देवेंद्रराज सुथार
भारत में इन दिनों बलात्कार का दौर चल रहा है। चारो दिशाओं से बलात्कार की चीख ही सुनाई दे रही है। हवस की दीमक चरित्र को खा रही है। लुट हुई अस्मत, फुटी हुई किस्मत को कोस रही है। इन हालातों में एटीएम की इज्जत भी तार-तार हो गई है। एटीएम की इज्जत का पैमाना तो उसकी जेब में रखा पैसा ही होता है। बिना पैसे का कैसा एटीएम? लेकिन अच्छे दिनों के इंतजार में खड़ा एटीएम भी आजकल खुद को ठगा हुआ महसूस कर रहा है। यहां गौर करने वाली बात यह भी है कि लुटा एटीएम है लेकिन लुटने का अभिनय आम जनता कर रही है।
क्योंकि आज के इस मशीनी युग में मानव की संवेदनाएं समाप्त हो रही है। अब इंतजार, धैर्य और शांति जैसे शब्दों से इंसानों का रिश्ता दरकने लग गया हैं। सबको सबकुछ “फास्टम फास्ट” चाहिए। एटीएम में कैश नहीं है तो लोग ऐसे रिएक्ट कर रहे हैं जैसे उनके बैंक अकाउंट की सारी राशि सरकार ने बेनामी कर दी है। एटीएम में कैश नहीं है तो शादी कैसे होगी। इलाज कैसे होगा। इस तरह की अनेकों वजहों के नाम पर रोने वाली इन रुदालियों से एक ही सवाल है कि जब एटीएम का अविष्कार नहीं हुआ था तब शादी कैसे हो जाती थीं? तब इलाज कैसे हो जाता था। अरे ! भाई, केवल एटीएम में ही पैसे नहीं है बाकि पूरा बैंक तो नोटों से भरा पड़ा है। वहां से पैसे क्यों नहीं निकाल लेते? इसलिए चिल्ल पों कर रहे है कि आपका इस भीषण गर्मी में एटीएम में लगी एसी की ठंडी हवा खाने का क्षणिक सुख आपसे अब छीन लिया गया है। यहां आपको अब लाइन में खड़े रहकर इंतजार करने की आदत नहीं रही?
कुल मिलाकर आप ऐसे तो कतई रिएक्ट मत कीजिए कि आपका सबकुछ खो गया। आप बिलकुल रोड पर आ गये है। ध्यान रहे है कि देश की जनसंख्या को बढ़ाने में आपने भी अपना बहुमूल्य योगदान दिया। जब इतनी जनसंख्या होगी तो नोट कम पड ही जाएंगे ना? आरबीआई भी छाप-छापकर कितने नोट छाप लेगा। आप नये नोटों को देखकर उसे ऐसे गले से छिपका कर रखते है जैसे फिर वह आपको कभी दोबारा मिलेगा ही नहीं। आप नये नोटों को जब अपने गले से छिपका कर रखेंगे तो भला मार्केट में नये नोटों की आवाजाही सुचारू रूप से कैसे हो पाएगी?
हमारा देश तो आज भी अफवाहों पर ही चल रहा है। किसी भी अफवाह को बढा-चढाकर पेश करने में तो हम भारतीयों की मास्टरी है। मरेगा एक दिन आदमी लेकिन हम बढ़ाते बढ़ाते दस आदमियों को बेमौत ही मार देंगे। एटीएम में नोट नहीं है, नोटबंदी थोड़ी ना कर दी गई है। आप तो बात बेबात ऐसे तमाशा खड़ा कर रहे हैं जैसे आपकी नसबंदी कर दी गई हो। आपको डिजिटल इंडिया भी चाहिए, आपको भ्रष्टाचार भी नहीं चाहिए, आपको सुशासन भी चाहिए, आपको सबकुछ चाहिए लेकिन आप इसको लाने में आने वाली प्रारंभिक बाधाओं से लड़ना नहीं चाहते। क्योंकि आपको अब सबकुछ चुटकी बजाते चाहिए। आपकी संवेदना को तकनीक ने निगल जो लिया है। आपके इस रिएक्शन को देखकर तो कहना पड़ेगा कि सबसे ख़तरनाक सपनों का मर जाना नहीं होता। सबसे ख़तरनाक होता है खाली हुआ एटीएम !