बिहार की राजनीति में एनडीए की कलह, दे सकती है थर्ड फ्रंट को जन्म !

 मुरली मनोहर श्रीवास्तव   

बिहार विकास की पटरी पर दौड़ रहा है। इस बात से सभी इत्तेफाक रखते हैं। जिस बिहार ने जंगलराज से लेकर नरसंहार तक की काली तस्वीरों को देखा है आज उस बिहार का नक्शा पूरी तरह से बदला हुआ नजर आ रहा है। इस बदलते बिहार की तस्वीर के लिए एनडीए अपनी पीठ थपथपाती रही है। बात में दम भी है, जो काम करेगा उसका नाम तो होगा ही। इस सूबे की सत्ता के शीर्ष पर बैठे मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कई नए प्रयोग कर बिहार के विकास में खुद को मिल का पत्थर साबित करने में कामयाब रहे हैं। इस कामयाबी में जदयू और भाजपा दोनों की भूमिका से किसी तरह का परहेज नहीं किया जा सकता है। लेकिन इधर कुछ दिनों से या यों कहें कि केंद्र में दूसरी बार पूर्ण बहुमत में एनडीए की सरकार के आने के बाद भाजपा के स्वर बदलने लगे हैं तो जदयू भी अपनी वोट की राजनीति करने से बाज नहीं आ रहा है। बिहार विधानसभा चुनाव करीब है। और एनडीए में आपसी दरार का अंदेशा नजर आ रहा है !

एनडीए में जुबानी जंग जारी

बिहार की सत्ता में बैठे एनडीए गठबंधन के दोनों प्रमुख दलों के बीच आपसी जुबानी जंग का दौर जारी है। इस जंग में भाजपा इस बार कुछ ज्यादा तल्ख नजर आ रही है और इस बार तो बिहार नेतृत्व पर ही सवाल खड़ा कर दिया है। इससे पहले भी तीन तलाक से लेकर धारा 370 पर कई बार भाजपा और जदयू आमने-सामने आ चुके हैं। बिहार विधान सभा चुनाव 2020 होने में अब कुछ ही महीने बचे हुए हैं, उससे पहले भाजपा के वरिष्ठ नेताओं के जुबानी प्रहार कुछ और मतलब निकल रहा है।

बिहार एनडीए में बिखराव की स्थिति !

“अब किसी कीमत पर बिहार की राजनीति में भाजपा छोटे भाई की हैसियत में नहीं रहना चाहती” भाजपा विधान पार्षद सह पूर्व केंद्रीय मंत्री संजय पासवान ने इस तरह का बयान देकर बिहार की राजनीति में एक नया बखेड़ा खड़ा कर दिया है। इतना से भी जब जी नहीं भरा तो यह भी कह दिया कि बिहार की सत्ता सुशील कुमार मोदी को सौंप देनी चाहिए। बिहार में पहली बार किसी राजनेता ने सुशील मोदी को सत्ता सौंपने का हवाला देकर नयी चाल चली है। श्री पासवान ने यहां तक कह दिया है की सुशील मोदी बिहार में ही रहें और नीतीश कुमार को दिल्ली चले जाना चाहिए। इनके इस बयान से तो इतना ही कहा जा सकता है कि किसी ने किसी तरीके से इस बार बिहार के मुख्यमंत्री की कुर्सी पर भाजपा की नजर टिकी हुई है।

बिहार से ज्यादा झारखंड का विकास हुआ !

झारखंड की राजधानी रांची में कुछ दिन पहले जदयू की बैठक में बिहार के मुख्यमंत्री नीतीश कुमार ने कहा कि पिछले 19 सालों से झारखंड में ज्यादातर एक ही पार्टी की सरकार रही है, इसके बावजूद विकास में राज्य पिछड़ गया है। नीतीश के इस बयान के बाद भाजपा आक्रामक हो गई है। भाजपा के वरिष्ठ नेता पूर्व केंद्रीय मंत्री डॉ.सीपी ठाकुर ने नीतीश कुमार पर झारखंड में विकास मसले पर पलटवार करते हुए कहा कि बिहार से ज्यादा झारखंड का विकास हुआ है। साथ ही श्री ठाकुर ने ये भी कहा है कि जदयू के राष्ट्रीय उपाध्यक्ष प्रशांत किशोर तो व्यवसायी हैं, बंगाल में भी यह फेलियोर साबित होंगे।

एनआरसी मुद्दे पर भाजपा-जदयू आमने सामने

असम के बाद बिहार के सीमांचल में रह रहे घुसपैठियों को लेकर आरएसएस नेताओं सहित बिहार भाजपा के वरिष्ठ नेताओं ने नीतीश पर निशाना साधना शुरू कर दिया है। कुछ दिन पहले राज्यसभा सांसद राकेश सिन्हा ने बिहार में एनआरसी लागू करने को लेकर कहा था कि सूबे के सीमांचल इलाके में घुसपैठियों की भारी तादाद मौजूद है। यहां भी एनआरसी लागू होना जरूरी है। इसके बाद जदयू के राष्ट्रीय महासचिव केसी त्यागी ने पलटवार करते हुए कहा था कि एनआरसी की जरूरत बिहार जैसे राज्य में बिल्कुल नहीं है। जबकि भाजपा किसी भी कीमत पर एनआरसी के मुद्दे को छोड़ना नहीं चाहती है। वहीं दूसरी तरफ अल्पसंख्यक वोटरों को रिझाने की फिराक में जदयू एनआरसी का विरोध कर रही है। केंद्रीय मंत्री गिरिराज सिंह ने एनआरसी के मुद्दे पर कहा कि सीमांचल इलाके में जनसंख्या विस्फोट का कारण बंग्लादेशी घुसपैठिये हैं इसलिए बिहार जैसे प्रदेश में एनआरसी को लागू करना बहुत जरूरी हैं। वहीं भाजपा नेता राम नारायण मंडल भी सीमांचल में बांगलादेशी घुसपैठियों को जनसंख्या विस्फोट का बड़ा कारण मानते हैं। बिहार विधानसभा चुनाव करीब है इससे पहले भाजपा और जदयू अपने-अपने वोटरों को चिन्हित कर रिझाने में लगे हुए हैं।

थर्ड फ्रंट से इंकार नहीं किया जा सकता है

बिहार में एनडीए गठबंधन की सरकार चल रही है। बिहार में एनडीए की सरकार में शामिल भाजपा-जदयू के बीच वही रिश्ता कायम है, जो एक सरकार चलाने के लिए जरूरी होता है। लेकिन बिहार के बाहर निकलते ही जदयू और भाजपा के नेता एक दूसरे के खिलाफ बोलने से बाज नहीं आ रहे हैं। दरअसल, झारखंड में सभी सीटों पर जदयू अकेले चुनाव लड़ने वाली है। अब ऐसे में देखने वाली बात ये है कि अगर इस तरह से दोनों दलों के बीच जुबानी जंग का दौर जारी रहा तो इसका फायदा महागठबंधन उठा सकता था मगर उसके अंदरखाने में भी कुछ ऐसा ही नजारा देखने को मिल रहा है। अगर ऐसी ही स्थिति बनी रही तो बिहार में थर्ड फ्रंट की भूमिका से इंकार नहीं किया जा सकता है।

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