जून 2014 मध्य एशिया मे इस्लामिक राज्य इराक़ और सीरिया (आइसिस) के अचानक उद्भव ने विश्व समुदाय को ना सिर्फ आश्चर्यचकित किया बल्कि, सामरिक विषयो के संदर्भ मे जानकारी रखने वाले एक्सपर्ट्स को अंतराष्ट्रीय शांति वह सुरक्षा के संदर्भ नई चर्चा को भी बल दिया। विषय की गम्भीरता का पता इस बात से चलता है कि इस सम्पूर्ण विश्व में इस दैत्य रूपी शक्ति के उदभव ने शांति और सुरक्षा से सम्बंधित चर्चाओ को इस तरह प्रभावित किया की इराक से लेकर मलेशिया तक सभी देशो में इसको रोकने के लिए उपायो की खोज एकदम से शुरू होने लगी। चर्चा को आगे बढ़ने से पेहले ये जान लेना अतिआवश्यक हो जाता है की वास्तव मे ये आइसिस रूपी आफत क्या है।
इस्लामिक राज्य इराक़ और सीरिया जोकि ISIS/ISIL/IS के नाम से भी जाना जाता है, अबू बकर बग़दादी के द्वारा स्वयम् घोषित किया गया एक अमान्यता प्राप्त इस्लामिक राष्ट्र है जिसे पश्चिमी राष्ट्रो दवारा एक जिहादी चरमपंथी आतंकवादी संगठन घोषित किया गया है। सयुक्त राष्ट्र ने भी इस संगठन को एक आतंकवादी संगठन ही माना है। इस आतंकवादी संगठन ने सीरिया व इराक़ के एक बड़े भू भाग को अपने कब्जे मे ले रखा है तथा पश्चिमी एशिया मे इस्लामिक उम्मा की स्थापना करना चाहता है। अगर बात इस संगठन की उत्पति की करे तो यह संगठन 1999 मे जमात- अल- तवाहिद वल- जिहाद के रूप स्थापित हुआ, जो बाद मे जाकर अल क़ायदा- इराक़ के रूप मे विकसित हुआ ये वही संगठन था जिसने 2004 मे अमेरिका के खिलाफ जंग भी लड़ी, उस समय इसके प्रमुख मुसाब अल-ज़रवाकी थे। अमेरिका व उसके सहयोगी उत्तर अटलांटिक सन्धि संघ के द्वारा इराक मे सद्दाम हुसैन की सरफ़रसती स्थापित “बाथ पार्टी” की कमर तोड़ने के बाद जो खालीपन पैदा हुआ उसने चरमपंथियो के उद्भव के लिये मार्ग प्रशस्त किया जिसमे इस्लामिक राज्य इराक़ और सीरिया (ISIS) एक दैत्याकारी शक्ति के रूप मे उभर के सामने आयी।
सामरिक विषयो के जानकारो की बात माने ISIS रूपी दैत्य की उत्पति के पीछे विभिन्न देशो का अप्रत्यक्ष सहयोग है जो छुपकर इसे सहायता दे रहे है। ध्यान देने योग्य बात है की ये संगठन अमेरिका के लिये सिरदर्द तब बना जब यह इरबील के करीब पहुच गया और इसके जिहादियो ने दो अमरीकी पत्रकारो का सिर कलम कर दिया। परिणामस्वरूप सयुक्त राज्य अमेरिका ने सुरक्षा के मध्य नजर 3,500 अमीरीकी नौसैनिको को वहा स्थित कॉन्सुलेट मे स्थापित किया। एक तथ्य यह भी निकल कर सामने आ रहा है की अमेरिका द्वारा अपने नौसैनिको को इरबील भेजने के पीछे मुख्य उदेश्य ExxonMobil and Chevron के हितो की रक्षा करना है जो इस समय इराक़ी कुर्दिस्तान (इरबील) मे तेल खनन का कार्य कर रही है। सीरियाई पत्रकार वाहिद आवाद के अनुसार मध्य एशिया की वर्तमान स्थिति- खासकर इराक़ के संदर्भ मे- प्राकृतिक संपदा को हड़पने की पुरानी नीति का नया परिणाम है जिसने एक बार फिर मध्य एशिया को जंग की आग मे झोक दिया है और ये वो बीमारी है जो जल्दी से ठीक होने वाली भी नहीं है। अमरीका का तानाशाह सरकारो के साथ सम्बंध इस संदर्भ मे अनदेखा नहीं किया जा सकता जोकि अमेरिका के हितो कि राजनीति का एक अभिन्न अंग है। इस ही हितो क़ी राजनीति के अंतर्गत ही सीरिया मे असाद क़ी सरकार को सत्ता से हटाने के लिये अमेरिका ने पेहले खुद सैनिक शक्ति के साथ घुसने क़ी कोशिश क़ी पर जब यह नीति असफल हुई तो विद्रोहियो को हथियार उपलब्ध करवाकर सीरिया मे ग्रह युद्ध क़ी स्थिति को पैदा किया। यदि बिन्दुओ को जोड़ा जाये तो बड़ी आसानी से ज्ञात हो जाता है इस दैत्य रूपी शक्ति के विकास में अमरीका की भूमिका को नज़रअन्दाज़ नही किया जा सकता है
सचाई चाहे जो भी हो यह तो सत्य है कि ISIS ने एक बार फिर मध्य एशिया को युद्ध की आग में जलने के लिए छोड़ दिया है।