प्रधानमंत्री नामक नाटक अपने दुखान्त की ओर

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– डा० कुलदीप चन्द अग्निहोत्री

 

सोनिया कांग्रेस इस देश में अपनी सरकार चला रही है । इस पार्टी की अध्यक्षा श्रीमती सोनिया गान्धी और उपाध्यक्ष उनके सुपुत्र राहुल गान्धी हैं । सरकार के प्रधानमंत्री फ़िलहाल मनमोहन सिंह हैं । मनमोहन सिंह की सहायता के लिये या फिर उनकी घेराबन्दी करने के लिये एक कैबिनेट भी है । इस कैबिनेट में भी अधिकांश सदस्य सोनिया कांग्रेस से ही ताल्लुक रखते हैं । सोनिया कांग्रेस द्वारा इस देश में पिछले दस साल से जो प्रधानमंत्री नामक नाटक खेला जा रहा है , उस नाटक के यही मुख्य पात्र हैं । नाटक की इस पूरी पटकथा में प्रधानमंत्री की भूमिका में डा० मनमोहन सिंह हैं ।इस लिहाज़ से वही नाटक के नायक के रुप में जाने जाते हैं । वैसे सोनिया गान्धी नाटक के शुरु में ही स्वयं नायक की भूमिका में रहना चाहतीं थीं , लेकिन क्योंकि वे मूल रुप से विदेशी हैं और इटली से एक विवाह सम्बध द्वारा इस देश में आईं हैं , अत: भारतीय सांविधानिक नाट्यशास्त्रियों ने व्यवस्था दी कि वे इस नाटक में प्रधानमंत्री की भूमिका नहीं निभा सकतीं । अत: बहुत जल्दी में मनमोहन सिंह को यह भूमिका दी गई ।

चाहे नाटक वही था , लेकिन नायक के रुप में नये व्यक्ति के आ जाने से पटकथा लेखक को मूल स्क्रिपट में आमूल परिवर्तन करने के लिये कहा गया । नाटक में एक नई भूमिका एवं नये पात्र को डाला गया । यह नई भूमिका राष्ट्रीय सलाहकार परिषद के अध्यक्ष की थी । नाटक में यह नई भूमिका सोनिया गान्धी को दी गई । ज़ाहिर है नाटक में इस नई भूमिका एवं नये पात्र के आ जाने से नाटक की पटकथा में परिवर्तन होता । नाटक की पहली पटकथा में तो प्रधानमंत्री नामक पात्र की भूमिका सबसे जानदार थी , लेकिन अब नई पटकथा में राष्ट्रीय सलाहकार परिषद की अध्यक्षा की भूमिका जानदार बना दी गई । व्यवहारिक रुप से प्रधानमंत्री की सारी भूमिका इस नये पात्र को दे दी गई । और प्रधानमंत्री के नये संवाद अर्थहीन ,दिशाहीन लिखे गये और पूरे नाटक में नायक की भूमिका में होने के बाबजूद उसकी भूमिका को दीन हीन बना दिया । रंगमंच पर इस नायक को देख कर दर्शकों को पहले पहल तरस आता था , फिर ग़ुस्सा आने लगा और अब मामला हास्य संचार तक पहुँच गया । उधर पटकथा लेखक अपनी पीठ ठोकने लगे । नाटक में एक ही पात्र नाट्य शास्त्र के सभी रसों की निष्पत्ति एक साथ कर रहा था ।

भारतीय रंगमंच पर यह नाटक पिछले दस साल से चल रहा है । लेकिन लगता है अब इस नाटक का पटाक्षेप होने वाला है । शायद इसीलिये नाटक की पटकथा और अंकों में इतनी जल्दी परिवर्तन किये जा रहे हैं कि दर्शकों के लिये कथा में तारतम्य बिठाना मुश्किल होता जा रहा है । दो उदाहरण पर्याप्त होंगे । पिछले दिनों उच्चतम न्यायालय ने निर्णय दिया कि जिन लोगों को तीन या उससे ज़्यादा साल की सजा किसी आपराधिक मामले में हो जायेगी , उनकी संसद सदस्यता या विधानमंडल की सदस्यता समाप्त हो जायेगी । यह इस नाटक के रंगमंच पर अचानक हुआ धमाका था जिसकी किसी ने कल्पना तक न की थी । लेकिन जल्दी ही इस से नाटक चला रही कम्पनी सोनिया कांग्रेस के अनेक सदस्यों के बाहर हो जाने का ख़तरा पैदा हो गया । राजवंश में हड़कम्प मच गया । कल कहीं राजवंश का ही कोई जन पकड़ में आ गया तो ? सारा खेला बिगड़ रहा था । क्या कोई इस बात से इंकार करेगा कि आगे की कथा राजमहल के भीतर माँ सोनिया गान्धी और बेटे राहुल गान्धी ने ही लिखी होगी ? आख़िर रंगमंच पर हुये इस धमाके से जिनके आहत होने की संभावना बढ़ गई थी , उनको बचाने का प्रश्न था । उनको खरोंच तक न आये , इसकी व्यवस्था करनी थी । यह व्यवस्था राजमहल ही कर सकता था , क्योंकि वहीं पिछले दस साल से इस नाटक के नये अंक का प्रदर्शन होने से पहले रिहर्सल होती रही है । नया अंक तैयार हो गया था । इस अंक में भाग लेने वाले सभी पात्रों को उनके संवाद बता दिये गये थे । नये सिरे से रंगमंच सजाया गया । पर्दा उठा । कैबिनेट की बैठक चल रही है । प्रधानमंत्री ने नया अध्यादेश पढ़ कर सुना दिया । इसके अनुसार अब किसी आपराधिक मामले में सजा हो जाने के बाद भी राजनैतिक कम्पनियों के अंशधारकों का बाल बाँका नहीं होगा । कैबिनेट में सभी ने प्रधानमंत्री के संवाद पर तालियाँ बजा कर उसका समर्थन किया । अध्यादेश राष्ट्रपति के पास भेज दिया गया । उधर माँ बेटे ने इस अंक के सफलता पूर्वक निष्पादित हो जाने पर अपनी प्रबन्धकीय योग्यता पर स्वयं को ही बधाई दी । राजमहल के आगे बैसे भी दरबारी आने लगे थे ।

नाटक का अगला अंक सुदूर वाशिंगटन में खेला जाने वाला था । वहाँ नाटक के नायक मनमोहन सिंह को अमेरिका के राष्ट्रपति बराक ओबामा और पाकिस्तान के प्रधानमंत्री नबाज शरीफ़ के साथ रुआबदार आवाज़ में सख़्त संवाद बोलने थे । अंक की गंभीरता को देखते हुये पटकथा लेखक ने भी नायक के लिये इसी प्रकार के संवादों की रचना कर दी थी । नायक ने भी अंक को प्रभावी बनाने के लिये ज़ोरदार रिहर्सल कर रखी थी । आख़िर यह भारत की प्रतिष्ठा का सवाल था । कहीं भी चूक हो गई तो देश की भद्द पिटेगी । वाशिंगटन में रंगमंच सज गया । नायक मनमोहन सिंह भी जान तोड़ रिहर्सल के बाद एक झपकी ले रहे थे । पर्दा उठा ।

लेकिन यह क्या ? नाटक कम्पनी ने इधर दिल्ली में भी इसी नाटक का एक नया अंक खेलने के लिये रंगमंच सजा दिया । दर्शकों में हड़कम्प मचा । उनको कुछ समझ नहीं आ रहा था । एक ही नाटक के एक साथ दो अंक कैसे खेले जा सकते हैं ? वह भी दो अलग अलग स्थानों पर । फिर नाटक का नायक तो वाशिंगटन में पहले ही रंगमंच पर पहुँच चुका है । दिल्ली में आख़िर रंगमंच सजाया ही क्यों जा रहा है ? दर्शक दरबारी सब गिरते पड़ते दर्शक दीर्घा की ओर आ रहे थे । सब की साँस अटकी हुई थी । अभी भी कुछ को विश्वास था , किसी ने मज़ाक़ किया होगा । बिना नायक के खेला कैसे होगा भाई ? नायक की ग़ैरहाजिरी में खेला तो नायक की पीठ में छुरा घोंपना होगा । सभी को पर्दा उठने का इंतज़ार था । पर्दा उठा । मंच पर आस्तीन चढ़ाते हुये ग़ुस्से में युवराज राहुल गान्धी नमूदार हुये । दर्शक समझ गये । अब की बार कोई बडा खेला होने वाला है । तब तक राहुल गान्धी ने गर्जना शुरु कर दिया था । यह जो अध्यादेश है यह बकवास है । दर्शक हैरान हैं । कौन सा अध्यादेश भाई ? अरे वही जिसे मनमोहन सिंह ने माँ बेटे के कहने पर राष्ट्रपति के पास भेजा है । नाटक के पिछले अंक नहीं देखे का ? राहुल गान्धी यहीं नहीं रुके । यह अध्यादेश फाड़ कर बाहर फेंक देना चाहिये । उन्होंने एक बार फिर आस्तीन चढ़ाते हुये गंभीर और चिन्तक होने का असफल अभिनय किया । विदूषक ने घोषणा की । आज का खेला यहीं समाप्त होता है । अब आप वाशिंगटन में होने वाले खेला को आराम से देख सकते हो । लेकिन वहाँ के खेला में देखने लायक बचा ही क्या था ?

रंगमंच सजा रहे स्टाफ़ ने दिल्ली में खेले गये इस अंक की आँखों देखी झपकी ले रहे मनमोहन सिंह को जगा कर सुना दी । बेचारे मनमोहन सिंह ! अब वे ओबामा और नवाज़ शरीफ़ से कैसे ताक़त से बात कर सकेंगे । वाशिंगटन में चिमगोईंयां हो रही हैं । भारत में खेले जा रहे प्रधानमंत्री नाम के इस नाटक का असली नायक कौन है ? वैसे भी अमेरिका नक़ली नायकों से बात नहीं करता , वह सीधा असली नायक से ही बतियाता है ? पाकिस्तान में वह वहाँ के प्रधानमंत्री राष्ट्रपति को घास नहीं डालता , सीधा सेना से ही बात कर लेता है ।

आख़िर सवाल यह है कि माँ बेटे ने नाटक के भीतर यह नया नाटक क्यों किया , जिससे विदेशों में भारत के प्रधानमंत्री का अपमान हुआ । यह तो सभी जानते हैं कि दस साल से चल रहे इस नाटक

का शीघ्र ही पटाक्षेप होने वाला है । भारतीय नाट्यशास्त्र में नाटक का अंत सुखान्त होना चाहिये । यह यहाँ की परम्परा रही है । लेकिन यूरोप में हर नाटक का अन्त दुखान्त होता है । विद्वान लोग इटली के मैकयावली की किताबें उलट पुलट रहे हैं । शायद माँ बेटे के व्यवहार का रहस्य वहीं से समझ में आ जाये । यह ठीक है कि माँ बेटा मिल कर इस नाटक का संचालन कर रहे हैं , लेकिन फिर भी उन्हें भारत के प्रधानमंत्री का इस प्रकार अपमान करने का अधिकार तो नहीं हैं । उस प्रधानमंत्री का जिसने आज तक लिख कर दिये गये संवादों के अतिरिक्त एक शब्द भी अपनी ओर से नहीं बोला । कहीं ऐसा तो नहीं कि हम समझते रहें कि नाटक की सूत्रधार सोनिया गान्धीं हैं , लेकिन असली सूत्रधार कोई और ही निकले ? पर्दे के पीछे का सूत्रधार । भारत को अपमानित करने के पीछे कोई बडा कारण तो ज़रुर रहा होगा । नहीं तो आस्तीन चढ़ा कर संवाद बोलने का अभिनय राहुल गान्धी चार दिन बाद मनमोहन सिंह के देश परत आने के बाद भी कर सकते थे । लगता है भीतर ही भीतर कोई बडा खेला हो े वाला है ।

3 COMMENTS

  1. बडे बेआबरू होके तेरे कूचे से निकलेंगे।
    तब तक “मन्नु सिंघवी” जमें रहेंगे।
    अभी तैरती है, खाट, पानी पर, बाढ के।
    शांत रहो ! सो लेने दो।
    डूबेगी खाट, -तब सोचेंगे।
    हम बेआबरु होकर ही निकलेंगे॥१॥
    ———
    सारे चूहे डूबते पोत (ये पोत है) को,
    भागते दिखाई नहीं देते,
    तब तक “यारो माफ करो”
    “हम नशे में हैं”-
    कृपया –“सो लेने दो”।॥२॥
    ————
    जैसे, दिया त्यागपत्र ?
    फँसे हजारों घोटालों में।
    सी बी आय़, पैंतरा बदल देगी।
    दिग्गी-की, हो जाएगा फुदकी॥३॥
    —————-
    तो, परदेस, प्रबंध कर लेंगे।
    दक्षिण अमरिका के बनाना,और,
    राहुल के भावी श्वशुर, कब काम आवेंगे?
    और, दूसरा पास पोर्ट?
    शऽऽऽऽ शऽऽऽऽ श
    कब काम आवेगा?॥४॥

    सम्पर्क नंबर नहीं लिखा जा सकता।

  2. पेज सँवारने के लिए धन्यवाद

    आपके लेखों को मैं सदा पढ़ता हूँ. माँ-बेटे का ऐसा गठबंधन भारत
    के इतिहास में अभूतपूर्व है.

  3. अग्निहोत्रीजी

    आप अपने लेखों को प्रवक्ता में डालने के पहले फॉर्मेट करें.
    उदाहरण के लिए iss लेख की पन्तियाँ 5 से अधिक पृष्ठों से भी लम्बी
    हैं, तथा महज ६ पंक्तियों में हैं. इस प्रकार फॉर्मेट करें क़ि पंक्ति
    पेज से अधिक चौड़ी न हो .

    ek पाठक

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