बन के बादल,जमी पर बरसते रहे

0
144

आर के रस्तोगी

बन के बादल,जमीं पर बरसते रहे |
एक बूँद के लिये,हम तरसते रहे ||

आस्तिनो के साये में पाला जिन्हें |
साँप बन कर हमे,वो डसते रहे ||

बारिस के मौसम में,हम फिसलते रहे |
उनका हाथ पकड़ने के लिये तरसते रहे ||

बारिस हुई,पर सब जगह कीचड़ थी |
फिसलन इतनी थी,पैर फिसलते रहे ||

सुहावना मौसम था,इन्तजार करते रहे | 
बस यूहीं सारी रात करवटे बदलते रहे ||

बरसे भी बादल,कहीं और चले गये |
रात भर हम  यूहीं  सिसकते रहे || 

बादल गरज रहे बिजली चमक रही थी |
पर रस्तोगी उनकी याद में लिखते रहे ||

आर के रस्तोगी 

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here