रेल दुर्घटना की वजह अंग्रेजी भी?

-डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

रेल दुर्घटना होने के बाद राजनैतिक पार्टियों की ओर से रेल मन्त्री ममता बनर्जी पर आरोप है कि उनको पं. बंगाल के मुख्यमन्त्री की कुर्सी पर बैठने की इतनी जल्दी है कि उन्हें रेल मन्त्रालय संभालने की फुर्सत ही नहीं है। ममता जी पूर्व में भी अटल जी के नेतृत्व वाली सरकार में रेल मंत्री रह चुकी हैं। इसलिए, यह तो नहीं माना जा सकता कि वे नयी हैं और उनको रेलवे दुर्घटनाएं क्यों होती हैं, इस बारे में जानकारी नहीं होगी। सधी बात यह है कि रेल मंत्री काले अंग्रेज अफसरों के चंगुल से बाहर निकल कर देखें, तो पता चलेगा कि रेलवे के हालात कितने खराब हैं और इन खराब हालातों के लिये कौन जिम्मेदार हैं? ममता जी! रेलवे मंत्रालय में बेशक आपने एक ईमानदार रेल मंत्री की छवि बनायी है, परन्तु आपके आसपास के वातानुकूलित कक्षों में विराजमान काले अंग्रेजों ने भारतीय रेल की कैसी दुर्दशा कर रखी है, जरा इस पर भी तो गौर कीजिये। आपको पता करना चाहिये कि रेलवे की दुर्घटनाओं की जिम्मेदारी निर्धारित करने वाले उध रेल अधिकारी क्या कभी, किसी भी जांच में दुर्घटनाओं के लिये जिम्मेदार नहीं ठहराये जाते? आप पायेंगी कि भारतीय रेलवे के इतिहास में किसी अपवाद को छोड दिया जाये तो दुर्घटनाओं के सम्बन्ध में रेलवे के सारे के सारे अफसर दूध के धुले हैं। वे कभी भी ऐसा कुछ नहीं करते कि उनकी वजह से रेल दुर्घटना होती हों।

रेल दुर्घटनाओं के लिये तो हर बार निचले स्तर के छोटे कर्मचारियों ही जिम्मेदार ठहराये जाते रहे हैं। इनमें भी प्वाइंट्‌समैन, कांटेवाला, कैबिन मैन, स्टेशन मास्टर, गार्ड, चालक, सह चालक आदि कम पढे लिखे और कम वेतन पाने वाले, किन्तु रात-दिन रेलवे की सेवा करने वाले लोग शामिल होते हैं। बेशक, इनमें से अनेक ग्रेजुएट भी होते हैं, लेकिन ग्रेजुएट होकर भी निचले स्तर पर ये लोग इसलिये नौकरी कर रहे होते हैं, क्योंकि उन्होंने किसी सरकारी स्कू ल में हिन्दी माध्यम से शिक्षा प्राप्त की हुई होती है और ग्रामीण परिवेश तथा गरीबी के चलते वे अंग्रेजी सीखने से वंचित रह जाते हैं, जिसके चलते संघ लोक सेवा आयोग में अनिवार्य अंग्रेजी विषय को उत्तीर्ण करना इनके लिये असम्भव होता है। ऐसे कर्मचारियों को रेलवे में, रेलवे संचालन से जुडे सारे के सारे नियम-कानून और प्रावधान केवल अंग्रेजी में पढ एवं समझकर लागू करने को बाध्य किया जा रहा है।

जो लोग अंग्रेजी को ठीक से पढ नहीं सकते, उनके लिये यह सब असम्भव होता है, जिसके चलते अंग्रेजी में लिखे रेल परिचालन के प्रावधानों-नियमों का उल्लंघन होना स्वाभाविक है। जिसका दुखद दुष्परिणाम रेल दुर्घटना होता है।

हर दुर्घटना की हर बार उध स्तरीय जांच होती है। जांच रिपोर्ट में दुर्घटना के कारणों एवं भविष्य में उनके निवारण के अनेक नये-नये तरीके सुझाये जाते हैं, परन्तु ये सारी की सारी रिपोर्ट केवल अंग्रेजी में ही बनाई जाती हैं, जिनके हिन्दी अनुवाद तक की आवश्यकता नहीं समझी जाती है, जबकि सुझाए जाने वाले सारे नियम-कानूनों और उपायों को निचले स्तर पर ही अंग्रेजी नहीं जानने वाले रेलकर्मियों को लागू करना होता है। ऐसे में इन जांच रिपोटोर्ं और रेल संरक्षा से जुडे नये-नये उपायों का तब तक कोई औचित्य नहीं है, जब तक कि रेल संचालन से जुडा हर एक नियम उस भाषा में नहीं बने, जिस भाषा को निचले स्तर का रेलकर्मी ठीक से पढने और समझने में सक्षम हो। बेशक वह भाषा गुजराती, मराठी, पंजाबी, तेलगू, कन्नड, हिन्दी या अन्य कोई सी भी क्षेत्रीय भाषा क्यों न हो। देश के लोगों की जानमाल की सुरक्षा से बढकर कुछ भी नहीं है।

लेकिन यह तभी सम्भव है, जब मंत्रीजी रेलवे संरक्षा एवं रेलवे संचालन से जुडे प्रावधानों को अंग्रेजी में बनाकर, अंग्रेजी नहीं जानने वालों पर जबरन थोपने वाले असली गुनेहगारों को भी सजा देनी की हिम्मत जुटा पायें, अन्यथा होगा ये कि आप रेल दुर्घटना को बचाने के पुरस्कार में मृतकों के परिजनों को रेलवे में नौकरी देंगी और आगे चलकर अंग्रेजी कानूनों का उल्लंघन करने पर, ऐसी अनुकम्पा के आधार पर भर्ती हुए रेलकर्मियों को कोई रेल अधिकारी नौकरी से निकाल देगा। आजाद भारत में इससे बढकर शर्मनाक कुछ भी नहीं हो सकता। वाह क्या नियम हैं?

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डॉ. पुरुषोत्तम मीणा 'निरंकुश'
मीणा-आदिवासी परिवार में जन्म। तीसरी कक्षा के बाद पढाई छूटी! बाद में नियमित पढाई केवल 04 वर्ष! जीवन के 07 वर्ष बाल-मजदूर एवं बाल-कृषक। निर्दोष होकर भी 04 वर्ष 02 माह 26 दिन 04 जेलों में गुजारे। जेल के दौरान-कई सौ पुस्तकों का अध्ययन, कविता लेखन किया एवं जेल में ही ग्रेज्युएशन डिग्री पूर्ण की! 20 वर्ष 09 माह 05 दिन रेलवे में मजदूरी करने के बाद स्वैच्छिक सेवानिवृति! हिन्दू धर्म, जाति, वर्ग, वर्ण, समाज, कानून, अर्थ व्यवस्था, आतंकवाद, नक्सलवाद, राजनीति, कानून, संविधान, स्वास्थ्य, मानव व्यवहार, मानव मनोविज्ञान, दाम्पत्य, आध्यात्म, दलित-आदिवासी-पिछड़ा वर्ग एवं अल्पसंख्यक उत्पीड़न सहित अनेकानेक विषयों पर सतत लेखन और चिन्तन! विश्लेषक, टिप्पणीकार, कवि, शायर और शोधार्थी! छोटे बच्चों, वंचित वर्गों और औरतों के शोषण, उत्पीड़न तथा अभावमय जीवन के विभिन्न पहलुओं पर अध्ययनरत! मुख्य संस्थापक तथा राष्ट्रीय अध्यक्ष-‘भ्रष्टाचार एवं अत्याचार अन्वेषण संस्थान’ (BAAS), राष्ट्रीय प्रमुख-हक रक्षक दल (HRD) सामाजिक संगठन, राष्ट्रीय अध्यक्ष-जर्नलिस्ट्स, मीडिया एंड रायटर्स एसोसिएशन (JMWA), पूर्व राष्ट्रीय महासचिव-अजा/जजा संगठनों का अ.भा. परिसंघ, पूर्व अध्यक्ष-अ.भा. भील-मीणा संघर्ष मोर्चा एवं पूर्व प्रकाशक तथा सम्पादक-प्रेसपालिका (हिन्दी पाक्षिक)।

9 COMMENTS

  1. समस्त आदरणीय पाठकों की ओर से दी गयी टिप्पणियों के लिये हृदय से आभार।
    सर्वप्रथम तो मैं स्पष्ट कर दूँ कि श्री डॉ. मधुसूदन जी आपकी पूर्ववर्ती टिप्पणी के बारे में मुझे कोई आपत्ति नहीं है। दरअसल मैंने श्री अभिषेक पुरोहित जी की टिप्पणी पर अपना मत व्यक्त किया था, क्योंकि मुझे लगा कि मेरे आलेख के उद्देश्य को उन्होंने
    ठीक से समझे व पढे बिना ही टिप्पणी कर दी है। श्री विश्व मोहन जी ने मेरे आशय को समझने का प्रयास किया है। श्री मुधसूदन जी ने भी विषय पर गम्भीरता से विचार किया है। श्री अभिषेक पुरोहित, श्री श्रीराम तिवारी एवं श्री सुनील पटेल का भी मैं हृदय से आभार प्रकट करता हँू। जिन्होंने अपना अमूल्य समय निकालकर रेल संरक्षा से जुडे विषय पर मेरे विचारों को पढा और अपनी टिप्पणी दी।

    सबसे पहले तो मेरा निवेदन है कि कृपा करके मेरे इस आलेख को वर्तमान दुर्घटना से जोडकर नहीं पढें, बल्कि इस पर समग्रता से विचार करने की जरूरत है। चूँकि एक रेल दुर्घटना हो जाने के कुछ समय बाद तक आम लोगों के मन में भी रेलवे दुर्घटनाओं के बारे में जानने की जिज्ञासा रहती है। इसलिये इस समय इस विषय पर आलेख लिखा गया है। अन्यथा इस दुर्घटना से इस लेख का कोई सीधा सम्बन्ध नहीं है।

    अब मुझे विनम्रता पूर्वक कहना है कि रेलवे से बाहर के लोगों को रेलवे की कार्यप्रणाली के बारे में व्यावहारिक जानकारी नहीं है, इस कारण अनेक लोगो की नजर में भाषा कोई मायने नहीं रखती है। जबकि सच्चाई यह है कि भाषा ही सबसे अधिक मायने रखती है। रेलवे में रेल संचालन से सम्बन्धित अनेक प्रकार की मैन्युअल प्रभावी हैं, जिनका क्रियान्वयन करना रेल संरक्षा एवं रेल संचालन से जुडे प्रत्येक व्यक्ति का दायित्व है और इनका पालन नहीं करने पर रेलकर्मियों को आयेदिन दोषी ठहराया जाता है। दोषी ठहराते समय साफ शब्दों में उल्लेख किया जाता है, कि फलां-फलां नियमों का पालन या क्रियान्वन नहीं करने के कारण रेल संरक्षा को खतरा उत्पन्न हुआ।

    रेलकर्मियों की ओर से बार-बार आग्रह किया जाता है कि नियमों को याद रखना सम्भव नहीं है। अतः उन्हें उनकी अपनी भाषा में नियमों की पुस्तक उपलब्ध करवाई जावे, जिससे कि वे उन्हें बार-बार पढते रहें और नियमों का पालन एवं क्रियान्वयन सुनिश्चित कर सकें, लेकिन नियमों को रेलकर्मियों की भाषा में उपलब्ध करवाने के स्थान पर, उन्हें झिडकियाँ दी जाती हैं। और तो और रेलवे के नियमों में उल्लेख किया गया है कि किसी कर्मचारी द्वारा अंग्रेजी समझ में नहीं आने पर उसे हिन्दी अनुवाद उपलब्ध करवाया जायेगा, लेकिन अनुवाद उपलब्ध नहीं करवाने के कारण ऐसे कर्मचारी को ऐसे नियम के उल्लंघन के अपराध से मुक्त नहीं माना जा सकेगा।

    उक्त प्रावधान से अधिक पीडादायक और क्या हो सकता है?

    बेशक कर्मचारी को दण्डित कर दिया जाये, लेकिन उसके द्वारा मांगे जाने पर भी अंगे्रजी नियमों और रेल संचालन/संरक्षा प्रावधानों का अनुवाद प्रदान नहीं किये जाने के कारण होने वाली दुर्घटना में होने वाली, जन-धन की हानि को क्या ऐसे कर्मचारी को दण्डित करके पूरा किया जा सकता है।

    इससे भी अधिक दुःखद बात ये भी है कि अनुवाद उपलब्ध नहीं करवाने वाले रेल अधिकारी/प्राधिकारी के विरुद्ध किसी भी प्रकार की कार्यवाही करने का कोई प्रावधान नहीं है। अब आप सिंगनल ब्लॉक संचालन सम्बन्धी एक प्रावधान की अंग्रेजी भाषा पढिये/देखिये :-

    Mechanical key Lock : The Mechanical key lock is an attachment to the tokan Block Instrument, added where required for the purpose of providing interlocking between the tokan Block Instrument and the last stop signal of the section, which it controls. It may also be used for other purpouses, such as the control of outlying points. The key can only be removed from the lock after the token han been extracted from the Block Instrument and the removel of the key, locks the operating handle in the “Train Going To” position.

    उपरोक्त कार्य करने के लिये ऐसे रेलकर्मियों को पदस्थ किया जाता है, जिसके लिये रेलवे में भर्ती होते समय अलग से अंग्रेजी पढने, लिखने और समझने में दक्षता की कोई परीक्षा नहीं ली जाती है। अनेक बार तो उक्त कार्य पांचवीं एवं आठवीं पास चुतर्थ श्रेणी कर्मचारी या चतुर्थ श्रेणी से तृतीय श्रेणी में पदोन्नत कर्मचारी भी निष्पादित करते हैं। जिनके लिये उक्त प्रावधानों को ज्यों का त्यों समझना लगभग असम्भव होता है।

    ऐसे में सवाल उठना स्वाभाविक है कि फिर यह काम कैसे हो रहा है, तो इसका जवाब ये है कि अपने से वरिष्ठ रेलकर्मियों से जो कुछ सीखते हैं, उसी को दौहराते रहते हैं, लेकिन जैसे ही इस संचालन प्रणाली में किसी दुर्घटना कमेटी की जाँच के बाद परिवर्तन या संशोधन किया जाता है, तो उसे केवल अंग्रेजी में ही परिपत्रित किया जाता है, जिसे समझना लगभग असम्भव होता है और भारी-भरकम धन खर्च करके प्राप्त जाँच रिपोर्ट के परिणामों को केवल अंग्रेजी नहीं समझ पाने के कारण क्रियान्वित नहीं किया जा सकता है। या यों कहो कि अंगे्रजी में रिपोर्ट बनाने एवं जारी करने की मानसिकता के कारण रेलवे की संरक्षा को दाव पर लगा दिया जाता है।

    मैं समझता हँू कि मैं मेरी बात को स्पष्ट करने में सफल रहा हँू, यदि इसमें किसी भी प्रकार की खामी/अस्पष्टता हो तो कृपया मुझे लिखने का कष्ट करें। मैं आपका आभारी रहँूगा। मेरा उद्देश्य सुरक्षित एवं संरक्षित रेल संचालन है, जिसमें सभी देशवासियों का सहयोग अपेक्षित है। धन्यवाद।

  2. अंग्रजी मुख्य कारन तो नहीं हो सकती है किन्तु एक कारन तो हो ही सकती है. डॉ. साहब बिलकुल सही कह रहे है सारी रिपोर्टे अंग्रेजी में ही प्रकाशित होती है. वोह भी दर्जनों, सक्दो, हजारो पन्नो में. आम व्यक्ति तो दूर, अच्छे पढ़े लिखे लोग भी एन रिपोर्ट्स को नहीं पढ़ते है.
    वैसे आजकल नई तकनीक बहुत सस्ती हो गई है. भारतीय रेल जैसे विस्तृत वृहद संगठन आसानी से उच्च तकनीक अपना सकता है जिससे दुर्घटना की संभावना बहुत कम हो जाएगी.

  3. आदरणीय मीणा जी। आपका लेख मैंने पहले भी पढा था, आज दुबारा पढा। मैं “निर्णायक पथ पद्धति” (Critical Path Method) का जानकार हूं।जिसका उपयोग मैनें भवन और कुछ (Construction)संरचना प्रकल्पों में किया है। दुर्घटनाओ को घटानेमें भी उपयुक्त हो सकता है।
    मुझे स्थूल रूपसे यह समझ आता है, कि, किसी भी दुर्घटना का कारण एक ही नहीं होता।वह एक ,भिन्न भिन्न क्रियाओंकी श्रृंखला या श्रेणी होती है। जिसकी दुरबल कडियोंको दुगुनी की जा सकती हैं। जैसे बडे विमानोमें दो चालक हुआ करते हैं।(एक यदि सो गया, तो दूसरा काम करे)इसलिए। यात्रियोंके जीवनसे खिलवाड नहीं होना चाहिए। “विषय” टीप्पणी नहीं लेखके लिए उपयुक्त है।
    आप रेल के विषयमें जानकार लगते हैं।(मैं कुछ प्रबंधन की दृष्टिसे लिख रहा था)फिर छोटी टिप्पणीमें स्पष्ट नहीं कर पाया। इस लिए स्थूल रूपसे लिखा था। अंग्रेजी का मॅन्युअल “एक भाग”, निश्चित है।यहां तक,मैं आपसे अलग मत नहीं रखता। इस लिए उसमें असहमत नहीं हूं। पर, मैं मानता हूं,कि,दुर्घटनाके (यात्रियोंकी सुरक्षाके) लिए, कोई अकेला कारण हो यह मुझे सही नहीं लगता। वैसे मैं आपही की भाँति हिंदी का दृढ प्रवक्ता हूं।विश्व मोहन तिवारी जी के लेखोंपर मैंने पर्याप्त दीर्घ टीप्पणीयां डाली हुयी है। मैं तो मानता हूं कि, भारतीय कृषक की गरीबीका कारण अंग्रेजी माध्यम की शिक्षा है।

  4. रेल दुर्घटनाओं के अनेक कारण हैं जिनमें से कुछ अब तक की टिप्पणियों में गिनाए गए हैं।
    निरंकुश जी केवल उस कारण की ओर ध्यानाकर्षित करना चाहते हैं जिस पर सामान्यतया ध्यान जाता ही नहीं।

    चूँकि दुर्घटनाओं की सीखें केवल अंगेज़ी में प्रकाशित होती हैं वे केवल अंग्रेज़ी समझ सकने वाले कर्मचारियों तक ही सीमित रहती हैं, अत: उनसीखों का विशेष प्रभाव नहीं पड़ पाता।
    और जैसा कि दुर्घटना की रिपोर्टें दर्शाती हैं दोष तो अंग्रेज़ी जानने वाले अफ़सरों का नहीं वरन अंग्रेज़ी न जानने वालों का होता है, अत: वे बिना सीखे कर्मचारी अनेक कारणों से दुर्घटनाएं करते रह्ते हैं। निरंकुश जी का इंगित इसी ओर था।

    यह सत्य सारे प्रजातंत्र की कार्यप्रणाली पर भी कमोबेश लगता है, हमारे चारित्रिक पतन पर भी लगता है। इस विषय पर अधिक जानकारी के लिये कृपया देखें मेरे ५ या ६ लेख जो इसी साइट पर प्रकाशित हैं।

  5. आपने टिप्पणी की इसके लिये आभार, लेकिन पूरा लेख पढ़े एवं समझे बिना तथा विषय की तकनीकी जानकारी के बिना टिप्पणी नहीं करनी चाहिए!
    -डॉ. पुरुषोत्तम मीणा ‘निरंकुश’

  6. ==== ***एक परीक्षक ट्रॉली दौडाकर चेक करना संभव हो सकता है।***==
    == ****और,रेल का बहुत लेट चलना बंद हो तो इस पर आप ही आप, बहुत कुछ अंतर (फर्क) आ सकता है। क्यों कि, रेल कर्मचारी, आदतसे काम करते हैं।***====

    आज का रेल प्रबंधन, एक चैन ऑफ कमांडसे (जैसे एक ऑर्केस्ट्रा)चलता है। इस में हर छोटे से छोटे पहलु की सावधानी, दक्षता, परिपूर्णता, सफलतामें योगदान देता है। जैसे सिग्नल गिराना, पटरियां बदलवाना, रेल चालक की सावधानी, ब्रेक संचालन, समयकी पाबंदी, स्टेशन की देखरेख, और नियमों का पठन ।आतंकी पटरियोंके जोड (जो हर ४२ फ़ीट पर होते हैं)भी ढीले कर देता है। ढीला पन दूरसे दिखाई नहीं देता, फिर अंधेरा भी हो सकता हैं।और,जब, रेल लेट चलती है, तो सारा गडबड हो जाता है। सारे के सारे पहलु पर ध्यान देना और मिलों फैली हुयी पटरियोंपर निगरानी कैसे हो? एक परीक्षक ट्रॉली से चेक करना संभव हो सकता है।सुरक्षामें(Factor of Safety) स्तर होते हैं,सारे के सारे स्तर कैसे फैल हो गए?==== रेल का बहुत लेट चलना बंद हो तो इस पर बहुत कुछ अंतर (फर्क) आ सकता है। कर्मचारी आदतसे काम करते हैं।=====

  7. रेल दुर्घटनाओं में ममता दीदी अर्थात रेल मंत्री का कोई कसूर नहीं ..देश में भयानक महंगाई है इसमें केंद्र सरकार का कोई कसूर नहीं .सभी सरकारी विभागों में रिश्वतखोरी मक्कारी तथा लेटलतीफी बेशुमार है.इसमें भी शाशन -प्रशासन का कोई उत्तरदायित्व नहीं .पाक प्रशिक्षित आतंकी भारत में कुहराम मचा रहे हैं .इसमें पाकिस्तान या आए एस आई का कोई हाथ नहीं .सभी दुर्घटनाओं .आपदाओं बदहालियों के लिए हम स्वयम जिम्मेदार हैं .क्यूंकि हम में से अधिकांश को पर छिद्रान्वेषण का सिंड्रोम व्याप्त है अतः जन मानस को मरणासन्न व्यवस्था के खिलाफ विराट एक ता बद्ध संघर्ष हेतु प्रेरित करने के वजाय व्यक्तियों पर दोषारोपण कर कर्तव्य की इतिश्री कर देते हैं .

  8. आप की बात बिल्कुल नहीं जमीं।भला कोई रैल चालक गाडी चलाते सो जाये या शराब के नशे में हो तो इसमे भला अधीकारीयों की क्या गलती??हिन्दी वाली बात तो बिल्कुल बकवास है,सिग्नल हिन्दी या इन्गलिश में नही होता है।जितने भी दुर्गटनायें हुवी है वो मानवीय भुलों के कारन हुवी है ना की तकनीक कमजोर होने के कारन,इसमें सबसे ज्यदा रोल चालक,सिग्नल देने वाले,गार्ड आदी का है ना की किसी अफ़सर या मन्त्री का।जातीवाद व आर्क्शन के चलते अकुशल व कम योग्य ज्यादा योग्यता वाले काम करने लगें है,जिसमें दुर्गतनायें होना स्वाभावीक है,अत: सही प्रकार से प्रक्शिक्क्ण देकर,उचीत एवम योग्य वक्तीयों को लगाना चाहीये और सभी कई टेर्निन्ग बहुत अच्छी होनी चाहीये,तथा रैल्वय को अत्याधुनीक तकनीक भी अपनानी चाहीये।

    • ऐसे लोगों की टिपण्णी पढ़कर आश्चर्य होता है, इनको न तो विषय का ज्ञान है न ही जानना चाहते है! कुछ भी लिख देते है?

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