कानून नहीं है श्रीदेवी के रास्ते की बाधा

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अन्नापूर्णा

यह कहानी है धारवाड़ जिले के धारवाड़ तालुका में बसे बेलुरु ग्राम पंचायत की श्रीदेवी भिमप्पा तलवाड़ा की। श्रीदेवी बेलुरु पंचायत में पंचायत सदस्य के रूप में अपनी जिम्मेदारियां निभा रही हैं । श्रीदेवी दोनों ही बार इस पंचायत में सदस्य पद पर अनुसूचित जनजाति महिला की आरक्षित सीट पर चुन कर आई। पांचवीं कक्षा पास श्रीदेवी फिलहाल अभी वार्ड नंबर पांच की सदस्य हैं। श्रीदेवी के परिवार में कुल चार सदस्य हैं। परिवार की आय मुख्य साधन खेती-बाड़ी है जिससे सालाना तकरीबन दो लाख रूपये की आमदनी हो जाती हैं। बेलुरु ग्राम पंचायत की जनसंख्या  लगभग 4000 की जिसमें तकरीबन 1800 महिलाएं हैं । याल्लाप्पा कडली इस पंचायत के अध्यक्ष हैं। पंचायत में 8 पुरूष और 8 महिला सदस्य हैं। बेलुरु ग्राम पंचायत के अंतर्गत आने वाले गांव हेगकारी और नेरलकाट्टी हैं।

श्रीदेवी पहली बार पंचायत सदस्य नहीं बनी हैं। वह इससे पहले  2010 में भी पंचायत सदस्य के पद पर रह चुकी हैं। श्रीदेवी ने अपने पहले कार्यकाल में गाँव के विकास के लिए काफी अच्छा काम किया था इसीलिए गाँव वालों ने उनको दूसरी बार फिर समर्थन देकर पंचायत सदस्य बनाया। दो बार ग्राम पंचायत का चुनाव जीतने के बाद श्रीदेवी की पंचायत के कामों को लेकर गहरी समझ हो चुकी है ।

श्रीदेवी के मुताबिक 2015 में बेलुरु पंचायत की सीट अनुसूचित जनजाति महिला वर्ग के लिए आरक्षित थी।  इसी के चलते श्रीदेवी ने दोबारा पंचायत चुनाव में जाने का मन बनाया। श्रीदेवी ने बताया कि चूंकि कर्नाटक में पंचायत चुनाव में किसी भी प्रकार का शिक्षा का नियम नहीं था इसी वजह से मुझे चुनाव में जाने का मौका मिल पाया। अपने पहले कार्यकाल के दौरान श्रीदेवी ने पंचायत के विकास के लिए काफी काम किया और उसको दूसरे कार्यकाल में भी जारी रखा। इसी कारण श्रीदेवी गांव में काफी लोकप्रिय हुईं।

श्रीदेवी ने जब पहली बार चुनाव  में प्रतिभाग किया तो वह थोड़ी असहज और डरी हुई थीं। उनको लगता था कि वह कम पढ़ी लिखी हैं और उन्होंने इससे पहले कभी भी पंचायत का काम काज नहीं किया था। उनको इस बात का डर था कि वह पंचायत की जिम्मेदारियों कैसे निभाएंगी ? मगर चुनाव जीतने के बाद उन्होंने स्ट्रीट लाइट जैसी कई सुविधाएं दीं, गरीबों के लिए घर और किसानों के लिए भी सिंचाई के लिए पानी की सुविधा मुहैया कराई। चनाव जीतने के बाद उन्होंने लगातार प्रभावी ढंग से काम किया और आज भी कर रही हैं। जहाँ हम पंचायत स्तर पर अधिकतर पुरुषों के दखलंदाजी और महिलाओं पर उनके अत्याचार के किस्से सुनते है उसके विपरीत बेलुरु पंचायत में श्रीदेवी को ऐसी कोई दिक्कत नहीं हुई। श्रीदेवी कहतीं है कि उनको काम करने को लेकर गाँव वालों और अपने पुरुष सहयोगियों की तरफ से कभी भी कोई परेशानी नहीं उठानी पड़ी ।

जब दूसरी बार श्रीदेवी जीतकर आई तो उनके वार्ड नंबर पांच में गांव वालों के सामने आने वाली मुख्य समस्याएं सड़क और पानी की थीं।  इन समस्याओं का समाधान के लिए श्रीदेवी ने पंचायत विकास अधिकारी और जिला पंचायत दफ्तर के चक्कर काटकर अपने कार्यकाल खत्म होने से पहले ही उनका निपटारा करा दिया। श्रीदेवी इस बात की भी शुक्रगुजार हैं कि उनकी विपक्षी पार्टी भी उनके लिए कभी कोई समस्या उत्पन्न नहीं करती। वह बताती है कि गाँव में कोई भी उनके या अन्य महिलाओं के बारे में बुरी बात नहीं करता और न ही कोई कभी उनके काम के तरीके की आलोचना करता है। श्रीदेवी लगातार ग्राम के विकास के लिए बैठकों का आयोजन करती रहती हैं और वह खुद सभी बैठक में वह मौजूद होती हैं ।

इन बैठकों में पंचायत के सभी सदस्य गाँव की विभिन्न  समस्याओं पर चर्चा करते हैं और प्रत्येक काम के लिए अनुमानित लागत के अनुसार आवश्यक राशि का फैसला करते हैं। वह बताती है कि केवल पंचायत सदस्य ही कार्य के लिए जाते हैं। उनके मुताबिक उनके पंचायत में यह बहुत ही खास बात हैं कि पंचायत मीटिंग में किसी भी महिला पंचायत सदस्य के परिवार का कोई पुरुष न तो उनके साथ होता है न ही उनका प्रतिनिधित्व करता है क्योंकि पंचायत मीटिंग में परिवार के सदस्यों के आने पर सख्त मनाही है। वह बताती है कि यह नियम बनाने से सबसे बड़ा फायदा यह हुआ कि पंचायत के सभी सदस्य और अध्यक्ष अपनी बातों को खुल कर करते हैं और उसमें उनके परिवार की दखलंदाजी नहीं रहती। साथ ही इस फैसले की वजह से उनकी पंचायत बेलूर का विकास भी हो रहा है। इसके अलावा महिलाओं की प्रगति भी हो रही हैं जिसकी वजह से महिलाओं में आत्मनिर्भरता बढ़ रही हैं। वह अगले तालुका चुनाव में भी प्रतिभाग करने का मन रखती है और उनको पूरा विश्वास है कि वह तालुका के चुनाव में भी जीत हासिल कर गाँव के लोगों के लिए काम करेंगी ।

श्रीदेवी यह सपना देख सकती हैं कि वह तालुका पंचायत चुनाव में जा पायें और चुनाव में खड़ी हो, फिर बेशक वह पांचवीं कक्षा ही पास क्यों न हो? श्रीदेवी ही क्यों, श्रीदेवी जैसी कई अन्य महिलाएं भी यह सपना संजो सकती है। कर्नाटक पंचायती राज कानून 1993 के मुताबिक पंचायत चुनाव लड़ने वाले व्यक्ति को चुनाव नामांकन के समय न तो अपने शैक्षिक योग्यता का कोई प्रमाण पत्र देना होता है और न ही घर में शौचालय का होना जरुरी था। यह बात अलग है कि उम्मीदवार के घर यदि शौचालय नहीं है तो उसको शपथ पत्र देना होता हैं कि चुनाव जीतने के एक साल बाद वह अपने घर में शौचालय बनवा लेगा। यदि वह ऐसा नहीं कर पाता है तो उसका पद निरस्त कर दिया जाएगा। इसके अलावा कर्नाटक में दो बच्चों वाला कानून भी नहीं है जिसकी वजह से महिलाएं सबसे अधिक प्रभावित होती है और जिसकी वह चुनाव लड़ने से वंचित हो जाती हैं ।

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