क्या रोड चुरायी हैं नगर एवं पार्षद अध्यक्ष

सिवनी। शहर में इन दिनों यह चर्चा जोरों पर हैं कि नपा नें घटिया रोड बनाने की तो मिसाल कायम की ही हैं लेकिन अब तो रोड चोरी होने का भी कीर्तिमान स्थापित कर दिया हैं। बताया जाता है कि बीते दिनों बारापत्थर क्षेत्र में टूटी पुलिया के पास से पालेटेक्निक कालेज तिराहे होते हुये ज्यारत तक रोड बनाने के टेंड़र हुये थे। इसमे पालेटेक्निक तिराहे से ज्यारत तक की रोड पालिका के काम शुरू होने के पहले ही उद्योग विभाग ने रातों रात डामर की बना दी। फिर क्या था इस आड़ में भाजपा के नगर अध्यक्ष ,पार्षद एवं पी.आई.सी. के सदस्य सुजीत जैन ने रोड चुराने की योजना पर अमल शुरू कर दिया। उन्होंने आनन फानन में एक खत लिखकर पाली. तिराहे से ज्यारत तक के रोड बन जाने का उल्लेख कर उसे दूसरी जगह प्रस्तावित कर दिया और ना केवल रोड बन गयी वरन भुगतान भी कर दिया गया। इसके लिये ना तो प्रस्ताव लिया गया और ना ही कोई औपचारिकता पूरी गयी। जिस रोड को तकनीकी स्वीकृति दी गयी,जिसका टेंड़र हुआ वह रोड तो आज तक बनी ही नहीं। रोड चोरी की यह चर्चा शहर में जोरों से हो रही हैं।
उल्लेखनीय है कि दुगनी कीमत पर शहर की तीन घटिया सड़के बनाने के आरोप में राज्य शासन ने भाजपा की अध्यक्ष पार्वती जंघेला और इंका के उपाध्यक्ष संतोष पंजवानी, मुख्य नगर पालिका अधिकारी मकबूल खॉन उवे सत्रह पार्षदो को कारण बताओ नोटस जारी कर पद सेप्रषक करने और 9 लाख रुपये की वसूली की कार्यवाही य्रारंभ कर दी हैं।
राम नाम भजने के बजाय उनके आदर्शों पर चल
दानवों से ऋषि मुनियों और मानवों को मुक्ति दिलाकर जब रावण वध करके भगवान राम अयोध्या वापस आये थे तो अयोध्यावासियों ने घी के दिये जलाकर उनका स्वागत किया था जिसे हम आज भी दीपावली के रूप में मनाते हैं। अपने पिता राजा दशरथ द्वारा माता कैकयी को दिये गये वचन को निभाने के लिये राम चौदह बरस के वनवास में चले गये थे। जिस भाई भरत को राजपाठ दिलाने के लिये माता कैकयी ने राम को वनवास भेजा था उसी भाई भरत ने चौदह सालों तक राम की खड़ॉंऊ राज सिंहासन पर रख कर राज चलाया था। जब राम अयेध्या वापस आये तो भरत ने उनका राज उन्हें सौंप कर एक मिसाल कायम की थी।
राम की रावण पर जीत सत्य की असत्य पर,प्रकाश की अंधकार पर और सदाचार की अत्याचार पर जीत थी। हर साल प्रतीक के रूप में रावण का दहन तो हम कर रहें हैं लेकिन आसुरी प्रवृत्तिायों का अंत होना तो दूर वे बढ़ती दिखायी दे रहीं हैं। राम ने जिन आर्दशों को स्थापित किया था वे विलुप्त होते जा रहें हैं। भरत ने जिस भाईचारे की मिसाल कायम की थी वो कहीं गुमते जा रही हैं। राम का नाम लेकर रामराज्य स्थापित करने की बातें भाषणों में तो सुनायी देती हैं लेकिन राज सत्ताा मिलते ही राम की जगह रावण सा आचरण ना जाने क्यों नेताओं का हो जाता हैं सोने की लंका जीतने के बाद विभीषण को सौंपने वाले भगवान राम के कलयुगी भक्त राजपाठ मिलते ही खुद के लिये सोने की लंका बनाने के लिये क्यों जी जान से जुट जाते हैंयदि कोई एक ईमानदार है तो वह अपने अलावा पूरे देश को बेईमान क्यों मानने लगता हैक्या ऐसा सब करते हुये हम विश्व गुरू बनने का लक्ष्य हासिल कर सकतें है
इन ज्वलंत प्रश्नों पर विचार करना आज समय की मांग है। आज आवश्यक्ता इस बात की है कि हम पुन: उन सामाजिक मूल्यों की स्थापना करने पर विचार करें जिनके कारण भारतीय संस्कृति का समूची दनिया में गौरवपूर्ण स्थान था। इसमें व्यक्ति धन और सत्ताा के बजाय गुणों के कारण पूजा जाता था। आज आवश्यक्ता राम का नाम लेने के बजाय उनके आदर्शों पर चलने की है। रावण के पुतले का दहन करने के बजाय जरूरत इस बात की हैं कि हम आसुरी प्रवत्तियों को समूल नष्ट करने का प्रयास करें।
विश्वास हैं कि हम ऐसा कुछ कर सकेंगें।
ASHUTOSH VERMA SEONI M.P.
MOB. 09425174640

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