आजाद भारत का आगाज़

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1बी एन गोयल

“बहुत साल पहले हमने भाग्य के साथ एक वायदा किया था और अब उस  वायदे को पूरा  करने का समय आ गया है. जब आधी रात के घंटे घड़ियाल बजेंगे, जब सारी दुनिया सो रही होगी, तब भारत नया जीवन और स्वतंत्रता प्राप्त कर जागेगा……” भूतपूर्व प्रधानमंत्री पंडित जवाहलाल नेहरु का यह ऐतिहासिक भाषण है जो उनने 14 -15 अगस्त 1947 की मध्य रात्रि को पार्लियामेंट के सेंट्रल हाल से दिया था. इस भाषण से पहले शंखनाद के साथ आजाद भारत का आगाज़ हुआ. भारतीय प्रसारण के लिए भी यह न केवल एक ऐतिहासिक क्षण था वरन परीक्षा की घडी भी थी क्योंकि 15 अगस्त 1947 की सुबह एक नयी ताज़गी ले कर आ रही थी. 14 -15 अगस्त का यह विशेष प्रसारण रात्रि में ठीक 11.00 शुरू हुआ और 0015 तक चला. इस महत्वपूर्ण प्रसारण को इस तीन दृश्यों में देखा जा सकता है.

दृश्य 1. (क्रमवार विवरण इस प्रकार था) – गुरूवार – 14 अगस्त 1947, रात्रि 11.00 बजे

1.       संसद भवन के केन्द्रीय कक्ष में स्वतंत्र भारत का सबसे पहला और सबसे महत्वपूर्ण सत्र प्रारम्भ हुआ. संविधान सभा के अध्यक्ष के रूप में मध्य में स्थित कुर्सी पर डॉ. राजेंद्र प्रसाद विराजमान थे. अध्यक्ष महोदय की अनुमति से कार्यक्रम शुरू हुआ

2.       सबसे पहले श्रीमती सुचेता कृपलानी के स्वर में राष्ट्रीय गीत ‘वन्दे मातरम’ के पहले पद का गायन. हुआ

3.       अध्यक्ष डॉ. राजेंद्र प्रसाद का हिंदी में अभिभाषण हुआ.

4.       भाषण के अंत में डॉ. राजेंद्र प्रसाद के प्रस्ताव पर पूरे सदन ने दो मिनिट का मौन रख कर

स्वतंत्रता संग्राम के शहीदों को श्रधांजलि अर्पित की.

5.       पंडित नेहरु ने ‘नियति के साथ वायदा’ वाला अपना प्रसिद्ध अभिभाषण दिया. “…….आज हम भारत के लोगों से, जिन के प्रतिनिधि के रूप में हम यहाँ खड़े हैं, निवेदन करते हैं कि वे इस देश को महान बनाने के काम में निष्ठा और विश्वास के साथ जुड़े. …..हमें स्वतंत्र भारत को एक श्रेष्ठ और सुन्दर स्थान बनाना है जहाँ उस के सब बच्चे पारस्परिक शांति और सद्भाव से रह सके.”  नेहरु जी ने प्रस्ताव रखा जो एकमत से पारित हो गया.

6.       अंत में सभी सदस्यों द्वारा शपथ ग्रहण समारोह

7.       संविधान सभा द्वारा सत्ता ग्रहण की अंतिम वॉयसराय (सम्राट के प्रतिनिधि लार्ड माउंटबैटन) को सूचना. असेम्बली द्वारा उनकी स्वतंत्र भारत के प्रथम गवर्नेर जनरल के रूप में नियुक्ति की सूचना उन्हें दी गयी.

8.       भारतीय महिला समाज की ओर से, श्रीमती सरोजिनी नायडू, की अनुपस्थिति के कारण, श्रीमती हंसा मेहता ने असेम्बली को तिरंगा झंडा प्रस्तुत किया. इन में प्रमुख नाम थे – सरोजिनी नायडू, विजय लक्ष्मी पंडित, अमृत कौर, दुर्गा बाई, अम्मू  स्वामीनाथन, सुचेता कृपलानी, कुदेसिया एजाज़ रसूल,  ज़रीना करीमभाई, पूर्णिमा बनर्जी, कमला चौधरी आदि. कार्यक्रम का समापन श्रीमती सुचेता कृपलानी के ‘सारे जहाँ से अच्छा’ की चार पंक्तियों और ‘जन गण मन’ के एक पद के गायन से हुआ.

9.       इस प्रकार सदन शुक्रवार 15 अगस्त 1947 के सुबह दस बजे तक के लिए स्थगित हो गया.

 

इस पूरे कार्यक्रम का केंद्रीय हाल से सद्य (LIVE) प्रसारण किया गया और उस समय के सभी छह आकाशवाणी केन्द्रों से अनुप्रसारित (Relay) किया गया. [i] यह एक ऐसी रात्रि थी जिस में पूरा देश लगता था एक अनूठी मस्ती में झूम रहा हो. जिन लोगों ने उस मस्ती को देखा अथवा भोगा – उस की छवि उन के ह्रदय पटल से मिट नहीं सकती.

 

गुजराती के प्रसिद्ध लेखक स्व० चन्द्रकान्त बक्षी ने अपनी पुस्तक ‘शब्द्पर्व’ [ii]में लिखा  है कि उन के गाँव पालनपुर में उस रात कोई सोया नहीं था लेकिन किसी की समझ में यह भी नहीं आ रहा था कि वह करे तो क्या करे. उन के गाँव में उस समय केवल तीन रेडियो सेट थे और वे स्वयं उस समय गाँव के बाहर पटेल के होटल पर रेडियो सुनने गए थे. रेडियो सुनने की ललक इतनी अधिक थी की होटल के रेडियो से केवल शोर और गडगडाहट के सिवाय कुछ नहीं सुनायी दे रहा था लेकिन ‘हम अपनी भावुकता में उसे भी ध्यान से सुन रहे थे’. बक्षी जी लिखते हैं कि उन की आयु उस दिन 14 वर्ष 11 महीने 25 दिन थी अर्थात न तो वे इतने छोटे थे कि घटना को समझ न सके और न ही इतने बड़े कि कहीं दखल दे सकें. लाल कृष्ण अडवाणी जी उस समय 20 वर्ष के थे और कराची में रहते थे.  खुशवंत सिंह की आयु उस समय 32 वर्ष थी और वे लाहौर में वकालत करते थे. प्रसिद्ध नर्तक बिरजू महाराज साढ़े आठ वर्ष के थे और लखनऊ में रहते थे. कश्मीर के युवराज कर्ण सिंह 15 वर्ष के थे और पैर में चोट लग जाने के कारण एक प्रकार से व्हील चेयर पर ही रहते थे.

 

2दृश्य 2. 15 अगस्त की सुबह :

इस समय पूरे देश की जनता का ध्यान लाल किले पर था. जनता का सैलाब लाल किले की तरफ जाने के लिए उमड़ा पड़ रहा था. इसी भीड़ में स्वतंत्र भारत के प्रथम नागरिक के रूप में लार्ड माउंटबैटन और उन की पत्नी भी थी. यद्यपि वे दोनों एक बग्गी में थे लेकिन वे दोनों भीड़ में कुछ देर के लिए अलग थलग हो गए थे. वातावरण में ‘पंडित नेहरु की जय’ – ‘पंडित माउंटबैटन की जय’ के नारे गूँज रहे थे. प्रधान मंत्री ने ठीक समय पर स्वतंत्र भारत का तिरंगा झंडा फहराया और देश को संबोधित किया. यह सब पूरा कार्यक्रम आकाशवाणी के सभी केन्द्रों से प्रसारित किया गया.

 

दृश्य 3.  राजपथ से:

लाल किले के बाद यह सारा हजूम राजपथ (उस समय का किंग्सवे) की ओर बढ़ रहा था क्योंकि अब नेहरु जी को वहां पर तिरंगा फहराना था. भीड़ की मस्ती और उल्लास अवर्णनीय था. आकाशवाणी से पूरे कार्यक्रम की रनिंग कमेंटरी चल रही थी और बीच बीच में देश भक्ति के गीत बज रहे थे. इन में अधिकाँश गीत आकाशवाणी के अपने बनाये हुए थे. ……लेकिन जहाँ एक ओर यह प्रसन्नता और उल्लास का वातावरण था दूसरी ओर देश के विभाजन के परिणामस्वरूप बनी नयी अंतर्राष्ट्रीय सीमा पर मार धाड़ के की ख़बरें भी आ रही थी. करोड़ों की संख्या में लोग इस पार से उस पार आ जा रहे थे. जिस के हाथ में जो कुछ भी आया वही उसे ही अपना भाग्य और अपनी सम्पति मान कर चल दिया.

 

यहाँ आकाशवाणी के सामने दूसरी बड़ी ज़िम्मेदारी आयी. विभाजन से प्रभावित लोग अपने सगे सम्बन्धियों और रिश्तेदारों की सुरक्षा और कुशलता के बारे में चिंतित थे. इस अवसर पर आकाशवाणी के दिल्ली केंद्र पर एक बहुत बड़ा दायित्व आ गया. रेडियो से इन लोगों की सुरक्षा, इन के खोज बीन की सूचना, इन के आने जाने के लिए रेल और अन्य साधनों की ख़बरें और इन के भेजे गए सन्देश प्रसारित किये जाने लगे. लूथरा जी ने अपनी पुस्तक में चर्चा की है कि 22 अगस्त 1947 से ये सूचनाएँ पहले प्रतिदिन पांच मिनिट के लिए प्रसारित की जाने लगी. 5 नवम्बर तक इन सूचनाओं की प्रतिदिन औसतन संख्या 1400 तक पहुँच गयी. प्रसारण समय भी तीन घंटे प्रति दिन हो गया.’ लूथरा जी ने लिखा है ‘चूँकि वे स्वयं दिल्ली केंद्र पर काम कर रहे थे और इस लिए वे पूरे ओपरेशन का एक महत्वपूर्ण हिस्सा थे. वे लिखते हैं कि ‘एक अहम् काम इन सूचनाओं को सम्पादित करना होता था क्योंकि इन के प्रसारण का उद्देश्य कम से कम शब्दों में अधिक से अधिक सूचना देना होता था. मुख्य बात ध्यान में रखनी होती थी कि सूचना देने में, उनके शब्दों में अथवा उन के लहजे में कहीं मानवीयता का अंश न छूट जाये. इस के लिए एक अलिखित नियमावली भी बनाई गयी थी. [iii]

 

दृश्य – 4 –

यदि हम इतिहास में थोडा और पीछे जाएँ और 22 मार्च 1947 का दिन देखें. संयोगवश यह भी भारतीय इतिहास का एक महत्वपूर्ण दिन बन गया था. इस दिन लार्ड माउंटबैटन ने भारत में ब्रिटिश सरकार के अंतिम वॉयसरोय के रूप में पद भार सम्हाला था. यद्यपि शुरूआती योजना के अनुसार भारत को 15 जून, 1948 में आज़ादी देने का प्रावधान किया गया था और प्रधानमंत्री एटली और सम्राट ने इसी ब्रीफ के साथ उन्हें भारत भेजा था लेकिन 22 मार्च 1947 और 15 जून 1948 में डेढ़ वर्ष का अंतर था और लार्ड माउंटबैटन के पास इतना समय नहीं था. उन्हें इतिहास में अपना नाम प्रसिद्ध करने की बहुत जल्दी थी. अतः वायसराय बनने के तुरंत बाद  लार्ड माउंटबैटन की इस दिशा में गतिविधियाँ शुरू हो गयी थी. अन्तत: अपने सतत प्रयासों के परिणाम स्वरुप उन्होंने सम्राट और सम्राज्ञी को 15 अगस्त 1947 को भारत को स्वतंत्रता देने को राजी करा लिया.

 

परिणाम स्वरुप अब मीटिंगों का दौर दौरा बढ़ गया, सभी नेता अत्यधिक व्यस्त हो गए थे. विभाजन की रूप रेखा भी तैयार हो रही थी. इसी गहमा गहमी में प्रसारण के विभाजन की प्रक्रिया भी शुरू करनी थी और दिन प्रतिदिन का प्रसारण भी यथावत चलाना था.

15 अगस्त नज़दीक आ रही थी – इस दिन तक वे एक पूर्ण देश के वायसरॉय थे. 14 अगस्त को वे नव निर्मित देश पाकिस्तान की संविधान सभा में भाषण देने कराची गए. यह एक प्रकार से दो देशों की औपचारिक मान्यता थी.

भारत के प्रसारण इतिहास के ये कुछ ऐसे पृष्ठ हैं जिन की ओर संभवतः किसी इतिहासकार ने ध्यान नहीं दिया – न ही किसी ने इस की महत्ता को समझा. उस संक्रमण काल की प्रसारण सामग्री को आने वाली पीढ़ीयों के लिए संजो कर भी नहीं रखा गया. इस के लिए एक संग्रहालय बनाने की आवश्यकता थी. 15 अगस्त और उस के बाद के दिनों में कुछ अन्य नेताओं के भाषण आकाशवाणी से प्रसारित किये गए – इन में प्रमुख थे लार्ड माउंटबैटन, राजगोपालाचार्य, सरदार पटेल, कन्हैयालाल मानिकलाल मुंशी, सरोजिनी नायडू, आदि. प्रसारण के कुछ दिग्गज जैसे की राशिद अहमद और ज़ुल्फ़िकार बुखारी पाकिस्तान चले गए उन्हें वहां पूरा सिस्टम नए सिरे से जोड़ना था. उस समय के हमारे प्रमुख प्रसारण कर्ता थे – खुशवंत सिंह, नीरद चौधरी, बलवंत सिंह आनंद, कर्तार सिंह दुग्गल, रोमेश चन्द्र, मेलविल डे मेलो, शिवकुमार त्रिपाठी, गोपाल दास, पी वी कृष्णामूर्ति, गिज्जुभाई व्यास आदि. यदि इन सब के संस्मरण भी एकत्र किये गए होते तो यह भी एक ऐतिहासिक धरोहर होती. स्वतंत्रता दिवस के इस पावन पर्व पर इन सभी को नमन.

[i] उस समय देश में आकाशवाणी के 9 केंद्र थे जिनमें से तीन केंद्र (लाहौर, पेशावर और ढाका) उस समय के पाकिस्तान के पास चले गए और भारत के पास छह केंद्र रह गए
[ii] बक्षी, चंद्रकांत, शब्द् पर्व, नवभारत साहित्य मंदिर, अमदावाद -380006 ,प 1-3
[iii] Luthra, H R, Indian Broadcasting, Publication Division, New Delhi –Pp173

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बी एन गोयल
लगभग 40 वर्ष भारत सरकार के विभिन्न पदों पर रक्षा मंत्रालय, सूचना प्रसारण मंत्रालय तथा विदेश मंत्रालय में कार्य कर चुके हैं। सन् 2001 में आकाशवाणी महानिदेशालय के कार्यक्रम निदेशक पद से सेवा निवृत्त हुए। भारत में और विदेश में विस्तृत यात्राएं की हैं। भारतीय दूतावास में शिक्षा और सांस्कृतिक सचिव के पद पर कार्य कर चुके हैं। शैक्षणिक तौर पर विभिन्न विश्व विद्यालयों से पांच विभिन्न विषयों में स्नातकोत्तर किए। प्राइवेट प्रकाशनों के अतिरिक्त भारत सरकार के प्रकाशन संस्थान, नेशनल बुक ट्रस्ट के लिए पुस्तकें लिखीं। पढ़ने की बहुत अधिक रूचि है और हर विषय पर पढ़ते हैं। अपने निजी पुस्तकालय में विभिन्न विषयों की पुस्तकें मिलेंगी। कला और संस्कृति पर स्वतंत्र लेख लिखने के साथ राजनीतिक, सामाजिक और ऐतिहासिक विषयों पर नियमित रूप से भारत और कनाडा के समाचार पत्रों में विश्लेषणात्मक टिप्पणियां लिखते रहे हैं।

2 COMMENTS

  1. तथ्यों सहित सभी ऐतिहासिक दृष्टिकोणों को प्रस्तुत करता आलेख।
    प्रवक्ता खुलते ही सामने आ गया।
    *हिन्दुस्थान टाइम्स* का छाया चित्र भी प्रभावी और आलेख भी संक्षेप में सारे कोण प्रस्तुत करता है।
    आ. गोयल जी महोदय को अनेकानेक धन्यवाद।
    प्रवक्ता भी दिन प्रति दिन चंद्र की कलाओं की भाँति परिमार्जित हो रहा है।
    प्रिय संजीव सिन्हा, और भारत भूषण जी सहित अन्य परदे के पीछे प्रसिद्धि विन्मुख कार्य करनेवाले प्रबंधक और कार्यकर्ता भी इस यज्ञमें अपने परिश्रम से, निरन्तर अपनी आहुति अर्पण कर ही रहे हैं।
    सभी को इस स्वातंत्र्य दिन पर शुभेच्छाएँ।

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