लोकसभा चुनाव नवमतदाताओं के लिए चुनौती और अवसर

‘लम्हे ने खता की और सदियों ने सजा पायी’

-भरतचंद्र नायक- election2009

विश्व के विकसित, अविकसित और विकासशील कमोवेश 182 देशों में आज भारत सबसे युवा देश है, जहां सवा अरब की आबादी में 65 करोड़ की आबादी सिर्फ ऐसे लोगों की है जिन्होंने जीवन के 25 वर्ष की आयु प्राप्त करने के लिए तरूणायी की देहलीज पर कदम बढ़ा दिये है। उनके मन में भविष्यके सपने हे। अच्छी शिक्षा, हुनर और तालीम के साथ लाभप्रद रोजगार की तलफ है। विकास और सुशासन के प्रतीक के रूप में नरेन्द्र मोदी उनकी आशाओं के केन्द्र बन चुके हैं। उन्हें स्वामी विवेकानंद का वह वाक्य याद है कि दुनिया की तमाम दौलत भी यदि कदमों में उड़ेल दी जाये तो हमारा भविष्य, मुल्क की तकदीर तब तक नहीं बदल सकती जब हम देश का गौरव और स्वाभिमान जाग्रत नहीं कर लेते। इंडिया फर्स्ट का आह्वान करके लोकसभा चुनाव में विजय के अनुष्ठान में आहुति डालने के लिए 16वीं लोकसभा के चुनाव युवा वर्ग के समक्ष एक महान अवसर और चुनौती बनकर सामने है। 18 से 25 वर्ष आयु के करीब 10 करोड़ तरूण युवकों ने इस लोकसभा चुनाव में नवमतदाता के रूप में अपना पंजीयन करा लिया है। चुनाव विष्लेषकों का मानना है कि 16वीं लोकसभा के चुनाव में ऐसी लोकसभा का गठन होगा जिसे युवा वर्ग अपनी पसंद घोषित करेगा। देष में आर्थिक नीतियों में आयी जड़ता, अनिर्णय की परिस्थितियों और दावों के बीच भ्रष्टाचार के प्रति जीरों टॉलरेंस के प्रतिकूल जो निरंकुषता 10 वर्षों में देष के राजनैतिक जीवन और प्रषासकीय हलकों में पनपी है उसी का दुष्परिणाम देष की सवा अरब आबादी को भुगतना पड़ रहा है। नियोजन के स्तर पर वास्तविकताओं के उलट जो फैसले लिये गये हैं, उननें रोजगार के अवसरों का क्षरण किया है। कार्य संस्कृति का जितना अवमूल्यन इन वर्षों में हुआ है उससे देश के प्रति समर्पण अभिशाप सिद्ध हुआ है। युवा वर्ग मौजूदा हालात से इत्तेफाक नहीं रखता और उसे देश में वास्तविक विकास और सुशासन की ललक है। ऐसे में चुनाव में युवा वर्ग की क्या प्रतिबद्धताएं हो सकती हैं, यह वास्तव में समग्र बहस का मुद्दा बन चुका है। जो सरकार दिल्ली की गद्दी पर बैठेगी उसके ईमान को नवमतदाता अपनी कसौटी पर कसने में गुरेज करने वाले नहीं है। अब न तो वायदों और नारों से राजनेता इस निर्णायक मतदाता वर्ग को छलने की जुर्रत कर सकता है और न इन्हें इतना धैर्य है कि ये आजादी के 66 वर्षों की तरह आगे भी समस्याओं के समाधान के लिए प्रतीक्षा कर सकें।
16वीं लोकसभा के चुनाव का परिदृष्य कुछ मामलों में युवा वर्ग की आवक से एक दम पहले के चुनावों से बदला नजर आ रहा है। क्योंकि परंपरागत जाति, वर्ग, समुदाय की दीवारों को युवा वर्ग बर्दाश्त करने का इच्छुक नहीं है। जिन चतुर-चालाक राजनेताओं ने भारतीय राजनीति से शुचिता को विदाई देते हुए भ्रष्टाचार को चुनावी मुद्दा मानने से इन्कार कर दिया था, अब उन्हें राजनैतिक क्षेत्र और चुनावी रणक्षेत्र से पलायन करना पड़ रहा है। उनके पैर उखड़ गये हैं। यह भ्रष्टाचार विरोधी हुंकार भले ही अन्ना हजारे ने भरी हो, इसका श्रेय लेने अरविन्द केजरीवाल स्वघोषित नेता बन रहे हों, लेकिन इसका असल श्रेय देष की युवा पीढ़ी और मतदाताओं को ही जायेगा, जिन्होंने यूपीए सरकार के बर्बर प्रहारों, प्रशासकीय निरंकुशता का सामना किया और भ्रष्टाचार विरोध की अलख जगाई। आज भी इसकी मषाल को संरक्षित रखने में इन चुनावों की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जा रही है। क्योंकि युवा वर्ग समझ चुका है कि भ्रष्टाचार अर्थव्यवस्था में अकेले घुन का काम नहीं करता यह कुशलता को हतोत्साहित भी करता है।

2-जी स्पेक्ट्रम घोटाले की गंगा में हाथ धोने वाले आखिर देश की जनता के साथ क्या सलूक करने जा रहे थे, वे या तो लायसेंस हासिल करने के बाद घटिया सेवाएं ही देते, जिससे प्रषासकीय दक्षता का क्षरण होता और भ्रष्टाचार की अमरवेल की निरंतरता बनी रहती। देश का युवा वर्ग अपने लोकतांत्रिक अधिकारों और कर्त्तव्यों के प्रति जागरूक है और जानता है कि लोकतंत्र में चुनाव ही वह अवसर है जब हम भ्रष्ट नेताओं और उनके द्वारा पोषित भ्रष्ट अर्थव्यवस्था का मूलोच्छेदन कर सकते है। चीन में भी भ्रष्टाचार है और सरकार अपने को अशक्त मानती है। लेकिन भारत में इस भ्रष्टाचार की समाप्ति के लिए लोकतांत्रिक व्यवस्था हमारे लिए वरदान है। इसका उपयोग लोकसभा चुनाव में होगा। आज लोकसभा चुनाव के परिप्रेक्ष्य में राजनैतिक दल अपने एजेंडा को मतदाताओं के सामने पेश कर रहे है। कांग्रेस जो देश में सर्वव्यापी दल रहा है और आज न तो भ्रष्टाचार की बात करती है और न विकास के अजेंडा पर खुलकर कुछ कहने को तैयार है। जब कांग्रेस ने लोकसभा चुनाव में आगामी नेतृत्व पर ही खुलकर बताने का साहस नहीं किया तो युवा वर्ग कांग्रेस की किस प्रतिबद्धता पर मोहित होकर समर्थन करेगा। दूसरी ओर भारतीय जनता पार्टी है, शुचितापूर्ण राजनीति उसका वैचारिक दर्शन है। भारतीय जनता पार्टी ने नरेन्द्र मोदी को प्रधानमंत्री पद का प्रत्याषी घोषित किया है और उनकी रैलियों, जनसभाओं में जनसैलाब उमड़ रहा है। वे युवा वर्ग की आकांक्षाओं, आशाओं, युवा भारत के सपनों का प्रतीक बनकर उभरे हैं। मोदी देशभर की जनता को भारतीय गौरव के प्रति सिर्फ सचेत नहीं कर रहे है, विकास और सुशासन का गुजरात की तरह पक्का भरोसा दिला रहे है। विकास और सुशासन की बात कर उनका मानना है कि विकास के दम पर आम आदमी को अनुदान की रेखा से ऊपर उठाया जायेगा। देश की जनता को राहत ही नहीं अपने पैरों पर खड़े होने, स्वावलंबी बनने, याचक की श्रेणी से ऊपर उठाने की आवश्यकता है। 65 वर्षों तक देश की जनता को राहत और अनुदान देकर कृपा पर जिंदा रखे जाने से जनता अपना आत्मविश्वास और गौरव जगाने के अवसर से वंचित रही है। अब आम आदमी में हौसला पैदा करने की आवश्यकता है, यही आज के युवा वर्ग की चाहत है। वे संकल्प के साथ चुनाव में अपनी नियति तय करने जा रहे हैं। लोकसभा चुनाव में नरेन्द्र मोदी विरोधी धर्मनिरपेक्ष ब्रिगेड के पास सिर्फ 2002 के दंगो का झुनझुना है और वे पिछले एक दषक से इसे बजा रहे है। लेकिन देष-विदेष के चुनाव विष्लेषकों को इस मुद्दे पर न केवल नरेन्द्र मोदी का एसआईटी और न्यायालय से दी गयी क्लीनचिट पर मोहर लगायी है अपितु यह भी कहा है कि मोदी की धर्म निरपेक्षता और प्रशासकीय क्षमता का इससे बड़ा सबूत क्या होगा कि 2002 के दंगो के जिम्मेवार 100 से अधिक अपराधियों को कानून के हवाले किया गया। इनमें मोदी के मंत्रिमंडल की एक सहयोगी मंत्री भी रही है। फिर सबसे बड़ी उपलब्धि यह है कि 2002 के दंगो के बाद गुजरात में साम्प्रदायिक अशांति और दंगों का इतिहास ही समाप्त हो चुका है, जबकि गुजरात कांग्रेसी शासन में साम्प्रदायिक दंगो के लिए अत्यंत संवेदनशील और दंगाइयों के लिए उर्वर क्षेत्र रहा है। इसके उलट कांग्रेस शासित राज्यों, धर्म निरपेक्षता के अलवरदार, समाज पार्टी के शासित उत्तर प्रदेश में दो वर्षों में दर्जनों साम्प्रदायिक दंगे हो चुके हैं। आज भी मुजफ्फरनगर और आस-पड़ौस के नगरों में दंगाग्रस्त क्षेत्रों के वाषिंदे शरणार्थी शिविरों में नारकीय जीवन व्यतीत कर रहे हैं और मुख्यमंत्री अखिलेश यादव सरकार की धर्मनिरपेक्षता के पाखंड पर आंसू बहां रहे हैं।

देश में 1984 में सिक्ख विरोधी दंगों के लिए तत्कालीन प्रधानमंत्री राजीव गांधी की शह के प्रमाण मौजूद है और जिन कांग्रेसियों ने दिल्ली की सड़कों पर खून की होली खेली। उन्हें ही राजीव गांधी की सरकार में मंत्रिपरिषद से नवाजा गया। देश का युवा इस धर्म निरपेक्षता के छद्म को देखकर चुप रहने वाला नहीं है।
युवा वर्ग देष के इतिहास से भी इतना अनभिज्ञ नहीं है, उसे समझ में आ चुका है कि देष के सुविधाभोगी राजनेताओं ने देष का जितना नुकसान किया है, उसी का फल है कि आज भारत आंतरिक समस्याओं के साथ ही सुरक्षा जोखिमों से जूझ रहा है। आजादी के बाद देश के नुमाइंदों से जब राय ली गयी तो प्रधानमंत्री पद के लिए सरदार वल्लभभाई पटेल सर्वानुमति से चुन लिये गये थे, लेकिन यह एक आश्चर्य का विषय है कि इस सर्वानुमति की अनदेखी करके राष्ट्रपिता महात्मा गांधी ने पं. जवाहरलाल नेहरू को प्रधानमंत्री पद के लिए नामित कर दिया और लोकतंत्र प्रेमी के रूप में सरदार पटेल ने असहमति होते हुए भी अपनी सहमति व्यक्त कर दी। ‘लम्हें ने खता की और सदियों की सजा पायी’ जैसी नियति बन चुकी है। 16वीं लोकसभा के मौके पर देष का युवा अपना निर्णायक जनादेश राष्ट्रहित में देगा इसकी उम्मीद है। इसके लिए नरेन्द्र मोदी ही एकमात्र विकल्प उपलब्ध है। नरेन्द्र मोदी को विजयी बनाकर और कमान उनके सषक्त हाथों में सौंपकर देष को ऐसा नेतृत्व दिया जा सकेगा जो विष्व बिरादरी में देष के स्वाभिमान के अनुकूल स्पष्टता पूर्वक राष्ट्र की प्रतिबद्धता को प्रस्तुत कर सकेगा। यूपीए सरकार ने दस वर्षों में विदेशी शक्तियों के सामने देश का दृष्टिकोण प्रस्तुत करने के बजाय आत्मसमर्पण की मुद्रा प्रस्तुत की।
देश की नौकरषाही लोकतंत्र में सर्वोदय की संवाहक है, क्योंकि कोई भी राजनैतिक ही दल सत्ता में आये नौकरशाही संविधान सम्मत फैसलों के क्रियान्वयन के लिए प्रतिबद्ध है। इस ब्यूरोक्रेेसी की ही राय है कि पिछले एक दशक से देश प्रशासकीय पक्षाघात का शिकार है। यदि किसी नेता में निर्णय लेने की क्षमता सामने आयी है तो उसका नाम नरेन्द्र मोदी है जिसने देश-विदेष के निवेषकों को आकर्षित किया है। गुजरात की मरी नदियों को जिन्दा कर दिया है जिससे मरूभूमि में बदलती गुजरात की धरती शस्य्-ष्यामला हो गयी है। उद्योगों को भरपूर पानी मिल रहा है। लाखों सूखे कंठ गीला करने का बंदोबस्त हुआ है, नर्मदा गुजरात के लिए वरदान बन चुकी है। इससे गांव-गांव में खेती और उद्योगों में संतुलन से विकास में नया संतुलन बना है। रोजगार के अवसर बढ़े हैं। नयी कार्य संस्कृति ने उत्पादकता को गति दी है। विकास और सुषासन के इस सफल क्रियान्वयन ने युवा वर्ग को नरेन्द्र मोदी का मुरीद बना दिया है। साबरमती के सपूत सरदार वल्लभ भाई पटेल को उनके वाजिब हक से वंचित करके भारत ने जो आपदाएं अयाचित आमंत्रित की है उनका पश्चाताप यदि करना है तो नरेन्द्र मोदी को देश के प्रधानमंत्री के पद पर स्थापित कर देषहित में नैसर्गिक न्याय करते देखना है। देश का यौवन समय काल और स्थान की चुनौतियों पर हमेशा खरा उतरा है। आजादी के आंदोलन, लोकनायक की समग्र क्रांति के युवक ही ध्वजवाहक बने थे।

1 COMMENT

  1. लम्हे ने खता की और सदियों ने सजा पायी’,

    भरत जी आपने बिल्कुल यथोचित शब्दों से लेख का आरंभ किया है, आज अगर हम सही नायक का चुनाव करने में चूक जाते हैं तो फिर मौका मिलना मुश्किल है, हमारे सामने नायक भी है और कठपुतलियां भी खड़ी हैं. एक के साथ १५ वर्षों का काम भी और दूसरे के साथ ४९ दिन की नौटंकी। अब ये भारतीय जनमानस को देखना है कि वो अपना सुखद भविष्य चुनता है या फिर सदियों तक दुर्दिन।


    सादर,

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