कश्मीर की बदलती फिजा

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दुलीचन्द रमन

कश्मीर घाटी ने उग्रवाद को लेकर 1989-90 से अब तक कई उतार-चढ़ाव देखे है। एक दौर वह था जब कश्मीरी पंड़ितों को रातों-रात पलायन पर मजबूर होना पड़ा था। लाखों लोग अपना सब कुछ छोड़-छाड़कर जान बचाने के लिए घाटी से निकल आये थे। हिन्दुओं और सिक्खों में डर का माहौल पैदा करने के लिए छतीसिंहपुरा, पत्थरबल, बराकपोश में आतंकवादियों द्वारा सामूहिक नरसंहार किये गये। इन 28 सालों में कई अलगाववादी तंजीमें बनी और उग्रवादियों की एक नई पीढ़ी तैयार हुई जिनका जन्म अलगाववाद के दौर में ही हुआ था। आल पार्टी हुर्रियत कांफ्रेस अलगाववाद का राजनीतिक चेहरा होने का दम भरने लगी।

लेकिन पिछले दिनों हुर्रियत के माध्यम से घाटी के अलगवावादियों को हो रही हवाला के जरिये आंतकी फंडिग का एन.आई.ए. ने पर्दाफाश कर दिया। इस संबंध में श्रीनगर, जम्मू और दिल्ली में कई व्यक्तियों के दफ्तरों और व्यवसायिक प्रतिस्थानों पर छापेमारी की गई। हुर्रियत के कई नेताओं को हिरासत में लिया गया। आंतकी फंडिग पर कुछ असर नोटबंदी का भी पड़ा था जिसके कारण आंतकवादियों ने बैंकों की लूट की तरफ कदम बढ़ाये थे।

बुरहान वानी की मौत के बाद घाटी में बंद और पत्थरबाजी का सिलसिला काफी लंबा चला था। लेकिन उसके बाद एक के बाद एक आंतकवादी सुरक्षाबलों के हाथों मारे जाने लगे। लेकिन घाटी में अब वैसी पत्थरबाजी और बंद की वारदाते नहीं होती। सुरक्षाबलों की मुस्तैदी से अब घाटी में आतंकवाद की कमर टूट चुकी है। आतंकवादी गुटो के ज्यादातर शीर्ष कंमाडर मारे जा चुके है। दक्षिण कश्मीर में तैनात विक्टर फोर्स के कमांडर मेजर जनरल बी.एस.राजू का कहना है कि उग्रवादी अब जान बचाने के लिए छुपते घुम रहे हैं। कश्मीर में अब कोई भी क्षेत्र उग्रवादियों के प्रभाव में नही है। अब कश्मीर समस्या के हल के लिए राजनैतिक पहल शुरू की जानी चाहिए।

इसी नजरिये से केन्द्रीय गृह मंत्री राजनाथ सिंह कश्मीर के दौरे पर गये थे तथा वहां के सामाजिक व राजनीतिक संगठनों से कश्मीर समस्या के बारे में बातचीत की है। कांग्रेस पार्टी का एक प्रतिनिधिमंडल भी पिछले दिनों कश्मीर के दौरे पर था।

इधर घाटी के आंतकी एक आखिरी दाव के तौर पर जम्मू-कश्मीर के उन युवाओं को निशाना बना रहे है जो सेना, अर्धसैनिक बलों तथा राज्य पुलिस में अपनी सेवायें दे रहे है। लेकिन उनका यह दाव भी उल्टा ही पड़ रहा है। पिछले दिनों लेफ्टिनेंट उमर फैयाज और डी.एस.पी. मो. अयूब पंड़ित की हत्या आतंकवादियों द्वारा कर दी गई। इसके बावजूद भी घाटी के स्थानीय युवक बड़ी संख्या में अपना भविष्य सेना और सुरक्षा बलों में देख रहे है।

अतंराष्ट्रीय स्तर पर भी परिस्थितियाँ कुछ बदली है। अमरीका का पाकिस्तान को लेकर मोहभंग हो चुका है। क्योंकि वह अफगानिस्तान में रूस की मदद से अमेरिकी हितों के खिलाफ तालिबान को फिर से खड़ा करने की कोशिश कर रहा है। दूसरी तरफ पाकिस्तान आजकल चीन का प्यारा बच्चा बना बैठा है। क्योंकि चीन को भी ”चीन-पाकिस्तान आर्थिक गलियारे“ में पाकिस्तान की जरूरत है। भारत के हितों के खिलाफ मोहरा बनाने के लिए भी चीन को पाकिस्तान चाहिए। अमरीका कई बार आंतकवाद के मसले पर पाकिस्तान को लताड़ चुका है।

04 सितंबर 2017 को चीन में ब्रिक्स देशों की बैठक के दौरान भी घोषणा पत्र में पाकिस्तान स्थित आतंकी संगठनों का जिक्र किया गया जो भारत की कुटनीतिक जीत है। डोकलाम के विवाद के बाद तो चीन भी भारत को हल्के में लेने की भूल नही करेगा। कश्मीर के आंतकवाद के मुद्दे पर पाकिस्तानका परोक्ष समर्थन अंतराष्ट्रीय स्तर पर चीन की छवि के लिए घातक होगा।

सितंबर -2016 में भारतीय सेना द्वारा उड़ी हमले के बाद की गई सर्जिकल स्ट्राईक से भी पाकिस्तान को भारत की बदली हुई राजनीति का आभास हो चुका है। सेनाध्यक्ष जनरल विपिन रावत ने भी कहा है कि अगर जरूरत पड़ी तो सेना और सर्जिकल स्ट्राईक कर सकती है। सितंबर 2017 में संयुक्त राष्ट्र महासभा की 72वीं वार्षिक बैठक के दौरान भारत, बंगलादेश व अफगानिस्तान के प्रतिनिधियों ने अलग-अलग पाकिस्तान पर आंतकी विचारधारा को प्रोत्साहित करने तथा राज्य समर्थित आंतकवाद को नीति के तौर पर अपनाने के आरोप लगाये। यह संयुक्त राष्ट्र के इतिहास में पहली बार हुआ कि किसी देश को तीन-तीन देशों को स्पष्टीकरण देना पड़ा।

पाकिस्तान में आतंकवादियों के हौसले कितने बुलंद है। इस बात का अदंाजा इस तथ्य से लगाया जा सकता है कि वहा जैश-ए-मोहम्मद सरगना हाफिज सईद जैसा आतंकी खुलेआम सता को चुनौती देते है और राजनीतिक दल का गठन कर रहे है। पाकिस्तान सरकार को वहां के चुनाव आयोग को हाफिज सईद की पार्टी ‘मिल्ली मुस्लिम लीग’ की मान्यता रद्द करने के लिए गुहार लगानी पड़ती है।

अतंराष्ट्रीय स्तर पर आई.एस.आई.एस. की स्थिति दिन-प्रतिदिन कमजोर होती जा रही है। सिरिया और इराकी सेना अपने उन क्षेत्रों को वापिस जीत रही है जिन पर कभी इस्लामिक स्टेट का कब्जा हो गया था। इस्लामी स्टेट की जिहादी विचारधारा की हार का भी घाटी में अलगाववादी गतिविधियों पर असर पड़ेगा क्योंकि जिहादी विचारधारा की प्राणवायु मध्यपूर्व से ही आती है। काले धन को लेकर अंतराष्ट्रीयस्तर पर भी सहमति बनी है। लेन-देन के डिजिटलीकरण से तथा रियल टाईम इंफांरमेशन मिलने से वित्तिय लेन-देन में पारदर्शिता आयेगी। आंतकी फडिंग को अतंराष्ट्रीय सहयोग से रोकना अब दुनिया के लिए चुनौती बन चुका है। ज्यादातर सरकारे इस पर कड़ा रूख अपना रही है।

कश्मीर समस्या की असली जड़ इस राज्य को संविधान द्वारा प्रद्वत विशेशाधिकार के कारण ही है जिसे धारा 370 तथा अनुच्छेद 35ए जैसी संवाधानिक विसंगतियों से अलगाववाद को बल मिलता है। धारा-370 पर भारतीय राजनीति में काफी बहस हो चुकी है। भारतीय जनता पार्टी के अलावा बाकी दल इस मामले में खामोश है। लेकिन कश्मीर में पी.डी.पी. तथा भाजपा की संयुक्त सरकार के न्यूनतम सांझा कार्यक्रम के कारण इस पर चुप्पी साधी जा रही है। राज्य के क्षेत्रीय दल पी.डी.पी. तथा नेशनल कांफ्रेंस इस मुद्द को बहस से परे पवित्रता की श्रेणी में रखते है।

पिछले दिनों अनुच्छेद 35ए को लेकर भी बहस चल रही है। जो जम्मू-कश्मीर की विधानसभा को वहाँ के स्थायी नागरिक की परिभाषा तय करने का अधिकार देता है। संविधान में 14 मई 1944 को जोड़े गये इस अनुच्छेद के कारण जम्मू-कश्मीर के हजारों लोगों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया। 1947 में बटवारे के बाद भारत आये हजारों परिवारों को उनके अधिकारों से वंचित कर दिया गया। उनके साथ दोयम दर्जे का व्यवहार किया जाता है। उनके पास वोटर कार्ड तो है लेकिन वे लोकसभा के लिए अपने मत का प्रयोग कर सकते है लेकिन विधानसभा के लिए नहीं। संविधान संशोधन का अधिकार केवल संसद का है। लेकिन इस अनुच्छेद 35ए को राष्ट्रपति के आदेश के द्वारा संविधान में जोड़ा गया है। जो मूलतः संविधान की आत्मा के विरूद्ध है।

इस प्रकार की धारा व अनुच्छेद के कारण ही अलगाववाद की यह समस्या विकराल होती जा रही है। अब समय आ गया है कि इस समस्या पर समग्र रूप से ठोस निर्णय लिये जायें। सेना, अर्धसैनिक बल तथा राज्य पुलिस जिस प्रकार से आतंकवाद की कमर तोड़ने का कार्य कर रही है वह स्वागत योग्य हैं। अब गेंद सरकार के पाले में है। यह सही समय है जब घाटी में बातचीत का दौर शुरू किये जाने की संभावना तलाशनी होगी। सरकार ने अपनी तरफ से पहल भी कर दी है। लेकिन बातचीत के ठोस परिणाम आने तक आतंकवाद और अलगाववाद पर कड़ाई से कार्यवाही जारी रखने की जरूरत है। इसके साथ-साथ पाकिस्तान को भी कुटनीतिक मोर्च पर घेरने का कोई भी मौका नहीं गंवाना चाहिए।

कश्मीर को लेकर जिस प्रकार संसद में सर्वसम्मति से प्रस्ताव पास हो चुके है उसी संवेदनशीलता के साथ राजनीतिक दलों को व्यवहार करना चाहिए। देश की एकता और अखंडता के मुद्दे पर देश के सभी राजनीतिक दल एक साथ खड़े नज़र आने चाहिए, ऐसी समय की मांग है।

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