मटमैली-सी धोती और खादी के कुर्ते में एक औसत भारतीय की तरह ठेठ देहाती शख्सियत के कवि को मैंने बिजनौर कविसम्मेलन के मंच पर बैठे देखा तो अपने पास ही बैठे कवि डॉक्टर कुंअरबेचैन से इशारों-ही इशारों में जाना चाहा कि ये कौन सज्जन हैं तो उन्होंने कान में धीरे से फुसफुसाया-अदमगौंडवी। एक हतप्रभकारी अहसास की जुबिश से दिमाग में झन्नाटा हुआ। सत्ता के पाखंडको अपनी कविताओं से बेनकाब करनेवाला तेजाबी कवि इतना सहज और सरल। ऐसा लगा जैसे कोई आग है जिसने पानी के घर में ठिकाना बना लिया है। जिसकी गुनगुनी आंच में सिककर शब्द निकलते है और कविता में ढल जाते हैं। कबीर की तरह बेहद सादगी से बात कहने के अंदाज़ ने ही उन्हें जनता की आवाज़ का कवि बनाया था। अदमगौंडवी कहीं जाते तो बाद में थे उनकी कविताएं उस जगह बहुत पहले ही वहां पहुंच जाती थीं। काजू भुने हुए व्हिस्की गिलास में उतरा है रामराज विधायक निवास में अदम गौंडवी ने खूब लिखा। और खूब सुनाया। वैसे अगर वो बहुत ज्यादा नहीं भी लिखते तो कोई खास फर्क़ नहीं पड़नेवाला था. उनकी एक ही ग़ज़ल ने बल्कि यूं कहिए कि ग़ज़ल के सिऱ्फ एक ही शेर ने उन्हें शोहरत की उस बुलंदी पर पहुंचा दिया था जहां अपनी जिंदगी में वे कविता का मुहावरा बन गए थे। मेरी पहली मुलाकात सिर्फ मुलाकात नहीं एक इतिहास बनने जा रही थी। माइक पर आते ही अदम साहब ने पुरे मूड में एक-एक करके तीन-चार कविताएं पढ़ीं और श्रोताओं की खूब तालियां बटोरीं। और फिर अचानक जो कविता उन्होंने पढ़ी उसका शीर्षक सुनते ही श्रोताओं में सन्नाटा छा गया। बोले अब मेरी कविता सुनिए। शीर्षक है-चमारिन। आजके दैर में इतने बड़े जनसमुदाय के बीच ऐसी कविता पढ़ने का दुस्साहस एक मैला-कुचैला-सा क्षीणकाय कवि कर देगा इसकी किसी को उम्मीद नहीं थी। इत्तफाक से कविसम्मेलन का संचालन मैं ही कर रहा था। मैंने उन्हें कुछ और रचनाएं सुनाने का आग्रह किया तो बोले और भी कविताएं सुनाउंगा लेकिन पहले इस कविता को सुनिए। एक दलित कन्या की व्यथाको उजागर करती इतनी मार्मिक कविता मैंने आज तक नहीं सुनी थी। तमाम प्श्न उछालती सामाजिक सरोकारों से लैस दलित वाग्मय की एक जरूरी कविता।श्रोताओं ने खूब सराह इस कविता को। कार्यक्रम के समाप्त होने के बाद मंच पर कुछ लोगों ने आकर कविता का शीर्षक बडलने का सुझाव दिया तो एक दम उखड़ गए-बोले मैं वही लिखता हूं जो मेरा मन कहता है। मैं दरबारी कवि नहीं हूं। मुझे उनकी ये अदा बहुत ही भाई। ौर फिर दिल के दरवाजे खुले तो उनकी मुहब्बतों में खुलते ही चले गए। बाद में चर्चाएं मुकुट बिहारी सरोज को लेकतर चल पड़ी। तमाम रासायनिक संस्मरणों के सीरियल खुल गए। अदम साहब भी पीने-पिलाने के मामले पूरे अखिल भारतीय खिलाड़ी थे। एक-दो बार कार्यक्रम में स्वीकृति देकर भी इस चक्कर में वे नहीं पहुच पाते थे। और कभी-कभी जिस स्टेशन पर ट्रेन से उतरना होता था सोते में वह स्टेशन ही निकल जाता था। और कभी-कभी तो प्रोग्राम खत्म होने के बाद ही वे मंच पर पहुंच पाते थे। और उनका पैट बहाना होता था कि जहर खुरानी गिरोह की चपेट में आ गया था। बेहोश कर दिया। सारा सामान गायब कर दिया। किसी तरह आ पा या हूं। जो उनके करीबी थे वो इस बात को खूब जानते थे। हमारी उनसे आखिरी मुलाकात हिंदुस्तान टाइम्स के् कार्यालय में हुई। उनका साक्षात्कार लेने जो पत्रकार बंधु लगाे गये थे उनके प्रश्नों के जवाब देने के बजाय वो मुझसे पूछते थे कि इसका क्या जवाब दे दिया जाए। मैंने कहा इंटरव्यू आपका चल रहा है और जवाब आप मुझसे क्यों दिलवा रहे हैं। तो बोले इंटरव्यू कोई भी दे।
जवाब कोई भी दे। पेमेंट तो मुझे ही मिलेगा। और फिर जोर-ज़ोर से बच्चे की तरह हंसने लगे। कल मुझे फेसबुक पर कवि मित्र की पोस्ट आई कि अदम गौंडवी अस्पताल में भर्ती हैं। हमें उनके लिए कुछ मदद करनी चाहिए। मैंने लिखा कि बताएं कहां और किस पते पर मदद भेजी जाए.। एक-दो घंटे बाद ही कटनी से प्रकाश प्रलय का एसएमएस आया कि अदम गौंडवी नहीं रहे। उन्हें किसकी मदद चाहिए थी। जिसने पूरी जिंदगी खुद्दारी से गुजारी हो वो भला क्यों किसी की मदद लेता। वो अपने ही अंदाज़ में जिये और अपने ही अंदाज में चले गए। किसी की मदद नहीं ली उन्होंने। वो तो देने की ही मुद्रा में रहे। इतना कुछ दे गए हैं वो अपनी रचनाओं से कि आनेवाली पीढ़ी जब भी शायरी की बात करेगी उनकी चर्चा जरूर करेंगे।. उनकी आवाज़ आम आदमी की आवाज थी। हर आम आदमी की आवाज़ के पर्दे से अदमगौंडवी साहब झांकते रहेंगे।
यह पढकर अच्छा लगा. नीरव जी .
क्षेत्रपाल शर्मा
0 पैसे से आप चाहे तो सरकार गिरादो,
स्ंासद बदल गयी है यहां की नख़ास मंे।
जनता के पास एक ही चारा है बगा़वत,
यह बात कह रहा हूं मैं होशो हवास में।।