रावत के आगे पहाड़ सी चुनौतियां

-पंकज नैथानी-   harish-rawat

उत्तराखंड में नए निजाम की ताजपोशी हो गई है… लेकिन अब तक के मुख्यमंत्रियों की तरह तमाम चुनौतियां हरीश रावत के सामने भी मुंह फैलाए खड़ी हैं… नए मुख्यमंत्री के सामने सबसे बड़ी चुनौती आपदा प्रबंधन के उपायों को अमलीजामा पहनाना है… वैसे देखा जाए तो हरीश रावत के सीएम बनने के पीछे पिछले साल जून मे आई भयंकर कुदरती आपदा भी एक फैक्टर है…आपदा प्रबंधन में विफल रहने के बाद ही बहुगुणा के खिलाफ लामबंदी तेज हुई थी…लिहाजा हरीश रावत को आपदा के मामले को संवेदनशीलता के साथ लेना होगा…आपदा प्रबंधन के लिए उठाए जा रहे कदमों को ईमानदारी के साथ अमलीजामा पहनाना होगा… आपदा से तहस नहस हो चुके पर्यटन उद्योग को पटरी पर लाना होगा…एसोचैम की रिपोर्ट के मुताबिक आपदा से उत्तराखंड के पर्टयन उद्योग को 4170 करोड़ रुपए का चूना लगा था… जिससे 1लाख 79 हजार लोगों की रोजी रोटी पर असर पड़ा था…हरीश रावत के पास कोई जादू की छड़ी तो नहीं है पर उन्हें राजस्व के प्रमुख अहम स्रोत को दुरस्त करने के लिए कदम तो उठाने होंगे…हरीश रावत सबसे पहला कदम यह उठा सकते हैं कि वे मई 2014 में चार धाम यात्रा को विधिवत रूप से शुरू करवाएं… लेकिन इसके लिए बुरी तरह क्षतिग्रस्त हो चुकी सड़कों को दुरस्त करवाना होगा..और यह काम इतनी जल्दी पूरा हो पाना संभव नहीं लगता… यात्रियों की सुरक्षा और पंजीकरण जैसी सुविधाएं लागू करवाने में भी दिन रात एक करना होगा…इस स्थिति में मुख्यमंत्री को चाहिए कि मसूरी और नैनीताल जैसे अहम पर्यटक स्थल जिन पर आपदा का खास असर नहीं पड़ा है…उन जगहों पर ज्यादा से ज्यादा पर्यटकों को आकर्षित करने की कोशिश होनी चाहिए…ताकि दम तोड़ता पर्टयन पटरी पर लौट सके…

हरीश रावत के सामने दूसरी सबसे बड़ी चुनौती पार्टी के अंदर पनरृपने वाले भीतराघात को रोकने की होगी…उत्तराखंड कांग्रेस में गुटबाजी किस कदर हावी है इसका अंदाजा हरीश रावत को पहले से ही होगा… हरीश रावत के शपथ लेते वक्त ही हरीश विरोध नारों से रावत काफी सतर्क हो गए होंगे…लेकिन कांग्रेस में बगावत का बांध कब और किस तरफ से फूट जाए कहा नहीं जा सकता…वैसे भी हरीश रावत गठबंधन की सरकार चला रहे हैं…जिसमें 7 विधायक प्रोग्रेसिव डेमोक्रेटिक फ्रंट (3 बीएसपी, 3 यूकेडी और 1 निर्दलीय) के हैं…अगर इनको खुश नहीं रखा तो बगावत का खतरा…और इनके चक्कर में दूसरों की अनदेखी की तो भीतराघात का खतरा…मार्च में होने वाले पंचायत चुनाव में अगर कांग्रर्स ने अच्छा प्रदर्शन नहीं किया तो उनेक खिलाफ घेरेबंदी शुरू हो जाएगी…सतपाल महाराज और इंदिरा हृदयेश का खेमा उन्हें चैन से सरकार नही चलाने देगा…इसके बाद लोकसभा चुनाव होने हैं…लेकिन केंद्र सरकार की नाकामियां सूबे के सांसदों के दावों पर भारी पड़ती दिख रही हैं… सर्वे भी बता रहे हैं कि कांग्रेस को निराशा ही होत लगेगी.. कांग्रेस का हश्र में भी बीजेपी की तरह 5-0 की हार जैसा होता है तो इसका ठीकरा हरीश रावत के सिर फोड़ जाएगा…और फिर खंडूड़ी की तरह हरीश रावत से भी नैतिक आधार पर इस्तीफा मांगा जा सकता है…हालांकि हरीश रावत को संगठन का आदमी माना जाता है और इस सब को कंट्रोल करने मे माहिर भी हैं…लेकिन वक्त की कमी उनके लिए सबसे बड़ी परेशानी बन सकती है…

सीएम हरीश रावत अभी विधायक नहीं हैं…6 महीने के भीतर उन्हें विधायक बनकर सदन मे आना होगा.. लेकिन चुनाव लड़ने के लिए वे किस विधायक को सीट छोड़ने पर राजी करवा सकेंगे यह भी एक चुनौती है…हालांकि चंपावत के विधायक हेमेश खर्कवाल ने रावत के लिए सीट छोड़ने की पेशकश की है…लेकिन अब तक तस्वीर साफ नहीं हो पाई है…अगर रावत खेमे के विधायक सीट छोड़ते हैं तो उके विरोधी गुट मजबूत हो जाएंगे…जिससे सरकार चलाने में बार बार दिक्कतें आ सकती हैं

एक और चुनौती हरीश रावत के लिए यह भी है कि वे सूबे की मूलभूत समस्याओं का निराकरण कैसे करेंगे…पलायन रोकने में अब तक  सरकारें विफल रही हैं…स्वरोजगार को बढ़ावा नहीं मिल पा रहा है…बेरोजगारी की दर बढ़ती जा रही है…ऐसे में हरीश रावत के सामने लाखों युवाओं की उम्मीद पर खरा उतरना किसी लिटमेस टेस्ट से कम नहीं होगा…बहरहाल यह तो वक्त बताएगा कि हरीश रावत किस हद तक अपने आपको साबित कर पाएंगे…

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