राजनीति के समझदार कह रहे हैं कि येदियुरप्पा के भाजपा से जाने के बाद पार्टी को करारा झटका मिलेगा, लेकिन फिलहाल ऐसा कुछ नहीं दिख रहा। भाजपा के रणनीतिकार इतने कच्चे नहीं कि यह मामूली बात नहीं समझते होंगे। येदि के जाने का बहुत असर पार्टी पर नहीं पड़ने वाला। पार्टी के एक गुप्त सर्वे में बताया गया है कि येदि के बगैर भी भाजपा को आसानी से 90 सीटें आ जाएंगी। थोड़ी रणनीतिक व्यवस्था की गई तो सीटों का शतक भी लगाया जा सकता है। फिलहाल 225 की विधानसभा में भाजपा के 118 विधायक हैं। सर्वे में येदि को 12 से 15 सीटें मिलने की संभावना जताई गई है। यही भाजपा को राहत देने के लिए काफी है। 12 से 15 सीटें की कीमत पर भाजपा सत्ता के लिए बार-बार ब्लैंकमेल करने वाले येदि के झंझट से मुक्ति पा सकता है। येदि पर भ्रष्टाचार का आरोप है। येदि के बलिदान से जनता के भाजपा के प्रति विश्वास बहाली की ही गुजाइश है।
वहीं भारतीय राष्टÑीय कांग्रेस कर्नाटक भाजपा में कलह के बाद टूटफूट के हालात पर मौका देखकर चौका मारने की फिराक में है। बागी येदियुरप्पा ने अपनी नई पार्टी बनाई नहीं कि कांग्रेसी चाणक्य कर्नाटक की सत्ता के लिए अनुकूल बिसात में अपनी दाल गलाने की जुगत में जुट गए हैं। येदियुरप्पा को कर्नाटक के लिंगायत समुदाय का प्रभावशाली नेता माना जाता है। कांग्रेस लिंगायत और वोकालिंगा जातीय गणित में कांग्रेस का हिसाब किताब फिट बैठाने के लिए प्रदेश के पूर्व सीएम और पूर्व विदेश मंत्री एसएम कृष्णा को आगे करने की रणनीति पर काम कर सकती है। हालांकि कर्नाटक के हालात को पहले ही कांग्रेस ने भांप लिया था। इसी कारण केंद्रीय कैबिनेट के फेरबदल में कृष्णा को सरकार से किनारे कर राज्य में भेजने का फैसला लिया गया था। अब एस एम कृष्णा को कर्नाटक भेजने की औपचारिक भर निभाना रह गया है। वोकालिंगा समुदाय का प्रतिनिधित्व करने वाले कृष्णा प्रदेश कमेटी के साथ मिलकर अगले साल होने वाली विधानसभा चुनाव में पार्टी की वैतरणी पार करने के खेवनहार के ख्वाब में है। लेकिन राजनीति का ऊंट किस करवट बैठेगा, यह तो समय ही बताएगा।