माना जाता है कि देश चार स्तम्भों पर खडा है, जिसमें पहला स्तम्भ विधायिका, दूसरा कार्यपालिका, तीसरा न्यायपालिका और चौथा स्तम्भ मीडिया को माना जाता है। वर्तमान समय में देश के चौथे स्तम्भ की हालत जर्जर चल रही है। अभी कुछ ही समय पूर्व से कयास लगाया जाना शुरू हो गया है कि देश अब मंदी के दौर को पार कर चुका हैं किन्तु मीडिया में होने वाली बडी मात्रा में फेरबदल व निकाल बाहर किए जाने की स्थितियों को देखते हुए यह कहा जाना कि मंदी का दौर गुजर चुका है, कहां तक सही साबित होता है?
पिछले माह न्यूज 24 व सीएनबीसी में कइयों को बाहर का रास्ता दिखा दिया गया और भारी मात्रा में कर्मचारियों का फेरबदल कर दिया गया। यही नहीं ‘आजतक’ भी इस क्रम में पीछे न रहते हुए उसने भी बाहर से आए अर्थात् अन्य चैनलों से आए कई पत्रकारों का बाहर का रास्ता दिखा दिया। अन्य कई चैनलों व समाचारपत्रों ने भी इस दौड में अपनी भागीदारी को पूरी ईमानदारी व निष्ठा के साथ निभाया। अब ऐसी स्थिति में देश की जनता चौथे स्तम्भ से यह उम्मीद लगा कर बैठे कि वह जनसमस्याओं को पूरी ईमानदारी से सत्यता की कसौटी पर परख कर शासन और प्रशासन के सामने उजागर करे तो यह कैसे सम्भव हो सकेगा? मीडिया के क्षेत्र में बटरिंग का बढ रहा स्तर धीरे-धीरे भयावह होता जा रहा है। ऐसी स्थिति में सत्यता की खोज के विपरीत रूपए की खोज में अधिक समय दिया जा रहा है। एक तरह से देखा जाए तो उन चापलूसबाज पत्रकारों का भी कोई दोष नहीं है, क्योंकि शीर्ष पर बैठे मीडिया ठेकेदारों ने ही इस पद्धति को बढावा दे रखा है, लेकिन इन सब के बीच सिर्फ और सिर्फ अगर नुकसान किसी का होता है तो उन मीडियाकर्मी का जो बटरिंग पर ध्यान न दे एकमात्र अपने काम पर ध्यान देते है। हालांकि किसी मीडियाकर्मी द्वारा भूलवश काम में गलती हो जाने पर उसके संस्था द्वारा उसका साथ न दिया जाना भी ‘बटरिंग’ को बडे पैमाने पर विकसित कर रहा हैं। इसे देश का दुर्भाग्य कहे या फिर उन सच्चे पत्रकारो का जो बिना किसी डर व भय के अपने कार्यों को पूरा करते है और आमजन की समस्याओं को वास्तविकता में दूर करने का प्रयास करते हुए उसे शासन और प्रशासन के सामने लाने व उन समस्याओं का समाधान करने के लिए अपनी पूरी ताकत झोंक देते हैं।
जिस प्रकार चार पांव वाली चारपाई का अगर एक भी पांव टुट जाए तो चारपाई बिछाई न जा सकेगी ठीक उसी प्रकार चार स्तम्भों पर खडा देश भी किसी एक स्तम्भ के टूटने से धराशायी हो जाएगा। इसलिए शीर्षस्थ मीडिया ठेकेदारो से विनती है कि अपनी भूख की आवश्यकता से अघिक पूर्ति न करते हुए अपने अधीनस्थों व देश की आमजनता के वास्तविक भूख की पूर्ति के बारे में भी ध्यान दें।
-अमल कुमार श्रीवास्तव
आज पत्रकारिता को उस पत्रकार की तलास है जो आम लोंगों की बात करता है पर मालिक इसे अच्छा नहीं
समझता क्योंकि उसे ऐसे पत्रकारों की आवस्यकता ही नहीं ””””””””””””””””””””””””””””””””””””’