यूजीसी के नए नियम, रैगिंग और अभिभावक

0
352

Anti Ragging Policiesडॉ. मयंक चतुर्वेदी
रैगिंग शिक्षण संस्थानों में सीनियर छात्र-छात्राओं द्वारा जूनियर विद्यार्थियों को दिया जाने वाला वह जख्म है, जिसके होने के बाद कई बार इंसान अपने को इतना अपमानित महसूस करता है कि वह पढ़ाई छोडऩे से लेकर आत्महत्या करने जैसे आत्मघाती कदम तक उठा लेता है। नवागत विद्यार्थी के आत्म परिचय से आरंभ होता यह रैगिंग का दृश्य धीरे-धीरे कितना विकृत रूप ले लेता है, इसके बारे में जितना कहा जाए उतना ही कम होगा। केंद्र और राज्य सरकारों द्वारा लगातार इसे रोकने के लिए प्रयास किए जाते रहे हैं, इसके सार्थक परिणाम भी सामने आए, लेकिन इसके बावजूद रैगिंग को पूरी तरह जड़ से समाप्त नहीं किया जा सका है।

अब जबकि यूजीसी ने इसे रोकने के लिए अपनी ओर से नए नियम बनाए हैं और सख्ती शुरू की है, तो जरूर लगता है कि आगामी दिनों में माहौल में तेजी से परिवर्तन होगा। वस्तुत: ऐसा इसलिए भी कहा जा रहा है कि इस बार रैगिंग मामला उजागर होने पर दोषी छात्र-छात्राओं के माता-पिता को भी कटघरे में खड़ा किया जाएगा। बच्चे के साथ अभिभावक की जिम्मेवारी तय की गई है।

यूजीसी का नया नियम कहता है कि एडमिशन लेने वाले विद्यार्थियों के साथ ही उनके माता-पिता से भी एक शपथ पत्र सभी शिक्षण संस्थाएं लें। इससे अगर कोई छात्र रैगिंग घटना में शामिल पाया जाता है, तो उसके माता-पिता को भी इसके लिए जिम्मेदार ठहराया जा सकेगा। हो सकता है कि कुछ लोगों को यह नया नियम रास नहीं आए और वे इसका विरोध करें। किंतु गंभीरता से समझने और देखने पर लगता है कि इस नियम के अनुशासन से बंधे होने के कारण ही सही कई छात्र-छात्रा यह कभी नहीं चाहेंगे कि उनके कारण उनके माता-पिता पर उनकी परवरिश को लेकर कोई उंगली उठाए।

ऐसा नहीं है कि यूजीसी केवल अभिभावकों को इस मामले में शामिल करके अपनी जिम्मेदारियों से मुंह मोड़ रहा है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग (यूजीसी) इसके बाद भी लगातार रैगिंग को रोकने के लिए अपने अन्य प्रयास यथावत करते रहने के लिए शिक्षण संस्थानों से कह रहा है। उसने सभी शिक्षण संस्थानों को निर्देश दिए हैं कि रैगिंग रोकने के लिए वर्कशॉप करें। पोस्टर लगाकर छात्रों को जागरूक करें कि वे रैगिंग में शामिल होने से बचें। साथ ही कहना होगा कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग जाति, रंग और धर्म पर फब्तियां कसने को पहले ही रैगिंग की श्रेणी में शामिल कर ही चुका है। इतना ही नहीं उसने आर्थिक आधार पर मानसिक या शारीरिक रूप से प्रताडि़त करने को भी रैगिंग के अंतर्गत ही माना है। रैगिंग की घटना गंभीर है, तो संबंधितों के खिलाफ एफआईआर दर्ज करने तक के प्रावधान यूजीसी ने सभी शिक्षण संस्थानों को पूर्व से ही दे रखे हैं।

रैगिंग के आंकड़ों को यदि देखें तो अकेले मध्यप्रदेश में इस साल अगस्त 2016 तक रैगिंग के 32 मामले प्रकाश में आए हैं, इसके अलावा भी निश्चित ऐसे तमाम प्रकरण होंगे, जो कि कनिष्ठ विद्यार्थियों ने भय के दबाव में आकर शिकायत स्वरूप दर्ज नहीं कराए हैं। मध्यप्रदेश की तरह यदि देश के हर राज्य में होने वाले रैगिंग के प्रकरणों पर गौर किया जाए तो हर वर्ष देश में इससे प्रताडि़त होने वाले छात्र-छात्राओं की संख्या हजारों में पहुंच जाएगी। वस्तुत: इस बढ़ती संख्या से भी रैगिंग की भयावता का पता चलता है। इसलिए इस पर जितनी जल्दी पूर्ण अंकुश लगे, उतना अच्छा है।

इस सबके बाद यूजीसी द्वारा बनाए गए इन नए नियम से अब सिर्फ उम्मीद ही की जा सकती है कि देश के सभी शिक्षण संस्थानों में आगे रैगिंग के कारण तो कम से कम अपमानित होकर कोई अपनी जान बिल्कुल नहीं गंंवाएगा।

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here