वेब मीडिया की बढ़ती स्वीकार्यता – विनय बिहारी सिंह

वेब मीडिया तो एक जुनून है

वेब मीडिया की स्वीकार्यता उसी दिन एक बार फिर साबित हो गई जब प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की वेब मीडिया में काम करने वाले लोगों की संख्या दो हजार हो गई। यद्यपि प्रधानमंत्री पर यह आरोप लग रहे हैं कि वे प्रिंट या इलेक्ट्रानिक मीडिया से रू-ब- रू नहीं होते, लेकिन यह भी सच है कि प्रधानमंत्री ने अपनी बेब मीडिया टीम बहुत मजबूत बना ली है। उनके पास कुछ भी कहने के लिए ट्विटर, इंटरनेट और फेस बुक है। रेडियो और टेलीविजन तो है ही। यही नहीं, मीडिया क्षेत्र से तनिक हट कर देखें तो टाटा समूह के पूर्वचेयरमैन रतन टाटा ने वेब के जरिए कारोबार करने वाली कंपनी- स्नैपडील में निजी पूंजी निवेश किया है। देश के सारे पूंजीपतियों ने वेब मीडिया को महत्वपूर्ण माना है। इसकी वजह यह है कि अखबारों और टेलीविजन पर खबर आने के बाद भी वे पूछते हैं कि वेब पर डाला कि नहीं? क्योंकि हो सकता है व्यस्तता कारण लोग अखबार की कोई खबर न पढ़ पाएं, टीवी पर भी न देख पाएं, हर आदमी अपने मोबाइल पर इंटरनेट की खबरें जरूर पढ़ता है। चाहे वह कार में जा रहा हो या बस में। यह एक आम दृश्य है। एंड्राएड मोबाइल बहुसंख्य लोगों के पास है और जाहिर उसमें इंटरनेट कनेक्शन भी। बेब मीडिया का दूसरा नाम- सोशल मी़डिया भी है।
वेब मीडिया की सबसे बड़ी खूबी यह है कि उसे कहीं भी देखा या पढ़ा जा सकता है। यह मोबाइल पर २४ घंटे उपलब्ध है। एक कामकाजी महिला न तो घर पर अखबार पढ़ पाती है और न ही टेलीविजन देख पाती है। उसके पास ढेर सारे घरेलू काम होते हैं। बच्चों को तैयार करना होता है। ऐसे में उसके पास एक ही उपाय है कि वह खबर जानने के लिए वेब मीडिया का सहारा ले। हमारे देश की लगभग ८५ प्रतिशत कामकाजी महिलाएं वेब मीडिया से खबरें जान लेती हैं। देश- विदेश में कहां क्या हुआ – यह जानने की उत्सुकता सबको रहती ही है। आप समाचार पत्रों या टेलीविजन के जरिए अपनी बात तो पहुंचा सकते हैं लेकिन यदि उसे अनंतता में फैलाना है तो आपको वेब मीडिया में जाना ही होगा। कोई उपाय नहीं है। यही कारण है कि अनेक कंपनियां फेसबुक फ्रेंड बनाने वाले लोगों को मानदेय पर रखती हैं और उनसे अपने उत्पादों का प्रचार करवाती हैं। आज विज्ञापन का एक खास हिस्सा बेब मीडिया के खाते में जाने लगा है। लेकिन विज्ञापनों का वेब पर आना अभी शुरू हुआ है। यह वेब मीडिया के लिए विज्ञापनों का स्वर्ण युग नहीं है। लेकिन भविष्य उज्जवल है। यह भी सच है कि प्रिंट मीडिया अपने देश में कभी खत्म नहीं होगा। साथ ही यह भी सच है कि वेब मीडिया की ऊंचाई किसी भी मीडिया से कमतर नहीं होगी। इसकी वजह है कि वेब मीडिया पर आप अपनी बात खुल कर कह सकते हैं। आप कोई भी रचनात्मक (क्रिएटिव) विचार या लेख बेब मीडिया पर दे सकते हैं। हमारे केंद्र सरकार .या राज्य सरकारों की किसी भी नीति पर त्वरित टिप्पणी ट्विटर या फेसबुक पर आ ही जाती है। इसे सभी जानते हैं। किसी राजनेता का कोई बयान आया नहीं कि लोग अपनी प्रतिक्रियाएं तुरंत व्यक्त करते हैं। चाहे उसका पुट व्यंग्यात्मक हो, संशयात्मक हो या प्रशंसा से भरपूर। यदि जनमानस की प्रतिक्रियाएं जाननी हैं तो आपके पास बेब मीडिया या सोशल मीडिया के अलावा कोई विकल्प है ही नहीं। आपको वेब मीडिया का सहारा लेना ही पड़ेगा। क्योंकि इसे लाखों लोग देखते- पढ़ते हैं। यहां जान- बूझ कर- करोड़ो लोग- नहीं लिखा गया है। क्योंकि कई लोगों को यह अतिश्योक्ति लग सकती है। लेकिन सच यही है कि आज वेब दुनिया से करोड़ो लोग जुड़े हुए हैं।
पिछले दिनों एक प्रमुख व्यवसायी से बातें हो रही थीं। उन्होंने अचानक पूछा- आप दिन भर में कितनी बार अपने मोबाइल पर सोशल मीडिया पर जाते हैं? उत्तर दिया गया- जितनी बार मौका मिलता है। यह तो एक अभ्यास सा हो गया है। उन्होंने कहा- भाई साब, अब सोशल मीडिया के बिना काम नहीं चलने वाला है। मैं भी सोच रहा हूं एक वेब साइट खोल ही लूंं क्योंकि इसकी पहुंच इतनी व्यापक है कि जिसकी कल्पना नहीं की जा सकती है। आप की ही तरह मैं भी खबरों के लिए बार- बार इंटरनेट पर जाता हूं (उन्होंने इंटरनेट नहीं नेट शब्द की इस्तेमाल किया था)।
किसी भी कालेज के छात्र- छात्रा से बातचीत कर आप इस तथ्य की पुष्टि कर सकते हैं। आज ऐसे अनेक लोग हैं जो  बेब मीडिया के संपर्क में नहीं हैं, लेकिन वे इससे जुड़ने के लिए अत्यंत उत्सुक हैं। की बोर्ड वाले मोबाइल को बदल कर वे एंड्राएड मोबाइल लेना चाहते हैं। इस परिवर्तन का एकमात्र कारण है- बेब मीडिया। विज्ञापन की दुनिया के लोग भी अब अंततः मानने लगे हैं कि जो विज्ञापन वेब मीडिया पर आता है, उसका प्रभाव बढ़ ही जाता है।  युवा पीढ़ी तो अब चाहती है कि बेब मी़डिया और ज्यादा फैले। लेकिन वह इसका उत्तर नहीं दे पाती कि कैसा फैलाव आप चाहते हैं?  यह स्पष्ट तो  हो ही गया है कि इक्कीसवीं सदी सोशल मीडिया के अनंत विस्तार का पर्याय है। हां, यह तो निश्चित है कि खबरों या समाचार विश्लेषण या लेख बहुत बड़ें हो तो लोग पसंद नहीं करते। चालीस वर्ष की आयु तक के लोगों की यही राय है कि  समाचार विश्लेषण या लेख अत्यधिक बड़े न हों। बड़े या लंबे लेखों को पढ़ते हुए मन ऊब जाता है। मजबूरन उन्हें बीच में ही छोड़ देना पड़ता है। सोशल मीडिया के साथ यह सुविधा है कि यहां लेख या विश्लेषण लंबे या ऊबाऊ नहीं होते। बेब मीडिया का सूत्र है- सार-सार को गहि लहै, थोथा देई उड़ाय।। (महत्वपूर्ण बातों को ही प्रमुखता देना, व्यर्थ की बातों में न पड़ना)। इक्कीसवीं सदी का यह समय और ज्यादा तथ्यपरक और प्रामाणिकता की मांग करता है। युवा पीढ़ी ज्यादा धैर्य नहीं रख सकती। उसे कोई भी खबर तुरंत चाहिए। कोई भी जानकारी तुरंत चाहिए। इसके लिए वह सोशल मीडिया से जुड़ती है। उसमें रुचि लेती है।
यदि किसी विचार की बार- बार पुनरावृत्ति होती है तो वह धीरे- धीरे लोगों के दिमाग में बैठने लगता है। किसी उत्पाद का विज्ञापन मनुष्य के इस स्वभाव के अनुरूप ही होता है। सोशल मीडिया विज्ञापन का इसलिए कारगर माध्यम बनता जा रहा है कि आप इसे बेबसाइट पर लगातार देख सकते हैं। विज्ञापन का खर्च भी अपेक्षाकृत कम आता है। जिन मूल्यों के लिए युवा पीढ़ी लगातार आवाज उठाती रही है, अब उसे सोशल मीडिया के रूप में अभिव्यक्ति भी मिल गई है। कोई भी युवा किसी भी लेख या टिप्पणी पर तत्क्षण अपनी टिप्पणी लिख सकता है। उसकी यह टिप्पणी लाखों लोगों तक पहुंचती है और उस पर प्रतिक्रियाएं मिलनी शुरू हो जाती हैं। एक व्यक्ति को और क्या चाहिए। यदि किसी सामयिक विषय पर वह अपनी बात सार्वजनिक रूप से कह सकता है या लिख सकता है तो इससे उसमें एक उत्साह का संचार होता है। वह स्वयं को समाज से जुड़ा महसूस करता है।
मान लीजिए आप फलाहार के प्रशंसक हैं। जिन लोगों का पेट खराब या कमजोर है, आप उन्हें कोई संदेश देना चाहते हैं। लेकिन आपके पास कोई मंच नहीं है। लेकिन आपने इस विषय पर कई कारगर प्रयोग किए हैं। तो आप किसी एेसे विषय वाले बेब साइट या ब्लाग को खोज कर उसके माध्यम से अपनी बात कह सकते हैं। आप अपना वेबसाइट भी खोल सकते हैं, हालांकि इसके लिए सक्रियता जरूरी है। एक वेबसाइट खोलना महत्वपूर्ण नहीं है जितना कि उसे संतुलित और नियमित रूप से चलाना। उसमें विषय की विविधता, व्यापकता और गहराई होनी चाहिए। वेब साइट को जारी रखना एक बहुत बड़ी कला है। इसके लिए ठोस तैयारी करनी पड़ती है और यह सबके बस की बात भी नहीं होती। बेब के संसार में सुस्ती या आलस्य क कोई स्थान नहीं है। आपको निरंतर सतर्क और सक्रिय रहना ही पड़ेगा। इसलिए अनेक लोग कोई बेबसाइट न खोल कर किसी वेबसाइट से जुड़ जाते हैं। यह उनके लिए ज्यादा सुविधाजनक होता है। वे अपने लेख या विश्लेषण आदि अपनी सुविधा के अनुसार लिखते हैं और संबंधित वेब या ब्लाग पर पोस्ट कर देते हैं।
वेब मीडिया की महत्ता का एक और उदाहरण देखें। कुछ समाचार पत्र (प्रिंट मीडिया) अपने संस्करणों में क्षेत्र विशेष की ही खबरें देते हैं। जैसे- उत्तर प्रदेश के अखबार देवरिया समाचार, गोरखपुर समाचार, गाजीपुर समाचार या बलिया समाचार के दो या चार पेज छापते हैं। उस क्षेत्र विशेष के लोगों को उस इलाके के अलावा बाकी इलाकों का समाचार नहीं मिल पाता। जैसे गोरखपुर संस्करण वाले अखबार में गाजीपुर का समाचार नहीं होगा या नोएडा संस्करण में गोरखपुर संस्करण की खबरें नहीं होंगी। इस मामले में वेब मीडिया उदार है। वह हर जगह की खबरें फ्लैश करता रहता है। या एक व्यक्ति वेब पर जाकर मनचाही जगह भर कर वहां की खबरें तुरंत पढ़ सकता है। इस तरह वह पूरे देश की खबरें एक साथ पढ़ सकता है। यह बेब मीडिया का सबसे बड़ा योगदान है। वह प्रिंट की तरह पाठक को सीमा में नहीं बांधता। वह पाठक के सामने समूचा संसार खोल कर रख देता है। आप एक बार वेब पेज खोल कर फिर उसे तुरंत बंद नहीं कर सकते। आप रुचि लेकर बेब मीडिया के संसार में जमे रहना चाहेंगे।
आज खाने- पीने और पहनने- ओढ़ने के तरीकों में जबर्दस्त बदलाव आया है। युवा पीढ़ी ही नहीं अन्य आयु वर्ग के लोग भी स्वास्थ्य सचेतन हो गए हैं। वे जानना चाहते हैं कि हम जो खा रहे हैं उसमें पोषक तत्व कितनी मात्रा में है। यह हमें कितना लाभ पहुंचाने वाला है। वेब मीडिया पर इससे जुड़ी भरपूर जानकारी आपको मिल जाती है। आप किसी अन्य माध्यम से इसे नहीं पा सकते। वेब का संसार ही आपको इस संबंध में पूर्ण संतुष्टि देगा।  उदाहरण के लिए  पहले मिठाई इत्यादि के प्रति काफी उत्साह था। हालांकि आज उत्साह कम नहीं हुआ है। लेकिन जब से शोध हुआ है कि ज्यादा चीनी स्वास्थ्य के लिए घातक है, आपको एसे अनेक युवक मिल जाएंगे जो सतर्क हो गए हैं। ऐसे भी युवा हैं जो शौक से बगैर चीनी की चाय पीते हैं।  यही सतर्कता फलों को पकाने वाले केमिकलों को लेकर भी है। जैसे- कार्बाइड डाल कर पपीता, आम या केला पकाने पर उसमें पोषक तत्वों की मात्रा क्या रह जाती है, यह वेब सर्च में मिल जाएगा। यदि सर्वे किया जाए तो पता चलेगा कि स्वास्थ्य और खान- पान संबंधी जानकारियों के लिए बेब मीडिया में जाने वाले लोगों की संख्या लाखों में है। इन युवकों से बात कीजिए तो वे बार- बार कहते हैं- इस वेब साइट पर इस संबंध में अमुक- अमुक जानकारियां हैं या इस वेबसाइट ने तो समूचे शोध का सार तत्व ही रख दिया है। और तो और खाद्य पदार्थों में जिन यथास्थिति वाले रसायनों (प्रिजर्वेटिव केमिकलों) का प्रयोग किया जाता है लोग वेबसाइट पर इसकी जानकारी ढूंढते रहते हैं। यानी वेब, वेब और वेब।
यही नहीं टेक्नालॉजी, साफ्टवेयर टूल, औषधि, पर्यटन, अध्यात्म, खेल, साहित्य, संस्कृति, इतिहास, भूगोल, राजनीति और अन्य अनंत विषयों को खोजने, जानने के लिए लोग लोग वेब मीडिया को ही चुनते हैं। यह उनके लिए आसान भी है और रुचिकर भी। इसलिए वेब मीडिया की स्वीकार्यता तो सिद्ध है ही। क्योंकि लोग अब किसी भी जानकारी के लिए इसी पर निर्भर हैं। यह मनुष्य के अभ्यास में शामिल है। लेकिन वह समय दूर नहीं जब यह मनुष्य का स्वभाव ही बन जाएगा।  अब यह नई बात नहीं रह गई है कि देश- विदेश की कोई भी घटना तुरंत फेस बुक का कोई व्यक्ति फोटो के साथ पोस्ट कर देता है। कई लोगों को तो सबसे पहले किसी घटना की जानकारी फेसबुक से ही मिलती है। दीपिका पादुकोण ने अपने फोटो के बारे में आपत्ति ट्विटर के माध्यम से ही दर्ज की थी। अन्य अनेक विख्यात लोग हैं जो ट्विटर के माध्यम से ही लोगों तक पहुंचते हैं। अमिताभ बच्चन से लेकर आमिर खान तक। हां, अभिनेत्री कैटरीना कैफ इस मामले में अपवाद हो सकती हैं क्योंकि उन्हें लगता है कि ट्विटर, फेसबुक, ब्लाग या ऐसे माध्यम निजता में विघ्न डालते हैं। इसलिए इनसे दूर रहना चाहिए।
लेकिन आम आदमी वेब मीडिया को महत्वपूर्ण मानता है। वह उससे जुड़ कर संतुष्टि पाता है क्योंकि वह अपनी बात अपने तरीके से कह सकता है,जो असंख्य लोगों तक पहुंचती है। उसे लगता है कि कोई पत्रिका या कोई अखबार पता नहीं उसके लिखे को प्रकाशित करेगा या नहीं। चलो इसे वेब पर डाल कर देखते हैं, लोगों की क्या प्रतिक्रिया है। और सच पूछा जाए तो वह इंतजार भी नहीं करना चाहता है। वह चाहता है कि उसके विचार तुरंत ही लोगों तक पहुंचे। वह अपनी टिप्पणी पोस्ट करने के बाद जानना चाहता है कि कितने लोगों ने और किस- किस तरह की प्रतिक्रियाएं व्यक्त की हैं। यह एक जुनून जैसा भी है।

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