राष्ट्रपति तो ठीक है, उपराष्ट्रपति कौन बनेगा?

राज गुजर

चुनाव आयुक्त ने राष्ट्रपति चुनाव के लिए तिथियां घोषित कर दीं. राजनीतिक दलों की पटरी बैठी तो अब आगामी 19 जुलाई को राष्ट्रपति निर्विरोध निर्वाचित कर दिया जाएगा, अगर नहीं तो मतदान होगा और देश को नया राष्ट्रपति मिल जाएगा. उम्मीद की जानी चाहिए कि इस बार सोनिया गांधी के किचेन गार्डेन से निकालकर किसी को मुगल गार्डेन की सैर नहीं करायी जाएगी. चलिए, राष्ट्रपति पद पर कुछ ऐका कुछ सहमति और कुछ राजनीति तो समझ में आ रही है लेकिन ठीक राष्ट्रपति के साथ उपराष्ट्रपति का भी चुनाव होना है. उपराष्ट्रपति कौन बनेगा?

कल पहली बार भाजपा ने रेगिस्तान से निकालकर एक उम्मीदवार सामने किया है. मरुस्थल से निकलकर भैरोसिंह शेखावत उपराष्ट्रपति पद की शोभा पहले ही बढ़ा चुके हैं. एनडीए का गणित खराब हो गया और भैरो दादा का स्वास्थ्य भी नहीं, तो कौन जाने भैरो दादा राष्ट्रपति पद तक पहुंचते. इस बार जब जसवंत सिंह ने मुलायम सिंह यादव से मुलाकात की तब देश दुनिया को याद आया कि राष्ट्रपति के साथ उपराष्ट्रपति पद पर भी किसी का निर्वाचन होना है.

कहते हैं कालेधन पर रामदेव के साथ चर्चा के लिए इकट्ठा हुए मुलायम सिंह ने जसवंत सिंह को फिलहाल कोई साफ संदेश नहीं दिया लेकिन राजनीतिक गणित यही कहता है कि अगर यूपीए अपना निर्विरोध राष्ट्रपति चाहता है तो उसे उपराष्ट्रपति का पद एनडीए को सौंपना होगा. अगर ऐसा होता है तो राजनीतिक रूप से यह स्वस्थ्य निर्णय होगा जिसकी उम्मीद फिफ्टी फिफ्टी है. अभी के जो हालात हैं उसमें मुलायम सिंह यादव और ममता बनर्जी न केवल यूपीए के लिए बल्कि एनडीए के लिए भी बहुत अहम हो गये हैं. इसके दो कारण हैं. पहला दोनों के पास राष्ट्रपति चुनाव के मद्देनजर सबसे ज्यादा वोट बैंक है. दूसरा, उत्तर प्रदेश के मतों की कीमत देश में सबसे ज्यादा है क्योंकि आबादी के लिहाज से उत्तर प्रदेश सबसे सघन प्रदेश है. राष्ट्रपति चुनाव के लिए इस वक्त 7 प्रतिशत मताधिकार मुलायम सिंह के पास है, इसलिए राष्ट्रपति और उपराष्ट्रपति दोनों ही पदों पर मुलायम और ममता की अहमियत बहुत अधिक हो गई है.

तमिलनाडु और उड़ीसा से समर्थन बटोरकर लाये पीए संगमा को एनडीए का साथ मिला या नहीं, इसका पत्ता अभी नहीं खोला गया है. लेकिन ऐसा लगता भी नहीं है कि एनडीए के पास कोई ऐसा उम्मीदवार है जिसे वह राष्ट्रपति भवन के लिए आगे कर दे. उसका सारा जोर होगा कि वह उपराषट्रपति भवन पर अपना आदमी बिठा सके ताकि कम से कम एक सदन में उसके दल का मुखिया विराजमान हो सके. तब सवाल यह है कि क्या मुलायम सिंह यादव और ममता बनर्जी का महत्व यूपीए के साथ साथ एनडीए के लिए भी महत्वपूर्ण हो जाता है.

वैसे राजीनीतिक गलियारों में चर्चा यह भी है कि भाजपा डॉ मुरली मनोहर जोशी का नाम उपराष्ट्रपति पद के लिए प्रस्तावित करने के लिए तैयार बैठी है. अगर ऐसा होता है तो कम से कम सोनिया गांधी के साथ जोशी के मधुर संबंधों का लाभ मिलेगा नो वाला फिफ्टी यस वाले फिफ्टी के साथ आ मिलेगा और कौन जाने जोशी जी अगले उपराष्ट्रपति बन जाएं. फिलहाल, दीदी के समर्थन के बाद दादा की दावेदारी पक्की हो जाएगी उसके बाद ही उपराष्ट्रपति पद के लिए गुणा गणित शुरू होगा. सवाल मुलायम सिंह के सामने होगा कि वे पंडित जोशी को अपना समर्थन देंगे या फिर किसी मौलाना हामिद के नाम पर मुहर लगा देंगे.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here