देश पहचान गया मगर आप नहीं

0
129

संदर्भ : राहुल गांधी और लालू प्रसाद यादव का यह सवाल कि आरएसएस में महिलाओं को तवज्जो क्यों नही मिल रही?

अजब संयोग कह लीजिए कि जिस दिन बिहार के पूर्व मुख्यमंत्री और भारतीय राजनीति के स्थायी व्यँगय बन चुके लालू प्रसाद यादव, आरएसएस में महिला सरसंघचालक अब तक ना होने का मुद्दा उठा रहे थे, ठीक उसी दिन राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के बैनरतले आयोजित अखिल भारतीय कार्यशाला का समापन हो रहा था। जयपुर में दो दिनों तक चले इस वैचारिक कुंभ का विषय स्त्री और भारतीय समाज था। देशभर से पहुंचे विद्वान लेखक, स्तंभकार, पत्रकार और संपादक-जिनमें अधिकांश महिलाएं थी-ने भारतीय महिला के गौरवशाली इतिहास, सामाजिक, आर्थिक और परिवारिक व्यवस्था में महिला का योगदान, प्रगतिशील आंदोलनों और समानता का अधिकार जैसे विषयों पर विशेषज्ञों ने मन और दिमाग की खिडक़ी खोलकर चर्चा की तथा इस नतीजे पर पहुंचे कि देश की महिलाओं को ना सिर्फ सम्मानजनक समानता का अधिकार मिलना चाहिए बल्कि परिवार और समाज की केन्द्रीय इकाई होने के नाते, गरीब और पिछड़ी महिलाओं को जल्द से जल्द आरक्षण दिए जाने में बुराई क्या है?

rssलालू यादव ने यह सवाल अकेले उठाया हो, ऐसा नही है। कांग्रेस के युवराज राहुल गांधी से लेकर पूर्व केंद्रीय मंत्री पी. चिदंबरम और छत्तीसगढ़ प्रदेश कांग्रेस के प्रवक्ता ने भी यही सवाल खड़ा किया है कि आरएसएस में महिलाओं के लिए कोई स्थान नही है! पूरी कांग्रेस पार्टी वैचारिक तौर पर किस कदर खोखली हो चुकी है, इसकी गवाही यह सवाल दे रहा है। वर्ना किसी पार्टी के युवराज या प्रवक्ता को प्रोफेशनली ही सही, अपने वैचारिक प्रतिद्वंद्वी के सांगठनिक ढाँचे की ठीक-ठाक समझ तो होनी ही चाहिए। लेकिन लालू और कांग्रेस प्रवक्ता ने बयानों के जो कोड़े आरएसएस पर फटकारे हैं, वे उन्हीं की पीठ पर जा चिपके हैं। जिस पार्टी की महिला कार्यकर्ता शारीरिक शोषण का शिकार या तंदूर में भून दी जाती हों, उन्हें यह सवाल उठाते वक्त चुल्लू भर पानी भी अपने पास रखना था। फिल्म अभिनेत्री नगमा जैसी महिला कांग्रेस कार्यकर्ताओं का दर्द भी किसी से छुपा नही है।

पहले यह समझ लें कि आरएसएस कांग्रेस नही है और ना ही राष्ट्रीय जनता दल, जहां लोकतांत्रिक ढंग से पूछे गए सवाल, तानाशाही या चापलूसी के मकडज़ाल में दम तोड़ देते हैं। गुलाबी नगरी जयपुर में स्त्री को केन्द्र में रखकर आयोजित संगोष्ठी में सरसंघचालक मोहन भागवत जी ने एक महिला विद्वान के सवाल के जवाब में कहा : हिन्दु समाज को संगठित करने के उद्देश्य के साथ, अपनी शक्ति और सामथ्र्य को नापते हुए जिस दौर में आरएसएस ने जन्म लिया, उस समय महिलाओं के संगठन की उतनी जरूरत महसूस नहीं हुई लेकिन सालों बाद जब आवश्यकता लगी तो संघ ने राष्ट्र सेविका समिति (आरएसएस) रूपी समानांतर महिला संगठन की शुरूआत सन् 1936 में महाराष्ट्र के वर्धा में की गई। श्री भागवत के अनुसार पहले महिलाओं को सीधे आरएसएस का हिस्सा बनाने पर सहमति हुई मगर महिलाओं को पुरूषों की बराबरी से आगे बढ़ाने का अवसर देने के उद्देश्य से समिति का निर्माण हुआ जिसमें प्रमुख संचालिका का पद (वर्तमान में वं. शांतक्का) सर्वोच्च है। इस संगठन से जुडक़र हजारों महिलाएं देश, समाज और परिवार को संवारने में लगी हुई हैं।

जानना जरूरी है कि राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के 35 से ज्यादा संगठन समाज जीवन में सक्रिय हैं जिनके माध्यम से हजारों महिलाएं जुडक़र समाज और देशसेवा में जुटी हुई हैं। विशेषतौर पर भाजपा, एबीवीपी, मजदूर संघ, सेवा भारती और विद्या भारती में महिलाओं का खासा प्रतिनिधित्व देखा जा सकता है। भाजपा ने जब अपने सांगठनिक ढांचे में महिलाओं के लिए 33 प्रतिशत आरक्षण लागू करने की ओर कदम बढ़ाए तो आरएसएस ने दिल खोलकर स्वागत किया था।

दूसरी ओर संघ-प्रमुख मोहन भागवत जी के उत्तर से जो प्रेत-सवाल निकला है, वह लालू यादव सहित कांग्रेस या दूसरे अन्य राजनीतिक दलों के लिए ना सिर्फ आईना की तरह है बल्कि अन्य सामाजिक और सांस्कृतिक संगठनों को खुद में झांकने को विवश करता है। यहां ठहरकर यह सोचना गलत ना होगा कि देश के प्रमुख राजनीतिक दलों द्वारा महिलाओं को समान अधिकार दिलाने के दावे कितने भी किए जाते रहे हों लेकिन ईमानदारी से कहें तो क्या महिलाएं पुरूषों के वर्चस्व को तोडऩे में सफल हो पाई हैं? हाल यह है कि कई राजनीतिक दलों में अपना वाजिब स्थान पाने के लिए उन्हें अभी भी पुरूषों की कृपा पर निर्भर रहना पड़ता है। कांग्रेस को छोड़ दीजिए तो समाजवादी पार्टी या राजद में और भी बुरी स्थिति है जहां महिला आरक्षण के सवाल पर ही औचित्य खड़े किए जाते रहे हैं और जिनके चलते महिला आरक्षण बिल आज तक संसद से पारित नहीं हो सका।

बिना किसी जिरहबख्त के कांग्रेस से ज्यादा लालू यादव के सवाल में थोड़ी गंभीरता नजर आती है। वे लालू ही थे जिन्होंने चारा घोटाले के फेर में खुद के जेल जाने पर अपनी पत्नी राबड़ी देवी को चौके-चूल्हे से उठाकर सीधे मुख्यमंत्री की कुर्सी पर ला बिठाया था। कहना गलत ना होगा कि लगभग बीस साल पहले हुई यह पहल पुरूषों के वर्चस्व वाले समाज में महिलाओं के लिए एक उम्मीदभरी, सम्मानजनक शुरूआत थी लेकिन लालू ना भूलें कि उनकी पार्टी के अडिय़ल रवैये के चलते ही महिला आरक्षण बिल संसद में अब तक पेश नही हो सका है। स्पष्ट है कि लालू महिलाओं के सम्मान के मुद्दे पर अपनी राजनीतिक रोटी सेंक रहे हैं क्योंकि अगले महीने होने जा रहे बिहार विधानसभा चुनाव में उन्हें करो या मरो जैसी चुनौती से जूझना पड़ रहा है।

शायद कांग्रेस के नेता इस लोकोक्ति पर यकीन रखते हैं कि एक झूठ को सौ बार बोलो तो वह सच लगने लगता है मगर उन्हें याद होना चाहिए कि संघ के बारे में ऐसा ही एक झूठ गांधी-हत्या को लेकर कांग्रेस के नेता आजादी के समय से दुष्प्रचारित करते आए हैं लेकिन देश ने कभी उस पर भरोसा नही जताया उल्टा अर्जुन सिंह जैसे दिवंगत कांग्रेस नेता को इस आरोप के लिए माफी मांगनी पड़ी थी। अबकि बार कांग्रेस ने बड़प्पन का जो फतवा जारी किया है, वह उसी के लिए आईना बन चुका है।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here