हो गई बत्ती अचानक गुल,
करूँ कैसे पढाई|
हाथ को ना हाथ पड़ता है दिखाई |
कॉपियों को पुस्तकों को नींद आई |
क्या पता बस्ता कहाँ औंधा पड़ा है ?
आज अपने बोझ से दिन भर लड़ा है |
हाय उसके फट गए कोने ,
सभी उधड़ी सिलाई |
जोर की बौछार ने पीटी दीवारें
तरबतर हो खिड़कियां भी चीख मारें
बिजलियों ने बादलों को मार के कोड़े
बूँद के गजरथ धरा की और मोडे
हो गए बेहाल दरवाजे
उन्हें आई रुलाई |
मोबाईल में जो टार्च है वह
जल पड़ी ।
सब और फ़ैलाने उजाला चल पड़ी ।
डूबते वालों को तिनका मिल गया ।
मन कमल सूखा हुआ था खिल गया।
ढूंढ ली माचिस तुरत चिमनी जलाई।