राहुल बाबा का गीता ज्ञान  

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सुना है राहुल जी संघ और भा.ज.पा. से निबटने के लिए इन दिनों गीता और उपनिषद पढ़ रहे हैं। शर्मा जी इससे परम प्रसन्न हैं। कल जब वे मिले, तो उनका मुखमंडल प्रसन्नता से ऐसे लबालब था, जैसे वर्षाकाल में नदियां, तालाब और झरने हो जाते हैं।

– वर्मा, तुमने सुना, आजकल राहुल बाबा अध्ययन कर रहे हैं।

– ये तो बहुत खुशी की बात है। विद्वानों ने कहा है कि पढ़ने की कोई आयु नहीं होती। छात्र जीवन में वे कब, कहां और कितना पढ़े, ये तो उन्हें या उनकी मम्मीश्री को ही पता होगा; पर उम्र के इस पड़ाव पर वे पढ़ रहे हैं, ये बहुत ही अच्छी बात है।

– बेकार की बात मत करो। वे गीता और उपनिषद पढ़ रहे हैं।

– ठीक ही तो है। इस आयु में अध्यात्म की बातें समझ भी कुछ ज्यादा ही आती हैं। वैसे भी अब राजनीति में तो उनके लिए गुंजाइश बची नहीं। ऐसे में धर्म का ही रास्ता बचा है, जिस पर वे जहां तक चाहें, आगे बढ़ सकते हैं।

– जी नहीं, वे 2019 के लोकसभा चुनाव की तैयारी के लिए ऐसा कर रहे हैं। क्योंकि वह चुनाव उनके और कांग्रेस के लिए जीवन-मरण का प्रश्न है।

– ये तो शर्मा जी आप ही जानते होंगे। मेरी राय है कि इसके बाद वे रामायण, महाभारत, वेद, पुराण और स्मृतियों का भी अध्ययन करें। अच्छा हो वे श्री गुरुग्रंथ साहब, बाइबल, कुरान, त्रिपिटक और जैनागम ग्रंथ भी पढ़ें। इससे उन्हें भारत में प्रचलित विभिन्न धर्म, पंथ, सम्प्रदाय और मजहबों के बारे में पता लगेगा। इस जन्म की तो मैं नहीं जानता, पर शायद इससे उनका अगला जन्म सुधर जाए।

– तुम फिर बकवास करने लगे। जैसे श्रीकृष्ण के उपदेश से अर्जुन का विषाद दूर हो गया और उसने युद्ध के लिए कमर कस ली थी। ऐसे ही राहुल बाबा अपनी कमर कसने के लिए गीता पढ़ रहे हैं।

– शर्मा जी, गीता में प्रश्न करने वाला अर्जुन था, तो उत्तर देने वाले श्रीकृष्ण। ऐसे ही उपनिषद भी प्रश्नोत्तर पर आधारित ग्रंथ हैं। तो ये बताइये कि राहुल बाबा किससे पूछ रहे हैं और उन्हें उत्तर देने वाला कौन है ? फिर वे मूल गं्रथ पढ़ रहे हैं या उसकी व्याख्या ?

– ये तो मुझे नहीं पता।

– तो पता कर लो। क्योंकि बिना गुरु के ये गूढ़ ग्रन्थ समझ नहीं आते। कार सीखने के लिए कोई अच्छा कार चालक साथ में जरूर चाहिए। वरना आदमी अपने साथ सड़क पर दो-चार लोगों को और मार डालेगा।

– वर्मा जी, राहुल बाबा धर्म या अध्यात्म के लिए नहीं, भा.ज.पा. और संघ को हराने के लिए इन्हें पढ़ रहे हैं।

– तब तो हो लिया।

– क्यों ?

– क्योंकि कांग्रेस अंग्रेजों द्वारा अपने हित के लिए बनायी गयी पार्टी है, जिसने अध्यक्ष फिर भारत वाले होने लगे। जबकि भा.ज.पा. अपने जन्म से ही सौ प्रतिशत भारतीय है। फिर कांग्रेस एक घरेलू दल है। वहां अध्यक्ष की कुरसी एक परिवार के लिए आरक्षित है, जबकि भा.ज.पा. में ऐसा नहीं है। इसलिए राहुल बाबा चाहे जो कर लें, वे भा.ज.पा. से पार नहीं पा सकते।

– और संघ.. ?

– संघ एक सामाजिक संस्था है। उसकी स्थापना को 92 साल हो गये। उसे किताबों से नहीं समझ सकते। यदि राहुल बाबा 92 दिन लगातार सुबह-शाम शाखा में आयें, तो संघ की प्राथमिक जानकारी हो जाएगी। इसके बाद कई तरह के शिविर और प्रशिक्षण वर्ग हैं। जो दो दिन से लेकर महीने भर तक चलते हैं।

– ये तो बड़ा झंझटी काम है ? इससे तो राहुल बाबा ही संघी हो जाएंगे ?

– संघ को समझना है, तो ये सब करना ही होगा।

– नहीं, नहीं। हमारे पास कुल जमा एक ही तो नेता है। वही हमारा वर्तमान है और वही भविष्य। वही संघ में चला गया, तो हमारी पार्टी तो डूब जाएगी।

– शर्मा जी, पार्टी तो वैसे भी डूब ही रही है। मैं तो उसके उद्धार का उपाय बता रहा हूं। आगे आपकी मरजी।

शर्मा जी अगले दिन सुबह नौ बजे राहुल बाबा के घर गये। पता लगा कि वे अभी उठे हैं और धर्मग्रंथ पढ़ रहे हैं। शर्मा जी ने खिड़की से झांका। बाबा बिस्तर पर अधलेटी अवस्था में ही गीता उलट-पलट रहे थे। पास में ही उपनिषद और चाय का झूठा कप भी रखा था।

शर्मा जी ने सिर पीट लिया। जिन धर्मग्रंथों को पूरा भारत पूजता है, उन्हें उपन्यास की तरह पढ़कर राहुल बाबा संघ और भा.ज.पा. से टकराएंगे। शर्मा जी चुपचाप घर लौट गये। उन्हें कांग्रेस के पतन का एक और कारण आज पता लग गया था।

– विजय कुमार,

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