: डॉ. मयंक चतुर्वेदी
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के नेतृत्व में देश जिस गति के साथ आर्थिक बदलाव की ओर जा रहा है, उसे लेकर जहां एक ओर उनके कार्यों को अपना समर्थन देनेवालों की कोई कमी नहीं तो दूसरी ओर ऐसे लोगों की भी एक लम्बी सूची है जो मोदी के आर्थिक क्षेत्र में किए जा रहे प्रयोगों से बेहद डरे हुए हैं और वे इन्हें अपनी शंकालु दृष्टि से देखते हैं। विरोध में अपना मत रखनेवालों का कहना है कि पहले तो देश के कुछ अर्थशास्त्री ही यह कह रहे थे कि मोदी युग में जिस प्रकार से अर्थ व्यवस्था को लेकर निर्णय हो रहे हैं उनसे देश को दूरगामी एवं वर्तमान में तत्काल बुरा प्रभाव झेलना होगा किंतु अब तो पूरी दुनिया कहने लगी है कि इन दिनों जैसे भारत की अर्थ व्यवस्था को कोई ब्रेक लग गया है। देश की (जीडीपी), सकल घरेलू उत्पाद की वृद्धि दर प्रतिकूल रूप से प्रभावित हुई है। सरकार की नोटबंदी और जीएसटी ने सबसे अधिक असंगठित क्षेत्र यानि कि छोटे पैमाने पर व्यापार के क्षेत्र को प्रभावित किया है, जिसका जीडीपी में 40 फीसदी योगदान है और 90 फीसदी से अधिक रोजगार यहां से श्रृजित होते हैं। जीडीपी का जो अनुमान मोदी युग में 7 प्रतिशत एवं इससे भी आगे जाने का लगाया गया था, वह सभी आंकड़े आज ध्वस्थ हो चुके हैं। देश की जीडीपी आज 5.7 पर आकर टिक गई है।
वस्तुत: भारतीय अर्थशास्त्री पूर्व प्रधानमंत्री मनमोहन सिंह और पूर्व वित्तमंत्री रहे यशवंत सिन्हा द्वारा केंद्र सरकार की नीतियों लेकर उसे घेरे जाने के बाद जिसमें कि वे कहते हैं कि सरकार ने 2015 में जीडीपी तय करने का तरीका बदला था, अगर पुराने नियमों के हिसाब से देखा जाए तो आज जीडीपी 3.7 फीसदी है, से इस बात को तेजी से हवा मिली है कि क्या वाकई मोदी की आर्थिक नीतियां देश का अहित कर रही हैं? देखाजाए तो यह इसका एक पक्ष है जिसका कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी एवं उनकी योजनाओं से असहजता रखनेवालों ने खूब प्रचार-प्रसार कर रखा है। इसका दूसरा पक्ष बहुत उजला भी है, जिसके बारे में अभी बहुत बात करने की आवश्यकता है।
अव्वल तो सभी को यह समझने की जरूरत है कि भारतीय अर्थव्यवस्था को लेकर एक या दो महीने की विकास दर के आंकड़े बदलाव की अर्थव्यवस्था में दूरगामी परिणाम के लिए उठाए गए कदमों के निष्कर्ष नहीं बता सकते हैं, जैसा कि इसे लेकर इस वक्त देखा जा रहा है। नोटबंदी की सफलता का वास्तविक पैमाना डिजिटल लेनदेन की मात्रा में बढ़ोतरी के रूप में सर्वत्र देखा जा रहा है। इसके बाद यह भी देखने में आया है कि इसके बाद से ही देश में कर दाताओं की संख्या में तेजी से इजाफा हुआ है। वहीं इसका जो सबसे बड़ा फायदा हुआ है वह है कि जो नोट एक जगह बंद पड़े थे और भारतीय अर्थ व्यवस्था की गति को रोकने का कार्य कर रहे थे वे भले ही बैंकों के जरिए अनुमान से अधिक सरकार तक पहुंचे हों किेंतु उनकी इस पहुंच में भी वह विकेन्द्रित हो गए,अर्थात् वह कई खातों से होते हुए बैंकों में पहुंचे हैं।
इस बीच जो नकली नोट थे वे स्वत: ही चलन से बाहर हो गए। इससे वास्तविक खरीदार ही बाजार में टिके रह सके हैं और उनकी पहचान आसान हो सकी है। देशभर में इस एक कदम से ही एक दम से भ्रष्टाचार में कमी आई। दूसरी ओर डिजीटल भुगतान को बढ़ावा मिला जिसके कारण से व्यक्ति अपने आय और व्यय के बीच संतुलन बैठाने को लेकर सजग हुआ है। इतना ही नहीं तो उच्च मूल्य के नोटों के परिचालन में कमी आना है, फिर भले ही सरकार ने 2000 रुपए का नोट निकाला हो, लेकिन यह कभी भी बंद हो सकता है, आम जन में ऐसी धारणा होने के कारण से इसके संग्रहण को लेकर लोग सचेत हैं।
वास्तव में सही यही है कि जीएसटी, नोटबंदी और डिजिटल पेमेंट को बढ़ावा देना प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और वित्त मंत्री अरुण जेटली की अर्थ व्यवस्था की सुदृढ़ता की दृष्टि से की गई श्रेष्ठ कोशिशे हैं, जिसका कि सकारात्मक व्यापक परिणाम कुछ लंबे समय के बाद ओर स्पष्ट दिखाई देने लगेगा। जो लोग बिना टैक्स दिए कारोबार कर रहे थे वो अब टैक्स के दायरे में लाए जा रहे हैं। जीएसटी से भारत सरकार की टैक्स से आय बढ़ रही है। इससे आगे होगा यह कि जितना अधिक धन सरकार के खजाने में आएगा, देश में उतने ही ज्यादा विकास के अधोसंरचनात्मक कार्यों पर सरकार ध्यान दे पाएगी, पैसे की कमी उसमें कहीं रोड़ा नहीं बनेगा। आगे स्वभाविक है कि यही धन टैक्स के जरिए सरकार के पास से फिर सर्वत्र वापिस पहुंचेगा। वस्तुत: अर्थव्यवस्था के इस चक्र में पैसा जितना अधिक तेजी से घूमेगा देश की जीडीपी फिर बढ़ जाएगी और इस बार इसका बढ़ना बड़े प्रतिशत में माना जा रहा है।
फिलहाल आर्थिक क्षेत्र में सरकार के इन कदमों के जो लाभ दिखाई दे रहे हैं, वह है रीयल स्टेट क्षेत्र में बढ़ते दामों पर अंकुश लगने से मकान की पहुँच सामान्य आदमी तक हो सकी है, वैसे भी मोदी सरकार की योजना है वर्ष 2022 तक देश में हर आदमी के सर पर उसकी अपनी छत उपलब्ध करा दी जाए । इस दिशा में इस वक्त देश तेजी से आगे बढ़ रहा है। जीएसटी के कारण से देशवासियों को 17 अप्रत्यक्ष करों और 23 सेस से आजादी मिल सकी है। देश की 81 फीसदी चीजें 0-18 फीसदी के दायरे में आ गई हैं, जिसके परिणाम स्वरूप अधिकांश वस्तुएं सस्ती हुई हैं और वह आम उपभोगताओं की पहुंच में आ सकी हैं। हर सामान की कीमत एक समान हो इस दिशा में देश आज आगे बढ़ा है।
जीएसटी में छोटे कारोबारियों को बड़ा फायदा मिला है। बीस लाख तक सालाना कारोबार करने वाले जीएसटी के दायरे से बाहर हैं। 75 लाख तक बिजनेस करने वालों के लिए भी सरकार ने कंपोजीशन स्कीम दी है जिसमें 1, 2 और 5 फीसदी टैक्स ही भरना है। वस्तुत: जीएसटी आने के बाद से टैक्स चोरी और भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा है जोकि अब सीधे दिखने में आ रहा है। कुल मिलाकर देश का राजस्व बढ़ रहा है, भ्रष्टाचार में कमी आ रही है, अधिकांश वस्तुएं आम उपभोक्ताओं की पहुंच में आई हैं। गरीबों के खातों तक धन का प्रवाह बना है, जिसके बाद से उनकी सामाजिक स्थिति में सुधार आ रहा है। इसके बाद भी यदि विपक्ष या अन्य किसी को लगता है कि मोदी की आर्थिक नीतियां देश के लिए अच्छी नहीं तो फिर उनका कुछ नहीं किया जा सकता। क्योंकि उनकी दृष्टि को बदलना असंभव है।