दुनिया का फर्स्ट रोबोमैन

  • श्याम सुंदर भाटिया

यकीनन, दुनिया में टेक्नोलॉजी ने विस्मित छलांग लगाई है। 13.8 अरब सालों से इतिहास में पहली बार कोई इंसान सबसे ज्यादा एडवांस्ड रोबोट के रूप में आपके सामने है। विज्ञान और तकनीक के साथ जुड़ी मानवीय जज्बे ही यह कहानी हम सबको चौंकाती है। यह अद्भुत, अविश्वसनीय और अतुल्नीय कहानी आत्मविश्वास से लबरेज तो है ही, साथ ही इस नकारात्मक सोच को भी ठेंगा दिखाती है, इंसान और रोबोट एक-दूसरे के दुश्मन है। रोबोमैन की सच्चाई तो यह सकारात्मक संदेश देती है, मानव और रोबोट एक दूसरे के ट्रूली फ्रेंड्स हैं। यह कड़वा सच है, वैज्ञानिक तकनीक के सहारे पूरी तरह इंसान तो नहीं बना सकते, लेकिन आधा इंसान, आधा रोबोट तो बना ही लिया हैं। ब्रिटेन के वैज्ञानिक डॉक्टर पीटर स्कॉट मॉर्गन ने खुद को ‘रोबोमैन’ के रूप में बदल लिया है। उन्हें दुनिया का पहला रोबोमैन कहा जा रहा है। यह शख्स अब आधा इंसान और आधा मशीन है। डॉ. पीटर 62 साल के हैं। खुद को जिंदा रखने के लिए उन्होंने दुनिया के सामने एक हैरतअंगेज मिसाल पेश की है। दरअसल, डॉ. पीटर मोटर न्यूरॉन नाम की एक घातक बीमारी थी, जिसके कारण उनकी मांसपेशियां भी बर्बाद हो रही थीं। शरीर के कई अंग काम करना बंद करने लगे थे। इसके बाद उन्होंने विज्ञान का सहारा लिया। रोबोटिक्स का उपयोग करके अपने जीवन को एक नया आयाम दिया। अब डॉ. पीटर मशीनों की मदद से वे सभी काम आसानी से कर लेते हैं, जिन्हें कोई सेहतमंद व्यक्ति करता है। डॉ. मॉर्गन को 2017 में मांसपेशियों को बर्बाद करने वाली इस दुर्लभ बीमारी ‘मोटर न्यूरॉन’ का पता चला। इसके बाद 2019 में वह खुद को आधा इंसान और आधा रोबोट में ढालने में लग गए। आज वह न सिर्फ जिंदा हैं बल्कि दुनिया के लिए एक बेमिसाल उदाहरण बन गए हैं। वह कहते हैं, मैं हमेशा से ऐसा मानता रहा हूं, जीवन में ज्ञान और तकनीक के सहारे बहुत-सी खराब चीजों को बदला जा सकता है।

आधा इंसान और आधा मशीन बनाने या यूं कहें कि बनने की प्रेरणा उन्हें साइंस फिक्शन कॉमिक के कैरेक्टर साइबोर्ग से मिली है। साइबोर्ग दरअसल एक साइंस फिक्शन कॉमिक का ऐसा कैरेक्टर है, जो आधा इंसान और आधा मशीन होता है। डॉ. मॉर्गन कहते हैं- आधा मशीन होने के बाद भी मेरे पास प्यार है। मैं मस्ती करता हूँ। मुझे उम्मीद है, मेरे पास सपने हैं। मेरे पास उद्देश्य हैं। वह आत्मविश्वास से लबरेज हैं। कहते हैं, अगर मेरे से कोई चार साल की सबसे अच्छी बात पूछता है तो मेरा जवाब यह है कि मैं अभी भी जिंदा हूं। इस विश्व-प्रसिद्ध रोबोटिस्ट को इंसान से आधे मशीन में ट्रांसफॉर्म होने के दौरान अविश्वसनीय रूप से जटिल और जोखिम भरे रास्तों से गुजरना पड़ा है। बीमारी के दौरान उनके चेहरे पर भाव भंगिमाएं बताने वाली कई मांसपेशियां खत्म होने लगी थीं। इसके बाद उन्होंने ऑर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की मदद से बॉडी लैंग्वेज को बताने की तकनीक की खोज की है। डॉ. स्कॉट-मॉर्गन ने केवल अपनी आंखों का उपयोग करके कई कंप्यूटरों को नियंत्रित करने में सक्षम करने के लिए आई-ट्रैकिंग तकनीक का भी आविष्कार किया है। वे वेंटिलेटर से ही सांस ले सकते हैं। उन्होंने रोबोट में फाइनल ट्रांसफॉर्म होने के दौरान अपनी आवाज को भी खो दिया था। उन्होंने एक लेरिंजेक्टॉमी करवाई। उनकी निजी जिंदगी की बात करें तो वह अपनी पार्टनर फ्रांसिस के साथ रहते हैं जो डॉ. पीटर से तीन बरस बड़ी हैं।  

ब्रिटेन के इस अलबेले वैज्ञानिक डॉ. पीटर स्कॉट मॉर्गन की रोमांचक कहानी उनकी लास्ट पोस्ट की चुनिंदा पंक्तियों से बताता हूँ…’पीटर 1.0 के तौर पर यह मेरी लास्ट पोस्ट है… मैं मर नहीं रहा, पूरी तरह बदल रहा हूं।  ओह! विज्ञान से मुझे कितना प्यार है। डॉ. पीटर की चाह  है, उनके चार साल के सफर को पीटर 1.0 और पीटर 2.0 के तौर पर दुनिया जाने। पीटर 2.0 की कहानी रोबोमैन के तौर पर बता चुका हूँ, लेकिन पीटर 1.0 की कहानी फ्लैशबैक की मानिंद है। डॉ. पीटर दुनिया और मानव इतिहास के पहले पूरे साइबोर्ग बनने जा रहे हैं। यानी वह मनुष्य से पूरी तरह रोबोट बनने की तरफ हैं। यह बात चौंकाने वाली ज़रूर लगती है, लेकिन यह सच होने जा रहा है। एक जानलेवा बीमारी से जूझने वाले पीटर की मानें तो उन्होंने विज्ञान की मदद से अपनी ज़िंदगी बढ़ाने के लिए पूरे रोबोट में तब्दील होने का फैसला लिया है, जिसे वह पीटर 2.0 कह रहे हैं। आर्टिफिशियल इंटेलिजेंस की दुनिया में यह घटना वाकई एक इतिहास के तौर पर दर्ज की जाने वाली है। एक वैज्ञानिक तकनीकी तौर पर मरने के बाद एक रोबोट के तौर पर ज़िंदा रहेगा यानी कहा जा सकता है कि वह आधा इंसान और आधा रोबोट होगा। यह सब कैसे मुमकिन हो रहा है? साइबोर्ग क्या है और पीटर मोटर न्यूरॉन नामक जिस जानलेवा बीमारी के शिकार रहे, वह क्या है? सवाल यह है, क्यों डॉ. पीटर साइबोर्ग बनने जा रहे हैं? डॉ. पीटर के हवाले से दुनिया जानती है, वह मोटर न्यूरॉन यानी एमएनडी या एएलस नाम की बीमारी के शिकार हो गए थे। इसके बाद उनके बचने की कोई सूरत नहीं थी। उन्होंने मौत स्वीकार करने के बजाए इसे चुनौती के तौर पर कबूल करना चाहा और खुद को एक पूरे रोबोट में बदलने का फैसला किया। विज्ञान और अत्याधुनिक तकनीकों की मदद से उन्होंने अपने इस फैसले को साकार करने की राह पकड़ी।

2019-2020 में यह सवाल सभी के दिलों दिमाग में कौंधता रहा है, कितने बदल चुके हैं डॉ. पीटर? डॉ. पीटर को पूरे रोबोट में बदलने के लिए डॉक्टरों और वैज्ञानिकों ने कई तरह की सर्जरी की हैं। उनके शरीर के फूड पाइप को सीधे पेट से, कैथेटर को ब्लैडर से जोड़ने के साथ ही एक वेस्ट बैग भी जोड़ा गया है ताकि मल मूत्र साफ हो सके। चेहरे को रोबोटिक बनाने वाली सर्जरी की जा चुकी है, जिसमें कई आर्टिफिशियल मांसपेशियां हैं। आखिरी सर्जरी में उनके दिमाग को आर्टिफिशियल इं​टेलिजेंस से जोड़कर उनकी आवाज़ भी बदल दी गई। सवाल-दर-सवाल वैज्ञानिकों के भी सामने हमेशा कौंधते रहे- कैसे काम करेगा आधा इंसान आधा रोबोट? मनुष्य और एआई के सामंजस्य की बेहतरीन मिसाल बनने जा रहे पीटर एक साइबोर्ग आर्टिस्ट के तौर पर कैसे काम करेंगे? डीएक्ससी टेक्नोलॉजी की रपट की मानें तो एआई वो डेटा इस्तेमाल करेगा जो पीटर का डिजिटल फुटप्रिंट यानी लेख, वीडियो, इमेज और सोशल मीडिया आदि तैयार करेगा। कुल मिलाकर होगा यह कि एआई की मदद से पीटर का रोबोटिक हिस्सा विचार, अनुभव और तस्वीरों को पहचानेगा। डॉ. पीटर एक थीम देंगे तो एआई उसका स्वरूप बताएगा।

कैसे हुआ यह कायापलट? डॉ. पीटर ने खुद इसे कायापलट ही कहा है। संग में यह भी कहा कि वह इंसान से जब रोबोट बन जाएं तब उन्हें पीटर 2.0 के नाम से पुकारा जाए। डॉ. पीटर के इस कायापलट के लिए दुनिया की बेहतरीन टेक्नोलॉजी कंपनियों ने अलग-अलग काम किए। जैसे डीएक्ससी ने डॉ. पीटर के शरीर में लीड सिस्टम इंटिग्रेटर, साइबोर्ग आर्टिस्ट और एक होस्ट लगाया। इंटेल ने वर्बल स्पॉन्टिनिटी सॉफ्टवेयर, माइक्रोसॉफ्ट ने होलोलेंस, एफजोर्ड ने यूज़र इंटरफेस डिज़ाइन और ह्यूमन सेंट्रिक एप्रोच जैसे काम किए। किसी कंपनी ने डिजिटल अवतार तैयार किया तो किसी ने वॉइस सिंथेसाइज़र और ऐसे बना आधा इंसान आधा रोबोट। आंखें हैं खास, कई कंप्यूटरों के लिए असल में जो बीमारी डॉ. पीटर को हुई थी, वह धीरे-धीरे उनके पूरे शरीर को खत्म कर देती, लेकिन आंखें नहीं। इस बात को समझते हुए वैज्ञानिकों ने आंखों को रोबोटिक काबिलियत के लिए इस्तेमाल करने का फैसला किया। चेहरे में जो आई कंट्रोलिंग सिस्टम लगाया गया है, उसकी मदद से अब डॉ. पीटर 2.0 कई कंप्यूटरों को आंखों के इशारे से एक साथ चला सकेंगे। क्या है यह जानलेवा बीमारी? ये भी जानें कि मोटर न्यूरॉन बीमारी क्या होती है। यह एक ऐसी बीमारी है यानी धीरे-धीरे पूरे शरीर की मांसपेशियों को निष्क्रिय करते हुए पीड़ित को एक तरह से पूरा लकवाग्रस्त कर देती है यानी उसके शरीर में कोई हरकत नहीं ​रह जाती, सिवाय आंखों के। 2017 में डॉ. पीटर को जब इस बीमारी का शिकार पाया तो बजाए इस तरह मरने के रोबो साइंटिस्ट डॉ. पीटर ने अपना कायापलट करने का फैसला किया और दुनिया की बेहतरीन संस्थाओं और विशेषज्ञों के साथ मिलकर पूरा साइबोर्ग बना देने की ठानी।

क्या होता है साइबोर्ग? बायोनिक, बायोरोबोट और एंड्रॉयड अलग बात है, साइबोर्ग अलग। किसी हिस्से को जब आर्टिफिशियल उपकरण या तकनीक के ज़रिए जोड़कर क्षमता बढ़ा दी जाती है, तो ऐसे शरीर को साइबोर्ग कहा जाता है। अब तक ये स्तनधारी ही होते हैं लेकिन वैज्ञानिकों का मानना है कि और प्रजातियों में भी यह संभव हो सकता है। बहरहाल, अब तक के इतिहास में कोई मनुष्य पूरा साइबोर्ग नहीं बना है यानी किसी के शरीर का एक या कुछ अंग ही एआई तकनीक के साथ जोड़े गए हैं। यकीनन डॉ. पीटर इतिहास के पहले पूरे फर्स्ट रोबोमैन या कहिएगा साइबोर्ग बन गए हैं। बहुत-बहुत शुक्रिया डॉ. पीटर…।   

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