भ्रष्टाचार के खात्मे के लिए जनान्दोलन की आवश्यकता

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बृजनन्दन यादव

भ्रष्टाचार एक विश्वव्यापी समस्या है। विश्व के अधिकांश देश इसकी चपेट में हैं। इसका अर्थ यह कदापि नहीं है कि विश्व के अधिकांश देशों की तरह भारत को भी इसकी चपेट में होना चाहिए। परन्तु भारत में भ्रष्टाचार चरमोत्कर्ष पर है। भारत के इतिहास में यह पहला मौका है जब भारत में व्यापक घोटालों की परत-दर-परत खुलती गर्इ और यह सिलसिला अभी तक जारी है। इसके पीछे कहीं न कहीं उन निर्भीक राष्ट्रभक्तों का त्याग है जिन्होंने राष्ट्र की अस्मिता को अक्षुण रखने के लिए अपने प्राणों की परवाह किये बगैर शासन में बैठे भ्रष्ट लोगों के खिलाफ मोर्चा खोला। क्योंकि कांग्रेस का यह इतिहास रहा है कि जिस किसी ने भी उसके खिलाफ मुंह खोला उसको समाप्त करने का प्रयास किया गया है। येन केन प्रकारेण किसी भी तरह से सत्ता प्राप्त करना उसका मुख्य उददेश्य रहा है, फिर इसके लिए चाहे देश के स्वाभिमान से समझौता और राष्ट्रहित की बलि ही क्यों न चढ़ानी पड़े। इसकी कीमत कर्इ राष्ट्रभक्तों को अपनी जान देकर चुकानी पड़ी है। इसलिए देश, धर्म एवं समाज हित में आवाज उठाने वाले राष्ट्रभक्तों को सजग रहना होगा।

कांग्रेस ने हमेशा देश में एक छत्र तानाशाही शासन चलाने का ही प्रयास किया है। चाहे नेहरू हों या इनिदरा गांधी हो, राजीव गांधी हों या वर्तमान में मनमोहन सिंह हों, सबका यही रवैया रहा है कि वे जो कर रहे हैं वही ठीक है और जो कोर्इ उसका विरोध करता है वह उनकी नजर में देशद्रोही है। नेहरू तो यहां तक अधिनायकवादी थे कि अपने मंत्रिमण्डल का भी सुझाव नहीं मानते थे। परिणामस्वरूप कश्मीर जैसी कर्इ समस्यायें पैदा हुर्इं जो वर्तमान में भी नासूर की तरह बनी हुर्इ हैं। इंद्रा ने तो आपातकाल लगाकर और समस्त विपक्षी नेताओं को जेल में डालकर सबको अपनी ‘ताकत का अहसास कराया था। वर्तमान में सोनिया गांधी का प्रभाव जगजाहिर है। भले ही मनमोहन सिंह प्रधानमंत्री हैं, लेकिन बगैर सोनिया गाँधी की अनुमति के सरकार तथा संगठन में एक पत्ता भी नहीं हिलता है।

किन्तु देश में समय-समय पर उसको चुनौती देने वाले राष्ट्रभक्त भी सामने आते रहे हैं। चाहे लोकनायक जय प्रकाश नारायण हों, श्यामा प्रसाद मुखर्जी हों या पणिडल दीन दयाल उपाध्याय हों, सभी ने देश में जन जागृति लाने का प्रयास किया था। वही काम आज अन्ना हजारे और बाबा रामदेव कर रहे हैं। किन्तु कांग्रेस सहित देश के राष्ट्र विरोधी तत्व उनको बदनाम करने पर तुले हैं एवं उन पर फर्जी लांक्षन लगाकर एक संगठन विशेष से जोड़कर जनता में उनके प्रति संभ्रम निर्माण करने का प्रयास किया जा रहा है। अन्ना और बाबा रामदेव निश्चित ही सम्पूर्ण देशवासियों का नेतृत्व कर रहे हैं उनको सीमित दायरे में रखना उचित नहीं है। अन्ना टीम के कुछ सदस्यों पर लगे आरोपों एवं कुल लोगों के टीम से अलग होने पर कांग्रेस को विरोध करने का अवसर भी मिल गया है। दिग्विजय सरीखे राजनेता ऐसे मौकों की तलाश में ही रहते हैं। हलांकि अब उनकी पार्टी के ही लोग उनके विवादास्पद बयानों को लेकर विरोध कर रहे है। अन्ना की टीम से जो लोग अलग हुए हैं वे अपनी- अपनी महत्वाकांक्षायें लेकर आये थे और अपना अपना उल्लू सीधा करना चाह रहे थे सो उनका उददेश्य पूरा होता नहीं दिखा और वे टीम अन्ना से अलग हो लिए। समाज का प्रबुद्ध वर्ग ने अन्ना के आन्दोलन के शुरुआती दिनों में ही स्वामी अगिनवेश, प्रशांत भूषण और किरण बेदी की विश्वसनीयता पर संदेह व्यक्त किया था और अन्ना को सचेत भी किया था। टीम अन्ना से अलग हुए लोगों को कांग्रेस विरोध नागवार गुजरा और उनका कहना है कि आन्दोलन भ्रष्टाचार के मुददे पर था और यह राजनीतिक रूप लेता जा रहा है। जो लोग इस तहर की बातें सोचते हैं उनको अपने दिलो दिमाग से खुलेमन से सोचना चाहिए कि भ्रष्टाचार रूपी मंदाकिनी का प्रवाह इन्हीं राजनीतिज्ञों की नसों से होता है। अभी हाल में जो भी भ्रष्टाचार के मामले सामने आये हैं उनमें से अधिकांश इन्हीं राजनीतिज्ञों विशेषकर कांग्रेसी मंत्रियों और नेताओं के नाम सामने आये हैं। विदेशों में जमा काला धन भी इन्हीं राजनीतिज्ञों की पूंजी है। आजादी के बाद से लेकर आज तक सबसे ज्यादा देश पर शासन कांग्रेस ने ही किया है और सर्वाधिक घोटाले भी उसके ही शासनकाल में हुए हैं। मजबूत विपक्ष के अभाव में वे अभी तक बचते रहे। वर्तमान में कांग्रेस सत्ताशीन है जनता जागृत हुर्इ है सरकार के काले कारनामें खुल कर जनता के सामने आ गये हैं तो आखिर विरोध किसका किया जाय। इसी कांग्रेस ने लोकपाल बिल पारित करने का आश्वासन देकर अन्ना का अनशन तुडवाया था विधेयक नहीं लाया गया तो कांग्रेस विरोध लाजिमी है और अन्ना के विरोध करने का यही मुख्य वजह है। केन्द्र सरकार अन्ना हजारे और बाबा रामदेव की आवाज को दबाने एवं उनको डराने का प्रयास कर रही हैं। सरकार के मंत्रियों में मतभिन्नता है। जन सामान्य से जुड़े किसी भी मुददे पर सरकार के प्रतिनिधियों में मतैक्य नहीं है। ऐसे में इस सरकार से क्या आशा की जा सकती है? सरकार राष्ट्रभक्तों को आतंकी और आतंकियों को राष्ट्रभक्त सिद्ध करने पर तुली हुर्इ है। टू-जी स्पेक्ट्रम आवंटन में गृहमंत्री पी. चिदंबरम की संलिप्तता जाहिर हो चुकी है और प्रधानमंत्री की संलिप्तता से भी इन्कार नहीं किया जा सकता है। इस मामले में पी. चिदंबरम को बचाना सरकार की मजबूरी बन गर्इ है, क्योंकि अगर चिदंबरम इस्तीफा देते हैं तो इस घोटाले की आंच सीधे प्रधानमंत्री कार्यालय और मैडम सोनिया गाँधी तक पहुंचेगी। इसलिए सरकार अपने बचाव के लिए गृहमंत्री का इस्तीफा मंजूर नहीं कर रही है। देश में व्याप्त इन सभी समस्याओं से निपटने के लिए अन्ना हजारे, योग गुरु बाबा रामदेव, सुब्रह्राण्यम स्वामी और के.एन. गोविन्दाचार्य सरीखे लोगों को एक मंच पर आकर सामूहिक जनान्दोलन चलाकर युवाओं में राष्ट्र एवं समाज के प्रति कर्तव्य भाव जागृत कर संस्कृति के प्रति निष्ठा एवं संस्कार निर्माण करना होगा, क्योंकि युवा ही किसी भी देश की वास्तविक संपत्ति एवं उसका वास्तविक आधार होते हैं। इसलिए आज आवश्यकता है कि देश के प्रत्येक नौजवान के हृदय में स्वस्थ, समृद्ध, स्वावलम्बी एवं विकसित राष्ट्र की कल्पना को साकार करने का भाव जगाना होगा, तभी देश, राष्ट्र एवं समाज का हित संभव है। राजनीति किसी भी देश की दशा और दिशा तय करती है। इसलिए राजनीति का शुद्धीकरण जरूरी है लेकिन अन्ना के आन्दोलन को मा़त्र सत्ता परिवर्तन तक ही सीमित नहीं रखना चाहिए। इसलिए अन्ना हजारे को भी भ्रष्टाचार से निपटने के लिए दूरगामी रणनीति बनानी चाहिए, क्योंकि भ्रष्टाचार केवल शासक वर्ग में ही हो, ऐसा भी नहीं है। यह कर्इ विपक्षी दलों में भी जड़ों से शिखर तक फैला हुआ है। उ.प्र. में बसपा और सपा, बिहार में राजद और लोजपा तथा तमिलनाडु में द्रमुक इसके ज्वलन्त उदाहरण हैं। इसलिए भ्रष्टाचार से निपटने के लिए सम्पूर्ण देशवासियों केा पहल करनी होगी। व्यवस्था में बदलाव लाना होगा। केवल जन लोकपाल बिल पास कराकर भ्रष्टाचार पर अंकुश लगा पाना संभव नहीं है। इसलिए अन्ना हजारे को जन लोकपाल बिल के साथ-साथ व्यवस्था परिवर्तन और कालेधन का भी मुददा प्रमुखता से उठाना चाहिए। अगर व्यवस्था में परिवर्तन नहीं होता है, तो जो काम आज कांग्रेस कर रही है वही काम दूसरे लोग आकर करेंगे।

 

 

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