लोकतांत्रिक मूल्यों की सरकार ही देश समाज से डरती है

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प्रवीण गुणगानी

एक प्रसिद्द शेर याद आया – गिरते हैं शह सवार ही मैदाने जंग में  ,वो तिफ्ल (सैनिक) क्या गिरेंगे जो घुटनों के बल गिरें

मेरी ही नहीं अपितु बहुसंख्य की यह अडिग मान्यता है कि आर्थिक व सामाजिक रूप से क्रीमी लेयर में आ गए sc st का आरक्षण समाप्त हो जाना चाहिए। यह मान्यता भी अटूट है मेरी की दलित कानून में गिरफ्तारी पूर्व जांच आवश्यक है। किंतु, मेरी यह भी पुरजोर मान्यता है कि जब तक हमारे देश मे जब तक जाति आधारित भेदभाव समाप्त नही हो जाता तब तक निर्धन दलितों को और साथ साथ अन्य निर्धनों को भी आरक्षण लागू रहना चाहिए। 
scst कानून के परिवर्तन विषय मे सतही दृष्टि से यह आभास होता है कि सरकार ने तुष्टिकरण किया है किंतु यह मान्यता नितांत गलत है। सरकार ने तुष्टिकरण नही, समाज हित मे स्वयं को आग में झौक़ा है। सच यह है कि सरकार 2 अप्रेल के scst प्रेरित जबरदस्त बंद व हिंसा से हतप्रभ हो गई थी। देश मे वर्ण संघर्ष भड़क जाने के अंदेशे से भयग्रस्त हो गई थी। लोकतंत्र में समाज से भय खाना एक जवाबदेह सरकार का प्रमुख लक्षण होता है. और सरकार देश, समाज से भयग्रस्त हुई है किसी दुश्मन देश से नहीं. सवर्णों को यह अवश्य सनद रहे कि एक निर्भय व कठोर निर्णय लेने वाले प्रधानमंत्री की सरकार स्वयं के अस्तित्व के लिए सर्वोच्च न्यायालय नही गई थी। मोदी सरकार देश व समाज के अस्तित्व, शांति व समाज मे परस्पर खाई न बढ़े इस हेतु से भयभीत होकर एक कदम पीछे हटी थी। मोदी सरकार पीछे न हटती तो देश, समाज और हिंदू पीछे हो जाता! मोदी को स्वयं की सरकार और समाज में से किसी एक पर आंच चुननी थी, मोदी ने आग का चटका और समय का ग्रहण स्वयं पर लिया और समाज को बचा लिया!! क्या गलत किया?!
एक मान्यता सर्वाधिक बलवती मानिए और सच जानिये कि कांग्रेसी, वामपंथी, माओवादी व नक्सली ये सभी एक साथ हैं व इस देश मे अस्थिरता उत्पन्न कर नरेंद्र मोदी को सत्ता से हटाना चाहते हैं। मेल-बेमेल व परस्पर धुर विरोधी सभी साथ खड़े हैं इस युद्ध मे। कौरव सेना हो गया है विपक्ष, इस मध्य हिंदू समाज का अभिमन्यु काल आना ही था। मुझे विश्वास है, आज के अर्जुन मोदी पर, इस बार अभिमन्यु हताहत नही होगा। किंतु हिंदू मानसिकता का क्या?! यहां आप हिंदू शब्द का अर्थ भारत के समग्र समाज के रूप में लें और विधर्मी का अर्थ राष्ट्र विरोधी के रूप में.  आज स्पष्ट दिख रहा की जो लोग चाहते थे की हिंदू विभाजन हो जाये वे सफल दिख रहे! जो लोग चाहते थे कि वर्ण संघर्ष ही जाए भारत मे वे भी विजेता हो रहे!! और, जो ये चाहते थे कि विधर्मी शासन करें इस देश मे, वे महासफल होते दिख रहे, तब भी हिंदू तराजू के मेंढक के रूप में ही दिख रहा। नोटा नोटा अभियान चलाकर नित नए दुर्योधन शकुनि, मंथरा, पुतना, कंस और रावण जनम रहे और इस युद्ध मे विभीषण भ्रूणहत्या से ही मारे जा रहे। विधर्मी फूलप्रूफ हैं कभी भीम-मीम भाई भाई और कभी सवर्ण-मुस्लिम भाई भाई के नारे वैचारिक नक्सली उछाल दे रहे।

       संघ और मोदी आरक्षण पर अंधे नही हैं; अंततः करेंगे वही जो समाज कहेगा। समाज का मंथन और उस मंथन से निकले निर्णय को शिरोधार्य करना संघ व भाजपा की अटूट वंश परंपरा रही है। अगले दो तीन वर्षों में आरक्षण की कानूनी मान्यता और दस वर्षों हेतु पुनः बढ़ाये जाने पर निर्णय होना है। संघ और भाजपा इस मंथन प्रक्रिया से स्वयं विषपान तो कर लेंगी किंतु समाज को बचाएगी यह विश्वास हमें संघ के इतिहास को देखकर और हाल ही में किये गए केंद्र सरकार के निर्णय को देखकर करना ही चाहिए।
और हां, यह भर स्मरण रखिये की सचमुच यह घोर संक्रमण काल है, संभल गए तो सुर्योदय हो पायेगा अन्यथा तो ब्रह्मांड के ब्लैक होल में समग्र हिंदू समाज को समाना ही है। न रहेंगे सवर्ण, न रहेंगे अवर्ण बचेंगे तो बस विधर्मी; केवल विधर्मी !!

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