भारत में भाषा का मसला – (२)

                    
                      भारत के हित में देश के भाषा प्रेमियों को अपने-अपने आग्रह छोड़ देना चाहिए क्योंकि अंग्रेजों की “फूट डालो राज करो” की नीति का यही एकमात्र तोड़ है और यही न्यायपूर्ण भी है। 
                   हिन्दी शक्तिशाली भाषा है क्योंकि वह देश के बहुसंख्यक वर्ग की भाषा है। पूरे भारत में उसके बोलने वाले पाए जाते हैं। संचार माध्यमों पर भी वह बखूबी प्रचलित है। समृद्ध साहित्य से संपन्न है। अतः वह अपने आप ही विस्तार पा रही है और पाएगी। क्षेत्रीय भाषाओं से उसके अस्तित्व को मिट जाने का कोई खतरा नहीं है किंतु देश की अन्य भाषाएं जो किसी क्षेत्र विशेष और लोगों तक सीमित हैं, उन्हें हिन्दी से उतना ही खतरा है जितना अंग्रेजी से। इसके विपरीत हिन्दी भाषा को इन क्षेत्रीय भाषाओं से दूर-दूर तक कोई खतरा नहीं है। हिन्दी को खतरा है तो सिर्फ और सिर्फ अंग्रेजी से। अतः जो लोग हिन्दी भाषा को देश की राष्ट्रभाषा के एकमात्र विकल्प के रूप में देखते हैं, उन्हें चाहिए  कि वे क्षेत्रीय भाषाओं से हिन्दी की समरसता बढ़ाने का जतन करें और अंग्रेजी से मुकाबला करें। क्षेत्रीय भाषाओं के साथ हिन्दी का रिश्ता ऐसा होना चाहिए जैसा छोटी बहनों के साथ बड़ी बहन का होता है और अंग्रेजी के साथ सौतेली बहन का। भारतीय संस्कृति में बड़े, अपने प्रभाव से छोटों को भयभीत नहीं करते अपितु अपने संरक्षण में, छत्रछाया में उन्हें फलने-फूलने का अवसर देते हैं। हिन्दी को क्षेत्रीय भाषाओं से तालमेल बैठा कर सम्मान पाने का और अंग्रेजी से प्रतिस्पर्धा कर  विजयी होने का मार्ग अपनाना चाहिए । यह देश के हित में है, हिन्दी के हित में है और क्षेत्रीय भाषाओं के हित में भी है। 
             विगत दो माह में दो बार कर्नाटक और महाराष्ट्र भ्रमण करने का अवसर मिला। बहुत सुखद लगा यह देख कर कि वहाँ के लोग अपनी भाषा के प्रति बहुत समर्पित और दृढ़  हैं। खासतौर से कर्नाटक के लोगों में अपनी भाषा के प्रति विशिष्ट सम्मान और लगाव महसूस हुआ। कर्नाटक में केंद्रीय सरकार के कार्यालयों के नामपटों के अतिरिक्त हिन्दी के दर्शन कर पाना लगभग असंभव है। दुकानों, कार्यालयों, घरों के नामपटों पर अधिकांशत: कन्नड़ भाषा ही विराजमान है, कुछ हद तक अंग्रेजी के साथ।  कई शहरों और गांवों में तो केवल कन्नड़ मैं ही सब कुछ लिखा होने के कारण यह जानना भी मुश्किल हो गया कि हम किस शहर या गांव से गुजर रहे हैं। स्थानीय निवासी आपसी व्यवहार में तो कन्नड़ भाषा का प्रयोग करते ही हैं लेकिन अ-कन्नड़ भाषी खासतौर से हिन्दी भाषी लोगों से वह हिन्दी आते हुए भी हिन्दी में व्यवहार नहीं करते। मुझे लगता है अपनी भाषा के संरक्षण के लिए यह सर्वोत्तम तरीका है। यदि हम हिन्दी भाषी लोग भी अपने प्रदेशों में आने वाले बाहरी लोगों से अंग्रेजी या अन्य किसी भाषा में बात ना करें, केवल हिन्दी में ही बात करने का आग्रह रखें और हिन्दी भाषी क्षेत्रों से बाहर जाने पर हम स्थानीय लोगों से व्यवहार करने के लिए अंग्रेजी का सहारा ना लेकर टूटी फूटी ही सही पर स्थानीय भाषा को अपनाने की कोशिश करें, स्थानीय भाषा के प्रति सम्मान दर्शाएं तो हम हिन्दी और सभी भारतीय भाषाओं को ज्यादा अच्छी तरह से बचा पाएंगे और विस्तार दे पाएंगे। 
                श्रवणबेलगोला में भगवान बाहुबली के महामस्तकाभिषेक दर्शन के लिए पहाड़ पर चढ़ते समय मार्ग के चप्पे-चप्पे पर कर्नाटक पुलिस बल के अलावा बड़ी संख्या में सेवाभावी, मेहनती, विनम्र, ईमानदार स्थानीय लोगों को सेवारत पाया जो बुजुर्गों, महिलाओं, अधिक वजन के लोगों, छोटे बच्चों को पहाड़ पर चढ़ने में मदद कर रहे थे। सबके हाथ में पानी की एक-एक बोतल थी जिसे दिखाकर वे बार-बार हमारी आवश्यकता पूछ लेते थे। किसी को पहाड़ चढ़ने में तकलीफ हो तो वह हाथ पकड़ कर उन्हें पहाड़ चढ़ा रहे थे, चिकित्सकीय सहायता की जरूरत होने पर उपलब्ध करा रहे थे, प्रसन्नतापूर्वक। यात्री उनसे किसी भी भाषा में बात करें, वह समझें या ना समझें, कन्नड़ भाषा में ही जवाब दे रहे थे या संकेतों से काम चला रहे थे। दोनों पक्षों को एक दूसरे की भाषा न आने पर भी हमारे बीच संवाद बखूबी हो रहा था। मैं प्रभावित थी उनके सेवा भाव से, उनकी कर्तव्यनिष्ठा से, उनके सद्व्यवहार से। इन स्वयं सेवकों में स्काउट्स एवं गाइड्स बालक-बालिकाएं भी थे। पहाड़ से वापसी की यात्रा में मैंने उन बालक बालिकाओं को भगवान का चरणोदक देकर दोस्ती का हाथ बढ़ाया और बातों ही बातों में मैं उन्हें भाषा और भारत के विषय पर ले आई। पहले तो उन्होंने मेरे हिन्दी में पूछे गए प्रश्नों के जवाब कन्नड़ में दिए पर जब मैंने उनसे कहा कि मुझे कन्नड़ नहीं आती है, मैं सीखना चाहती हूं, बताओ, किताब कहां मिलेगी, तो उनकी बांछें खिल गई। मैंने उनसे कहा मुझे इंग्लिश आती है लेकिन मैं बोलना नहीं चाहती। मुझे हर्ष मिश्रित आश्चर्य हुआ उनके मुंह से “यस यस!आई हेट अंग्रेजी” सुनकर। अगले ही पल “बट आई हेट हिन्दी टू” सुनकर धक्का लगा हालांकि मैंने उन्हें अनुभव नहीं होने दिया। अब कुछ कन्नड़,  कुछ हिन्दी, कुछ संकेतों में हमारी बात होने लगी। किशोरवय के बालक-बालिकाओं के व्यवहार से ऐसा प्रतीत हो रहा था जैसे उन्हें बचपन से प्रशिक्षित किया जाता हो, बाहरी भाषाओं से दूरी बनाने के लिए और अजनबियों से भी अपनी स्थानीय भाषा में ही व्यवहार करने के लिए, विशेषकर हिन्दी भाषा में व्यवहार ना करने के लिए। जिस उम्र के वे बालक-बालिकाएं थे, बिना प्रशिक्षण के उनमें इतनी दृढ़ता संभव प्रतीत नहीं होती। कहना न होगा कि यह प्रशिक्षण घर से ही शुरू हो जाता होगा, माँ की लोरियों के साथ। शायद वे लोग इसी तकनीक से अपनी भाषाओं को इतने अच्छे से संभाले हुए हैं।
                उनके इस व्यवहार से उनके प्रति वैमनस्य पालने की बजाय क्यों ना हम उनसे कुछ सीखें। जिस तरह तमिल, तेलुगु, कन्नड़, मलयालम भाषी लोग हिन्दी भाषी क्षेत्रों में आकर हिन्दी भाषी लोगों से व्यवहार करते हुए हिन्दी सीख गए हैं और हम से हिन्दी में व्यवहार करते हैं लेकिन अपने घरों में और बाहर भी आपस में, अपनी मातृभाषा का ही प्रयोग करके उसे भी सुरक्षित  रखते हैं, उसी प्रकार हिन्दी भाषी क्षेत्रों से अ-हिन्दी भाषी क्षेत्रों में जाने वाले  लोग उनके क्षेत्रों में जाकर उनसे व्यवहार करने के लिए अंग्रेजी का सहारा ना लेकर, वहां की स्थानीय भाषा को ही अपनाएं है और अपने घरों में अपनी मातृभाषा में ही बात करें तो अंग्रेजी अपने आप चलन से बाहर हो जाएगी। इस तरह सभी भारतीय भाषाएं सर्वग्रासी अंग्रेजी से सुरक्षित भी हो जाएंगी और उनकी आपसी समरसता का विकास भी तीव्र गति से हो सकेगा। इसी समरसता से जन्म होगा भारत की राष्ट्रभाषा का जो उत्तर, दक्षिण, पूरब, पश्चिम सभी को समान रुप से स्वीकार होगी। राष्ट्रभाषा के पद पर वही भाषा पदस्थ होने योग्य है जो सभी को स्वीकार हो। अतः अच्छा होगा यदि हम सभी भाषा के नाम पर आपस में झगड़ने की बजाए मिल जुलकर राष्ट्रभाषा के सृजन का पुरुषार्थ करें। 
                  यह भी अवगत करा दूं कि उन्हें हिन्दी से नफरत होते हुए भी भारत से कोई एतराज नहीं है। भारत से वे उतना ही प्यार करते हैं जितना हम हिन्दीभाषी। भारत केवल हिन्दीभाषियों का नहीं, उनका भी देश है, इंडिया नहीं।
विजयलक्ष्मी जैन  

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here