मुसलमानों की संवाद रचना बनी कांग्रेस की आंख की किरकिरी

-डॉ. कुलदीपचंद अग्निहोत्री

केन्द्र की कांग्रेस सरकार ने संघ को बदनाम करने की अभियान को अपनी कार्यसूची में प्राथमिक स्थान दे दिया है। राष्ट्रीय स्वयंसेवक और कांग्रेस की विचार भिन्नता जगजाहिर है। कांग्रेस भारत का सांस्कृतिक और आर्थिक विकास ब्रिटिश शासकों द्वारा निर्धारित कारकों और मानदण्डों के आधार पर करना चाहती है जबकि संघ इस देश की सांस्कृतिक विरासत, अस्मिता, स्वभाव, प्रकृति के अनुसार देश को आगे ले जाना चाहती है। कांग्रेस के वैचरिक मॉडल का सबसे बडा नुकसान यह है इससे देश तरक्की तो कर सकता है लेनिक उसी पहचान मिट जाएगी। डॉ. मोहम्मद इकबाल जिस यूनान, मिस्र, और रोम के मिटने की बात कह रहे हैं उसमें हिन्दुस्थान का नाम भी जुड जाएगा। संघ के वैचारिक मॉडल की खूबसूरती यह है कि इससे देश में विकास भी होगा और उसकी पहचान भी कायम रहेगी। साम्यवादी टोला कांग्रेस के आर्थिक मॉडल से तो असहमत है लेकिन सांस्कृतिक क्षेत्र में कांग्रेस के वैचारिक मॉडल को ही वह सर्वश्रेष्ठ मानता है। इसमें कहीं न कहीं भीतर से कांग्रेस एवं साम्यवादी आपस में जुडे रहते हैं।

इस पृष्ठभूमि में मुसलमान या इस्लामपंथी विवाद का मुद्दा बन जाते हैं। कांग्रेस एवं साम्यवादियों की दृष्टि में इस देश के मुसलमान एक अलग राष्टृ है, इसलिए उनको सावधानीपूर्वक इस देश की छूत से बचाना यह टोला जरुरी मानता है। साम्यवादी यह बात खुलकर कहते हैं और कांग्रेस इसे अपने व्यवहार से सिद्ध करती है। इस वैचारिक अवधारणा के आधार पर ये दोनों देश के मुसलमानों को अलग-थलग करके स्वयं को उनके रक्षक की भूमिका में उपस्थित करते हैं। जाहिर है इस भूमिका में रहने पर दम्भ भी आएगा। अतः ये दोनों दल मुसलमानों के तुष्टीकरण की ओर चल पडते हैं। चूंकि इस देश में लोकतांत्रिक प्रणाली है इसलिए मुसलमानों को यदि बहुसंख्यक भारतीयों में डराए रखा जाएगा जो जाहिर है कि वे अपने वोट भी एकमुश्त उन्हीं की झोली में डालेंगे। अब लोकतांत्रिक में प्रणाली ज्यों-ज्यों सत्ता के दावेदार बढ रहे है त्यो-त्यों मुसलमानों के रक्षक होने का दावा करने वालों की संख्या भी बढती जा रही है। लालू यादव, मुलायम सिह यादव और रामविलास पासवानों का इस क्षेत्र में प्रवेश ‘लेटर स्टेज’ पर हुआ है। परन्तु जो देर से आएगा वो यकीनन हो हल्ला ज्यादा मचाएगा। इसलिए मुसलमानों की रक्षा करने के लिए इन देर से आए रक्षकों के तेवर भी उतने ही तीखे हैं।

इधर जब पिछल पाचं -छह दशकों में दन सभी ने मुसलमानों के दिमान में यह डाल दिया है कि मामला सिर्फ उनकी रक्षा का है और बाकी चीजें तो गौण है तो उनमें से भी कुछ संगठन उठ आए हैं जिन्होंने यह कहना शुरु कर दिया है अब हमें बाहरी रक्षकों की जरुरत नहीं है हम अपनी रक्षा खुद कर सकते हैं। सुरक्षा का काल्पनिक भय कांग्रेस एवं कम्युनिस्टों ने मुसलमानों के मन में बैठा दिया था और सत्ता में भागीदारी का आसान रास्ता देखकर इन मुस्लिम संगठनों ने भी हाथ में हथियार उठा लिए। यह तक सब ठीक-ठाक चल रहा था केवल मुस्लिम वोटों पर छापेमारी का प्रश्न था जिसके हिस्से जितना आ जाय उतना ही सही।

इस मोड पर ‘स्क्रिप्ट ’ में अचानक कुछ गडबड होने लगी। कांग्रेस एवं कम्युनिस्ट जिन लोगों से मुसलमानों को डरा रहे थे उन्ही लोगों ने मुसलमानों से बिना दलालों एवं एजेंटों की सदस्यता से सीघे -सीधे संवाद रचना शुरु कर दी। 1975 की आपात स्थिति में राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ और मुसलमानों के बीच जो संवाद रचना नेताओं के स्तर पर प्रारम्भ हुई थी उसे इक्कीसवीं शताब्दी के शुरु में संघ के एक प्रचारक इन्द्रेश कुमार आम मुसलमान तक खीचं ले गए। ऐस एक प्रयास कभी महात्मा गांधी ने किया था लेकिन वह प्रयास खिलाफत के माध्यम से हुआ था जो वस्तुतः इस देश के मुसलमानों की राष्ट्रीय भावना को कही न कही खण्डित करता था। इसलिए इसका असफल होना निश्चित ही था।जो इक्का -दुक्का प्रयास दूसरे प्रयास हुए लेकिन उनका उद्देश्य तात्कालिक लाभों के लिए तुष्टीकरण ही ज्यादा था।

इन्द्रेश कुमार ने संघ के धरातल पर मुसलमानों से जो संवाद रचना प्रारम्भ की उसका उद्देश्य न तो राजनीतिक था औैर न ही तात्कालिक लाभ उठाना। चूंकि राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ को चुनाव नही लडना था। इन्द्रेश कुमार की संवाद रचना से जो हिन्दू मुसलमानों का व्यास आसन निर्मित हुआ। वह इसे देश का वही सांस्कृतिक आसन है जिसके कारण लाखों सालों से इस देश की पहचान बनी हुई है। इस संवाद रचना में स्वयं मुसलमानों ने आगे आकर कहना शुरु किया कि हमारे पुरखे हिंदू थे और उकनी जो सांस्कृतिक थाती थी वही सांस्कृतिक थाती हमारी भी है। इन संवाद रचनाओं में इन्द्रेश कुमार का एका वाक्य बहुत प्रसिद्ध हुआ कि हम ‘सिजदा तो मक्का की ओर करेंगे लेकिन गर्दन कटेगी तो भारत के लिए कटेगी। देखते ही देखते इस संवाद की अंतर्लहरें देश भर में फैली और मुसलमानों की युवा पीढी में एक नई सुगबुगाहट प्रारम्भ हो गयी। वे धीरे -धीरे उस चहारदीवारी से निकलकर जिस उनके तथाकथित रक्षकों ने पिछले 60 सालों से यत्नपूर्वक निर्मित किया था, खुली हवा में सांस लेने के लिए आने लगे। इन्द्रेश कुमार की मुसलमानों से इसे संवाद रचना ने देखते ही देखते ‘ मुस्लिम राष्ट्रीय मंच’ का आकार ग्रहण कर लिया जाहिर है मुसलमानों के भीतर संघ की इस पहल से कांग्रेसी खेमे एवं साम्यवादी टोले में हडबडी मचती। जिसे संघ के बारे में आज तक मुसलमानों को यह कहकर डराया जाता रहा कि उनको सबसे ज्यादा खतरा संघ से है उस संघ को लेकर मुसलमानों का भ्रम छंटने लगा। यह स्पष्ट होने लगा कि संघ मुसलमानों के खिलाफ नहीं है । संघ भारत की इस विशेषता में पूर्ण विश्वास रचना है कि ईश्वर की पूजा करने के हजारों तरीके हो सकते हैं और वास्तव में संघ इसी विचार की आगे बढाना चाहता है जब संघ ईश्वर या अल्लाह के हजारों तरीक में विश्वास करते है तो उसे कुछ लोगों द्वारा इस्लामी तरीके से ईश्वर की पूजा के तरीके से भला कैसे ऐतराज हो सकता था। संघ को लेकर मुसलमानों के भीतर कोहरा छंटने की प्रारम्भिक प्रक्रिया शुरु हो गयी है।

इस मरहले पर कांग्रेस ने अपनी रणनीति बडी होशियारी से तय की। मालेगांव, हैदराबाद और अजमेर बम विस्फोट में सरकार ने कुछ तथाकथित षडयंत्रकारियों को गिरफ्तार किया इनमें जिन लोगों के नाम शामिल है उनमें से कुछ का सम्बंध कभी संघ से भी रहा होगा। उनका अपराध है या नहीं है इसका निर्णरूा तो अदालत ही करेगी लेकिन सराकार को लगता था कि जैसे ही इन तथाकथित लोगों की जांच होगी तो राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ इन लोगों के पीछे हो हल्ला मचाएगा लेकिन कांग्रेस का यह षडयंत्र तब विफल हो गया जब राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ ने कहा कि सरकार को इस मामले की सफाई से जांच करनी चाहिए औश्र जो भी दोषी जाया जाए उसे दण्ड मिलना चाहिए। संघ ने आधिकारिक रुप से यह भी कहा िकवह जांच एजेंसियों को संगठन का पूरा सहयोग मिलेगा। संघ स्वयं चाहता है कि अपराधी पकडे जाएं और उन्हें सजा मिले। संघ को बदनाम करने का कांग्रेस का सारा षडयंत्र एक झटके में ही विफल हो गया। सरकार एक तीर से दो निशाने करना चाहती थी। वह मुसलमानों को यह संदेश देना चाहती थी कि आतंकवाद को लेकर मुस्लिम समाज जिस कटघरो में खडा दिखायी देता है उससे उन्हें भयभीत होने की जरुरत नहीं है। उनकी मानसिक संतुष्टि के लिए सरकार हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा को स्थापित कर रही थी जिसे बाद में पी चिदम्बरम में कांग्रेस की रणनीति के अनुसर भगवा आतंकवाद कहना प्रारम्भ कर दिया। इससे मुसलमानों में कांग्रेस के रक्षक होने का भ्रम भी बना रहता औश्र हिन्दू आतंकवाद की अवधारणा के प्रचलन से आतंकवाद के मनौवैज्ञानिक अपराधिक बोध के भाव से भी मुक्ति मिलती। दूसरे संघ को मुसलमानों की दृष्टि में एक बार फिर अपराधी सिद्ध किया जा सकता था लेकिन संघ भारत सरकार और कांग्रेस के बिछाए गए इस जाल में भी नहीं फंसा औश्र उसने स्पष्ट ही यह मांग की ईमानदारी से जांच के बाद अपराधियोें के दण्ड दिया जाएग। कारण भी स्पष्ट था संघ ने कोई भूमिगत संगठन है और न ही उद्देश्य की प्राप्ति के लिए आतंकवाद में विश्वास करता है। आतंकवाद कायारों का ही हथियार होता है और वैचारिक नपुंसकता वाले संगठन ही इसका उपयोग करते हैं। संघ एक सांस्कृतिक आंदोलन है। आतंकवादस से सांस्कृतिक आदोलनों को उर्जा नहीं मिलती बल्कि उसके उजास्त्रोत सूखने लगते हैं। आतंकवाद से तानाशाही और एकाधिकारवादी प्रवृत्तियांे को भी बढावा मिलता है। कांग्रेस एवं कम्युनिस्ट टोले में यह प्रवृत्तियां पायी जाती हैं। इतिहास इसका गवाह है। यही कारण है कि कांग्रेस एंव कम्युनिस्ट आतंकवाद से लडने के बजाय उसे अप्रत्यक्ष समर्थन देते हैं।

अपनी इन्हीं प्रवृत्तियों के कारण कांग्रेस ने राष्ट्रीय स्वयसेवक संघ को बदनाम करने के लिए, मुसलमानों के मन में उसका भय पुनः सृजित करने के लिए दूसरी व्यूह रचना की। इस बार जांच एजेंसियों के माध्यम से इन्द्रेश कुमार का नाम जोड दिया गया। सरकार जानती थी आठ सौ पृष्ठों की जांच रिपोर्ट में एकाध बार संघ और इन्द्रेश कुमार का नाम आ जाने से मीडिया के एक वर्ग को मनमाफिक मशाला मिल जाएगा और संघ और इन्द्रेश कुमार की आतंकवाद में संलिप्तता की मशालेदार कहानियां इधर -उधर तैरने लगेंगी। कहानी का अंत क्या होगा इसकी न कांग्रेस को चिंता है और न सरकार को। लेकिन इस बीच जब मीडिया से संघ एवं इन्द्रेश कुमार का नाम उछलेगा तो मुसलमानों के मन में संघ को लेकर भ्रम पैछा हो सकेगा और आम भारतीय भी संघ को लेकर प्रश्न खडा कर सकता है। इसी रणनीति के तहत सरकार अजमेर बम विस्फोट के मामले में सुनियोजित प्रयास कर रही है। संघ और इन्द्रेश कुमार के नाम का उपयोग कर रही ह।। जबकि लगभग आठ सौ पृष्ठों की जांच रिपोर्ट में संगठन के नाते संघ और व्यक्ति के नामे इन्द्रेश कुमार पर कोई आरोप नहीं हैं।

लेकिन जांच एजेंसी का उद्देश्य सत्य की तह तक पहुचना नही है बिल्क उसका नाटक करते हुए संघ को बदनाम करना है। इन्द्रेश कुमार का नाम लेने से कांग्रेस एक और फायदे की सम्भावना देखती है। उसे लगता है कि इन्द्रेश के नाम पर विवाद पैदा करने से मुस्लिम राष्ट्रीय मंच का जो सांस्कृतिक आसन निर्मित हुआ है उसमें दरारें पड सकती है। संघ को बदनाम करने की भारत सरकार के ठन सभी प्रयासों का यदि नामकारण करना हो तो उसे ‘सरकारी आतंकवाद’ कहा जा सकता है। लेकिन कांग्रेस औ सरकार अपने इस प्रयास में सफल नहीं होंगे। पंजाब के इतिहास में भी मन्नू का उद्धरण सामने आता है। इस विदेशी आका्रंता ने पंजाबियों पर अमानुषिक अत्याचार किए , उन्हें मौत के घाट उतारा। तब पंजाब में एक लाोक उक्ति प्रसिद्ध हुई –

मन्नू असाडी दातरी , असी मन्नू दे सोये।

ज्यूं -ज्यूं मन्ने बड्ढ दा , असी दूणे चौणे होए।

सोया सरसो की जाति का एक पौधा होता है उसे जितना काटा जाता है वह उतना ही फलता फूलता है। इसी तरह मन्नू पंजाबियों को जैसे मारता काटता था वैसे-वैसे उनका उत्साह बढता, वे फलते-फूलते।

सरकार ज्यों-ज्यों संघ पर प्रहार करगी त्यो-त्यों संघ फलेगा-फूलेगा। यह भारतीय इतिहास की परम्परा है। लेकिन दुर्भाग्य से साम्यवादियों का भारतीय इतिहास से कुछ लेना-देना नहीं है और कांग्रेस धीरे-धीरे भारतीय इतिहास से कटती जा रही है। सरकार द्वारा संघ पर किया गया यह प्रहार भारतीय परम्परा पर किया गया प्रहार है और भारतीय परम्परा इस प्रहार को निष्प्रभावी कर देगी।

8 COMMENTS

  1. कांग्रेस की यह एकक सोची समझी चाल है. पहले उनके युवराज का सिमी और संघ वाला एकक घटिया बयान आता और उसके तुरंत बाद ही राजस्थान ATS की चार्जशशीत मई इन्द्रः के नाम का “उल्लेख” आता है. यह ध्यान देने की बात है की उनका नाम ना तो accused और नाही witness के रूप मई है.

    यह एकक पूरी सोची समझी एक पटकथा का हिस्सा है. इन्द्रेश जी का जो काम रस्त्रवादी मुस्लिम मंच मई चल रहा है उससे कांग्रेस बर्री तरह से घबरा गेई है, वामपंथी जो की केवल संघ और रस्त्रावादी संघ्थानो का डर दिखा कर अपनी राजनीतिक रोटिया सेक रहे है उनका इस्लाम अचानक खतरे मई आ चूका था. इसी बीच गुजरात मई मिल एक शर्मनाक हार से कांग्रेस की नींद हरम होंना निश्चित था.

    देश की सच्ची सेवा करने वालो को इस तरह के अपमान पहली बार नाही झेलने पद्द रह्हे संघ और वीर सावरकर के साथ गाँधी हत्या के बाद जो हुआ था उसके सामने तो यह कुछ भी नाही है.

  2. लेख अच्छा लगा, राजनीती में कुछ लोग देश की भलाई के बारे में नहीं सोचते वो तो अपना निजी स्वार्थ ही देखते हे , आज नहीं तो कल एक दिन एसा आएगा जब इन स्वार्थी तत्वों का मानमर्दन होगा. जय हिंद जय भारत

  3. माननीय कुलदीप अग्निहोत्री जी मैंने इतने शानदार और तथ्यापरख लेख आज तक नहीं देखे हैं. इस लेख से कोई भी प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकता! जितना सूक्ष्म चिंतन आपने किया है वो अद्वितीय है.
    कांग्रेस पार्टी आज रसातल में जा रही है. कहते हैं न की जब गीदड़ की मौत आता है तो शहर की तरफ भागता है. कुछ ऐसा ही कांग्रेस का हाल है. धीरे धीरे कांग्रेस अपने अवसान की तरफ है. जो भले ही अभी स्पष्ट दिखाई नहीं देता लेकिन कांग्रेसी नेताओं की घबराहट इसका इशारा करते हैं. संघ को इस साजिश का पुरजोर जवाब देना चाहिए. अबतो यह स्थापित तथ्य बन चूका है की इन्द्रेश जी को फंसाया गया है.
    देश के मुसलामानों से विनम्र विनती है की वो ऐसे परीक्षा की घडी में इन्द्रेश जी का साथ न छोड़ें. समय बताएगा की इन्द्रेश जी एक राष्ट्रवादी सच्चरित्र इंसान हैं. उन्होंने सचमुच गंगा जमुना तहजीब को आगे बढाया है. अब कारवां चल निकला है दूर तक जायेगा. कोई रोक नहीं पायेगा.

  4. जो नुक्सान इस देश का विदेशी शासक नहीं कर पाए वह कुत्सित कार्य ये सेकुलर शैतान कर रहे हैं …
    सार्थक लेख के लिए साधुवाद.

  5. मुसलमानों की संवाद रचना बनी कांग्रेस की आंख की किरकिरी -by – डॉ. कुलदीपचंद अग्निहोत्री

    (१) ” मुस्लिम राष्ट्रीय मंच ” संघ परिवार का एक अंग है. यह माननीय इन्द्रेश जी का अपना बच्चा नहीं है.

    माननीय इन्द्रेश जी संघ के बड़े प्रचारक हैं. अपना जीवन संघ को प्रदान किया हुआ है.

    (२) मुस्लिम राष्ट्रीय मंच को संघ एक बढे आन्दोलन के रूप में देख रहा है.

    (३) मुस्लिम राष्ट्रीय मंच को संघ विरोधी एक बढी रूकावट के रूप में देखते हैं.

    (४) अत: मुस्लिम राष्ट्रीय मंच को इन्द्रेश जी और अजमेर केस तक सीमित नहीं रख कर देखना.

    (५) अजमेर केस को ज्यादा अहमियत नहीं देनी; अब मामला अदालत देखेगी.
    संघ को न्यायालय को सहयोग देना है.
    जो दोषी पाया जायेगा उसे सजा मिलेगी.
    फालतू का हाय तोबा नहीं.

    (६) जिस उद्देश्य के लिए मुस्लिम राष्ट्रीय मंच बना है, उस को प्राप्त करने में संघ को अपने कार्यक्रम अनुसार आगे बढ़ना है.

    अजमेर मामला इस पथ में अड़चन नहीं बनना चाहिए.

    – अनिल सहगल –

  6. आदरणीय अग्निहोत्री जी इन्द्रेश कुमार जी की राष्ट्र भक्ति से घबरा कर जिस कांग्रेस ने यह घटिया हरकत की है वह कांग्रेस अब जल्दी ही जड़ समूल नष्ट हो जाने वाली है| साथ ही वामपंथ का नंगा चेहरा भी सब के सामने आ ही गया है| अब वो दिन दूर नहीं जब भारत में इन नौटंकियों की कब्र खुदेगी|
    इस शानदार लेख के लिए बहुत बहुत धन्यवाद|

  7. मन्नू असाडी दातरी , असी मन्नू दे सोये।

    ज्यूं -ज्यूं मन्ने बड्ढ दा , असी दूणे चौणे होए।….आमीन

  8. बहुत ही अच्छा लेख एवं प्रयास है. परन्तु प्रश्न है की इन्द्रेश जी को मुसलमानों में जाने की जरुरत ही क्या है. क्या उन्होंने अपने परम वैभव या हिन्दुओ में ही लक्ष्य को पा लिया. इस पर विस्तार से समझने की आवश्यकता है. इन्द्रेश जी का व्यक्तिगत प्रयास है तो ठीक परन्तु यदि संघ का भी है तो फिर पहेले विचार किया जाये तब ही मुसलमानों की तरफ रुख किया जाये. इस प्रकार बीजेपी करती है तो कोई बात नहीं परन्तु संघ के अपने ही अभी बड़े लक्ष्य है. दूसरा संघ पहेला प्रयास हिन्दुओ के लिए होना चाहिए फिर किसी और की सोचे. जिनको दो देश देकर फिर एक और कश्मीर की बात करते है वो इतने सरल नहीं जो अकेले इन्द्रेश जी ही धरा पलट दे. जरा गौर से ध्यान दे ऐसा मेरा निवेदन है. अन्यथा हिन्दू जिस संघ से आशा रखते है वो हिन्दू भी बिना संघ के अनाथ होंजयेंगे.

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