शाकाहार का विचार और गाँधी जी

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बाल्यकाल में गांधी को मांस खाने का अनुभव भी मिला। उनकी जिज्ञासा के उत्साहवर्धक में उनके मित्र शेख मेहताब का सहयोग मिला । शाकाहार का विचार भारत की हिंदु और जैन परम्पराओं में  कूट-कूट कर भरा हुआ था .उनकी मातृभूमि गुजरात में ज्यादातर हिंदु शाकाहारी ही थे। इसी तरह जैन भी थे। गांधी का परिवार भी सनातन धर्म परायण था। उच्चशिक्षा के लिए लंदन आने से पूर्व गांधी जी ने अपनी माता पुतलीबाई को एक वचन दिया कि वे मांस -मदिरा के सेवन से दूर रहेंगे। उन्होने अपने वादे रखने के लिए उपवास किए और ऐसा करने से जो अनुभव  मिला वह भोजन करने से नहीं मिल सकता था, उन्होंने जिन्दगी में आगे बढ़ने का दर्शन जो प्राप्त कर लिया था। ज्यों -ज्यों  गांधी जी व्यस्क होते गए वे पूर्णतया शाकाहारी बन गए। उन्होंने शाकाहार के आधारभूत सिद्धांतों  पर बहुत सी लेख भी लिखें हैं जिनमें से कुछ लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के प्रकाशन द वेजीटेरियन में प्रकाशित भी हुए हैं। गांधी जी  अपने प्रवास के दौरान बहुत सी महान विभूतियों से प्रेरित हुए और लंदन वेजीटेरियन सोसायटी के चैयरमेन डॉ० जोसिया ओल्डफील्ड के मित्र बन गए।

हेनरी स्टीफन ‍साल्ट की निबंधों  को पढने के बाद युवा मोहनदास शाकाहारी प्रचारक से मिले और उनके साथ पत्राचार किया। गांधी जी ने  शाकाहारी भोजन की वकालत करने में काफी समय बिताया। गांधी जी का कहना था कि शाकाहारी भोजन न केवल शरीर की जरूरतों को पूरा करता है बल्कि यह आर्थिक प्रयोजन की भी पूर्ति करता है जो मांस से होती है और फिर भी मांस अनाज, सब्जियों और फलों से अधिक मंहगा होता है। इसके अलावा कई भारतीय जो आय कम होने की वजह से संघर्ष कर रहे थे, उस समय जो शाकाहारी के रूप में दिखाई दे रहे थे वह आध्यात्मिक परम्परा ही नहीं व्यावहारिकता के कारण भी था.वे बहुत देर तक खाने से परहेज रखते थे , और राजनैतिक विरोध के रूप में उपवास रखते थे   उनकी आत्मकथा में यह परिलक्षित होता  है कि शाकाहारी होना ब्रह्मचर्य  में गहरी प्रतिबद्धता होने की शुरूआती सीढ़ी है, बिना कुल नियंत्रण ब्रह्मचर्य में उनकी सफलता लगभग असफल है.

गाँधी जी शुरू से फलाहार करते थे . अपने चिकित्सक की सलाह से बकरी का दूध पीना शुरू किया था.वे कभी भी दुग्ध -उत्पाद का सेवन नही करते थे क्योंकि पहले उनका मानना था की दूध मनुष्य का प्राकृतिक आहार नहीं होता और उन्हें गाय के चीत्कार से घृणा  थी .तब और आज भी  उसी गाँधी के
देश में गौ हत्या चरम पर है .शाकाहार पीछे छुट रहा है .उनके पदचिन्हों पर चलने का दंभ भरने वालों को इसकी कोई चिंता नहीं है . आज जबकि हम हिंद स्वराज में व्यक्त गाँधी के विचारों पर बहस कर रहे हैं तब शाकाहार और गौ हत्या सम्बन्धी गाँधी जी की इच्छा पर अमल करना हमारा नैतिक  दायित्व बनता है .

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