कुल जीडीपी का 5 प्रतिशत हो रक्षा बजट

राकेश कुमार आर्य 

 किसी भी देश की सरकार के लिए यह आवश्यक होता है कि वह अपनी  सुरक्षा व्यवस्था को मजबूत करने के लिए  अपने बजट की एक अच्छी राशि को  अपने रक्षा बजट पर व्यय करे।  भारत की  पिछली सरकारों ने  गांधीवाद के  अहिंसावादी विचार से प्रेरित होकर  इस ओर समुचित ध्यान नहीं दिया । जिस कारण देश को  1962 में चीन के हाथों पराजित होना पड़ा । इतना ही नहीं  पाकिस्तान जैसा अदना सा देश भी भारत को केवल इसीलिए आंखें दिखाने का साहस करता रहा  कि भारत  अपनी सुरक्षा व्यवस्था पर  अधिक व्यय  करने  का पक्षधर नहीं था । यह आश्चर्य का विषय है कि  वर्तमान प्रधानमंत्री श्री मोदी ने  सत्ता संभालने के पश्चात  रक्षा  बजट में वृद्धि करने पर  अपेक्षित ध्यान नहीं दिया । एक विदेशी राजनीतिक चिंतक और इतिहासकार ने कहा है कि —” युद्ध आमतौर पर तब समाप्त होते हैं जब युद्ध कर रहे देश एक दूसरे की ताक़त को समझ जाते हैं और उस पर सहमति बना लेते हैं. और युद्ध आमतौर पर तब शुरू होते हैं जब यही देश एक – दूसरे की ताक़तों को समझने से इन्कार कर देते हैं ।”राजनीति में  इस बात को ध्यान में रखना बहुत आवश्यक है ।  हम दूसरे देश की शक्ति का आभास भी रखें और अपनी शक्ति का आभास  दूसरे देश को कराते रहें । तभी  शांति बनी रह सकती है , अन्यथा  कभी भी कोई देश दूसरे देश  पर हमला कर सकता है । भारत के साथ 1962 में  जो कुछ चीन ने किया था , वह तभी संभव हो पाया था जब ने हमारी शक्ति का  आभास कर लिया था ।भारत, एक ऐसा देश है जो चीन और पाकिस्तान जैसे पड़ोसियों के बीच में फंसा हुआ है । ये दोनों ही पड़ोसी परमाणु शक्तियों से सम्पन्न हैं और पहले दिन से ही भारत से शत्रुता रखते हैं ।इन दोनों ही देशों के साथ भारत युद्ध लड़ चुका है और वर्तमान में छोटे-बड़े मुद्दों को लेकर इनके साथ भारत की तनातनी बनी रहती है । ऐसे में भारत के लिए बहुत ही आवश्यक है कि वह अपनी रक्षा तैयारियों में किसी प्रकार की असावधानी का प्रदर्शन ना करे।इसलिए भारत के रक्षा बजट में प्रधानमंत्री श्री मोदी ने जिस प्रकार वृध्दि कराई है , वह बहुत औचित्यपूर्ण कही जा सकती है । यद्यपि भारत की रक्षा अपेक्षाओं के दृष्टिगत जो भी वृद्धि  श्री मोदी ने अपने पिछले 5 वर्ष के शासनकाल में रक्षा के क्षेत्र में रक्षा बजट पर की है , वह पर्याप्त नहीं कहीं जा सकती हैं । यह अलग बात है कि श्री मोदी के सक्षम और सशक्त नेतृत्व के कारण पाकिस्तान और  चीन जैसे पड़ोसी शत्रु देश  भारत की ओर  आंख उठा कर देखने से पहले  10 बार सोचते हैं ।बाहरी और भीतरी चुनौतियों का सामना करने के लिए देश को एक आधुनिकतम हथियारों से सुसज्जित सेना की आवश्यकता  है ।भारतीय सेना में लाखों जवान भर्ती हैं ।उनकी क्षमताओं को बढ़ाने के लिए कई प्रकार के  प्रयास करने की आवश्यकता है ।सरकारें हर वर्ष प्रस्तुत किए जाने वाले आम बजट में रक्षा बजट के लिए भी अलग से ख़र्च करती हैं ।मई 2014 में नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश की नई सरकार बनी तो उनके पास एक सर्वकालिक रक्षा मंत्री नहीं थे ।अरुण जेटली, जो कि वित्त मंत्रालय संभाल रहे थे उन्हें ही रक्षा मंत्रालय का अतिरिक्त कार्यभार सौंपा गया था ।उस समय कई लोगों ने माना था कि इससे देश की सेना को लाभ पहुंचेगा ,क्योंकि वित्त मंत्री के हाथ में ही रक्षा मंत्रालय की चाबी भी रहेगी । जिससे उन्हें पता रहेगा कि हमारे देश की रक्षा आवश्यकताएं क्या है ? – और उसके लिए हमें अपने आम बजट में कितने धन की व्यवस्था करनी चाहिए ? 10 जुलाई 2014 को अरुण जेटली ने नई सरकार का पहला बजट प्रस्तुत किया ।इसमें उन्होंने 2,33,872 करोड़ रुपए सेना के लिए आवंटित किए ।यह आंकड़ा यूपीए सरकार के द्वारा फ़रवरी 2014 में प्रस्तुत किए गए अंतिम बजट से लगभग 5 हज़ार करोड़ रुपए अधिक था ।इस प्रकार एनडीए ने सेना के लिए होने वाले व्यय में 9 प्रतिशत की वृध्दि की । प्रधानमंत्री मोदी ने भारत के रक्षा बजट में 9% की वृद्धि कराने का निर्णय लिया तो इसी से हमारे पड़ोसी देशों को यह पता चल गया था कि भारत में अब सरकार किसकी है और भारत अब अपनी रक्षा तैयारियों के प्रति कितना सतर्क  हो चुका है ?इसके बाद एनडीए सरकार का पहला पूर्ण बजट 28 फ़रवरी 2015 में पेश किया गया । इस बजट में पिछले बजट की तरह ही रक्षा के लिए आवंटित ख़र्च 2,55,443 करोड़ रुपए रखा गया । इसके अगले वर्ष 29 फ़रवरी 2016 को जब जेटली ने बजट पेश किया तो उन्होंने सेना पर ख़र्च का उल्लेख नहीं किया ।इस पर कई लोगों ने प्रश्न भी उठाए.यह अनुमान लगाया जा रहा था कि रक्षा बजट में दो प्रतिशत की वृद्धि की जाएगी ।इस बजट को प्रस्तुत करने से कुछ समय पहले अर्थात 15 दिसंबर 2015 को प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी अलग-अलग सेनाओं के कमांडरों की संयुक्त बैठक में बोल चुके थे, “मौजूदा समय में तमाम बड़ी शक्तियां अपने सैन्यबलों को कम कर रही हैं और आधुनिक उपकरणों और तकनीक पर अधिक ध्यान लगा रही हैं. जबकि हम अभी भी अपने सैन्यबल को ही बढ़ा रहे हैं. एक ही समय पर सेना का विस्तार और उसका आधुनिकीकरण करना कठिन और अनावश्यक लक्ष्य है ।”1 फ़रवरी 2017 को जब वित्त मंत्री एक बार फिर बजट के साथ उपस्थित हुए तो उन्होंने रक्षा बजट के तौर पर 2,74,114 करोड़ रुपए आवंटित किए ।पिछले बजट से सर्वथा विपरीत इस बार के बजट में लगभग 6 प्रतिशत की वृद्धि थी ।रक्षा मंत्रालय के फंड से चलने वाले इंस्टिट्यूट फॉर डिफेंस स्टडीज़ एंड एनालिसिस (आईडीएसए) के लिए लिखते हुए रिसर्च फ़ैलो लक्ष्मण के. बेहरा ने इसे अपर्याप्त बजट बताया था ।पिछले  वर्ष 1 फ़रवरी को अरुण जेटली ने एक बार फिर रक्षा बजट में 8 प्रतिशत की वृद्धि की । पिछले वर्ष रक्षा बजट के लिए 2,95,511 करोड़ रुपए आवंटित किए गए ।वहीं अब अपना पहला बजट और सरकार के कार्यकाल का अंतिम बजट प्रस्तुत करते हुए पीयूष गोयल ने कहा, “पहली बार हमारा रक्षा बजट 3 लाख करोड़ के पार पहुंचने जा रहा है.” इस बार के रक्षा बजट में 3,18,847 करोड़ रुपए आवंटित किए गए हैं । पिछले बजट की अपेक्षा इसमें आठ प्रतिशत की वृद्धि  की गई है । अब प्रश्न यह उठता है कि रक्षा बजट के विषय में क्या एनडीए की सरकार यूपीए से अधिक सफल सिध्द हुई है? हमें यह ध्यान रखना चाहिए की रक्षा क्षेत्र में अपनी सुरक्षा व्यवस्था पर भारत को अपनी कुल जीडीपी के मौजूदा 1.56 प्रतिशत से बढ़ाकर 3% तक करने की सिफारिश सुरक्षा मामलों की संसदीय समिति ने बीते दिनों सरकार से की थी । यहां पर यह भी ध्यान रखने वाली बात है कि अमेरिका अपनी जीडीपी का 4% रूस 4.5% , इजराइल 5.2 प्रतिशत , चीन ढाई प्रतिशत और पाकिस्तान 3.50 प्रतिशत रक्षा बजट आवंटित करता है । यद्यपि भारत ने वर्तमान में अपने रक्षा बजट को तीन लाख करोड़ तक करके इसमें 20000 करोड की वृद्धि पिछले वर्ष की तुलना में की है , परंतु फिर भी यह अभी अपर्याप्त ही कही जाएगी।रक्षा मंत्रालय में पूर्व वित्त सलाहकार रह चुके अमित कॉविश इस बारे में कहते हैं,कि “दोनों सरकारों के बीच अगर हम आंकलन करें तो एक जैसा ही दृष्टिकोण देखने को मिलता है.। यद्यपि बजट आंवटन में जो अंतर  दिखाई देता है वह स्वाभाविक अंतर है , क्योंकि 15 वर्ष में इतना अंतर तो आना ही था ।”यदि हम वर्त्तमान समय में सेना के वरिष्ठ अधिकारियों और सांसदों (जिनमें बीजेपी के सांसद भी सम्मिलित हैं ) के मत का मूल्यांकन करें  तो पाएंगे कि मोदी सरकार के लिए रक्षा बजट सदा ही एक दुखती रग रहा है ।नवंबर 2018 को भारतीय नौसेना प्रमुख एडमिरल सुनील लांबा ने कहा था, “जीडीपी के प्रतिशत में भले ही गिरावट आई हो लेकिन जैसा कि हमसे वादा किया गया था रक्षा बजट लगातार ऊपर ही बढ़ा है. हम चाहते हैं इसमें और वृद्धि होती रहे, हालांकि कुछ अड़चनें ज़रूर हैं और हम सभी उनसे अवगत भी हैं.”25 जुलाई 2018 को बीजेपी के सांसद डॉक्टर मुरली मनोहर जोशी ने कहा था, “जीडीपी के 1.56 प्रतिशत हिस्सा रक्षा पर खर्च किया जा रहा है. साल 1962 में चीन से युद्ध के बाद से यह सबसे निचले स्तर पर है. भारत जैसे बड़े देश के लिए सका रक्षा बजट बहुत अहम होता है ।मार्च 2018 को संसदीय समिति में आर्मी स्टाफ़ के उप प्रमुख ने कहा, “साल 2018-19 के बजट ने हमारी आशा को समाप्त कर दिया । हमने जो कुछ भी प्राप्त किया था उन्हें थोड़ा-सा झटका तो लगा है. ऐसे में अब हमारी समिति के बहुत से पुराने खर्च और बढ़ जाएंगे.”मार्च 2018 को संसदीय समिति ने रक्षा बजट पर कहा था, “बीते कुछ वर्षों में वायु सेना के लिए होने वाले खर्च के हिस्से में गिरावट आई है. वायु सेना को आधुनिक बनाने के लिए जिस खर्च की आवश्यकता है उसमें भी गिरावट दर्ज की गई है.”” वर्ष 2007-08 में कुल रक्षा बजट में इसका हिस्सा जहां 17.51 प्रतिशत था वहीं वर्ष 2016-17 में यह गिरकर 11.96 प्रतिशत पर आ गया ।”प्रधानमंत्री श्री मोदी का देश  के लिए बहुत ही ओजस्वी और तेजस्वी नेतृत्व रहा है ।इसमें दो मत नहीं कि उनका शासन और राजनीति दोनों ही स्पष्ट हैं और उनमें कहीं किसी प्रकार की लाग लपेट नहीं है। वह एक सख्त प्रशासक हैं और धारदार राजनीति करना भी जानते हैं। निश्चित रूप से उन जैसा राजनेता देश को मिलना हम सबके लिए सौभाग्य की बात है , परंतु फिर भी उन्हें रक्षा क्षेत्र में और भी कुछ अधिक कर दिखाने की आवश्यकता है । हमें शत्रु देश न केवल आगे बढ़ने से रोकने के लिए एक मत है , बल्कि वे हमें इसलिए भी मिटा देना चाहते हैं कि हम उनकी दृष्टि में हिंदू राष्ट्र के रूप में उनके पड़ोस में रहते हैं । इस यथार्थ को या वास्तविकता को श्री मोदी से अधिक और कोई अच्छे ढंग से नहीं जान सकता। अतः श्री मोदी से हमारा यही अनुरोध है कि वह देश की सुरक्षा के लिए रक्षा बजट में कुल जीडीपी का  5% धन आवंटित करने की व्यवस्था का प्रावधान करें।

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राकेश कुमार आर्य
उगता भारत’ साप्ताहिक / दैनिक समाचारपत्र के संपादक; बी.ए. ,एलएल.बी. तक की शिक्षा, पेशे से अधिवक्ता। राकेश आर्य जी कई वर्षों से देश के विभिन्न पत्र पत्रिकाओं में स्वतंत्र लेखन कर रहे हैं। अब तक चालीस से अधिक पुस्तकों का लेखन कर चुके हैं। वर्तमान में ' 'राष्ट्रीय प्रेस महासंघ ' के राष्ट्रीय अध्यक्ष हैं । उत्कृष्ट लेखन के लिए राजस्थान के राज्यपाल श्री कल्याण सिंह जी सहित कई संस्थाओं द्वारा सम्मानित किए जा चुके हैं । सामाजिक रूप से सक्रिय राकेश जी अखिल भारत हिन्दू महासभा के वरिष्ठ राष्ट्रीय उपाध्यक्ष और अखिल भारतीय मानवाधिकार निगरानी समिति के राष्ट्रीय सलाहकार भी हैं। ग्रेटर नोएडा , जनपद गौतमबुध नगर दादरी, उ.प्र. के निवासी हैं।

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