बचपन की शाम
बचपन की हर शाम
होती थी हमारे नाम
स्कूल से छुट्टी पाकर
आँगन में शोर गुल
हल्ला मचाकर
किसी और की न मिले
तो अपने कपड़े फाड़कर
कुछ उपहास के साथ
कोई टूटी फूटी गीत गाकर
हर शाम बीतता था
शोर गुल हल्ला मचा कर
किसी की कलम चोरी
करके लाये होते ,
मन ही मन मुस्कुराते
उसे देखते छुपाकर,
जब भी मौका मिलाता
किसी न किसी दोस्त के संग
टहके लगाते हाथ पैर
तालियाँ बजाकर ,
हर शाम बीतता था
शोर गुल हल्ला मचा कर
राकेश कुमार पटेल