डॉ. मनोज शर्मा
देश के संविधान निर्माताओं ने भारत के संविधान में सेकुलरवाद को घुसेड़ने की बिलकुल आवश्यकता न समझी थी.
संविधान सभा में एक से बढ़कर एक विद्वान लोग थे, जिन्होंने धर्मनिरपेक्षता के मुद्दे पर गहन विचार-विमर्श भी किया था, परन्तु भारत के हिन्दू बहुल होने के कारण उन्होंने इस इम्पोर्टेड सेकुलरिज्म को एकदम खारिज़ कर दिया था.
संविधान निर्माता जानते थे कि हिन्दू समुदाय की शिक्षाओं का मूल ही यह है-
आत्मवत् सर्वभूतेषु यः पश्यति सः पण्डितः
भारत के सदियों पुराने इतिहास में हिन्दू समाज के सर्वसमावेशी चरित्र के अनेक उदाहरण उनके सामने थे.
देश विभाजन की ताज़ी विभीषिका में भी हिन्दू समाज ने जो सहिष्णुता और सदयता दिखाई थी, वह भी संविधान निर्माताओं के सामने मूर्त्त होकर खड़ी थी.
संसद भवन की दीवार पर जब स्थाई रूप से यह अंकित करवा दिया गया-
अयं निजः परो वेति गणना लघुचेतसाम्
उदार चरितानाम् तु वसुधैव कुटुम्बकम्
तब संसद और संविधान के दायरे में इस छिछोरे से सतही विदेशी सेकुलरवादी विचार पर चर्चा करना मानो विद्वानों की सभा में मूर्ख प्रलाप जैसी बात लगने लगी.
कुछ ऐसे प्रभावशाली लोग भी थे, जिनका चिंतन-दर्शन विदेशी था तथा जो भारत के मन को कभी समझ नहीं पाए थे.
इनमें दोगले वामपंथी शामिल थे, जिन्होंने बाद में आपातकाल के दौरान मौके का लाभ उठाकर अपनी मूर्खता का प्रदर्शन किया और इंदिरा गाँधी के साथ साँठ -गाँठ करके आनन-फानन में संविधान की प्रस्तावना में ही फेरबदल कर डाला और इस तरह भारत रातों-रात उस स्थिति में एक सेकुलर स्टेट बन गया, जब इसके अधिकतर अग्रणी नेता आपातकाल की जेलों में बंद थे.
अवसरवादी वामपंथियों ने इंदिरा को ब्लैकमेल करके जिस उथले सेकुलरवाद को देश पर थोपा, उस सेकुलरवाद ने कभी देश का भला नहीं किया.
हाँ, इसके सहारे झूठे सेकुलरों ने देशवासियों को, विशेषकर मुसलमानों को खूब मूर्ख बनाया और अपनी तरह-तरह की दूकानें चलाईं.
वर्तमान सेकुलरवाद भारत के लोकतंत्र के साथ बहुत बड़ा धोखा है. भारतीय समाज को बाँटने वाले व केवल वोट बैंक को पोसने-परोसने वाले इस झूठे सेकुलरवाद के विरोध में पिछले दिनों अनायास ही भीतर से एक कविता निकल पड़ी.
उसी कविता को इस उद्देश्य के साथ यहाँ प्रस्तुत करने का प्रयास है, कि इस सेकुलरवाद पर देश भर में एक सार्थक व निर्णायक बहस चले…
जन गण मन में जगा देश का भाग्य-विधाता नमो नमोसेकुलर को मुस्लिम की चिंता
मुस्लिम और मुस्लिम की चिंता
सेकुलर बेशक हिन्दू होते
जिनसे बेबस हिन्दू रोते
सुन बे सेकुलर, हिन्दू-मन में जगत समाता नमो नमो
जन गण मन में जगा देश का भाग्य-विधाता नमो नमो
मौके तकता, देता पीड़ा
सेकुलर तत्पर तर्क निकाले
जिसने पाला, उसको खाले
कब कितना गिर सकता सेकुलर सोच न पाता नमो नमो
जन गण मन में जगा देश का भाग्य-विधाता नमो नमो
दस कपटी, नब्बे दुमछल्ले
सेकुलर पलटन बल्ले-बल्ले
शहरों को संसाधन देंगे
देहातों को सदा छलेंगे
मिले मलाई इंडिया को भारत अकुलाता नमो नमो
जन गण मन में जगा देश का भाग्य-विधाता नमो नमो
सेकुलर कॉन्वेंट से आते
हर गिरोह में पैठ जमाते
सबल बना सेकुलर गुर्राता
हिन्दू वट की जड़ें हिलाता
मैकाले के पुत्रों को थर-थर थर्राता नमो नमो
जन गण मन में जगा देश का भाग्य-विधाता नमो नमो
सेकुलर टोली बहुत बली है
सेकुलर की ना कभी टली है
जो बुद्धिजीवी कहलाते
सेकुलर तमगे को ललचाते
सेकुलर खेमा संविधान की नींव हिलाता नमो नमो
जन गण मन में जगा देश का भाग्य-विधाता नमो नमो
प्रगतिशील वही कहलाया
जो बुद्धि गिरवी रख आया
ऐश करें, बिन पापड़ बेले
सेकुलर मठाधीश के चेले
‘हंस’ सवारी करे ‘नामवर’ गाल बजाता नमो नमो
जन गण मन में जगा देश का भाग्य-विधाता नमो नमो
घूम रहा सेकुलर का डंडा
मिटे सनातन, यही एजेंडा
नकली बौने पेड़ लगा दो
वृक्ष पुरातन काट गिरा दो
कुक्कुरमुत्ता अब पीपल की हँसी उड़ाता नमो नमो
जन गण मन में जगा देश का भाग्य-विधाता नमो नमो
सेकुलर एक ही सुर का तोता
तर्क न तथ्य समझे खोता
सेकुलर ढोता बोझा भारी
सब धर्मों की ठेकेदारी
भ्रमित भटकता औरों को उपदेश पिलाता नमो नमो
जन गण मन में जगा देश का भाग्य-विधाता नमो नमो
सब धर्मों को एक बताकर
नए ठौर नित शीश नवाकर
बकता सेकुलर सत्यानाशी
इंडिया ताज़ा, भारत बासी
इण्डिया झेले दंगे, भारत युद्ध रचाता नमो नमो
जन गण मन में जगा देश का भाग्य-विधाता नमो नमो
दौड़ रहा आँखों को मीचे
भारत अब इण्डिया के पीछे
सेकुलर जो अंधड़ चलवाता
भारत उसमें उड़-उड़ जाता
संस्कार की पूँजी बिखरे, फिरे बचाता नमो नमो
जन गण मन में जगा देश का भाग्य-विधाता नमो नमो
सेकुलर जी! इतिहास खँगालो
सेकुलर जड़ तो ढूँढ निकालो
शर्म करो, तुम हमें सिखाते
हम वसुधा को कुटुम बताते
मानवता का रक्षक भारत सबका भ्राता नमो नमो
जन गण मन में जगा देश का भाग्य-विधाता नमो नमो
प्रवक्ता पर इतने घटिया लेख भी प्रकाशित होंगे? सोचकर आश्चर्य होता है! लेखक ये भी नहीं पता की संविधान के निर्माण के दिन से भारत सेक्यूलर है! यदि कोई शब्द प्रस्तावना में नहीं है और संविधान के मूल अधिकारों में शामिल है तो उसका लेखक महोदय को संवैधानिक मूल्य ही मालूम नहीं! केवल सेक्यूलर ही क्यों बहुत सारे ऐसे प्रावधान और अवधारणाएँ संविधान में अंतर्निहित हैं, जिनका उल्लेख प्रस्तावना में प्रत्यक्ष रूप से नहीं किया गया है! ऐसे लेखक निश्चय ही देश के माहौल को ख़राब करते हैं और संविधान का अनादर करते हैं! आज सेक्यूलर होने या नहीं होने से कहीं अधिक जरूरी है, दस फीसदी शोषक वर्ग को दण्डित करने की, जिसके लिए कोई बात नहीं करता!
देश की किसी भी सरकार ने देश के हजारों सालों से दमित लोगों के उत्थान के लिए कोई कठोर कदम नहीं उठाया है! एम के गाँधी के कूटनीतिक धोखे के दुखद परिणाम “आरक्षण” के झुनझुना को केंद्र की सत्ता पर समय-समय पर आसीन रहे सभी दलों ने अपने-अपने हित में जमकर बजाया है!
सेपरेट इलेक्ट्रोल के न्यायसंगत हक़ को छीनकर गांधी द्वारा जबरन थोपा गया यही आरक्षण वर्तमान में अनेक प्रकार की व्यावहारिक मुसीबतों का कारण बनाया जा चुका है!
इसी प्रकार से कमजोर वर्गों के शोषक सबल साम्प्रदायिक लोगों द्वारा देश को हिन्दू-मुस्लिम में विभाजित करके देश की सत्ता पर काबिज होने के इरादे से सेक्यूलर राष्ट्र की विश्व स्तर प्रतिष्ठा प्राप्त और पवित्र मानवीय अवधारणा को ही दुराशय पूर्वक विकृत किया जा रहा है! लेखक का लेख इसी कुटिल कुनीति का पोषक है, जो भारत की अंतर्राष्ट्रीय छवि को तहस नहस करने और अल्प संख्यकों को मनुवादियों का गुलाम बनाने के कभी पूरे नहीं हो सकने वाले रुग्ण इरादे से लिखा गया प्रतीत होता है!