गाँधीवादी संस्थाओं की बदहाली

– डॉ. अनिल दत्त मिश्र

स्वतंत्रता संग्राम में महात्मा गांधी का योगदान किसी से छिपा हुआ नहीं है। गांधी नैतिकता, ईमानदारी तथा नैतिक बल सदाचार आदि आजादी के पूर्व भी प्रतीक यंत्र था, आजादी के बाद भी। जाति के लोगों ने जातिय पंचायत करके विदेश पढ़ने हेतु जाने से रोका। बालक मोहनदास करमचंद गांधी ने जातिगत मान्यताओं को नहीं माना और अध्ययन हेतु इंग्लैंड में महात्मा गांधी ने ‘वेजिटेरियन सोसायटी’ का भरपूर फायदा उठाया तथा उसके द्वारा भारतीय संस्कृति का यथा संभव प्रचार-प्रसार किया। महात्मा गांधी 21 वर्षों तक दक्षिण अफ्रि का में रहें तथा वहाँ उन्होंने सर्वप्रथम टॉल्सटाय एवं फिनिक्स आश्रम की स्थापना की। दोनों आश्रम एक नियमावली के आधार पर चलते थे। उसमें कोई भी व्यक्ति अपवाद नहीं होताथा। साउथ अफ्रि का में अंग्रेजों के विरुद्ध आवाज उठायी इनमें दोनों संस्थाओं का योगदन है। ये संस्थाएं उस समय ईमानदारी, पारदर्शिता, आंतरिक लोकतंत्र सशक्त प्रशासनिक व्यवस्था के कारण द. अफ्रिका में रंगभेद तथा ब्रिटिश नीतियों के खिलाफ भारतीयों ने तथा कुछ नस्लीय अधिकारों के संरक्षण के रूप में उभरा। इन्हीं संस्थाओं से गांधी ने ‘यंग इंडिया’, हिंदी, अंग्रेजी और गुजराती में निकाला। ये संस्थाएं ‘कम्यून’ की तरह थी न कोइ छोटा था, न कोई ऊंच-नीच न कोई ऐसा-वैसा। सभी अपने दायित्वों का निर्वाह अपनी-अपनी योग्यता व क्षमतानुसार करते थे। महिलाएं भी सक्रिय रूप से अपनी भागेदारी निभाती थी। वास्तव में आश्रम आधुनिक युग का गुरुकुल था। 1915 में जब गांधी भारत आए, तो अहमदाबाद के पास सर्वप्रथम आश्रम की स्थापना की। बाद में वहां सत्याग्रह आश्रम साबरमती आश्रम का निर्माण किया। इन आश्रमों ने भारत को आजादी दिलाने में अहम भूमिका निभायी। साबरमती आश्रम में सैकड़ों लोग रहते थे। वहां सबके लिए समान अवसर था। नेहरू, नायडू, प्रभावती आदि लोग इस आश्रम में रहा करते थे। इस आश्रम में सेवा, त्याग तथा राजनैतिक प्रशिक्षण दिए जाते थे। कार्यकर्ताओं को स्वावलंबी बनाने की ट्रेनिंग दी जाती इसमें बड़े- बुढ़े, बच्चे-बच्चियां, सभी में आश्रम श्रमविद्या, और सर्वजन की व्यवस्था थी। सभी व्यक्तियों को आश्रम की नियमावली को मानना होता था। 1930 तक महात्मा गांधी इसी साबरमती आश्रम से देश के अंदर स्वतंत्रता संग्राम के लिए कार्य करते रहें तथा सेवाग्राम आश्रम पूरे विश्व में समाजिक कार्यों के लिए प्रसिद्ध हो गया। 1930 में जब महात्मा गांधी ने नमक सत्याग्रह शुरू किया उस वक्त उन्होंने प्रतिज्ञा की कि मै जब तक देश को आजाद नहीं करा लेता तब तक मैं लौट नहीं सकता। महात्मा गांधी ने अपने सबल सहकर्मियों के लिए कार्य किया। विश्व के इतिहास में नमक सत्याग्रह से बढ़कर दूसरा कोई भी अहिंसक आंदोलन नहीं हुआ। इस आंदोलन ने ब्रिटिश साम्राज्य को जड़ से हिला दिया। बाद में गांधी वर्धा चले गए। वहीं गांधी ने वर्धा में सेवाग्राम की नींव रखी। सेवाग्राम आश्रम भी टॉल्सटाय, फिनिक्स और साबरमती की तरह पुनः राजनीति व सामाजिक गतिविधियों का केंद्र बन गया।

इस आश्रम में भी उस समय के सभी शीर्षस्थ लोग रहा करते थे। महात्मा गांधी आश्रम के द्वारा ट्रस्टी मंडल चलाया करते थे। देश को आजाद कराने में योगदान भी था। ‘हरिजन’, ‘नवजीवन’ आदि पत्र-पत्रिकाओं का सतत संपादन, प्रकाशन होता था। इन आश्रमों के द्वारा गांधी ने भारत वर्ष में नवचेतना/नयी सोच का तथा खोई हुई नैतिकता की स्थापना का एक सफल प्रयास किया। ये सभी आश्रम नैतिक पूनर्जागरण के साधन एवं केंद्र बन गए। महात्मा गांधी ने अपने ही द्वारा आश्रम के अलावे हरिजन सेवक संघ आदि संस्थाओं का निर्माण किया। उसके मरने के बाद विनोबा जी ने ग्रामदान, भूदान तथा सर्व सेवा संघ का गांधी स्मारक, राज्य निधि जिसकी शाखाओं का गांधी स्मारक निधि सूत्रपात हुआ। ईमानदार कार्यकर्ताओं के पैसे तथा सुझबुझ से बनाए गए। उन संस्थाओं से पं. जवाहर लाल नेहरू, डॉ. राजेन्द्र प्रसाद, लाल बहादूर शास्त्री, सी. राजगोपालाचारी, यमुना लाल बजाज, टाटा, बिड़ला, डालमिया, श्रीमती इंदिरा गांधी, काकासाहेब कालेलकर, जगजीवन राम, रामचंद्रन आदि लोग जुड़े हुए थे। इन संस्थाओं से जुड़े हुए लोगों का चारित्रिक पतन तो हुआ हीं, कुछ चंद व्यक्तियों के कारण ये संस्थाएं अपने मूल उद्देश्य से भटक गयी। राष्ट्रद्रोही आंदोलन से प्रत्यक्ष अपने हवा देना। निधि के पैसे का दुरूपयोग करना आम बात है।इनके राष्ट्र विरोधी, जनविरोधी कार्यों के कारण दिन-प्रतिदिन इन संस्थानों का ह्रास हुआ। इनके पदाधिकारियों के चरित्र हास्यास्पद हो गए। कथनी-करनी में अंतर हो गया। ये जितने सफेद कपड़े पहनते हैं अंदर से वो उतने हीं काले हैं। ये सत्यम की तरह असत्यम हो गए। ये संस्थाएं गांधी के नाम पर चलती हैं तथा समस्त कार्यक्रम गांधी विरोधी होता है। हिमालय सेवा संघ के सचिव मनोज पांडे का कहना है कि इनके उपर सत्य की कार्यवाही होनी चाहिए तथा गांधी के नाम को बदनाम करने से रोका जाए क्योंकि इन संस्थानों में पैसा तो भारत की जनता का लगा हुआ है। गांधी के हिंद स्वराज का लाभ सभी जगह कार्य रचेत मंथन हुआ। परंतु इन दोनों लोगों तथा कथित गांधी-लोग हिंद स्वराज्य ही को भूल गए। हमें हतोत्साहित होने की जरूरत नहीं हैं। गांधी के गीता को याद करने की जरूरत है जिसमें भगवान कृष्ण ने अर्जुन का आवाहन किया था। आज पुनः गांधीवादी संस्थाओं में गांधीवादी-मूल्यों की स्थापना करना होगा। कुछ युवाओं को आगे आना होगा। तथा पापी, दुराचारी,ढ़ोंगी तथा तथाकथित गांधीवादियों का नाश करना चाहिए। इन संस्थाओं में अधर्म की जगह धर्म स्थापना हो। भारत भी विचित्र देश है जो लोग गांधी को नहीं मानते थे आज उन संस्थानों में गांधी विचारधारा प्रमुख हो गए है। आरएसएस के एकात्मतास्तोत्र में प्रतिदिन राष्ट्र ॠषियों-मुनियों के साथ गांधी भी याद किए जाते है। कांग्रेस पार्टी में गांधीवादी सिद्धांतों पर चलने की प्रेरणा दी जाती है। वही गांधी द्वारा स्थापित तथा उनके नाम पर चलने वाले लोग गांधी को ही भूल गए। आज का युवा गांधी को आत्मसात् कर रहा है। वो गांधी को समझ रहा है। वो स्वावलंबी ईमानदार, कर्तव्यनिष्ठ बन रहा है। आज का युवा उद्योगपति ब्रिटिश व अमरीकन कंपनियों को खरीद रहा है। गांधी प्रगति का नाम है। गांधी शांति का नाम है। गांधी विकास का नाम है। गांधी आधुनिकता का नाम है। गांधी असत्य से सत्य की ओर, अंधकार से प्रकाश की ओर और अबला से सबला की ओर अग्रसर होने का नाम है।

* लेखक, गांधीवादी विचारक तथा ‘इंसपाइरिंग थॉट ऑफ सोनिया गांधी’ के लेखक हैं।

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