दायित्व याद दिलाता गंगा दशहरा

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12 जून – गंगा दशहरा विशेष  
लेखक: अरुण तिवारी

ज्येष्ठ मास, शुक्ल पक्ष, तिथि दशमी, हस्त नक्षत्र, दिन मंगलवार। बिंदुसर के तट पर राजा भगीरथ का तप सफल हुआ। पृथ्वी पर गंगा अवतरित हुई। ”ग अव्ययं गमयति इति गंगा” अर्थात जो स्वर्ग ले जाये, वह गंगा है। पृथ्वी पर आते ही सबको सुखी, समृद्व व शीतल कर दुखों से मुक्त करने के लिए सभी दिशाओं में विभक्त होकर सागर में जाकर पुनः जा मिलने को तत्पर एक विलक्षण अमृतप्रवाह! जो धारा अयोध्या के राजा सगर के शापित पुत्रों को पु़नर्जीवित करने राजा दिलीप के पुत्र, अंशुमान के पौत्र और श्रुत के पिता राजा भगीरथ के पीछे चली, वह भागीरथी के नाम से प्रतिष्ठित हुई। भगीरथ का संकल्प फलीभूत हुआ। कई सखियों के मिलन के बाद देवप्रयाग से नया अद्भुत नाम मिला – गंगा!

इसी गंगा नाम की प्रतिष्ठा को सामने रखकर मैं दावे के साथ कह सकता हूं कि जैसी मां गंगा है, वैसी दुनिया में कोई और नहीं। यह दुनिया की एकमात्र ऐसी मां है, जिसे धरा पर उतारकर एक इंसान ने स्वयं को उसकी संतान कहलाने योग्य साबित किया। भारत में भी ऐसी कोई दूसरी नदी या मां हो, तो बताइये ? 
मैं अक्सर सोचा करता हूं कि आखिर गंगा के ममत्व में कोई तो बात है, कि कांवरिये गंगा को अपने कंधों पर सवार कर वहां भी ले जाते हैं, जहां गंगा का कोई प्रवाह नहीं जाता। ”मैं तोहका सुमिरौं गंगा माई..” और ”गंगा मैया तोहका पियरी चढइबै..” जैसे गीत गंगा के मातृत्व के प्रति लोकास्था के गवाह हैं ही। ”अल्लाह मोरे अइहैं, मुहम्मद मोरे अइहैं। आगे गंगा थामली, यमुना हिलोरे लेयं। बीच मा खङी बीवी फातिमा, उम्मत बलैया लेय…….दूल्हा बने रसूल।” – इन पंक्तियों को पढ़कर भला कौन नकार सकता है कि गंगा के ममत्व का महत्व सिर्फ हिंदुओं के लिए नहीं, समूचे भारत के लिए है ?

गंगा का एक परिचय वराह पुराण में उल्लिखित शिव की उपपत्नी और स्कन्द कार्तिकेय की माता के रूप में है। दूसरा परिचय राजा शान्तनु की पत्नी और एक ऐसी मां के रूप में है, जिसने पूर्व कर्मों के कारण शापित अपने पुत्रों को तारने के लिए आठ में सात को जन्म देने के बाद तुरंत खुद ही मार दिया। पिता राजा शान्तनु के मोह और पूर्व जन्म के शाप के कारण जीवित बचे आठवें पुत्र को आज हम गंगादत्त, गांगेय, देवव्रत, भीष्म के नाम से जानते हैं। वाल्मीकिकृत गंगाष्टम्, स्कन्दपुराण, विष्णु पुराण, ब्रह्मपुराण, अग्नि पुराण, भागवत पुराण, वेद, गंगा स्तुति, गंगा चालीसा, गंगा आरती और रामचरितमानस से लेकर जगन्नाथ की गंगालहरी तक…. मैने जहां भी खंगाला, गंगा का उल्लेख उन्ही गुणों के साथ मिला, वे सिर्फ एक मां में ही संभव हैं; किसी अन्य में नहीं। त्याग और ममत्व ! सिर्फ देना ही देना, लेने की कोई अपेक्षा नहीं। शायद इसीलिए मां को सबसे तीर्थों में सबसे बङा तीर्थ कहा गया है और गंगा को भी। भारत की चार पीठों में से एक – ज्योतिष्पीठ; त्रिपथगा गंगा की एक धारा के किनारे जोशीमठ में स्थित है। 
संत रैदास, रामानुज, वल्लभाचार्य, रामानन्द, चैतन्य महाप्रभु.. सभी ने गंगा के मातृस्वरूप को ही प्रथम मान महिमागान गाये हैं। किंतु जब नई पीढ़ी के एक नौजवान ने मुझसे पूछा कि गंगा में ऐसा क्या है कि वह गंगा को मां कहे, तब उसके एक क्या ने मेरे मन में सैकङों क्यों खङे कर दिए। मेरे लिए यह जानना, समझना और समझाना जरूरी हो गया कि हमारी संतानें गंगा को मां क्यों कहे। जवाब मिला कि लहलहाते खेत, माल से लदे जहाज और मेले ही नहीं, बुद्ध-महावीर के विहार, अशोक-अकबर-हर्ष जैसे सम्राटों के गौरव पल.. तुलसी-कबीर-नानक की गुरुवाणी भी इसी गंगा की गोद में पुष्पित-पल्लवित हुई है। इसी गंगा के किनारे में तुलसी का रामचरित, आदिगुरु शंकराचार्य का गंगाष्टक और पांच श्लोकों में लिखा जीवन सार – मनीषा पंचगम, जगन्नाथ की गंगालहरी, कर्नाटक संगीत के स्थापना पुरुष मुत्तुस्वामी दीक्षित का राग झंझूती, कौटिल्य का अर्थशास्त्र, टैगोर की गीतांजलि और प्रेमचंद्र के भीतर छिपकर बैठे उपन्यास सम्राट ने जन्म लिया। शहनाई सम्राट उस्ताद बिस्मिल्लाह खां की शहनाई की तान यहीं परवान चढी। आचार्य वाग्भट्ट ने गंगा के किनारे बैठकर ही एक हकीम से तालीम पाई और आयुर्वेद की 12 शाखाओं के विकास किया। कौन नहीं जानता कि नरोरा के राजघाट पर महर्षि दयानन्द के चिन्तन ने समाज को एक नूतन आलोक दिया। नालन्दा, तक्षशिला, काशी, प्रयाग – अतीत के सिरमौर रहे चारों शिक्षा केन्द्र गंगामृत पीकर ही लंबे समय तक गौरवशाली बने रह सके। आर्यभारत के जमाने में आर्थिक और कालांतर में जैन तथा बौद्ध दोनो आस्थाओं के विकास का मुख्य केन्द्र रहा पाटलिपुत्र! भारतवर्ष के अतीत से लेकर वर्तमान तक एक ऐसा राष्ट्रीय आंदोलन नहीं, जिसे गंगा ने सिंचित न किया हो। भारत विभाजन का अगाध कष्ट समेटने महात्मा गांधी भी हुगली के नूतन नामकरण वाली मां गंगा-सागर संगम पर नोआखाली ही गये। 
यह है गंगा का गंगत्व; भारतीय संतानों के लिए मां गंगा का योगदान। अब दूसरा चित्र देखिए और सोचिए कि गंगा आज भी सुमाता है, किंतु क्या हम भारतीयों का व्यवहार माृतभक्त संतानों जैसा है ? सच यह है कि गरीब से गरीब भारतीय आज भी अपनी गाढ़ी कमाई का पैसा खर्च कर गंगा दर्शन को आता है, लेकिन गंगा का रुदन और कष्ट हमें दिखाई नहीं देता। गंगा के साथ मां का हमारा संबोधन झूठा है। हर हर गंगे की तान दिखावटी है; प्राणविहीन ! दरअसल हम भूल गये हैं कि एक संतान को मां से उतना ही लेने का हक है, जितना एक शिशु को अपने जीवन के लिए मां के स्तनों से दुग्धपान। 

हम यह भी भूल गये हैं कि मां से संतान का संबंध लाड, दुलार, स्नेह, सत्कार और संवेदनशील व्यवहार का होता है; व्यापार का नहीं। किंतु हमारी चुनी सरकारें तो गंगा का व्यापार कर रही हैं। दूरसंचार मंत्रालय के पास गंगाजल बेचकर कमाने की जुगत करने वालों के साथ देने की योजना है। परिवहन मंत्रालय के पास गंगा में जल परिवहन शुरु करके कमाने की योजना है। पर्यटन मंत्रालय के पास ई-नौका और घाट सजाकर पर्यटकों को आकर्षित करने की भी योजना है। लेकिन ’नमामि गंगे’ के पास गंगा को लेकर कोई गंगा पुनरोद्धार की कोई घोषित नीति नहीं है। मल-अवजल शोधन के कितने भी संयंत्र लगा लिए जायें; जब तक गंगा को उसका मौलिक प्रवाह नहीं मिलता; स्वयं को साफ करने की उसकी शक्ति उसे हासिल नहीं होगी। इस शक्ति को हासिल किए बिना गंगा की निर्मलता की कल्पना करना एक अधूरे सपने से अधिक कुछ नहीं। यह जानते हुए भी गंगा का मौलिक प्रवाह लौटाना, हमारी सरकारों की प्राथमिकता बनती दिखाई नहीं दे रही। शोधित-अशोधित किसी भी तरह का अवजल गंगा में न आये; मंत्रालय आज तक इस बाबत् कोई लिखित आदेश जारी नहीं कर सका है।

प्रश्न यह है कि ऐसे उलट माहौल में हम क्या करें ? गंगा दशहरा का उत्सव मनायें; मां का शोकगीत गायें या फिर मां की समृद्धि के लिए मुट्ठी बांध खङे हो जायें ? संकल्पित हों अथवा अथवा बेबसी का बहाना बनाकर मां को मर जाने दें ? ये वे प्रश्न हैं, जिनके उत्तर की प्रतीक्षा हर उपेक्षित मां को अपनी संतानों से रहती है; मां गंगा को भी है। 
गंगा दशहरा मतलब ऐतिहासिक तौर पर गंगा अवतरण की तिथि; पारम्परिक रूप में स्नान का अवसर; उत्सव रूप में गंगा आरती का पर्व। इतिहास, परम्परा और उत्सव का अपना महत्व है, हक़ीक़त, सेहत और समय की चिंता व चिंतन का अपना। हक़ीक़त यह है कि बीते एक वर्ष के दौरान, केन्द्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड, विज्ञान-पर्यावरण केन्द्र, संकटमोचन फाउण्डेशन समेत जिस भी विशेषज्ञ संस्थान ने गंगाजल की गुणवत्ता रिपोर्ट पेश की; सभी ने सबसे ज्यादा चिंता, गंगाजल में बीओडी और काॅलीफार्म की मात्रा को लेकर जताई। 
बीओडी क्या है ? पानी के जिंदा, स्वस्थ व मुर्दा होने की जांच का एक पैमाना है – बीओडी। बीओडी यानी जैविक ऑक्सीजन की मांग। पानी, जैविक ऑक्सीजन की मांग जितनी कम करे, समझिए कि पानी, उतनी अच्छी तरह से सांस ले पा रहा है। 
फीकल काॅलीफार्म – एक ऐसा बैक्टीरिया है, जो कि मानव समेत गर्म-ठण्डे रक्त वाले जीवों की आंतों में उत्पन्न होता है। यह भोजन पचाने में सहायक होता है। फीकल काॅलीफार्म यदि दलहन जैसे नाइट्रोजन को रोककर रखने वाले पौधों को हासिल हो जाए, तो पोषक की भूमिका अदा करता है। किंतु यदि यही फीकल काॅलीफार्म, पानी में पहुंच जाए, तो यह प्रमाण है कि मल के जल में मिश्रित होने का। फीकल काॅलीफार्म, बीमारी का वाहक न सही, मल के साथ जल में जा पहुंचे टाइफाइड, वायरल, हेपटाइटस-ए जैसी बीमारियों के रोगाणुओं के उपस्थित होने की संभावना तो बताता ही है। 
घटती ऑक्सीजन , बढ़ते रोगाणु
मानक है कि जैविक ऑक्सीजन  मांग (बीओडी) शून्य हो तो पानी पीने योग्य, 05 मिलीग्राम प्रति लीटर हो तो नहाने योग्य। फीकल काॅलीफार्म फीकल काॅलीफार्म की मात्रा शून्य हो तो पानी पीने योग्य, 2500 प्रति 100 मिलीलीटर हो तो नहाने योग्य। अध्ययन कह रहे हैं कि गंगाजल की बीओडी, जो कि वर्ष 2016 में 46.5 से 50.4 मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच थी; जनवरी, 2019 में बढ़कर 66 से 78 मिलीग्राम प्रति लीटर के बीच पहुंच गई। गंगाजल में फीकल काॅलीफार्म की मात्रा – अक्तूबर, 2018 में 24,000 काॅलीफार्म इकाई प्रति 100 मिलीलीटर यानी मानक से लगभग 10 गुना थी। वर्ष – 2019 में वाराणसी के ऊपरी भाग मे 03 लाख, 16 हज़ार प्रति 100 मिलीलीटर तथा वाराणसी के निचले भाग में 146 लाख प्रति 100 लीटर जा पहुंची। नतीजा ? वर्ष – 2018 की जांच में गंगाजल, 70 निगरानी केन्द्रों में से मात्र 05 स्थान पर पीने योग्य और 07 पर स्नान योग्य पाया गया। वर्ष – 2019 में जांचे गए 16 निगरानी क्षेत्रों में से मात्र जगजीतपुर हरिद्वार तक साफ अथवा कम प्रदूषित। उसके बाद मध्यम-भारी प्रदूषित। सर्वाधिक प्रदूषित वाराणसी के सराय मुहाना में । 
हमें धिक्कार है
ये सभी आंकडे़ संकेत हैं कि गंगाजी को सांस लेने  में  परेशानी बढ़ती जा रही है। गंगाजी अब बीमार भी हैं और बीमारी के रोगाणुओं की वाहक भी। हमें धिक्कार है ! मां बीमार हैं; उसे ऑक्सीजन की ज़रूरत है और हम उसकी आरती उतार रहे हैं !! क्या आरती करने से मां की सेहत सुधर जाएगी ? गंगा जी का पानी सब जगह न पीने योग्य और न ही नहाने; फिर भी हम स्नान के लिए दौडे़ चले जा रहे हैं! यह आस्था है या हमारे दिमाग का दिवालियापन ? हम गंगा मां की संताने हैं या उसके दुश्मन ?
शासकीय दावे झूठे
हमंे समझना चाहिए कि ‘नमामि गंगे’ के कदम नकरात्मक हैं और गंगा गुणवत्ता की बेहतरी को लेकर पेश होते रहे शासकीय दावे झूठे। हक़ीक़त यह है कि बीेते अर्धकुम्भ के दौरान जब स्नानार्थियों को जल देखने में कुछ साफ प्रतीत हुआ, उस दौरान (दिसम्बर, 2018 से अप्रैल, 2019 के बीच) भी प्रयागराज के संगम क्षेत्र के गंगाजल का बीओडी – मानक से 2.5 से 5.3 गुना तथा फीकल काॅलीफार्म – मानक से 06 से 96 गुना तक अधिक था। गुणवत्ता में यह गिरावट, इसके बावजू़द मिली कि सरकार ने अर्धकुम्भ के दौरान अस्थाई शौचालय, पेशाबघर, कूड़ादान यानी स्वच्छता और उसके प्रचार पर लगभग 120 करोड़ खर्च कर दिए। जैविक विधि से 53 नालों के उपचार पर जो खर्च हुए, सो अलग। बिहार, झारखण्ड और प. बंगाल में गंगा को पहुंचते नुक़सान की अनदेखी भी कम नहीं; वरना् हरित प्राधिकरण इनकी सरकारों पर 25-25 लाख का जुर्माना व फटकार क्यों लगाता ?
गौर कीजिए कि औद्योगिक प्रदूषण पर नियंत्रण का जिम्मा वन, पर्यावरण एवम् जलवायु परिवर्तन मंत्रालय का है। इसके सचिव श्री चन्द्र किशोर मिश्र ने हाल ही में एक टेलीविजन कार्यक्रम में दावा किया कि  ऑ नलाइन निगरानी के मामले में उनका मंत्रालय 24 घण्टे अलर्ट पर है। प्रदूषण मिलते ही फैकटरी पर कार्रवाई शुरु हो जाती है। यदि यह सच है तो क्या 10 अप्रैल, 2019 को हरित प्राधिकरण में पेश जस्टिस अरुण टण्डन रिपोर्ट झूठ है ? रिपोर्ट कह रही है कि कई जगह, 50 प्रतिशत तक अवजल बिना साफ किए सीधे गंगाजी में डाला जा रहा है। मंत्रालय बताए कि औद्योगिक किनारों वाली हिण्डन नदी के जल में ऑक्सीजन का स्तर शून्य पर क्यों पहुंच गया है? 
सब आंखों का धोखा
कानपुर के जिस सीसामऊ नाले को लेकर एक वक्त नितीन गडकरी जी ने बतौर मंत्री अपनी पीठ ठोकी, उसके निष्पादन के लिए दो संयंत्र हैं: जाजमऊ औद्योगिक अवजल शोधन संयंत्र और बिनगवां सीवेज शोधन संयंत्र। यदि सतर्कता 24 घण्टे है और दावा 100 फीसदी सच, तो कोई उनसे पूछे कि जाजमऊ औद्योगिक अवजल शोधन संयंत्र से शोधन पश्चात् निकलने वाले जल की गुणवत्ता इतनी घटिया क्यों है ? 21 दिसम्बर, 2018 को जाजमऊ संयंत्र से शोधित अवजल का बीओडी 56 मिलीग्राम प्रति लीटर तथा विद्युत चालकता 3328 माइक्रो म्हो प्रति सेंटीमीटर पाई गई। इसका मतलब, शोधन पश्चात् प्राप्त पानी इतना घटिया है कि सिंचाई योग्य भी नहीं; जबकि कानपुर के शेखपुर, जना, किशनपुर, मदारपुर, करनखेड़ा व ढोड़ीघाट आदि गांवों इसी स्तर के शोधित अवजल से सिंचाई हो रही है। लोग बीमार होंगे ही। बिनगवां से शोधित जल पाण्डु नदी में छोड़ा जा रहा है। पाण्डु नदी, फतेहपुर पहुंचकर गंगा में मिल जाती है। पाण्डु नदी में  बीओडी, मानक से 11 गुना अधिक पाई गई।…..तो फिर यह गंगा को निर्मल करने का काम कैसे हुआ? यह तो आंखों को धोखा देना हो गया। गंगा पुनर्जीवन और नमामि गंगे जैसे शब्दों को अपनाना, एक साध्वी को गंगा मंत्री बनाना और स्वयं को गंगा का बेटा बताना; ये सब धोखा नहीं तो और क्या साबित हुआ ?
कहा गया कि गंगा किनारे के गांवों को खुले में शौच से मुक्त करने से गंगाजल में काॅलीफार्म की मात्रा में कमी आएगी। रिपोर्ट कह रही है कि जब गंगा मुख्य मार्ग के सभी राज्यों के खुले में शौचमुक्त हो जाने के बाद गंगा में प्रवाहित मल कचरे की मात्रा – 1800 लाख लीटर प्रतिदिन हो जाएगी। शासकीय आंकडे़ कुछ अन्य हैं और गंगा में वास्तविक अपशिष्ट, उससे 123 प्रतिशत अधिक। गंगा स्वच्छता मिशन कह रहा है कि गंगाजल बेहतर हो रहा है, तो फिर बताइए कि गंगा में जैसे-जैसे नीचे जाइए, वैसे-वैसे मछलियों का वजन मे गिरावट क्यूं दिखाई दे रही है ? 
गंगा सफाई – कमाई का कारपोरेट एजेण्डा मात्र
निवेदन है कि कम से कम इस गंगा दशहरा पर तो हक़ीक़त से मुंह मत फेरिए। एहसास कीजिए कि मां बीमार है। चिंता कीजिए  कि मां का देह प्रवाह लगातार घट रहा है। इसमें 44 प्रतिशत तक कमी का आकलन है। जानिए कि यह क्यों है ? यह इसलिए है चूंकि जिस गंगा के लिए रास्ते को बाधा रहित करने का काम कभी सम्राटों के सम्राट…चक्रवर्ती सम्राट राजा भगीरथ ने किया था, हमने इतनी वीआईपी गंगा का रास्ता बांधने की जुर्रत की है। उसके गले में एक नहीं, अनेक फंदे डाल दिए हैं। जिस गंगा को स्पर्श करने से पहले राम-जानकी तक ने उनकी चरण वंदना की; हमने उस गंगा के गर्भक्षेत्र तक को खोद डाला। मां के सीने पर बस्तियां बसाईं। मां की देह को अपने मल से मलीन किया। उद्योगों ने जहर उगलने से परहेज नहीं किया। गंगा की मलीनता, माई से कमाई का कारपोरेट एजेण्डा हो गईं। सरकारें भी सिर्फ इसका औजार बनकर रह गईं। यह दुर्योग ही है कि इतनी दुर्दशा होने पर भी गंगा की अविरलता-निर्मलता, भारत का लोक एजेण्डा नहीं बन सका है।
आश्वासन का उलट करते हम
हमें मां गंगा का राजा भगीरथ से कहा आज फिर से याद करने की ज़रूरत है, ”भगीरथ, मैं इस कारण भी पृथ्वी पर नहीं जाऊंगी कि लोग मुझमें अपने पाप धोयेंगे। मैं उस पाप को धोने कहां जाऊंगी ?” 
राजा भगीरथ ने आश्वस्त किया था, ”माता, जिन्होने लोक-परलोक, धन-सम्पत्ति और स्त्री-पुरुष की कामना से मुक्ति ले ली है; जो संसार से ऊपर होकर अपने आप में शांत हैं; जो ब्रह्मनिष्ठ और लोकों को पवित्र करने वाले परोपकारी सज्जन हैं… वे आपके द्वारा ग्रहण किए गए पाप को अपने अंग स्पर्श व श्रमनिष्ठा से नष्ट कर देंगे।” 

हम क्या रहे हैं ? जो गंगा की सेहत की अनदेखी कर रही है, हम उनकी जय-जयकार कर रहे हैं। जो गंगा की चिंता कर रहे हैं, हम उनसे दूर खडे़ हैं। हम राजा भगीरथ को धोखा दे रहे हैं। क्या उसी कुल में पैदा हुए राजा राम खुश होंगे ? गंगा आज फिर प्रश्न कर रही है कि वह मानव प्रदत पाप को धोने कहां जाए ? 

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