उत्तर प्रदेश की समाजवादी सरकार की नाकामयाबियां, विवाद एव फज़ीहतें

डा.राधेश्याम द्विवेदी

उत्तर प्रदेश में बहुजन समाज पार्टी के दो कार्यकालों को पूरा कर लेने के बाद समाजवादी पार्टी के युवा नेता मा. अखिलेश यादव के अथक प्रचार तथा इसी पार्टी के तीन बार मुख्य मंत्री रहे धरती पुत्र मा. मुलायम सिंह यादव के पुराने कार्यों पर यकीन करते हुए प्रदेश की जनता ने मार्च 2012 में 224 सीटों का विशाल बहुमत देकर सत्तासीन किया था। सर्व प्रथम इस सरकार ने अपने करीबियो तथा खास लोगों को वोट बैंक के लिहाज से कन्या विद्या धन तथा बेरोजगार भत्ता देना शुरू किया। इसके बाद अपने खास आदमियों को विभिन्न विभागों एवं निगमों में राज्यमंत्री का मानद पद बांटना शुरू कर दिया । पुलिस लेखपाल , शिक्षामित्र आदि अनेक तरह के विवदित तथा पक्षपात पूर्ण भर्तियां की जाने लगी। कानून व्यवस्था के मामले में इस पार्टी पर हमेशा उंगली उठती रही है । विरोधी भाजपा तथा बसपा इसे गुण्डा राज कहने से चूकते नहीं हैं।

इस पार्टी के शासन में अराजकता तथा अफरा तफरी का माहौल उत्पन्न हो जाता है। जनता को किये गये कुछ वादे पूरे तो कुछ अधूरे ही रह गये हैं। नेता जन उल्टा सीधा बयान देकर भ्रमित करते रहे हैं। दागियों को महिमा मंडित किया जाने लगा है। रेवड़ियां बंटने लगी हैं। सुरक्षा एजेसियों द्वारा पकड़े गये आतंकवादियों तथा माफियाओं को जेलों से मुक्त किया जाने लगा है। हजारो एवं करोड़ों के भ्रष्टाचार में आरोपित यादव सिंह जैसे अन्यानेक के कृत्यों की जांच रोकने के लिए सरकारी मशीनरी का दुरूप्योग किया जाने लगा है। अनिल यादव जैसे अपने व्यक्तिगत प्रभाव वाले लोगों को राज्य लोक सेवा आयोग का अध्यक्ष , देवकी नन्दन जैसे  लोग को माध्यमिक शिक्षा सेवा आयोग का अध्यक्ष बनाया गया है। इनके पक्षपात पूर्ण निर्णयों की न केवल आलेचना हुई है अपितु सरकार की पूरी किरकिरी भी हुई है। अमरमणि तथा राजा भैया जैसे लोगों को तरह तरह सुविधायें दी जाने लगीा है। न्यायालयों को वेवकूफ बनाने तथा बरगलाने के प्रयास किये जाने लगे हैं। लखनऊ,  इलाहाबाद के उच्च न्यायालयों  तथा माननीय उच्चतम न्यायालय को बार बार हस्तक्षेप करना पड़ा है। फटकार भी लगी और उससे कोइ्  नसीहत भी नहीं मानी गई है। देश के मंहगे एवं नामी गिरामी वकील जैसे ंश्री रामजेठ मलानी तथा कपिल सिब्बल आदि को लगाकर केसों की पैरवियां हुई है। बार बार सरकार को माननीय कोर्टो द्वारा लताड़ा गया है। पूरे देश में इस राज्य की सरकार की जग हंसाई होने लगी है।

भारत सरकार ने यहां राज्यपाल के रूप में माननीय श्री रामनायकजी को नियुक्त कर राज्य सरकार की मनमानी करने पर विराम लगाने का प्रयास किया है। सरकार के मंत्री आजमखां तथा शिवपाल यादव जैसे लोगों ने राज्यपाल महोदय के कार्यों का खुल्लमखुल्ला आलोचना करते रहे हैं। ना तो माननीय मुख्य मंत्री जी और ना ही राष्ट्रीय अध्यक्ष मानीय नेता जी ने इस शिष्टाचार के बारे में बयान दिये और नाही अपने नेताओं को मना करने का प्रयास ही किये। एमएलसी के मनोनयन मे सरकार अपने खास व्यक्तियों को यह पद देने की योजना बना रखी थी । माननीय राज्यपाल जी ने इसका परीक्षण किये तथा इस प्रस्ताव को कई बार राज्य सरकार को वापस कर दिये। राज्यपाल जी को संविधान के प्राविधानों के अनुरूप राज्य चलाने में अनेक बार व्यवधान डालने का प्रयास किया जाने लगा। लोकायुक्त के चयन मे संवौधानिक प्रक्रियों को इस सरकार ने पालन करना उचित नहीं समक्षा तथा कानून बदलने का प्रयास भी किया गया। इन नामों को संविधान के अनुकूल ना पाने के कारण माननीय राज्यपाल द्वारा इसे 5 बार वापस राज्य सरकार को वापस किया गया। अन्ततः राज्य सरकार राज्यपाल राज्य उच्च न्यायालय तथा नेता विपक्ष के मतो में एकरूपता ना ला पाने पर माननीय सर्वोच्च न्यायालय को हस्तक्षेप करके संविधान के अनुक्ष्छेद 142 का प्रयोग करते हुए लोकायुक्त की नियुक्त करना पड़ा है। देश के इतिहास में इसे संवैधानिक असफलता करार करते हुए न्यायलयीय हस्तक्षेप माना गया है। भाजपा जैसे विरोधी पार्टी इस सरकार को बरखास्त करने की मांग भी करने लगे हैं। इस सरकार ने जिन विवादित मुद्दों पर मात खाई है और न्यायालयों में इसकी किरकिरी हुई है उनमें कुछ का आगे उल्लेख किया जाना सम सामयिक है।

मुजफ्फरनगर दंगा :-. सरकार की किरकिरी की शुरुआत मुजफ्फरनगर दंगों को लेकर हुई । सुप्रीम कोर्ट ने दंगों के मामले में सरकार को खूब आड़े हाथों लिया है। राजनैतिक दृष्टिकोण से भी सरकार के लिए इस मामले में सुप्रीम कोर्ट की टिप्पिणयां खूब भारी पड़ीं और उसका खामियाजा लोकसभा चुनावों में उठाना पड़ा।

यादव सिंह :-   हजार करोड़ से भी ज्यादा के भ्रष्टाचार के आरोपित नोएडा प्राधिकरण के चीफ इंजीनियर यादव सिंह को सीबीआई जांच से बचाने के लिए सरकार जिस हद तक गई उससे वह एक्सपोज हो गई। यादव सिंह को बचाने की सरकार की व्याकुलता देखकर सुप्रीम कोर्ट ने भी टिप्पणी की आखिर सरकार सीबीआई जांच रुकवाने के लिए इतनी परेशान क्यों है?  सुप्रीम कोर्ट ने हाईकोर्ट के फैसले को सही ठहराते हुए जांच जारी रखने को कहा। हाईकोर्ट ने भी वर्तमान सपा सरकार और बीएसपी सरकार पर टिप्पणी करते हुए कहा था कि सरकार के संरक्षण के बिना यादव सिंह इतना बड़ा भ्रष्टाचार नहीं कर सकता है।

आतंकियों की रिहाई :-   आतंकी मामलों में फंसे आरोपियों पर मुकदमे वापस लेने पर भी सपा सरकार कोर्ट में घिरी। हाई कोर्ट ने न केवल तीन साल में वापस किए गए मुकदमों की सूची मांग ली बल्कि कह दिया कि आज मुकदमा वापस ले रहे हैं कल आप पदमश्री देंगे। हालांकि इस मामले में जरूर सुप्रीम कोर्ट से सरकार को राहत मिली है।

 

मनरेगा घोटाला :-  मनरेगा घोटाले की सीबीआई जांच रोकने के लिए भी सरकार ने पूरा दम लगाया। लेकिन हाई कोर्ट और सुप्रीम कोर्ट दोनों जगह सरकार को मुंह की खानी पड़ी। हाई कोर्ट ने सीबीआई जांच के आदेश दिए और सुप्रीम कोर्ट ने उसे बरकरार रखा।

आयोग के अध्यक्ष :-   उत्तर प्रदेश लोक सेवा आयोगए माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड और उच्चतर शिक्षा आयोग के अध्यक्ष व सदस्यों की नियम विरुद्ध नियुक्तियों को लेकर भी सरकार की खूब किरकिरी हुई। सरकार ने नियमों को अनदेखा कर मनमर्जी से अपने करीबियों को इन कुर्सियों पर बैठा दिया। हाई कोर्ट की सख्ती के बाद यूपी लोक सेवा आयोग के अध्यक्ष अनिल यादव,   उच्चतर शिक्षा सेवा आयोग के अध्यक्ष लाल बिहारी पाण्डेय व तीन सदस्यों और माध्यमिक शिक्षा सेवा चयन बोर्ड के सनिल कुमार की नियुक्ति को अवैध करार देते हुए हटवा दिया।

शिक्षक भर्ती :-  माया सरकार के दौर में शुरू हुई 72 हजार से अधिक प्राइमरी टीचरों की भर्ती में भी सपा सरकार की जमकर किरकरी हुई। टीईटी की मेरिट के बजाय सरकार ने अकेडमिक रेकॉर्ड पर भर्ती के लिए दोबारा आवेदन मंगाए। हाई कोर्ट ने इस पर रोक लगाई तो सरकार सुप्रीम कोर्ट गई। वहां भी मुंह की खानी पड़ी और सुप्रीम कोर्ट ने हाई कोर्ट के फैसले को सही ठहराया।

शिक्षामित्रों का समायोजन :-  चुनावी घोषणापत्र के अहम वादे शिक्षामित्रों के समायोजन पर भी सरकार कोर्ट में फंस गई है। 1.92  लाख शिक्षामित्रों के समायोजन पर सुप्रीम कोर्ट ने रोक लगाते हुए सरकार से पूछा है कि बिना टीईटी पास कैसे शिक्षक बना दिया ?

खनन :-  हाई कोर्ट ने पूरे प्रदेश में खनन पर रोक लगा दी थी। इस दौरान हाई कोर्ट ने सरकार पर टिप्पणी करते हुए कहा कि तमान कानूनों के बावजूद यूपी में अवैध खनन की खबरों से साफ है कि सरकार इसे रोकने के लिए कोई कदम नहीं उठा रही है। खनन को लेकर यूपी में माफिया,  अफसरों और ठेकेदारों का पूरा नेक्सस काम कर रहा है। हाई कोर्ट की इस टिप्पणी के बाद सरकार के विवादित खनन मंत्री गायत्री प्रजापति सहित पूरी सरकार विपक्ष के निशाने पर है।

विजय शंकर पाण्डेय केस :  केंद्रीय प्रतिनियुक्ति पर जाने के लिए विजय शंकर पाण्डेय को यूपी सरकार ने अनुमति नहीं दी। पांडेय को हाई कोर्ट से राहत मिली लेकिन सरकार ने आदेश नहीं माना। पाण्डेय सुप्रीम कोर्ट गए तो सरकार पर 5 लाख जुर्माना भी लगा और उससे जवाब भी मांगा गया है।

पुलिस.नेता गठजोड़ :-  गैंगरेप के मामले में सुनवाई करते हुए हाई कोर्ट ने कहा कि पुलिस दोधारी तलवार की तरह अधिक खतरनाक हो गई है। आज लोगों को अपराधियों से ज्यादा पुलिस से लड़ना पड़ रहा है। राजनेता ,  अपराधी और पुलिस गठजोड़ आम लोगों को परेशान कर रहा है। राज्य सरकार और गृह विभाग में उच्च पदों पर बैठे अधिकारी नींद से जागें और प्रभावी पुलिस बनाने के लिए कदम उठाएं।

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