डा. राधेश्याम द्विवेदी
जल से संचित इस क्षेत्र में स्थित घने जंगलों तथा शिकार योग्य पर्याप्त जंगली पशु-पक्षियों की उपलब्धता के कारण आदिमानव ने इस स्थल को अपने आवास के लिये उपयुक्त पाया| झील के किनारे-किनारे शैल चित्र और पाषाण युग के औजार भी पाये गये हैं| गैरिक मृदभांड परम्परा (लगभग 2000 ई0पू0) और चित्रित धूसर मृदभांड परम्परा (लगभग 1200 से 800 इंसा पूर्व) के अवशेष भी यहा से प्राप्त हुए हैं|यहा स्थित वीर छबीली टीला के उत्खनन से प्राप्त जैन सरस्वती (1010 ई0) की प्रतिमा पर उत्कीर्ण अभिलेख में संकारिया स्थान का उल्लेख है जो सैक्य से साम्य रखता है| उत्खनन से प्राप्त दसवीं और ग्याहरवीं शताब्दी की जैन मूर्तियों से विदित होता है कि यहा पूर्व ऐतिहासिक काल से निरन्तर आवादी थी| इस स्थान पर राजपूतों के जिस शाखा का शासन था वह भी सिकरवार ही कहलायी, यह नाम भी सैक्य-सेकरिया के क्रम में आता है| यह स्थल व्यापारिक, सांस्कृतिक एवं धार्मिक क्रिया-कलापों का केन्द्र था, विंध्य पर्वतमाला के ऊपरी छोर पर स्थित, लाल बलुए पत्थर से निर्मित, फतेहपुर सीकरी स्मारक समूह मूलतः एक विशाल प्राकृतिक झील के परिवेश में बसाया गया था| संस्कृत साहित्य एवं परम्परा में सीकरी का उल्लेख महाभारत कालीन है जिसमें पाण्डवों के राजसूय यज्ञ के अवसर पर सहदेव के दक्षिण विजय अभियान के सन्दर्भ में सैक्य के नाम से हुआ है जिसका अर्थ जल से सिंचित प्रदेश है| इसी से निष्पादित होकर सीकरी शब्द बना होगा|विश्व विरासत स्मारक फतेहपुर सीकरी एक नगर है जो कि आगरा जिला का एक नगर पालिका बोर्ड है| यह हिंदू और मुस्लिम वास्तुशिल्प के मिश्रण का सबसे अच्छा उदाहरण है| फतेहपुर सीकरी मस्जिद के बारे में कहा जाता है कि यह मक्का की मस्जिद की नकल है और इसके डिजाइन हिंदू और पारसी वास्तुशिल्प से लिए गए हैं| मस्जिद का प्रवेश द्वार 54 मीटर ऊँचा बुलंद दरवाजा है जिसका निर्माण 1570 ई० में किया गया था| मस्जिद के उत्तर में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह है जहाँ नि:संतान महिलाएँ दुआ मांगने आती हैं| आंख मिचौली, दीवान-ए-खास, बुलंद दरवाजा, पांच महल, ख्वाबगाह, अनूप तालाब फतेहपुर सीकरी के प्रमुख स्मारक हैं|
इतिहास :- सीकरी ऊपरी विंध्य पर्वतमाला का एक विस्तार एक बड़ी प्राकृतिक झील है, जो अब ज्यादातर सूख गया है, के तट पर स्थित है| यह एक पूर्व ऐतिहासिक स्थल और प्रचुर मात्रा में जल, जंगल और कच्चे माल के साथ, है, यह आदिम आदमी के निवास के लिए आदर्श था| चित्रों के साथ रॉक आश्रयों झील की परिधि पर मौजूद हैं| पाषाण युग उपकरण इस क्षेत्र में पाया गया है|गेरू रंग बर्तनों (सी. 2 सहस्राब्दी ई.पू.) और रंगीन ग्रे वेयर (c.1200-800 ईसा पूर्व) ने भी यहां से खोज की गई है| सीकरी ‘Saik’ के रूप में महाभारत में उल्लेख किया गया है| शब्दकोशों पानी से घिरा हुआ एक क्षेत्र के रूप में ‘Saik’ को परिभाषित| एक शिलालेख जैन सरस्वती (दिनांक 1067 विक्रम संवत् = 1010 ईस्वी) की पत्थर की मूर्ति पर पाया ‘Sekrikya’ है, जो एक समान व्युत्पन्न किया जा रहा है के रूप में इस जगह का उल्लेख है| यह सब पता चलता है कि सीकरी लगातार प्रागैतिहासिक काल से बसा हुआ था| बाबर ईस्वी 1527 में Khanwah लड़ाई की पूर्व संध्या पर जगह का दौरा किया और अपने संस्मरण में ‘सीकरी’ के रूप में यह उल्लेख किया है| उन्होंने यहां एक बगीचा और एक जल-महल झील के पानी से घिरा हुआ है, और एक बावली (बावड़ी) Khanwah लड़ाई में उसकी जीत के उपलक्ष्य में स्थापित किया गया है| मुगल बादशाह बाबर ने राणा सांगा को सीकरी नमक स्थान पर हराया था, जो कि वर्तमान आगरा से 40 कि०मि० है| बाबर के पोते अकबर (1556-1605) ने अपने निवास और अदालत को 1585 के लिए 1572 से सीकरी आगरा से स्थानांतरित कर दिया, 13 साल की अवधि के लिए, पर एक गुफा में सूफी संत शेख सलीम चिश्ती, जो यहाँ बसता | अकबर उसे बहुत ज्यादा के रूप में सेंट उसे एक बेटा है जो 1569. में सलीम नामित किया गया था वह जनता के लिए उनके उपयोग के लिए बुलंद इमारतों और घरों उठाया के साथ आशीर्वाद दिया था श्रद्धेय| इस प्रकार की वृद्धि हुई, आकर्षक महलों और संस्थानों के साथ एक बड़ा शहर है| अकबर यह Fathabad का नाम दिया है और जो बाद के दिनों में के रूप में ” फतेहसीकरी” में जाना जाने लगा| फिर अकबर ने इसे मुख्यालय बनाने हेतु यहाँ किला बनवाया, परंतु पानी की कमी के कारण राजधानी को आगरा का किला में स्थानांतरित करना पडा़| आगरा से 37 किमी. दूर फतेहपुर सीकरी का निर्माण मुगल सम्राट अकबर ने कराया था| एक सफल राजा होने के साथ-साथ वह कलाप्रेमी भी था| 1570 -1585 तक फतेहपुर सीकरी मुगल साम्राज्य की राजधानी भी रहा| इस शहर का निर्माण अकबर ने स्वयं अपनी निगरानी में करवाया था| अकबर नि:संतान था| संतान प्राप्ति के सभी उपाय असफल होने पर उसने सूफी संत शेख सलीम चिश्ती से प्रार्थना की| इसके बाद पुत्र जन्म से खुश और उत्साहित अकबर ने यहाँ अपनी राजधानी बनाने का निश्चय किया| लेकिन यहाँ पानी की बहुत कमी थी इसलिए केवल 15 साल बाद ही राजधानी को पुन: आगरा ले जाना पड़ा| आगरा से 22 मील दक्षिण, मुग़ल सम्राट अकबर के बसाए हुए भव्य नगर के खंडहर आज भी अपने प्राचीन वैभव की झाँकी प्रस्तुत करते हैं| अकबर से पूर्व यहाँ फतेहपुर और सीकरी नाम के दो गाँव बसे हुए थे जो अब भी हैं| इन्हें अंग्रेजी शासक ओल्ड विलेजेस के नाम से पुकारते थे| सन 1527 ई॰ में चित्तौड़-नरेश राणा संग्रामसिंह और बाबर में यहाँ से लगभग दस मील दूर कनवाहा नामक स्थान पर भारी युद्ध हुआ था जिसकी स्मृति में बाबर ने इस गाँव का नाम फतेहपुर कर दिया था| तभी से यह स्थान फ़तेहपुर सीकरी कहलाता है| कहा जाता है कि इस ग्राम के निवासी शेख सलीम चिश्ती के आशीर्वाद से अकबर के घर सलीम (जहाँगीर) का जन्म हुआ था| जहाँगीर की माता जोधाबाई (आमेर नरेश बिहारीमल की पुत्री) और अकबर, शेख सलीम के कहने से यहाँ 6 मास तक ठहरे थे जिसके प्रसादस्वरूप उन्हें पुत्र का मुख देखने का सौभाग्य प्राप्त हुआ था| फतेहपुर सीकरी की वास्तुकला एक निश्चित अखिल भारतीय चरित्र है| सीकरी में एक सूफ़ी सन्त शेख़ सलीम चिश्ती रहा करते थे| उनकी शोहरत सुनकर अकबर, एक पुत्र की कामना लेकर उनके पास पहुंचा और जब अकबर को बेटा हुआ तो अकबर ने उसका नाम सलीम रखा| सीकरी में जहां सलीम चिश्ती रहते थे उसी के पास अकबर ने सन 1571 में एक क़िला बनवाना शुरु किया| अकबर की कई रानियाँ और बेगम थीं, किंतु उनमें से किसी से भी पुत्र नहीं हुआ था| अकबर पीरों एवं फ़कीरों से पुत्र प्राप्ति के लिए दुआएँ माँगता फिरता था| शेख सलीम चिश्ती ने अकबर को दुआ दी| दैवयोग से अकबर की बड़ी रानी जो कछवाहा राजा बिहारीमल की पुत्री और भगवानदास की बहिन थी, गर्भवती हो गई, और उसने पुत्र को जन्म दिया| उसका नाम शेख के नाम पर सलीम रखा गया जो बाद में जहाँगीर के नाम से अकबर का उत्तराधिकारी हुआ| अकबर शेख से बहुत प्रभावित था| उसने अपनी राजधानी सीकरी में ही रखने का निश्चय किया| सन 1571 में राजधानी का स्थानांतरण किया गया| उसी साल अकबर ने गुजरात को फ़तह किया| इस कारण नई राजधानी का नाम फ़तेहपुर सीकरी रखा गया|
सन 1584 तक लगभग 14 वर्ष तक फ़तेहपुर सीकरी ही मुग़ल साम्राज्य की राजधानी रही| अकबर ने अनेक निर्माण कार्य कराये, जिससे वह आगरा के समान बड़ी नगरी बन गई थी| फ़तेहपुर सीकरी समस्त देश की प्रशासनिक गतिविधियों का प्रमुख केन्द्र थी| सन 1584 में एक अंग्रेज़ व्यापारी अकबर की राजधानी आया, उसने लिखा है− ‘आगरा और फतेहपुर दोनों बड़े शहर हैं| उनमें से हर एक लंदन से बड़ा और अधिक जनसंकुल है| सारे भारत और ईरान के व्यापारी यहाँ रेशमी तथा दूसरे कपड़े, बहुमूल्य रत्न, लाल, हीरा और मोती बेचने के लिए लाते हैं| संत शेख सलीम चिश्ती के सम्मान में सम्राट अकबर ने इस शहर की नींव रखी| कुछ वर्षों के अंदर सुयोजनाबद्ध प्रशासनिक, आवासीय और धार्मिक भवन अस्तित्व में आए| इस क़िले के भीतर पंचमहल है जो एक पाँच मंज़िला इमारत है और बौद्ध विहार शैली में बनी है| इसकी पांचवी मंज़िल से मीलों दूर तक का दृश्य दिखायी देता है| जामा मस्जिद संभवतः पहला भवन था, जो निर्मित किया गया| बुलंद दरवाजा लगभग 5 वर्ष बाद जोड़ा गया| अन्य महत्वपूर्ण भवनों में शेख सलीम चिश्ती की दरगाह, नौबत-उर-नक्कारख़ाना, टकसाल, कारख़ाना, खज़ाना, हकीम का घर, दीवान-ए-आम, मरियम का निवास, जिसे सुनहरा मकान भी कहते हैं, जोधाबाई का महल, बीरबल का निवास आदि शामिल हैं|
भक्ति में अकबर ने बिना विचारे ही सीकरी को राजधानी बना दिया था| इस स्थान में पानी की बड़ी कमी थी, जिसको पूरा करने के लिए पहाड़ी पर बाँध बना कर एक झील बनाई गई थी| उसी का पानी राजधानी में आता था| अगस्त 1582 में बाँध टूट गया, जिससे पर्याप्त हानि हुई| 14 वर्ष तक सीकरी में राजधानी रखने पर अकबर ने अनुभव किया कि यह स्थान उपुयक्त नहीं है, अत: सन् 1584 में पुन: राजधानी आगरा बनाई गई| राजधानी के हटते ही फ़तेहपुर सीकरी का ह्रास होने लगा आजकल वह एक छोटा सा कस्बा रह गया है|
पर्यटक सूचना:- स्मारक के खुलने का समय- सूर्योदय से सूर्यास्त तक
प्रवेश शुल्क (15 वर्ष से कम आयु वाले के लिए निशुल्क प्रवेश )
भारतीय एवं सार्क व बिमिस्टिक देशों के पर्यटकों के लिए:
Total 40/- (भा० पु० सं ० रू ० 30 /- आ ० वि ० प्रा ० द्वारा पथकर शुल्क रू० 10 /-)
विदेशी पर्यटक के लिए
Total रू० 510/- ( भा० पु० सं ० रू ० 500 /- आ ० वि ० प्रा ० द्वारा पथकर शुल्क रू० 10 /-)
( वे विदेशी पर्यटक जो आ0वि0प्रा0 का पथकर टिकट 500/- का आगरा के किसी स्मारक से खरीदते हैं उन्हें उसी दिन आगरा के अन्य स्मारकों पर पथकर टिकट खरीदने की आवश्यकता नहीं है|
फतेहपुर सीकरी का पुरातात्विक संग्रहालय:- 1976-77 से 1999-2000 की अवधि के दौरान फतेहपुर सीकरी के विभिन्न स्थलों पर किये गये उत्खनन कार्यों के परिणाम स्वरूप प्राकमुगल एवं मुगलकाल के सांस्कृतिक अवशेष प्रकाश में आये हैं| यहां पहले से खजाना नामक स्मारक के परिसर को किंचित रदोवदल करके संग्रहालय को स्थापित किया गया है| यह भवन मूलतः अकबर के समय का बना हुआ था| वर्ष 2002- 04 के दौरान इस भवन का संरक्षण व संग्रहालय की स्थापना की गई है|
चार वीथिकायें:- इस संग्रहालय में चार वीथिकायें हैं:
वीथिका-1 प्राक इतिहासकालः-पास के पहाड़ी क्षेत्रों से प्राप्त लघुपाषाण उपकरण तथा हाड़ा महल से प्राप्त धूसर , कृष्ण लेपित , गैरिक, चित्रित और सादा धूसर पात्र परम्परायें इस काल की प्रमुख कला कृतियां हैं| बीर छबीली टीला के अवशेष इस श्रेणी में स्थापित किये गये हैं|
वीथिका-2 जैन विशाल कलाकृतियां:-इनमें बीर छबीली टीला से प्राप्त किये गये जैन श्रुत देवी, यक्षी , अम्बिका, आदिनाथ की कायोत्सर्ग प्रतिमा तथा नागरी लिपि में लिखे प्रमुख अभिलेख संग्रहीत किये गये हैं|
वीथिका-3 पाषाण लघु कलाकृतियां:- बीर छबीली टीला से प्राप्त किये गये लघु कलाकृतियां , छोटी मुर्तियां, मानव जानवरो के पाषाण एवं मिट्टी की कला कृतियों इस संकलन में रखी गयी हैं यह वीथिका प्राक्लोह काल से मुगलकल तक का प्रतिनिधित्व करती है|
वीथिका-4 प्रकीर्ण कलाकृतियां:-फतेहपुर सीकरी तथा बीर छबीली टीला से प्राप्त विभिन्न प्रकार के मृणमयी दीपक, मिट्टी के घड़े ,लोटे मनके, अर्ध कीमती पत्थर, चक्की, मूसल तथा आदि इस श्रेणी में रखे गये हैं|
इस प्रकार हम देखते हैं कि फतेहपुर सीकरी के से कलाकृतियों इस संग्रहालय के बनने से काफी सुरूचिपूर्ण ढंग से प्रदर्शित की गई है| ये भारत की एक महत्वपूर्ण संगहालय के रूप में प्रतिस्थापित हो गयी है|