सरकार के सामने सपनों को पंख देने की चुनौती

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budget 2015 indiaदेश मे लम्‍बे अर्से के बाद एक मजबूत प्रधानमंत्री के नेतृत्‍व मे पूर्ण
बहुतम वाली सरकार अपना वास्‍तविक आम बजट पेश करने जा रही है ।हांलाकि
जुलाई 2014 में भी इस सरकार ने बजट पेश किया था लेकिन ये बजट सरकार बनने
के छह सप्ताह के भीतर पेश किया गया था इसलिए उसे उतनी तवज्जो नहीं दी
गई।आम बजट किसी भी सरकार की आर्थिक नीतियों काआइना होता है ।इस लिए तमाम
निष्कर्षों के लिहाज से आम बजट सरकार और जनता दोनों के लिए अत्यंत
महत्त्वपूर्ण है ।दरअसल आने वाला बजट देश की दिशा और दशा दोनों ही तय
करने में अहम भूमिका निभाएगा । या यूं कहें कि सरकार ने अपने नौ माह पहले
किये गये वादों और कसमों को कितना हकिकत मे बदला बजट उसे आइना दिखाएगा तो
गलत नहीं होगा।देश के लोग चाहते हैं कि सरकार अब लोक-चुभावन वादों से आगे
निकलकर कुछ ठोस फैसले का ऐलान करे।अब तक के कार्यकाल मे विपक्ष की ओर से
सरकार पर पूंजीपतियों और कारोबारियों का पैरोकार होने का आरोप लग चुका है
।लेकिन ऐसा लगता है कि सरकार का ये सर्मथक वर्ग ही सरकार के काम काज से
सबसे ज्‍़यादा बेचैन है ।सरकार के खिलाफ पहली और तीखी आलोचना उद्दोग जगत
की तरफ से ही आयी है ।उद्दोग जगत की आवाज उठाने मे आगे रहने वाले
एचडीएफसी बैंक के प्रमुख दीपक पारेख ने मोदी सरकार के कामकाज पर नाखुशी
जतायी है ।उन्‍होने कहा है कि सरकार के पहले नौ माह के कार्यकाल मे जमीनी
स्‍तर पर कोई बदलाव नही आया है ।इसके चलते इंडिया इंक बेचैन होने लगा है
।दिल्‍ली एक छोटा सा ही राज्‍य सही लेकिन अगर वहां के नतीजों को जनता की
फौरी प्रतिक्रिया मान लिया जाये तो ये कहने मे हर्ज नही कि वित्‍त मंत्री
अरूण जेटली को अपने पहला पूर्ण बजट मे आशावाद की झलक हकीकत मे दिखानी
होगी ।बाजार के हालात भी सरकार के अनुकूल रहे हैं तो जाहिर है कि बजट पेश
करने के दौरान उनपर जनता की अपेक्षाओं का भारी दबाव होगा ।
वित्‍त मंत्री अरूण जेटली अपने सहयोगी राज्‍य
मंत्री और आर्थिक मामलों के बड़े जानकार जयन्‍त सिंहा के साथ देश के आम
बजट को अंतिम रूप दे चुकें हैं ।उनके अगले बजट से उम्मीद की जा रही है कि
यह बहुत से मामलों में लीक से हटकर होगा। उनके इस बजट पर यह भी निर्भर
करेगा कि वे अर्थव्यवस्‍था की जिंदादिली को फिर से किस तरह से जीवित कर
सकते हैं। ।वहीं नौकरीपेशा लोगों को जहां आयकर में छूट की सीमा तीन लाख
रुपए से पार किए जाने की उम्मीद है वहीं उनका मानना है कि पांच लाख रुपए
तक के मकान कर्ज को कर मुक्त किया जना चाहिए । एक संगठन ने बजट की
उम्‍मीदों को लेकर देश के विभिन्न शहरों के नौकरीपेशा लोगों के बीच एक
सर्वेक्षण कराया है ।इस सर्वेक्षण के मुताबिक 92 प्रतिशत ने कहा कि सरकार
को आयकर मे छूट की सीमा मे इस साल कम से कम एक लाख तक की बढ़ोत्‍तरी करना
चाहिए । उनका कहना था खुदरा एवं थोक महंगाई में कमी आने के बावजूद खाद्य
महंगायी अभी भी बहुत ज्यादा बनी हुई है।पेट्रोलियम के दाम घटने के बावजूद
बीते महीनों मे फलों, दालों तथा सब्जियों जैसी जरूरी चीजों की कीमतों में
आठ से 12 प्रतिशत की बढ़ोतरी दर्ज की गई है।इसलिए आयकर में छूट की सीमा
बढ़ाई जानी चाहिए। इसके अलावा सावधि जमा, नेशनल सेविंग सर्टिफिकेट और
सार्वजनिक भविष्य निधि के जरिए बचत पर कर छूट की सीमा बढ़ाकर ढाई लाख
रुपए करने की भी मांग की गयी है ताकि घरेलू बचत को बढ़ावा दिया जा सके।
हालांकि ये सर्वेक्षण देश के महानगरों और बड़े शहरों के नौकरीपेशा लोगों
के बीच कराया गया है ।लेकिन मध्‍यम वर्ग और गांव के वह लोग भी ऐसा ही
सोचते होगें जिनका गुजारा सीमित आमदनी मे होता है ।ये वही वर्ग जिसने
अपनी तकदीर बदलने की आस मे मोदी को अर्श पर और कांग्रेस को फर्श पर
पहंचुा दिया है ।ये अब साबित हो चुका है कि चुनाव नतीजों को ये वर्ग सबसे
ज्‍़यादा प्रभावित करता है ।सन 2009 मे ये वर्ग मनमोहन सिंह पर भरोसा
करके कांग्रेस के साथ चला गया था ,जबकि साल 2014 मे मोदी के विकास के
नारों पर भाजपा के साथ खड़ा दिखा ।इस लिए पहले पूर्ण बजट से सबसे अधिक
देश के मध्‍यम वर्ग को ही है ।
देश के गरीबों को भी बजट मे अपने लिए किये गये वादों के
अमल मे आने के ऐलान का इंतजार है । पीएम मोदी अपने पहले के भाषणों में
देश के गरीबों को तवज्जो देने की बात कर चुके हैं।मोदी सरकार की ओर से
तेज ग्रोथ का भरोसा दिलाया जा सकता है ताकि देश में गरीबी मिट सके, लेकिन
ये तेज ग्रोथ आएगी कहां से इसकी तस्वीर भी साफ करनी होगी।मंहगाई ,साफ
पानी ,बिजली ,सड़क और रोजगार का सीधा ताल्‍लुक आम आदमी से है ,इस सब को
पटरी पर लाने के लिए सरकार की घोषणाओंं पर भी सब की निगाहें हैं
।बुर्जगें को भी अपने प्रधानमंत्री से राहत की आस है ।उनको रिटायरमेंट
स्कीमों को और आकर्षक बनाने के लिए ऐलान की उम्‍मीद है ।दूसरी तरफ वह
युवा वर्ग है जो बदलते भारत का असली नायक है ,अपने लिए सरकार से ढ़ेरों
घोषणाओं की उम्‍मीद किये हुये है ।उसे रोजगार के नये अवसर तो चाहिए ही
साथ मे उच्‍च शिक्षा हासिल करने मे आने वाली दिक्‍कतें दूर होने के ऐलान
की उम्‍मीद है । आईएमआईएम और इसी के तरह के दूसरे प्रतिष्ठित संस्थानों
मे दाखिले के अलावा पढ़ाई मे आने वाला खचै भी एक बड़ी समस्‍या है ।युवाओं
की सोच है कि आगामी आम बजट में इन प्रतिष्ठित संस्थानों में ऊंची फीस के
मुद्दे पर भी सरकार का ध्यान जाना चाहिए ।आज आईआईएम में पढ़ना आसान नहीं
रह गया है ।मिसाल के तौर पर आईआईएम-बेंगलुरु में दो साल के एमबीए कोर्स
के लिए 13 लाख रुपये खर्च करने होते हैं।देश के मध्‍यमवर्गीय परिवार के
लिए सालों पेट काट कर भी इतनी रकम जुटाना आसान नही है ।ऐसे मे अधिकाशं
युवाओं के सपनों को साकार करने का एक मात्र जरिया कर्ज है ।लेकिन बैंक से
कर्ज लेने की प्रक्रिया काफी जटिल है ।अपने भाषणें मे युवाओं की बात करने
वाले और मेक इन इंडिया के पैरोकार मोदी से इस वर्ग को लोन प्रक्रिया आसान
बनाने के साथ छात्रवृत्‍ति और बड़े शिक्षा संथानों की फीस कम करने की आस
है ।
काले धन की वापसी को लेकर चुनावी मुद्दा बनाना कर
केन्‍द्र की सत्‍ता मे आयी भाजपा को आगामी आम बजट मे ये साफ करना होगा कि
इस मामले मे उसके इरादे नेक हैं ।विपक्षी दल इस मामले मे पहले ही सरकार
को कठघरे मे खड़ा कर चुके हैं ।आर्थिक विशेषज्ञ नकदी लेनदेन को काले धन
का अहम जरिया मानते हैं ।इस लिए ये देखना दिलचस्‍प होगा कि देश के काबिल
वित्‍त मंत्री इस बारे मे कोई ठोस कदम उठा पातें हैं या नही । अरुण
जेटली ने पिछले साल नवंबर महीने में कहा था कि वह अमीरों को सब्सिडी देने
के खिलाफ हैं। इसलिए इस बात की पूरी संभावना है कि रसोई गैस में जो
सब्सिडी मिलती है वह अमीरों को नहीं मिल पाएगी। सब्सिडी पर सरकार का
क्‍या रूख रहता है ये भी देखने वाली बात है ।साल 2013 में तत्कालीन
वित्‍त मंत्री पी चिदंबरम ने 1,000 करोड़ रुपये का निर्भया कोष बनाया
था।ये रकम महिलाओं की सुरक्षा के इंतजाम के लिए थी। पिछले साल जुलाई में
राजग सरकार ने इस कोष का आकार बढ़ाकर 2,000 करोड़ रुपये कर दिया गया था।
फिर भी जमीनी स्तर पर हालात कुछ खास नहीं बदले हैं।घर से लेकर बाहर तक
महिलाऐंं समाज से उसी तरह जूझ रही हैं जैसे 2013 के पहले संघर्ष करती थी
। इस लिए उम्मीद है कि राजग सरकार का दूसरा आम बजट उच्च शिक्षा के आसमान
में अपने रंग भरने का हौसला रखने वाली लड़कियों की मुश्किलों का कोई ठोस
भी समाधान देगा।पंधानमंत्री का वह भाषण सब के जेहन मे है जो उन्‍होने
नतीजे आने के फौरन बाद गुजरात मे दिया था ।जिसमे उन्‍होने देश के
अल्‍पसंख्‍यकों की ओर इशारा करते हुये कहा था कि अब सब का विकास होगा
।हांलाकि सरकार इस दिशा मे कागज पर तो आगे बढ़ी है लेकिन जमीनी हकीकत मे
क्‍या बदलने वाला है ,ये जानने के लिए करोड़ों अल्‍पसंख्‍यक बेताब हैं
।गांव के मजरों से लेकर शहर के मोहल्‍लों तक लोगों ने पिछले नौ महीने मे
जो सपने देखें हैं उसमे उन्‍हे पंख लगने की उम्‍मीद है । मोदी और भाजपा
को 2015 की समाप्ति तक फिर से राज्यों के विधानसभा चुनावों से जूझना
पड़ेगा।गौरतलब है कि वर्ष 2015 की समाप्त‍ि पर बिहार विधानसभा के चुनाव
होने हैं और अगले साल यानी 2016 में तमिलनाडु और बंगाल के चुनाव आ
जाएंगे। इनके बाद सबसे बड़े और महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश के चुनाव
2017 में आ जाएंगे।इस लिए वर्ष 2015 का बजट ऐसा होगा, जिसमें मोदी को यह
निश्चित करना होगा कि क्या वे देश की अर्थव्यवस्था के पुनरुद्धार के लिए
तैयार हैं। इसके लिए उन्हें अपने राजनीतिक दल की साख और ताकत को भी दांव
पर लगाना होगा और अगर उन्हें ‘विकास पुरुष’ की छवि बनानी है तो उन्हें
संघ परिवार के कट्‍टरवादी तत्वों से छुटकारा पाना होगा जो कि उनकी छवि
में पलीता लगाने के लिए तैयार बैठे लगते हैं।किसी भी सरकार के कामकाज को
परखने के लिए आमतौर पर छह माह का समय दिया जाता है और मोदी सरकार को अपनी
शुरुआत करने के लिए नौ माह का समय मिल चुका है।ऐसे में वजीरेआजम मोदी और
उनके वित्तीय सिपहसालार अरुण जेटली के लिए संसद का बजट सत्र काफी चुनौती
भरा होगा।सरकार के लिए आर्थिक वृध्‍दि दर को रफ्तार देने के लिए क्‍या
आने वाल बजट एक प्‍लेट फार्म देने मे कामयाब होगा ये एक बड़ा सवाल है
।जनता और व्‍यापारियों मे फैले टैक्‍स के आतंक को जेटली जी कैसे कम करते
हैं ये देखना भी कम दिलचस्‍प नही होगा ।बहरहाल अगर ये बजट देश के सभी
वर्गों को खुश रखने में नाकाम रहा, या लोक-लुभावन वादों पर फिर केवल
कागजी रहा , तो देश की जनता को मोदी सरकार और पिछली कांग्रेस सरकारों मे
कोई फर्क नजर नही आयेगा । शायद फिर के नतीजे देश के दूसरे राज्‍यों मे भी
दोहराये जाने लगेगें ।
शाहिद नकवी

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