रोजा इफ्तार की सियासत

मृत्युंजय दीक्षित
वर्तमान समय में देश व प्रदेश के सभी राजनैतिक दल पवित्र रमजान के माह मुस्लिम समाज को पूरे जोर शोर के साथ रोजा इफ्तार की दावत दे रहे हैं । जिन दलों व नेताओं का जीरो बैंलेस में मत प्रतिशत व जनलोकप्रियता है वे भी बढ़चढ कर मुस्लिम समाज को रोजा इफ्तार दे रहे हैं। इन दावतों हर दल भारी संख्या में रोजेदारांे को बुलाने की होड़ लग जाती है। यह आयोजन अब आयोजन न होकर पूरी तरह से अपनी रानजैतिक शक्ति का प्रदर्शन अल्पसंख्यकों के बीच करने वाले आयोजन मात्र रह गये हैं। इन आयोजनों के माध्यम से सभी दल अपने आप को मुस्लिम समाज का सबसे बड़ा हितैषी घोषित करने का प्रयास करते हैं तथा इनमें कुछ सफल भी होते हैं और असफल भी। इस बार कई राज्यों में चुनाव होने जा रहे हैं जिसमें अधिकांश राज्य भाजपा के लिए सर्वाधिक महत्वपूर्ण हैं। केंद्र में पीएम मोदी के नेतृत्व में राजग की पूर्ण बहुमत की सरकार हैं। जब से कंेद्र पीएम मोदी की सरकार आयी है तब से दो साल से केंद्रीय स्तर पर रोजा इफ्तार का आयोजन पूरी तरह से बंद हो चुका है यह एक बड़ा सियासी बदलाव है। मोदी व भाजपा विरोधी इसे अल्पंसख्यक विरोधी करार दे रहे हैं। जबकि सच्चाई इससें कोसंांे दूर हैं और यह भजपा को बदनाम करने और मुस्लिमों को भाजपा के खिलाफ भड़कायें रखने की साजिश का हिस्सा हैं।
रोजा इफ्तार के कई सियासी चरण हैं। कई धर्मनिरपेक्ष दल केवल और केवल अपने सियासी गणित को फिट करने के लिए ही rojaरोजा इफ्तार की दावत करते हैं वहीं दूसरी कुछ दावतों में सामाजिक समरसता आपसी भाईचारे व कौमी एकता का भी संदेश दिया जता है। भारत में रोजा इफ्तार की दावतों के आयोजन में विगत 15 वर्षो से कुछ अधिक तेजी आयी है। उप्र की राजनीति में सपा बसपा के उदय के साथ ही इस प्रकार के आयोजनों की बाढ़ आने लग गयी अब उनकी अहमयित भी पता चलने लग गयी है। अभी तक आम जनमानस का ध्यान इधर नहीं गया था लेकिन अब इसका राजनीतिकरण व मीडियाकरण होने के बाद लोगों का ध्यान जाने लग गया है। रोजा इफ्तार राजनीति चमकाने व नये समीकरण बनाने का जरिया बन गया है। राजधानी लखनऊ में कौमी एकता दल के विलय को लेकर हुए विवाद के बीच मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने अपने सरकारी आवास में 50 हजार मुस्लिमंो को रोजा इफ्तार की दावत दी। इस दावत में मुख्यमंत्री अखिलेश यादव , मंत्री अहमद हसन सहित कई जानी मानी हस्तियांे ने भाग लिया। इस अवसर पर कई मुस्लिम धम्रगुरू भी उपस्थित हुए। लेकिन यहां पर अखिलेश के चाचा शिवपाल यादव और नगर विकास मंत्री आजम खंा अनुपस्थित रहे। इस अवसर पर मंत्री अहमद हसन ने मुसलमानों को सपा से जोडने के लिए पहल की। उन्होनें मुख्यमंत्री अखिलेश, सपा मुखिया मुलायम सिंह को मुसलमानों का सबसे बड़ा हितैषी बताया । यह एक प्रकार से खुले तौर पर धार्मिक राजनीति है की नहीं।
इसी प्रकार बसपा ने भी रोजा इफ्तार का आयोजन किया जिसमें भारी संख्या  मौलाना, मुस्लिम धर्मगुरू और पार्टी नेता शामिल हुए। बसपा की ओर से इसका आयोजन नसीमुददीन सिदीकि ने किया। इसके अलावा प्रदेश के आगामी विधानसभा चुनावांे में ताल ठोकने जा रहे छोटे दलों ने भी रोजा इफ्तार को आधार बनाकर सियासी समीकरण साधने शुरू कर दिये है। पहली बार चुनावी मैदान उतरने जा रही ओवैसी की पार्टी एआईएमआईएम भी जोर शोर से रोजा इफ्तार का आयोजन कर रही है। इसे अलावा पीस पार्टी , उनके सहयोगियों महान दल, राष्ट्रीय निषाद एकता परिषद , इंडियन मुस्लिम लीग आदि भी मुसलमानों का वोट पाने की खातिर यह सबकुछ ड्रामेबाजी कर रही हैं। लेकिन इस बार पता नहीं क्यांे कांग्रेस पार्टी ने एक बेहद सोची समझी चाल के तहत एक मुस्लिम कददावर नेता गुलाम नबी आजाद को प्रदेश प्रभारी बनाकर भेज दिया लेकिन देश के अधिकांश हिस्सों में पड़ रहे सूखे को ध्यान में रखते हुए रोजा इफ्तार जैसे आयोजन न करने का निर्णय लिया है। यह महज कांग्रेस की ड्रामेबाजी है। इस बार केंद्र सरकार वैसे तो इसप्रकार के आयोजनों से दूर है लेकिन राजनैतिक नफा नुकसान को ध्यान में रखतेहए केंद्रीय गृहमंत्री राजनाथ ंिसंह ने भी दावत में भग लिया।
वहीं दूसरी ओर राष्ट्रीय मुस्ल्मिम मंच की ओर से भी व्यापक पैमाने पर इफ्तार दावतों का आयोजन किया जा रहा है। इस बार मुस्लिम मंच ने मुस्लिम देशों के राजदूतों व उच्चायुक्तों को रोजा इफ्तार की दावत देकर एक सराहनीय पहल की है। पहले इस आयोजन में पाकिस्तानी उच्चायुक्त वासित को भी बुलाया गया था लेकिन कश्मीर घाटी के पम्पेार में ़आठ जवानों के शहीद हो जाने के बाद उनको दिया गया आमंत्रण रदद कर दिया गया। यहां पर गौरतलब बात यह है कि जब राष्ट्रीय मुस्लिम मंच इस प्रकार के आयोजन करता है तो वह टी वी मीडिया व सोशल मीडिया के एक वर्ग विशेष में विवादित हो जाता है , लोग इसे शक की निगाहों से देखते हैं जबकि वास्तव में मंच का आयोजन सामाजिक समरसता व हिंदू – मुस्लिमों को आपस में एक -दूसरे को समझने के लिए किया जाता है। आज बड़ी संख्या मुस्लिम समाज मुस्लिम मंच से जुड़ रहा है। यही बात धर्मनिरपेक्ष दलांे को रास नहीं आ रही है। रोजा इफ्तार की अन्य दावतों में मुस्लिम समाज को अल्पसंख्यक वोटबंैक के रूप में शामिल किया जाता है तथा उन्हें इस बात का अनुभव भी कराया जाता है कि वे केवल वोटबंैंक उन्हीं के है किसी और दल के नहीं हो सकते। इन दलों की नजर में मुस्लिम समाज केवल उन्हीं के लिए फतवाजारी करें और नजरंें नियायत करें। यह धर्मनिरपेक्ष दल केवल धर्मनिरपेक्षता का नकली मुखौटा लगाकर अपनी वंशवादी और भ्रष्ट राजनीति का पोषण कर रहे हैं। यह विशुद्ध धार्मिक राजनीति है। अभी दिल्ली के मुख्यमंत्री अरविंद केजरीवाल ने भी दिल्ली में अपने आप को सबसे बडा मुस्लिम हितैषी घोषित करते हुए एक बड़े रोजा इफ्तार का आयोजन किया है।
हम वास्तव इस प्रका के आयोजनांे के विरोधी नहीं है। लेकिन इनका जिस प्रकार से राजनैतिककरण किया जा रहा है उसके विरोधी हैं। इन आयोजनों में अधिकांश आयोजक अपने आप को सबसे बड़ा मुस्लिम हितेैषी बताकर बहुसंख्यक हिंदू समाज के खिलाफ जमकर भड़काते हैं। वैसे भी इस प्रकार के आयोजनों के खिलाफ कई मुस्लिम संगठन फतवे भी जारी कर चुके हैं लेकिन यह बदस्तूर जारी है और बढता ही जा रहा है। पता नहीं इस प्रकार के आयोजनों काविस्तार इतना अधिक क्यों होता जा रहा है। जबकि मुस्लिम देशों में भी इस प्रकार की बाढ़ नहीं आती है। यह बात सही है कि यह मुस्लिम समाज का एक बड़ा पर्व हैं जिसमें भाईचारे का संदेश निहित है। लेकिन भारत के राजनैतिक दल इस भाईचारे को स्वार्थी परम्परा में बदल रहे हैं। मुस्लिम समाज अब हमारे देश का अभिन्न अंग बन चुका है तथा उसको भी बड़े दिल के साथ आगे आना चाहिये तथा उसे जिसप्रकार का सम्मान मिल रहा है तो फिर उसे भी दूसरे धर्मो के प्रतीकों का उसी प्रकार से सममान करना चाहिये व आदर करना चाहिये। यह नहीं कि सुरसा की तरह अपनी हर गलत मांग को मनवाने के लिए जोर डालना शुरूकर देना चाहिये। अब मुस्लिम समाज को स्वतंत्र आधार पर निर्णय लेने की क्षमता को विकसित करना होगा नही तो मुस्लिम समाज वोट के ठेकेदारों का गुलाम बनकर रह जायेगा। यदि मुस्लिमों को वास्तव में विकास की आंधी में आना है तो उसे अपने विचारों में परिपक्वता दिखानी होगी। इफ्तारी राजनीति से ऊपर उठना होगा।
मृत्युंजय दीक्षित

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