेंगे, चाहे वे अकेले रहे,पर हिंसा के विनाशकारी परिणाम को जानते हुये उसे नहीं अपनायेंगें। 

                यहाॅ कुछ पूर्व बातों की ओर जाना उचित होगा कि जब क्रिप्स दूसरी बार भारत आया उसके पूर्व 23 मार्च 1931 को भगतसिंह, सुखदेव और राजगुरू को फाॅसी दी गयी और परिणामस्वरूप इसी दिन भारतीय राजनीति को जन्म देने वाले राममनोहर लोहिया का जन्म हुआ। 23 मार्च 1940 इतिहास के पन्नों में इसलिये भी दर्ज है क्योंकि इस तारीख को लाहौर अधिवेश में लाहोैर प्रस्ताव (कारादाद-ए-लाहौर) मोहम्मद जफरूल्लाह खान ने मुस्लिम लीग के सामने रखा और भारत के मुस्लिम इलाकों को मिलाकर एक नया देश ’पाकिस्तान’ रखने का विचार चैधरी रहमत अली के जनवरी 1933 में प्रकाशित पंपलेट पर मोहर लगी चॅूकि 1933 में ब्र्रिट्रेन के लंदन में गोलमेज सम्मेलन में इस पर्चे को पेश किया गया जिसमें पंजाब, नार्थ-बेस्ट फंडियर,कश्मीर,  सिन्ध और बलूचिस्तान मिलाकर पाकिस्तान को राष्ट्रीय दर्जा देने की माॅग थी। 1940 के लाहौर अधिवेश में मुस्लिम लीग के नेता मोहम्मद अली जिन्ना का रूख बदल गया और उन्होंने पृथक पाकिस्तान की माॅग पर अपनी आंशिक सहमति व्यक्त की जो 1942 में क्रिप्स के दूसरे दौरे में उनके द्वारा तीन राष्ट्रों का मसौदा रखे जाने के दरम्यान भारत के बॅटवारे का बीज पड़ा। जब क्रिप्स ने काॅग्रेस से बातचीत के दौरान भारत की सुरक्षा में हिस्सा देने से इंकार कर दिया तब गाॅधी जी ने उनसे स्पष्ट कहा कि अगले हवाईजहाज से वापिस लंदन लौट जाओ। बातचीत टूटने पर उन्होंने इसे उत्तरतिथिक चैक करार दिया जिसका अर्थ होता है कि दिवालिया बैंक के नाम अगली तारीख का चैक जो कभी भुगतान न होने वाला था।

                चीन और संयुक्त राज्य अमेरिका के नेताओं ने भारत को पूर्ण स्वायत्ता देने के लिये बिट्रेन को आगाह किया कि वह भारत में जनभावनाओं का आदर कर काॅग्रेस से समझौता करें, किन्तु बिट्रेन इन दोनों देशों के आग्रह से नाराज हो गया उन्हें चेतावनी दी कि वे भारत के मामले में न पड़े। बिट्रेन ने भारत के अन्दर चल रहे राजनैतिक गतिरोध को समाप्त करने के लिये सर स्टेफर्ड क्रिप्स को भारत भेज दिया था जो एक सुधारवादी नेता के रूप में हिन्दुस्तान के मित्र के रूप में पृथक स्थान बना चुके थे और वे भारत की रियासतों-राजघरानों और जनता की बुनियादी समस्याओं के बारे में अच्छी तरह परिचित थे। बिट्रेन को विश्वास था कि क्रिश के द्वारा रखा गया प्रस्ताव हिन्दुस्तान के लिये बेहतर होगा और उन्होंने भारत को तीन टुकड़ों में बाॅटने की परिकल्पना का प्रस्ताव रखा जिसमें तीनों देशों की शासन प्रणाली की कल्पना भी भिन्न भिन्न थी जिसमें पाकिस्तान की स्थापना की कल्पना की गयी लेकिन उस पाकिस्तान की नहीं जो मुस्लिम लीग चाहती थी। स्टैफर्ड क्रिप्स के प्रस्ताव में उत्तरदायी मंत्रियों को प्रतिरक्षा के बारे में कोई भी अधिकार नहीं दिये गये थे। क्रिप्स के द्वारा जब पाकिस्तान, हिन्दुस्तान और वामपंथी नेताओं के लिये अगल-अलग राष्ट्र के मसौदे   को रखा गया तब मुस्लिम लीग ने आगे बढ़कर पाकिस्तान की माॅग रखी जिसमें देशी राजयों और मुस्लिम लीग को प्रसनन रखने के लिये उन राज्यों और प्रान्तों को भारतीय संघ से अलग रहने का अधिकार प्राप्त हो। क्रिप्स ने इस प्रस्ताव को लाने से पूर्व भारत राज्य के देशी राज्यों और जनता को कोई महत्व नहीं दिया और साम्प्रदायिक तत्वों को प्रोत्साहित किया जिस पर पंजाब के सिखों ने पाकिस्तान बनाये जाने का घोर विरोध किया तब तीन राष्ट्र की क्रिप्स की परिकल्पना दो राष्ट्रों में तब्दील होते दिखी जो अंग्रेजी सरकार की कूटनीति का सबसे बड़ी सफलता का अंकुरण था।

                1942 का यह वह दौर था जब आजादी में दिलचस्पी रखने वाले तमाम लोगों के समक्ष अहिंसा का राजमार्ग अपनाने या हिंसा के मार्ग पर चलने में किसी एक को चुनना था। दूसरी ओर हिन्दू मुसलमानों के बीच आपस में भाईचारे के सम्बन्ध बिगड़ने लगे थे। हिन्दु-मुसलमानांें का आपस का संयुक्त जीवन बिखराव की ओर बढ़ने लगा तब दो राष्ट्रवाले सिद्धान्त और हिन्दुस्तान के साम्प्रदायिक विभाजन की बात उठायी गयी। मुस्लिम कौम स्वयं को बड़ी तादात में मानकर अपने आपको एक अलग कौम मानने लगी और वह हिन्दुओं से मेल करने को राजी नहीं थी। काॅग्रेस और मुस्लिम लीग के नेताओं में मतभेद था और वे इस आधार पर पाकिस्तान और हिन्दुस्तान का विभाग कराने में विश्वास करने लगे और गुपचुप रूप से इसकी तैयारी शुरू हो गयी जिसे महात्मागाॅधी ने आत्मघात का रास्ता बतलाते हुये कहा कि दो राष्ट्र बनने की स्थिति में प्रत्येक पक्ष अंग्रेजों या दूसरे विदेशी सहायता को चाहेगा अगर ऐसा होता है तो इस आजादी को वे अलविदा कहना ही उचित समझते हैं। गाॅधी जी ने हिन्दू-मुस्लिम राष्ट्र की कल्पना करने के विषय में अपनी हिम्मत नही होना बताकर जबाव दिया कि अपने जीते-जी मैं इसका साक्षी बनना न चाहॅूगा। जिस चीज के लिये मेरी आॅखे तरस रही है वहतो यह कि दोनों मिलकर आजादी की लड़ाई लड़े और आपस में अपने झगड़े भूल जाये लेकिन किसी ने उनकी नहीं मानी, परिणाम स्वरूप फूट डालो शासन करो की नीति के सृजनहार ब्रिट्रिश सरकार ने तीन राष्ट्र बनाने का यह प्रस्ताव लेकर क्रिप्स को भारत भेजा। चॅूकि आजादी के मसौदे में तीन राष्ट्र का प्रस्ताव लेकर भारत आये क्रिप्स जानते थे कि इस समय भारत मं अग्रेजों के विरूद्ध प्रबल भावना चल रही है, जहाॅ क्रिप्स के विचार और नीतियाॅ अलग थी वहींअखिल भारतीय काॅग्रेस कमेटी के मसौद में भारत और ब्रिट्रेन  के हितों का शाश्वत संघर्ष बतलाकर दोनों के रक्षा सम्बन्धी विचारों की भिन्नता का जिक्र किया गया और इसबात की भी नाराजी व्यक्त की गयी कि जैसे ब्रिट्रिश सरकार भारत के राजनीतिक दलों पर कोई विश्वास नहीं करती है, इन्हीं कारणों के रहते उसने भारतीय सेना को मुख्यरूप से भारत को अपने अधीन रखने के लिये रखा है। गाॅधी जी ने तब स्पष्ट किया था कि अगर अंग्रेज स्वेच्छा से चले जाये तो उनके प्रति देशवासियों को जो दुर्भावनाहै वह सदभावना में बदल जायेगी। महात्मागाॅधी विश्वास करते थे कि अंग्रेजों और हिन्दुस्तानियों को अपने आपसी सम्बन्ध-विच्छेद के लिये लड़ाई केबाद नहीं, बल्कि लड़ाई के दरम्यान ही राजी जो जाना चाहिये। इसमें, और सिर्फ इसी एक तरीके में अंग्रेजों और भारतीयों की दुनिया में सलामती है।   

                महात्मा गाॅधी ने 13 अप्रेल 1942 को अपने समाचार पत्र हरिजन में सर्वोच्च स्थान देते हुये इसे अभागा प्रस्ताव बतलाते हुये अंग्रेज सरकार के प्रति गहरा अफसोस जाहिर किया। इसप्रस्ताव के लाने पर स्वयं क्रिप्स को भारत के सभी राजनीतिक लोगों और काॅग्रेस की नाराजी झेलनी पड़ी और भारत के वाइसराय और मंत्री का भी कोपभाजन होना पड़ा जिससे क्रिप्स की चारों ओर आलोचना हुई और जिससे उन्हें शर्मीन्दगी झेलनी पड़ी। क्रिप्स जब ब्रिट्रिस हुकुमत का यह पैगाम लेकर ब्रिट्रेन से भारत आये तब उन्हें विश्वास था कि उनका यह प्रस्ताव स्वीकार कर लिया जायेगा लेकिन उनके मिशन को कांग्रेस के नेताओं ने बात करने से इंकार करके विफल कर दिया। इससे अब स्पष्ट हो गया कि आजादी के लिये काॅग्रेस और ब्रिट्रिस सरकार के बीच चल रही वार्ता की भावी संभावना के आसार नहीं है और इससे यह संदेश गया कि विश्व में लोकतंत्र को सुरक्षित करने के लिये लड़ रहे मित्र राष्ट्रों का खोखलापन भारत के समक्ष साबित हुआ।  महात्मा गाॅधी ने कहा कि ’’अमेरिका और ब्रिट्रेन दोनों जब तक .. अपने घरों को ठीक नहीं कर लेते .. तब तक इस युद्ध में हिस्सा लेने का उनके पास कोई नैतिक अधिकार नहीं है। जब तक श्वेत जातियां को श्रेष्ठ मानने का नासूर पूरी तरह नष्ट नहीं हो जाता, तब तक उन्हें प्रजातंत्र की रक्षा तथा सभ्यता और मानव स्वतंत्रता की रक्षा करने की बात करने का कोई हक नहीं है। हरिजन में लिखते हुये गाॅधी जी ने स्टैफर्ड क्रिप्स को लताड़ा कि वे साम्राज्यवादी तंत्रक अंग बन गये और भारत के विषय में बिना जाने उनपर इस प्रस्ताव का रंग चढ़ गया है। हिन्दुस्तान में हमारा अनुभव रहा है कि जो भारतीय इसमें खिंच जाते है वे अपनी मौलिकता खोकर सहयोगियों जैसे बन जाते है और अधिकांश साम्राज्यवाद के महिषासुर के प्रति वफादारी में मात करते है और यह सर स्टैफर्ड क्रिप्स में अनाशक्त रहते हुये किया है। उन्हें चाहिये था कि पहले वे अपने बुनियादी सुधारवादी भारतीय मित्रों से बातचीत करते और किसी भी प्रस्ताव को लाने से पूर्व जबाव लेते तो ठीक था लेकिन उन्होंने बिना समझे यह प्रस्ताव इसलिये लेकर आये तब देश में लोग अंग्रेजों की गलतियों पर सोचने से फायदा उठाने को अग्रसर होते और खुद अनेक गलतियाॅ करते हुये साम्प्रदायिकता का जाल बुनते हुये उसे सुलझााने की ओर अग्रसर नहीं होते, और इस नग्न सच से वे आॅखें मूंदे हुये थे। 11 अप्रेेल 1942 को स्टैफर्ड क्रिप्स द्वारा अपना प्रस्ताव वापिस ले लिया गया, यह अंग्रेजी हुकुमत की सबसे बड़ी हार थी लेकिन इससे भारतीय जनमानस में अंग्रेजों के प्रति कटुता भर दी और अंग्रेजो भारत छोड़ो आन्दोलन का जन्म हुआ।15 अगस्त 1947 को भले हमें खण्डित आजादी मिली जिसमें 14 अगस्त को पाकिस्तान और अगले दिन भारत आजाद हुआ जिसमें अंग्रेज लोग भारत को दो भागों में बाॅटने की अपनी नीति में कामयाब हुये किन्तु क्रिप्स द्वारा 1942 में तीन देशों की परिकल्पना 1971 में तब साकार दिखी जब पाकिस्तान के प्रान्त बंगलादेश ने मुक्तिसंग्राम के नाम पर बंगलादेश मुक्ति युद्ध शुरू किया जो 15 मार्च से 16 दिसम्बर 1971 तक चला जिसमें रक्तरंजिश क्रान्ति से पाकिस्तानी सेना ने 30 लाख लोगों की निर्मम हत्या की 4 लाख महिलाओं की अस्मत लूटी तब जाकर विद्रोह पर आमादा लोगों ने अत्याचार सहकर पाकिस्तान से पृथक देश बंगलादेश बना सके जिसमें भारत ने पडौसाी होने के नाते अत्याचार सहने वाले बंगलादेशी क्रांतिकारियों की मदद की परिणामस्वरूप उसे पाकिस्तान से सीधी जंग करना पड़ी और इसमें पाकिस्तान को घुटने टेकने को मजबूर कर भारत ने  गयी तब जाकर  बंगलादेश ने पाकिस्तान से स्वाधीनता प्राप्त कर पृथक देश बन गया।  

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