भाजपा की राष्ट्रीय बैठक में मध्यप्रदेश की कृषि नीति

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डॉ. मयंक चतुर्वेदी

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की बैठक में पार्टी की संपूर्ण दृष्टि तो उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों में होने जा रहे विधानसभा चुनावों पर थी, किंतु इस सब के बीच मध्यप्रदेश की कृषि नीति को यहाँ सभी ने छाए हुए देखा। प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी, भाजपा के राष्ट्रीय अध्यक्ष अमित शाह और दूसरे बड़े नेताओं ने अपनी सभी बातों में चुनाव को प्रमुखता से रखा लेकिन इन सभी के बीच भाजपा शासित राज्यों के सभी मुख्यमंत्रियों में से सिर्फ मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान को मंच पर भाषण देने के लिए बुलाया गया और उनका यह भाषण कृषि नीति एवं व्यवस्था पर केंद्रित था। उन्होंने जो बात सभी के बीच रखी, वह थी कि सभी अपने-अपने राज्य में मध्यप्रदेश की तरह ही नीतियों एवं किसान हितैषी योजनाओं का निर्माण कर कैसे कृषि आय को दोगुना कर सकते हैं। केंद्र के लिए भी उनके पास तमाम सुझाव मौजूद थे।

भाजपा की राष्ट्रीय कार्यकारिणी की इस बैठक में कृषि की जिस तरह चर्चा की गई और मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री ने जैसे सभी के बीच इसे लेकर विषय रखा, उसे देखते हुए आज यह चर्चा खास हो गई है कि आखिर पाँच राज्यों के विधानसभा चुनावों के बीच प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की मौजूदगी में कृषि पर फोकस करते हुए लम्बी चर्चा करने के मायने क्या हो सकते हैं ? वस्तुत: बात यहाँ बिल्कुल साफ है। भाजपा के केंद्रिय नेतृत्व ने मध्यप्रदेश के माध्यम से अपने सभी प्रदेशों के मुख्यमंत्रियों एवं स्वयं केंद्र के पदाधिकारियों को यह संदेश देने का प्रयत्न किया है कि पार्टी की आगामी दृष्टि सिर्फ चुनावों में विजय पाने तक सीमित नहीं है, वह देश के किसानों के हित में प्रभावी काम करने पर भरोसा करती है। जिस तरह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान ने अपने विजन से सूबे में कृषि को लाभ का धंधा बनाने के लिए शासन में आते ही निरंतर प्रयास किए हैं, वैसे ही प्रयास सभी अपने-अपने स्थानों पर करें।

मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान से आगामी पांच साल में किसानों की आय को दोगुना करने का पूरा रोड़मैप यहां पार्टी के सामने रखा, जिसका सार यह था कि देश और प्रदेश की समृद्धि के लिये यह जरूरी है कि खेती-किसानी लाभप्रद हो। देश की बड़ी आबादी गाँवों में है और जो किसी न किसी रूप में कृषि कार्य से जुड़ी है। पहले मध्यप्रदेश में भी उत्पादन और लागत में बड़ा अंतर था। ऋण की ब्याज दर 13-14 प्रतिशत थी, बिजली नहीं थी और इस पर अगर प्राकृतिक आपदा आ गयी, तो किसान की तो कमर ही टूट जाती थी। खेती से जुड़े मजदूरों के सामने रोजी-रोटी की विकट समस्या हो जाती थी। इस सब के बीच सरकार ने तय किया कि हर हालत में खेती को लाभ का व्यवसाय बनाना है। सरकार ने इस दिशा में अपने प्रयास आरंभ किए जिसके परिणाम स्वरूप दस घंटे किसानों को बिजली मिलने लगी। सिंचाई रकबा साढ़े सात लाख हेक्टेयर से बढक़र 36 लाख हेक्टेयर क्षेत्र से अधिक पहुँच गया। किसानों को जीरो प्रतिशत ब्याज पर ऋण दिया गया। एक कदम आगे बढ़ते हुए यह निर्णय लिया गया एक लाख का ऋण लेने पर किसानों को 90 हजार ही लौटाने होंगे। यही नहीं प्राकृतिक आपदा आने पर किसानों को इतना मुआवजा मिले कि उसकी क्षतिपूर्ति हो सके, इस दिशा में ठोस कदम उठाये गये।

यह मध्यप्रदेश के मुख्यमंत्री शिवराज सिंह चौहान के प्रयासों का ही नतीजा है कि पिछले चार वर्ष से यह राज्य कृषि विकास दर के मामले में 18 प्रतिशत प्रतिवर्ष पर बना हुआ है। यह दर प्राप्त करने वाला मध्यप्रदेश देश का एकमात्र राज्य है। यही नहीं प्रदेश का सकल घरेलू उत्पाद, जो 10.5 प्रतिशत है, में कृषि का योगदान 5 प्रतिशत है, यह भी आज देश में सर्वाधिक है। कृषि उत्पादन में वृद्धि पर एक नजर डालें, तो मध्यप्रदेश का कुल कृषि उत्पादन जो कभी 2.14 करोड़ मीट्रिक टन था। आज दोगुना होकर 4.23 करोड़ मीट्रिक टन हो गया है। यह वृद्धि 97.66 प्रतिशत है।

खाद्यान्न उत्पादन में वृद्धि करते हुए प्रदेश 1.43 करोड़ मीट्रिक टन की तुलना में 3.46 करोड़ मीट्रिक टन तक पहुँच गया है। इसमें प्रतिवर्ष 12 प्रतिशत की बढ़ोत्तरी दर्ज की जा रही है जोकि शिवराज सिंह चौहान के मुख्यमंत्री बनने के बाद से वृद्धिदर में 142 प्रतिशत है। यह एक अप्रत्याशित उपलब्धि है। सम्पूर्ण खाद्यान्न उत्पादन में मध्यप्रदेश अब तीसरे स्थान पर है, गेहूँ उत्पादन में दूसरे स्थान पर है और मक्का में पाँचवें स्थान पर है।

इसी प्रकार दलहन फसलों के उत्पादन में भी मध्यप्रदेश ने 73.53 प्रतिशत वृद्धि हासिल की है। आज प्रदेश देश के कुल दलहन उत्पादन का 28 प्रतिशत उत्पादन कर रहा है। दलहन के बाद यदि तिलहन फसलों के उत्पादन में वृद्धि की बात की जाए तो यह वृद्धि 39.08 लाख मीट्रिक टन से बढक़र 57.69 लाख मीट्रिक टन हो गई है। प्रदेश का तिलहन उत्पादन में पूरे देश में 30 प्रतिशत का योगदान है। गेहूँ, धान, मक्का और सरसों की औसत उत्पादकता में भी रिकार्ड बढ़ोत्तरी भाजपा शासन के दौरान मध्यप्रदेश में हुई है। यह 18.21 क्विंटल प्रति हेक्टेयर गेहूँ की तुलना में बढक़र 31.31 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गई है। धान की औसत पैदावार भी 8.18 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से आगे 27.74 क्विंटल प्रति हेक्टेयर पर पहुँच गयी है जो अपने आप में एक मिसाल है। मक्का की पैदावार 14 क्विंटल प्रति हेक्टेयर से बढक़र 29.33 क्विंटल प्रति हेक्टेयर हो गयी है। सरसों की औसत पैदावार भी बढ़ी है। प्रति हेक्टेयर 9.54 क्विंटल सरसों अब 11.35 क्विंटल प्रति हेक्टेयर उत्पादित हो रही है।

सरकार के प्रयासों से प्रदेश के कृषि क्षेत्र में जो प्रगति हुई वह 1 करोड़ 92 लाख हेक्टेयर कृषि क्षेत्र से बढक़र 2 करोड़ 37 लाख हेक्टेयर पर पहुँच चुकी है। नहरों, कुंओं, तालाबों से की जाने वाली सिंचाई के क्षेत्रफल में भी अभूतपूर्व वृद्धि मध्यप्रदेश में दर्ज की गई। कभी जो सिंचित रकबा 40 लाख 31 हजार हेक्टेयर हुआ करता था, भाजपा का शासन आते ही यह प्रयास करने पर आज बढक़र 110 लाख हेक्टेयर हो गया है, जोकि दोगुना से भी अधिक है।

कृषि क्षेत्र में इतना सब होते हुए भी जो एक विशेष बड़ा कार्य हुआ है, वह जैविक खेती का विकास और प्रसार है। वर्तमान में यह राज्य पूरे देश का 40 प्रतिशत से अधिक जैविक खेती का उत्पादन करता है। आज मध्यप्रदेश में करीब दो लाख हेक्टेयर क्षेत्र में जैविक खेती की जा रही है। दुनिया का एक तिहाई जैविक कपास भी यहीं पैदा हो रहा है। प्रमाणीकृत बीजों की पैदावार में भी प्रदेश देश के अग्रणी राज्यों में शुमार है। यहां आज 40 लाख क्विंटल प्रमाणित बीज पैदा हो रहा है। इसके साथ ही सरकार ने अपना जिस पर बराबर ध्यान बनाए रखा है, वह है कृषि यंत्रों का विस्तार। मध्यप्रदेश में किसानों ने बड़े पैमाने पर कृषि यंत्रों को अपनाया है। यही कारण है कि प्रदेश में 87 हजार 143 ट्रेक्टर का पंजीयन हुआ है। इसके कारण फार्म पॉवर उपलब्धता जो कभी 0.80 किलोवॉट प्रति हेक्टेयर हुआ करती थी, वह बढक़र आज 1.85 किलोवॉट प्रति हेक्टेयर हो गयी है। धान की रोपाई में एसआरआई पद्धति का महत्वपूर्ण योगदान है। रिज एण्ड फरो पद्धति से सोयाबीन की बोनी का व्यापक प्रचार-प्रसार किया गया है। एक लाख सीडड्रिलों को रिज-फरो सीडड्रिल के अटेचमेंट 90 प्रतिशत अनुदान पर कृषकों को उपलब्ध करवाये गये हैं। इस पद्धति को किसान व्यापक रूप से अपना रहे हैं, जिसके अच्छे परिणाम प्राप्त हुए हैं।

मध्यप्रदेश ने प्रधानमंत्री के लक्ष्य 2022 तक किसानों की आय दोगुना करने के संकल्प को साकार करने के लिये देश में सबसे पहले रोड-मेप तैयार किया। खेती-किसानी पर आने वाली आपदा से पीडि़त किसानों को राहत देने में सरकार ने 11 हजार 262 करोड़ से अधिक की राशि वितरित की। यह एक इतिहास है। इससे प्रभावितों को न केवल राहत मिली, बल्कि वे आपदा का भी सामना कर पाये। सरकार ने अब तक हलधर योजना, कृषि शक्ति योजना, यंत्र-दूत, कस्टम हायरिंग सेंटर, बीमा योजना, मृदा स्वास्थ्य-कार्ड के जरिए भी कृषकों के हित में बहुत से कार्य जारी रखे हुए हैं, जिसका परिणाम यह है कि मध्यप्रदेश में लगातार कृषि रकबा बढ़ रहा है और किसानों की औसत आय में लगातार वृद्धि दर्ज की जा रही है। मध्यप्रदेश आज देश में ऐसा अकेला राज्य हो गया है जिसे लगातार चार बार कृषि कर्मण अवार्ड दिया गया है।

वास्तव में कृषि क्षेत्र को उन्नत बनाने, उत्पादन बढ़ाने के जो प्रयास मध्यप्रदेश सरकार ने किये हैं, यदि वे अन्य राज्य भी अपना लें तो वह दिन दूर नहीं जब देश कृषि विकास दर में दुनिया के अन्य देशों के बीच सबसे आगे खड़ा हो जाए। दालों से लेकर समय-समय पर विदेशों से जो अनाज एवं खाद्यान्न भारत सरकार को विदेशों से मंगवाना पड़ता है निश्चित ही मध्यप्रदेश से प्रेरणा लेकर यदि दूसरे राज्य भी अपने यहां कृषि मॉडल विकसित करें तो वे दिन शीघ्र आ जाएंगे जब भारत को अपने भोजन के लिए किसी अन्य देश पर किसी तरह से भी निर्भर नहीं रहना पड़ेगा।

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