समाज को दूषित करती इनकी कामुक मानसिकता

 इन दिनों रंगीन बुद्धू बक्से पर सन्नी लियोन, शर्लिन चोपड़ा, पूनम पाण्डेय, कविता राधेश्याम जैसी महिलाओं का बोलबाला है| शर्लिन जहां पुरुषों की उत्तेजक पत्रिका प्लेबॉय के कवर पृष्ठ पर अपनी नंगी तस्वीरों से प्रसिद्धि बटोरने में लगी हैं, वहीं कविता राधेश्याम कभी पेटा के लिए अर्धनग्न भाव-भंगिमाओं में उत्तेजक पोज देती नजर आती हैं तो कभी दक्षिण की सेक्स बम कहलाने वाली सिल्क स्मिता के रूप में अवतरित हो सुर्खियाँ बटोरती हैं| पूनम पाण्डेय का नाम तो इस फेहरिस्त में प्रमुखता से लिया जा सकता है| टीम इंडिया के लिए विश्वकप की जीत का तोहफा वे नग्न होकर मनाना चाहती थीं| हालांकि सोशल नेटवर्किंग साईट ट्विटर पर उन्होंने अपनी एक नग्न तस्वीर ड़ाल ही दी जिससे उनके कथित अनुयायिओं की संख्या में अप्रत्याशित वृद्धि दर्ज की गई| गाहे-बगाहे अपने बयानों को लेकर भी पूनम सुर्खियाँ बटोरती रहती हैं| इस कड़ी का ताजा और सबसे विस्फोटक नाम सन्नी लियोन का है जिन्हें प्रख्यात फिल्म निर्माता महेश भट्ट अपनी फिल्म जिस्म २ से मायानगरी में स्थापित करवाने में तन्मयता से जुटे हैं| हालांकि सन्नी इससे पहले बिग बॉस के ५वें सीजन में ही भारतीय दर्शकों के समक्ष आ चुकी थी लेकिन भट्ट परिवार की नजर पड़ते ही उनकी चमक दोगुनी हो गई है| अश्लीलता की पराकाष्ठा को फ़िल्मी चमक-दमक के सहारे चरम तक पहुंचाने के लिए कुख्यात भट्ट परिवार ने विवादित पोर्न स्टार को अपनी फिल्म की अभिनेत्री इसलिए चुना ताकि विवादों के फेर में उनके फिल्म प्रोडक्शन हाउस को संजीवनी मिल सके| भट्ट परिवार का इतिहास रहा है कि उन्होंने हमेशा विवादों से नाम और दाम दोनों कमाए हैं और सन्नी विवाद से भी इन्हें जमकर प्रचार मिल रहा है|

 

खैर मेरे लेखन की वजह इन चारों स्त्रियों का महिमामंडन करना या भट्ट परिवार के अश्लीलता अभियान का समर्थन करना नहीं है| मेरी चिंता का विषय यह है कि आखिर ये चारों कथित महान विभूतियाँ व इनको संरक्षण दे रहा समाज स्त्री जाति की किस स्वतंत्रता व उन्मुक्तता का समर्थन कर रहा है? क्या इनके अनोखे व समाज में वर्जित माने जाने वाले कारनामे स्त्रियों की घरेलू व पालक छवि के साथ अन्याय नहीं कर रहे हैं? आखिर इनको बढ़ावा देकर युवा पीढ़ी क्या दर्शाना चाहती है? यह तो दीगर है कि इनके प्रशंसकों में युवा वर्ग का एक बड़ा समूह है जिसकी दम पर इनकी ऊल-जुलूल हरकतों को समाज बर्दाश्त कर रहा है| वैसे भी भीड़ की ताकत के आगे किसकी चलेगी? पर क्या इनकी इस अति-उन्मुक्त छवि की वजह से आम स्त्री से लेकर किशोर युवतियों के प्रति पुरुषों की मानसिकता में बदलाव नहीं आ रहा? यक़ीनन ऐसा हो रहा है| कामुकता का ओछा आवरण ओढ़ इन्होने स्वयं की राह तो आसान कर ली किन्तु अनगिनत महिलाओं-युवतियों के लिए परेशानी पैदा कर दी है| छेड़छाड़ से लेकर बलात्कार व यौन शोषण के बढ़ते मामले यक़ीनन इनकी देन नहीं हैं लेकिन इनके अश्लील कर्मों की वजह से इनमें बढोतरी अवश्य हो रही है| और हैरानी की बात तो देखिए; इन्हें अपने कुकर्मों का पछतावा भी नहीं है| प्रचार-प्रसार की भूख ने इनके शरीर को तो मैला किया है, इनकी आत्मा तक मर गई है| ज़रा सोचिए, पूरा परिवार टेलीविजन पर धारावाहिक देख रहा है और विज्ञापन के बीच सन्नी लियोन की जिस्म २ का ट्रेलर आ जाए तो क्या एक पिता अपने बच्चों से आँखें मिला सकता है या बच्चे उस नग्नता को उनके सामने उसी भाव से देखते रह सकते हैं जिस भाव से वे धारावाहिक देख रहे थे? मुझे नहीं लगता कि अभी हमारे समाज में इतनी उन्मुक्तता या बेशर्मी ने घर कर लिया है कि परिवार इसे सामान्य घटना मान इसपर ध्यान ही न दें| कहीं न कहीं इससे स्वच्छ पारिवारिक माहौल पर भी बुरा असर पड़ता है| वैसे भी चमक-धमक की इस चकाचौंध दुनिया में संस्कारों का ख़ास महत्वा नहीं बचा है| बच्चे माता-पिता से अच्छे संस्कार सीखने की बजाए बुरी आदतें जल्दी सीख रहे हैं|

 

जहां तक समाज में इनके अनुसरण की बात है तो महानगरों से लेकर विकसित होते शहरों में युवतियों के पहनावे से लेकर उनके आचरण में इनकी झलक मिल जाएगी| ऊपर से मॉल कल्चर ने समाज में युवतियों की दशा-दिशा को ही बदल दिया है| युवतियां ही क्यों, इनको देखने की ललक ने युवा वर्ग को भी दिग-भ्रमित कर दिया है| वैसे इसमें दोष उनका भी नहीं है जिसे इनकी वर्जित हरकतों पर रोक लगानी चाहिए वही चुप हैं तो इनका तो हौसला बढेगा ही| इनके स्व अनुशासन व संस्कारों की बात करना तो बेमानी है क्योंकि यदि इनमें संस्कारों का पुट होता तो ये इस तरह समाज में नग्नता को बढ़ावा नहीं देतीं| खैर, इनसे तो उम्मीद है नहीं कम से कम जिम्मेदार तो इनपर रोक लगाएं| धर्म, संप्रदाय, जाति, भाषा पर लड़ने वाला समाज क्या अपने परिवार, बेटियों व स्त्री जाति के सम्मान की खातिर इनके विरोध में खड़ा होगा? क्या समाज के कथित ठेकेदार इनकी नकेल कसने का साहस दिखा पायेंगे? सवाल है तो तीखा पर उत्तर मिलेगा इसमें मुझे संदेह है? हालांकि इनकी उन्मुक्तता को सम्पूर्ण स्त्री जाति से नहीं जोड़ा जा सकता फिर भी इन्होने अपने कारनामों से समाज के वातावरण को दूषित किया है|

5 COMMENTS

  1. सार्थक एवं बेबाक टिप्पड़ी..सोते हुए को जगाने का काम .
    साधुवाद की पात्र हैं आप .

  2. जो गैर कनूनि न्ही है उस्को अश्लील तो कहा जा स्अक्त हऐ ल्एकिन जब्रन रोका नहई जा सक्ता

  3. लेखिका की बैटन से सहमत हूँ.
    पुरुष का आत्म नियंत्रण तो सुनता रहा था अब महिलायों को भी यह करना चाहिए
    फैशन के नाम पर आजादी – कमाने के लिए.. क्या नहीं
    काम का काम घर के भीतर है बाज़ार में नहीं

  4. पश्चिम दैहिक भोग और भौतिकता की प्रेरणा से संचलित है| और उसे प्राकृतिक उपजों की समृद्धि के फल (नसीब) प्राप्त हो रहें हैं.

    जीवन मूल्य भी अधिकतम शारीरिक-भौतिक ही है|
    कुछ मानसिक-बौद्धिक मूल्य अवश्य है|
    ==> पर आध्यात्मिक जीवन मूल्य नगण्य है|<===

    युवाओं को और नकलचियों को, इस सभ्यता की कमियाँ दिखाई नहीं देगी|
    बूढा होने पर दिखती है, जब जीवन बीत चुका होता है|
    भारत इन क्षुद्र मूल्यों से बचें
    –हमारा है तेन त्यक्तेन भुंजीथा:|
    इनका है– तेन भोगेन प्राप्ता:
    —जो कभी प्राप्त नहीं होता|
    भोग से भोगेच्छा बढती है, जैसे आग में घी डालने से आग और तेज होती है|
    सावधान! ! !
    सदियों की पुरखों से प्राप्त धरोहर एक पीढ़ी में नष्ट होगी क्या?
    ऐसा संकट पहले कभी आया नहीं था|

  5. अनुशिखा जी ,
    बहुत अच्छा विषय उठाया है .. दरअसल पश्चिमी सभ्यता में खुलापन ज्यादा है जिसे उन्होंने बोल्ड या बिंदास नाम दिया है उसके अंजाम वो लोग भुगत भी रहे है ….
    हमारी जो सभ्यता रही है उसमे निजता का काफी ध्यान रखा गया है … उपरोक्त विषय इन्ही दो विचार धाराओ का टकराव है .. यह योग और भोग की लड़ाई है …. अब आप किसे चुनना चाहते है ये आपके विवेक पर निर्भर करता है

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